मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है और अगर लोकतंत्र का चौथा स्तंभ खतरे में पड़ जाए तो लोकतंत्र अपने आप ही खतरे में आ जाएगा। हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय गैर-लाभकारी संगठन रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (आरएसएफ, फ्रेंच में रिपोर्टर्स सेन्स फ्रंटियर्स) ने विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक जारी किया। इस रिपोर्ट में पाया गया कि भारत 180 देशों में 159वें स्थान पर है। वहीं भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान 152वें स्थान और श्रीलंका 150वें स्थान पर है। इस साल भारत पिछले साल के मुकाबले दो पायदान ऊपर उठा है, जबकि 2023 में 180 देशों में भारत की रैंकिंग 161 पर थी।
रैंकिंग में आए इस मामूली सकारात्मक बदलाव के बावजूद, भारत के स्कोर में गिरावट देखी गई, जो 36.62 से गिरकर 31.28 हो गया और सुरक्षा संकेतक को छोड़कर सभी श्रेणियों में स्कोर में कमी आई है। आरएसएफ़ की रैंकिंग का आधार, राजनीतिक संदर्भ, कानूनी ढांचा, आर्थिक संदर्भ, सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भ और सुरक्षा है। इस रिपोर्ट में भारत,तुर्की,पाकिस्तान, नेपाल और श्रीलंका से भी पीछे है।
क्या कहा गया है रिपोर्ट में
रिपोर्ट में कहा गया है कि सूचकांक में कुछ देशों की बेहतर रैंकिंग एक ‘भ्रामकता’ पैदा करती है, जबकि उन देशों के स्कोर में गिरावट आई है। सूचकांक में हुई वृद्धि, पहले उनसे ऊपर रहने वाले देशों के प्रेस की स्वतंत्रता में आए गिरावट का परिणाम है। रिपोर्ट में कहा गया है, भारत पिछले साल के 161वें स्थान के मुकाबले इस साल 159वें स्थान पर आ गया है, जबकि हाल ही में भारत में अधिक कठोर कानून बने हैं फिर भी भारत रैंकिंग में दो पायदान ऊपर आ गया है।
मीडिया पर सरकार का दबाव
रिपोर्ट की अनैलिसिस में कहा गया है कि पत्रकारों के खिलाफ़ हिंसा, अत्यधिक केंद्रित मीडिया ओनर्शिप और राजनीतिक झुकाव के साथ, हिन्दुत्व के समर्थक भारतीय जनता पार्टी के नेता और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के 2014 से शासित दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में प्रेस की स्वतंत्रता संकट में है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत में आज तक नौ पत्रकारों और एक मीडियाकर्मी को हिरासत में लिया गया है, जबकि जनवरी 2024 के बाद से देश में किसी भी पत्रकार या मीडियाकर्मी की हत्या नहीं की गई है। मीडिया की स्वतंत्रता पर बढ़ते प्रतिबंधों के बीच, भारतीय अधिकारियों ने पत्रकारों को कथित तौर पर आतंकवाद और देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया है, और नियमित रूप से आलोचकों और स्वतंत्र समाचार संगठनों को निशाना बनाया है, जिसमें उनके कार्यस्थलों पर छापेमारी भी शामिल है।
अप्रैल 2022 में, दिल्ली में हिंदू राष्ट्रवादी समूहों द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम को कवर करने वाले कम से कम पांच पत्रकारों पर हमला किया गया था। मार्च 2022 में, मुंबई में हवाई अड्डे के अधिकारियों ने प्रमुख मुस्लिम महिला पत्रकार और भाजपा की मुखर आलोचक राणा अय्यूब को एक पत्रकारिता कार्यक्रम को संबोधित करने के लिए लंदन जाने से रोक दिया। एक अन्य मुस्लिम पत्रकार सिद्दीक कप्पन अक्टूबर 2020 से जेल में थे, जब उत्तर प्रदेश पुलिस ने उन्हें कथित रूप से आतंकवाद, राजद्रोह और समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने सहित अन्य बेबुनियाद आरोपों में गिरफ्तार किया था। वहीं 2017 से, भाजपा नेता योगी आदित्यनाथ के राज्य के मुख्यमंत्री बनने के बाद, सरकार ने 66 पत्रकारों के खिलाफ़ आपराधिक मामले दर्ज किए हैं। पत्रकारों पर हमले के खिलाफ़ समिति की फरवरी 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, अन्य 48 पत्रकारों पर शारीरिक हमला किया गया है।
बात जम्मू कश्मीर की
बात जम्मू और कश्मीर की करें, तो बीजेपी सरकार ने अगस्त 2019 में राज्य की विशेष स्वायत्त स्थिति को रद्द करने और इसे केंद्र शासित क्षेत्रों में विभाजित करने के बाद से, कश्मीर में कम से कम 35 पत्रकारों को उनकी रिपोर्टिंग के लिए पुलिस पूछताछ, छापे, धमकी, शारीरिक हमले, आंदोलन करने की स्वतंत्रता के अधिकार पर प्रतिबंध या मनगढ़ंत आपराधिक मामलों का सामना करना पड़ा है। अधिकारियों ने पत्रकारों और कार्यकर्ताओं के घरों पर छापेमारी की है और फोन जब्त कर लिए हैं। जून 2020 में, सरकार ने एक नई मीडिया नीति की घोषणा की जो सरकार को क्षेत्र में समाचारों को सेंसर करने की अधिक शक्ति देता है।
आरएसएफ के विश्लेषण में कश्मीर की स्थिति को बहुत चिंताजनक बताया है, जहां पत्रकारों को अक्सर पुलिस और अर्धसैनिक बलों द्वारा परेशान किया जाता है। इनमें से कुछ को कई वर्षों तक तथाकथित ‘अस्थायी’ हिरासत में रखा जाता है। पत्रकारों की सुरक्षा की बात करें तो रिपोर्ट में बताया गया है कि, भारत में अब तक नौ पत्रकारों और एक मीडियाकर्मी को हिरासत में लिया गया है, जबकि जनवरी 2024 के बाद से देश में किसी भी पत्रकार या मीडियाकर्मी की हत्या नहीं हुई है। रिपोर्ट के अनुसार ऐसे पत्रकार, जो सरकार की आलोचना करते हैं, उन्हें नियमित रूप से ऑनलाइन उत्पीड़न, धमकी, शारीरिक हमलों के साथ-साथ आपराधिक मुकदमों और मनमाने ढंग से गिरफ़्तारी का सामना करना पड़ता है।
मोदी सरकार के शासन काल में मीडिया से जुड़े कानून में बदलाव
रिपोर्ट के अनुसार मोदी सरकार ने कई नए कानून पेश किए हैं जो सरकार को मीडिया को नियंत्रित करने, समाचारों को सेंसर करने और आलोचकों को चुप कराने की असाधारण शक्ति देंगे, जिनमें 2023 दूरसंचार अधिनियम, 2023 मसौदा प्रसारण सेवा (विनियमन) विधेयक और 2023 डिजिटल डेटा पर्सनल संरक्षण अधिनियम शामिल हैं। 2014 में पीएम मोदी के सत्ता में आने के बाद से भारत का मीडिया ‘अनौपचारिक आपातकाल’ की स्थिति में आ गया है और उन्होंने अपनी पार्टी, भाजपा और मीडिया पर हावी बड़े परिवारों जैसे अडानी और अम्बानी के बीच एक शानदार तालमेल बनाया है। रिपोर्ट में एक उदाहरण देते हुए बताया गया है कि रिलायंस इंडस्ट्रीज समूह के मालिक मुकेश अंबानी 70 से अधिक मीडिया आउटलेट के मालिक हैं, जिन्हें कम से कम 800 मिलियन भारतीय फॉलो करते हैं। 2022 के अंत में गौतम अडानी, जो मोदी के भी करीबी माने जाते हैं, द्वारा एनडीटीवी चैनल का अधिग्रहण, मुख्यधारा मीडिया में बहुलवाद के अंत का संकेत देता है।
रिपोर्ट के अनुसार सिर्फ़ भारत ही नहीं एशिया में कई देशों की प्रेस स्वतंत्रता की स्थिति बेहद खराब हुई है। वहीं मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका के, लगभग आधे देशों में स्थिति ‘बहुत गंभीर’ है। इजरायली सेना द्वारा लगातार कब्जा और बमबारी के कारण फिलिस्तीन, पत्रकारों के लिए सबसे घातक देश के रूप में, सूचकांक में सबसे नीचे है। अगर यूरोपीय देशों की बात करें तो वहां प्रेस की स्वतंत्रता ‘अच्छी’ है। विशेष रूप से यूरोपीय संघ के भीतर, जिसने अपना पहला मीडिया स्वतंत्रता कानून (EMFA) अपनाया है। साल 2024 में जहां दुनिया की आधी से ज़्यादा आबादी मतदान करने जा रही है, ऐसे में यह रिपोर्ट विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में एक चिंताजनक परिस्थिति की चेतावनी दे रहा है।
प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा करने में राज्य और अन्य राजनीतिक ताकतें घटती भूमिका निभा रही हैं। राज्य द्वारा पत्रकारों और मीडिया का उपयोग राजनीतिक लाभ के लिए किए जाने की वजह से, पत्रकारों की भूमिका कमज़ोर होती नज़र आ रही है। द गार्जियन में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, आरएसएफ ने आर्टफिशल इन्टेलिजेन्स के बढ़ते उपयोग पर भी चिंता व्यक्त की है जहां राजनीतिक उद्देश्यों के लिए गलत सूचना के प्रसार में इसके उपयोग को रिपोर्ट ने ‘परेशान करने वाला’ बताया है। आर्टफिशल इन्टेलिजेन्स और डीप फ़ेक के उपयोग से चुनावों को प्रभावित किया जा रहा है। भारतीय लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कही जाने वाली मीडिया के लिए इस रिपोर्ट कई चिंताएं व्यक्त की हैं। देखना ये है कि आने वाले समय में मीडिया के स्वतंत्रता का क्या होगा।