समाजमीडिया वॉच मेनस्ट्रीम मीडिया के जातिवादी वर्चस्व के बीच खुद की आवाज़ गढ़ता बहुजन मीडिया

मेनस्ट्रीम मीडिया के जातिवादी वर्चस्व के बीच खुद की आवाज़ गढ़ता बहुजन मीडिया

ऑक्सफैम इंडिया की साल 2019 की एक रिपोर्ट के अनुसार भारतीय मीडिया के एक बड़े हिस्से पर किसी खास जाति का वर्चस्व है। इसका यह अर्थ नहीं है कि बहुजन समाज के पास उचित मात्रा में योग्य पत्रकार या मीडियाकर्मी नहीं हैं बल्कि उनके लिए सभी मुख्यधारा के मीडिया संस्थानों के दरवाजे अप्रत्यक्ष रूप से बंद हैं।

मुख्यधारा की भारतीय मीडिया पर हमेशा से ही सवाल उठते रहे हैं। चाहे वह किसी मुद्दे को लेकर एकतरफा पक्ष रखना या हो या न्यूजरूम में काम करनेवाले लोगों में एक ही जाति वर्ग को शामिल करना हो। देखा जाए तो लंबे समय से देश के दलितों, वंचितों, किसानों, महिलाओं की आवाज़ मीडिया में दबा दी जाती है। खबरें छापने की बजाय छिपा दी जाती हैं। इसी बीच बहुजन मीडिया का तेजी से उदय होना मेनस्ट्रीम मीडिया की शाख़ और संरचना पर सवाल खड़े करता है।

गहनता से देखेंगे तो हम पाएंगे कि बहुजन या दलित समाज के विशाल कार्यक्रम या ऐतिहासिक आंदोलन भारतीय मेनस्ट्रीम मीडिया की कवरेज से बाहर होते हैं। उदाहरण के तौर पर चाहे वह 2 अप्रैल 2018 का एससी/एसटी ऐक्ट में संशोधन के विरोध में भारत बंद हो या फिर दीक्षाभूमि, नागपुर में हर साल आंबेडकर जयंती पर लाखों लोगों का जमावड़ा हो। इस तरह के कार्यक्रम मीडिया में अपनी जगह नहीं बना पाते या फिर उन्हें दूसरा एंगल दे दिया जाता है।

बाबा साहब डॉ. भीमराव आंबेडकर ने कहा था कि वंचितों का अपना मीडिया होना चाहिए। उन्होंने अपने समय में मूकनायक (1930), बहिस्कृत भारत (1927-1929), जनता(1930-1956) और प्रबुद्ध भारत (1956) जैसी समाचार पत्र- पत्रिकाएं निकाली। मूकनायक के पहले संपादकीय में बाबा साहब लिखते हैं,  “मुंबई से निकलने वाले समाचार पत्रों को बारीकी से देखा जाए तो पता चलता है कि उनमें अधिकतर पत्र किसी विशिष्ट जाति के हित को संरक्षित करते हैं। दूसरी जातियों की उन्हें परवाह नहीं। इतना ही नहीं, कभी–कभी उन्हें नुकसान पहुंचाने वाली बातें भी उन पत्रों में दिखाई देती हैं।”

देश के वंचित तबके के लोग बाबा साहब के कहेनुसार खुद का मीडिया स्थापित करने में लगे हैं और काफ़ी हद तक सफल भी हुए हैं। आज के समय में बहुजन समाज के खुद के कई बड़े बुक पब्लिकेशन, कई लाखों सब्सक्राइबर वाले यूट्यूब चैनल, वेब पोर्टल, वेब साइट, पत्र पत्रिका आदि मौजूद हैं।

बाबा साहब की प्रेरणा से ही बहुजन समाज ने अपना मीडिया होने की जरूरत महसूस की।हालांकि मूकनायक के 103 साल पूरे होने के बाद भी आज तक मुख्यधारा में कोई बहुजन न्यूज चैनल खड़े होने के रास्ते में कई चुनौतियां मौजूद हैं। लेकिन कई सारे यूट्यूब चैनल और वेबपोर्टल जरूर हैं जिन पर करोड़ों बार वीडियो या खबर पढ़ी या देखी जा चुकी है। नेशनल दस्तक, दलित दस्तक, न्यूज़ बीक, मूकनायक, द लाइव टीवी, तथागत लाइव, आवाज इंडिया टीवी, बुद्धा लाइव, दलित वाइस, अंबेडकराइट पीपल्स वाइस जैसे छोटे छोटे यूट्यूब चैनल अपने आपको स्थापित करने में लगे हैं। फिलहाल बहुजन मीडिया का आधार सिर्फ यूट्यूब और वेब पोर्टल तक सीमित है।

कई ऐसे बहुजन पत्रकार हैं जिन्हें जातिवादी मानसिकता के चलते तथाकथित मेनस्ट्रीम मीडिया की नौकरी छोड़नी पड़ी। इन कई मामलों ये यह निकलकर आता है कि जब तक वंचित समाज खुद का मीडिया नहीं स्थापित कर लेता तब तक उनकी आवाज यूंही दबी रहेगी। उनसे जुड़े हर मुद्दों की गलत और जातिवादी पूर्वाग्रहों के साथ रिपोर्टिंग होती रहेगी। मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना गया है। इसीलिए यदि देश का मीडिया अपना काम निष्पक्ष व स्पष्ट रूप से नहीं करेगा तो लोकतंत्र का बुनियादी ढांचा संभवतः ही गिर जाएगा।

मूकनायक के पहले संपादकीय में बाबा साहब लिखते हैं,  “मुंबई से निकलने वाले समाचार पत्रों को बारीकी से देखा जाए तो पता चलता है कि उनमें अधिकतर पत्र किसी विशिष्ट जाति के हित को संरक्षित करते हैं। दूसरी जातियों की उन्हें परवाह नहीं। इतना ही नहीं, कभी–कभी उन्हें नुकसान पहुंचाने वाली बातें भी उन पत्रों में दिखाई देती हैं।”

भारतीय मीडिया की निष्पक्षता व स्वतंत्रता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स के मुताबिक कुल 180 देशों की लिस्ट में भारत प्रेस की आज़ादी में 161वें स्थान पर खड़ा है। ऑक्सफैम इंडिया की साल 2019 की एक रिपोर्ट के अनुसार भारतीय मीडिया के एक बड़े हिस्से पर किसी खास जाति का वर्चस्व है। इसका यह अर्थ नहीं है कि बहुजन समाज के पास उचित मात्रा में योग्य पत्रकार या मीडियाकर्मी नहीं हैं बल्कि उनके लिए सभी मुख्यधारा के मीडिया संस्थानों के दरवाजे अप्रत्यक्ष रूप से बंद हैं। इसी बीच देश के वंचित तबके के लोग बाबा साहब के कहेनुसार खुद का मीडिया स्थापित करने में लगे हैं और काफ़ी हद तक सफल भी हुए हैं। आज के समय में बहुजन समाज के खुद के कई बड़े बुक पब्लिकेशन, कई लाखों सब्सक्राइबर वाले यूट्यूब चैनल, वेब पोर्टल, वेब साइट, पत्र पत्रिका आदि मौजूद हैं।

पत्रकारिता के बारे संक्षेप में बाबा साहब आंबेडकर लिखते हैं, “भारत में पत्रकारिता पहले एक पेशा थी। अब वह एक व्यापार बन गई है। अखबार चलाने वालों को नैतिकता से उतना ही मतलब रहता है जितना कि किसी साबुन बनाने वाले को। पत्रकारिता स्वयं को जनता के जिम्मेदार सलाहकार के रूप में नहीं देखती। भारत में पत्रकार यह नहीं मानते कि बिना किसी प्रयोजन के समाचार देना, निर्भयतापूर्वक उन लोगों की निंदा करना जो गलत रास्ते पर जा रहे हो फिर चाहे वे कितने ही शक्तिशाली क्यों न हों, पूरे समुदाय के हितों की रक्षा करने वाली नीति को प्रतिपादित करना उनका पहला और प्राथमिक कर्तव्य है। व्यक्ति पूजा उनका मुख्य कर्तव्य बन गया है। भारतीय प्रेस में समाचार को सनसनीखेज बनाना, तार्किक विचारों के स्थान पर अतार्किक जुनूनी बातें लिखना और जिम्मेदार लोगों की बुद्धि को जाग्रत करने के बजाय गैरज़िम्मेदार लोगों की भावनाएं भड़काना आम बात हैं। व्यक्ति पूजा की खातिर देश के हितों की इतनी विवेकहीन बलि इसके पहले कभी नहीं दी गई। व्यक्ति पूजा कभी इतनी अंधी नहीं थी जितनी कि वह आज के भारत में है। मुझे यह कहते हुए प्रसन्नता होती है कि इसके कुछ सम्मानित अपवाद हैं, परंतु उनकी संख्या बहुत कम है और उनकी आवाज़ कभी सुनी नहीं जाती।”


स्रोत:

  • (बाबासाहेब, डॉ.आंबेडकर, संपूर्ण वांग्मय, खंड-1, पृ.273)

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