भारत में श्रम बाजार में महिलाओं और पुरुषों के लिए न तो हालात एक से हैं, न वेतन। ऑक्सफैम भारत की भेदभाव रिपोर्ट 2022 ने देश में लैंगिक वेतन अंतर और श्रम बाजार में महिलाओं की असमानता को उजागर किया है। रिपोर्ट के अनुसार, देश के ग्रामीण क्षेत्रों में, किसी पुरुष के साथ नौकरी के लिए प्रतिस्पर्धा करने वाली महिला को अपने जेंडर के कारण भेदभाव का सामना करने की 100 प्रतिशत संभावना होती है, जबकि शहरी क्षेत्रों में महिलाओं को नौकरी पाने की संभावना मात्र दो प्रतिशत है। सामाजिक दबाव और नियोक्ताओं के पूर्वाग्रह, महिलाओं को काम पर रखने के प्रति पूर्वाग्रह में योगदान करते हैं। यह भेदभाव केवल नौकरी पाने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसका प्रभाव वेतन पर भी पड़ता है, जिससे महिलाओं का वेतन पुरुषों की तुलना में 67 प्रतिशत कम है।
श्रम बल में महिलाओं की कम भागीदारी
भारत में महिला श्रम बल भागीदारी दर केवल 18 फीसद है, जो पुरुषों की तुलना में तीन गुना कम है। अगर इस असमानता को ठीक किया जाए, तो भारत का सकल घरेलू उत्पाद 27 फीसद बढ़ सकता है। हालांकि, महिलाओं की काम चुनने की क्षमता को प्रभावित करने वाले कानूनों पर बहुत कम या कोई शोध नहीं है। मौजूदा शोध से पता चलता है कि जेंडर-विशिष्ट कानूनी प्रतिबंध महिलाओं के रोजगार को नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं और औपचारिक क्षेत्र में उनके परिवर्तन को कठिन बनाते हैं। विभिन्न देशों में इन प्रतिबंधों को हटाने से महिलाओं और अर्थव्यवस्थाओं पर सकारात्मक परिणाम देखने को मिले हैं।
राज्य स्तरीय कानूनी प्रतिबंध और उनके प्रभाव
प्रॉस्पेरिटी की भेदभाव की स्थिति रिपोर्ट यह बताती है कि राज्य स्तर पर प्रतिबंध किस हद तक महिलाओं के काम करने के विकल्पों को छीन लेते हैं। रिपोर्ट में राज्य स्तरीय कानूनों और अधिनियमों को सूचीबद्ध किया गया है जो विशिष्ट प्रकार की नौकरियों में या दिन के कुछ घंटों के दौरान महिलाओं के रोजगार पर प्रतिबंध लगाते हैं। एक विश्लेषणात्मक ढांचे का उपयोग करते हुए, रिपोर्ट मापती है कि भारतीय राज्य महिलाओं के खिलाफ किस हद तक भेदभाव करते हैं।
औद्योगिक रोजगार में महिलाओं के अवसरों पर प्रतिबंध
भारत में नौकरी के लिए महिलाओं को उनके जेंडर के कारण भेदभाव का सामना करना पड़ता है। भारत में यह भेदभाव 150 से अधिक कानूनों द्वारा समर्थित है, जो कुछ उद्योगों में महिलाओं के रोजगार को प्रतिबंधित या सीमित करते हैं। विशेष रूप से पेट्रोलियम उत्पादन, तेल और रिचार्जेबल बैटरी जैसे उत्पादों का निर्माण, और शराब बेचने या परोसने वाले प्रतिष्ठानों में, खासकर रात के समय महिलाओं के रोजगार पर सख्त प्रतिबंध हैं। रिपोर्ट में भारत के 23 राज्यों का मूल्यांकन महिलाओं पर चार प्रकार के प्रतिबंधों के आधार पर किया गया है:
- रात में काम करना
- खतरनाक समझी जाने वाली नौकरियों में काम करना
- कठिन समझी जाने वाली नौकरियों में काम करना
- नैतिक रूप से अनुचित समझी जाने वाली नौकरियों में काम करना
- महिलाओं को काम चुनने की स्वतंत्रता
कौन से राज्य महिलाओं को काम चुनने की स्वतंत्रता प्रदान करते हैं
केरल, तमिलनाडु और गोवा जैसे राज्य महिलाओं को काम चुनने की सबसे बड़ी स्वतंत्रता प्रदान करते हैं, जबकि ओडिशा, मेघालय, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में महिलाओं के रोजगार पर सबसे अधिक प्रतिबंध हैं। 2024 की एक रिपोर्ट से पता चला है कि केवल कुछ राज्यों ने महिलाओं के रात में रोजगार पर प्रतिबंधों में ढील दी है। लेकिन अधिकांश राज्यों में कानूनी बाधाएं अभी भी व्यापक रूप से मौजूद हैं।
महिलाएं रात में काम क्यों नहीं कर सकतीं
इंडिया डेवलपमेंट रिव्यू में छपी एक खबर मुताबिक भारतीय राज्यों में 50 से अधिक अधिनियम और 150 नियम महिलाओं को रात में काम करने से रोकते हैं। महिलाएं रात में (शाम 6 बजे के बाद), या कठिन मानी जाने वाली नौकरियों (जैसे भूमिगत खदानें, भारी वस्तुएं उठाना), खतरनाक मानी जाने वाली नौकरियों (जैसे कुछ फैक्ट्री प्रक्रियाएं), और नैतिक रूप से अनुचित (जैसे शराब की बिक्री से जुड़ी नौकरियां) में काम नहीं कर सकती हैं। 11 भारतीय राज्यों में महिलाएं रात में काम नहीं कर सकतीं। इन प्रतिबंधों को सरकारें महिलाओं की सुरक्षा और यौन हिंसा को रोकने के लिए आवश्यक मानती हैं। हालांकि, कई व्यवसायों में महिलाओं को रात में काम करने की अनुमति है, लेकिन नियोक्ताओं को कई निषेधात्मक शर्तों का पालन करना पड़ता है, जो महिलाओं के लिए नौकरी के अवसरों को सीमित करती हैं। उदाहरण के लिए, अधिकांश राज्यों में नियोक्ताओं को नाइट शिफ्ट में महिला श्रमिकों का न्यूनतम अनुपात बनाए रखना होता है, जिससे नाइट शिफ्ट में महिलाओं को नौकरी देना कठिन हो जाता है।
कुछ राज्य महिलाओं को कार्यालयों और सिनेमाघरों से लेकर गोदामों और अस्पतालों तक के व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में रात में काम करने की अनुमति देते हैं। बिहार, छत्तीसगढ़ और गुजरात जैसे राज्यों में निरीक्षकों को ‘संतुष्ट’ होना आवश्यक है। यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि प्रतिष्ठान महिलाओं की गरिमा, सम्मान और सुरक्षा की पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करते हैं और आश्रय, शौचालय और रात के क्रेच जैसी अनिवार्य सुविधाएं प्रदान करते हैं। अमूमन इन नियमों का पालन कंपनियां नहीं करती। ऐसे में महिलाओं को कम वेतन पर नौकरी देना या न रखना ज्यादा आसान है। हालाँकि कुछ भारतीय राज्यों ने महिलाओं को रात में काम करने से प्रतिबंध हटाया है। पर आज भी ये काफी नहीं है। 2022 से, आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों ने उन कानूनों को ख़त्म कर दिया है जो महिलाओं को रात में काम करने से रोकते हैं। आंध्र प्रदेश में महिलाओं को अब रात में कारखाने में काम करने की अनुमति है, और मध्य प्रदेश में महिलाएं व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में रात के समय काम कर सकती हैं।
सुरक्षा के नाम पर रूढ़िवादी नियम
फ़ैक्टरी अधिनियम और अन्य श्रम कानूनों के तहत, महिलाओं को दिन में भी विभिन्न औद्योगिक प्रक्रियाओं में काम करने से प्रतिबंधित किया गया है। ये कानून इस धारणा पर आधारित हैं कि कुछ औद्योगिक प्रक्रियाएं महिलाओं के लिए बहुत खतरनाक हो सकती हैं। 2022 के बाद से, किसी भी राज्य ने ‘खतरनाक’ नौकरियों में महिलाओं के रोजगार पर प्रतिबंधों में ढील नहीं दी है। नए और बढ़ते उद्योगों और बेहतर मुआवजे वाले कामों में महिलाओं की भागीदारी भी कम हो गई है। 2022 के बाद से, किसी भी राज्य ने ‘खतरनाक’ नौकरियों में महिलाओं के रोजगार पर प्रतिबंधों में ढील नहीं दी है। नए और बढ़ते उद्योगों और बेहतर मुआवजे वाले कामों में महिलाओं की भागीदारी भी कम हो गई है।
महिलाओं को उच्च वेतन वाली नौकरियों से बाहर रखना
भारत की आधी से अधिक नियोजित महिला आबादी कृषि कार्यों में लगी हुई है। औद्योगिक क्षेत्र में 88 फीसद और सेवा क्षेत्र में 71 फीसद भारतीय महिलाएं अनौपचारिक कर्मचारी हैं। 2015 में भारत में पूर्णकालिक कर्मचारियों की औसत कमाई में सबसे बड़ा लैंगिक अंतर था। कपड़ा कारखानों में, महिलाएं संख्या और उत्पादकता में सबसे अहम भूमिका निभाती हैं, फिर भी सुपरवाइसर भूमिकाओं में उनकी भागीदारी कम है। फैक्टरी अधिनियम और अन्य श्रम कानूनों के तहत, महिलाओं को दिन के दौरान भी विभिन्न औद्योगिक प्रक्रियाओं में काम करने से प्रतिबंधित किया गया है। पारंपरिक उद्योगों में भी, कानून महिलाओं को अधिक वेतन वाली नौकरियों से बाहर कर सकता है।
इन कानूनों के तहत महिलाओं को कुछ औद्योगिक प्रक्रियाओं में काम करने से रोका गया है, जिनमें गिलास और तेल उत्पादन शामिल हैं, जो अधिक मुआवजा देने वाले काम हैं। गिलास उत्पादन कार्य में न्यूनतम वेतन 13,428 रुपये है, जबकि कागज़ उत्पादन में 11,105 रुपये है। महाराष्ट्र में महिलाओं को गिलास उत्पादन कार्य से प्रतिबंधित किया गया है, जबकि कागज़ उत्पादन में वे काम कर सकती हैं। यह भेदभाव कीटनाशक उत्पादन और बीड़ी कार्य में भी है, जहां कीटनाशक उत्पादन का न्यूनतम वेतन अधिक है और बीड़ी का कम।
लैंगिक भेदभाव और रूढ़िवादिता
भारत के 10 सबसे अधिक आबादी वाले राज्य सामूहिक रूप से महिलाओं पर औद्योगिक प्रक्रियाओं में 139 प्रतिबंध लगाते हैं। जैसे कर्नाटक में महिलाएं अपघर्षक ब्लास्टिंग में काम कर सकती हैं, लेकिन महाराष्ट्र में नहीं। इसी तरह, कुछ राज्य महिलाओं को शराब उद्योग में काम करने की अनुमति देते हैं, जबकि अन्य नहीं। पंजाब जैसे राज्य यह तर्क देते हैं कि शराब परोसने से महिलाओं को नशे की लत लग सकती है, जो स्पष्ट रूप से असंगत है। महिलाओं के खिलाफ भेदभाव को समाप्त करने के लिए कानूनों और रूढ़िवादिता को बदलने की आवश्यकता है।
अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों के तहत, देशों को लिंग भूमिकाओं में रूढ़िवादिता को दूर करने की आवश्यकता होती है। भारतीय कानूनों को भी इस दिशा में बदलाव करने की जरूरत है। यह आवश्यक है कि सरकारें और समाज मिलकर इन मुद्दों का समाधान करें ताकि महिलाओं को समान अवसर और अधिकार मिल सकें। महिलाओं की श्रम बाजार में भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए कानूनी और सामाजिक बाधाओं को दूर करना आवश्यक है। यह न केवल महिलाओं के लिए बल्कि पूरे समाज और अर्थव्यवस्था के लिए लाभकारी होगा।