ब्राह्मणवादी पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं के जीवन को हमेशा नियंत्रित किया जाता है। जीवन के हर पड़ाव पर उन पर नैतिक पाबंदी लगाकर उसे हाशिये पर जीने के लिए मजबूर किया जाता है। आपको क्या पहनना है, आपको कैसे बाल संवारने हैं, कौन सा रंग पहनना है, किससे बात करनी है, कब प्यार करना है और किससे साथ सेक्स करना है जैसी हर बातों को पितृसत्तात्मक मानदंडों के द्वारा तय किया जाता है। महिलाओं के शरीर पर निगरानी रखी जाती है। महिलाओं को यह तक बताया जाता है कि उन्हें अपने शरीर को कैसे रखना है। बचपन से ही छोटी लड़कियों को इस तरह की सीख देनी शुरू हो जाती है और जीवन के हर पड़ाव पर उनके जीवन की पुलिसिंग चलती रहती है। इस पुलिसिंग के तहत उनके यौन, प्रजनन एवं स्वास्थ्य अधिकारों का उल्लंघन किया जाता है।
नैतिकता के आधार पर स्त्रियों के जीवन पर पाबंदियां लादी जाती रहती है। समाज उसके शरीर पर उसको अधिकार तक नहीं देता है। स्त्री के शरीर को परिवार की इज्ज़त से जोड़ कर देखा जाता है। महिलाएं परिवार और कुल की इज्ज़त है इस आधार पर उनकी यौनिकता को हमेशा जकड़ कर रखा जाता है। शुद्धता की सामाजिक परिभाषाओं के बाहर अगर कोई स्त्री कदम रखती है तो पितृसत्तात्मक कायदे-कानून के तहत उसको सजा दी जाती है। वहीं दूसरी ओर, पुरुषों को उनके शरीर की जांच और समाज द्वारा किसी तरह की पाबंदी तक का समना नहीं करना पड़ता है।
महिलाओं की यौनिकता पर जिस तरह से निगरानी रखी जाती है, उसका अधिकांश हिस्सा हमेशा किसी नुकसान से बचाने के नाम पर किया जाता है। यौन हिंसा के केस में विक्टिम ब्लेमिंग करने वाले हमेशा महिलाओं को यह उपदेश देते नज़र आते है कि अगर हमें बलात्कार से बचना है तो हमें ढ़ग के कपड़े, पूरे शरीर को ढ़कने वाले कपड़े पहनने है, शाम को नहीं निकलना है आदि। युवा उम्र में विशेष तौर पर किशोर लड़कियों की यौनिकता पर पाबंदियां लगाई जाती है। किशोर लड़कियों को “सुरक्षित” रखने के लिए कई तरह की चीजें की जाती हैं। हालांकि सुरक्षा के नाम पर किए गए उपायों के उल्टे परिणाम देखने को मिलते हैं। किशोरावस्था में किशोर लड़कियों पर पाबंदी लगाने, उनकी इच्छाओं को दबाने से कई तरह से नुकसानों का सामना करना पड़ता है। इस तरह की पाबंदियां उनकी शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर डालती है।
एक अध्ययन में पाया गया है कि 18 साल से अधिक उम्र के जिन किशोरों ने किसी को अपनी न्यूड तस्वीर भेजी थी उनमें से तीन-चौथाई से अधिक ने कहा है कि इससे कोई बुरा परिणाम नहीं हुआ है। वहीं 12 फीसदी लड़कियां जिन्होंने दबाव में आकर सेक्सटिंग की थी उन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ा। यहां इस बाद पर ध्यान देने की आवश्यकता है कि सेक्स एजुकेशन पर खुलकर बात हो। लड़कियों की सहमति और स्वायत्ता के बारे में बात हो, साथ ही लड़कों को इस बात के बारे में समझाया जाए कि दो लोगों के बीच किसी भी तरह के रिश्ते के लिए आपसी सहमति होनी सबसे ज़रूरी चीज है। नैतिकता के आधार पर संयम की शिक्षा का पाठ केवल लड़कियों को न दिया जाए और न ही उन्हें शर्मिंदा किया जाए।
‘अच्छी लड़की’ होने की शिक्षा ने सदियों से महिलाओं को इस दुनिया में सामंजस्य बिठाने के लिए तैयार करने में काफी नुकसान किया है, जिसमें उन्हें एक आदर्श पत्नी बनने की अपेक्षा की गई है। चुने जाने और बहिष्कृत न होने के लिए, उन्होंने खुद को लगातार इसी तरह होने की क्षमता विकसित की। खुद को बचाए रखना है जैसी बातों पर जोर दिया है। दिल्ली में एक निजी कंपनी में काम करने वाली साक्षी का कहना है कि मुझे हमेशा से ऐसा लगता जैसे मेरी सेक्स में रूचि होना कोई गलत बात है। उसके बारे में सोचना मुझे ग्लानि तक भर देता था यही कारण है कि लंबे समय तक जब तक मैं अपने घर के माहौल में रही मुझे यही ख्याल रहता था कि मुझे किसी भी तरह अपने शरीर को फिलहाल इन सब चीजों से बचाकर रखना है। ठीक इसी तरह अपने कॉलेज तक अपनी नानी के साथ रहने वाली माही का कहना है, “हमारे परिवार, सोसायटी के द्वारा बचपन से हमारी ऐसी कंडीशनिंग होती है कि जब आप सेल्फ लव, प्लेजर के बारे में समझ रहे होते हो तो बाद में खुद की भावनाओं को महत्व देने पर आपके भीतर एक किस्म का गिल्ट पैदा होता है। सालों से सुनी आ रही सीख की वजह से ही यह स्थिति पैदा होती है। मुझे खुद की चाहतों को महत्व देने और समझने के लिए लंबा समय लगा।”
छोटी लड़कियों हो या महिलाओं पर समाज की पुलिसिंग की वजह से वे खुत को लेकर असहज महसूस करने लगती है। उनके भीतर आत्मविश्वास की कमी तक हो सकती है। दुनिया भर में महिलाओं की यौनिकता को नियंत्रित किया जाता है। यौनिकता पर नैतिकता को भारी करके उनके यौन और प्रजनन अधिकारओं को हनन किया जाता है। समाज में इज्ज़त के नाम पर एक तरफ जहां महिलाओं और लड़कियों की सेक्स लाइफ को शादी के नाम पर कंट्रोल किया जाता है। वही दुनिया भऱ में दस में से एक 18 साल से भी कम उम्र की लड़कियों को यौन संबंध बनाने या यौन एक्ट के लिए मजबूर किया गया है। हालांकि वास्तविक संख्या इससे कही अधिक हो सकती है।
हमारे स्वास्थ्य, शरीर, और यौन जीवन के बारे में बारे में फैसले लेने की क्षमता एक बुनियादी मानव अधिकार है। आप चाहे जो भी हों, जहां भी रहते हों, आपको इन विकल्पों को बिना डर, हिंसा या भेदभाव के चुनने का अधिकार है। फिर भी पूरी दुनिया में लोग अपने शरीर और जीवन के बारे में निर्णय लेने के लिए हिंसा, उत्पीड़न, भेदभाव, गिरफ्तारी तक का सामना करते हैं। एक महिला को गर्भ निरोधक इसलिए नहीं दी जाती है कि उसके पास पति की अनुमति नहीं है। एक किशोरी को अबॉर्शन से इसलिए दूर किया जाता है कि क्योंकि अबॉर्शन अवैध है या फिर महिला विवाहित नहीं है। यह जीवन, शरीर हमारा है और इसके बारे में फैसले लेने का अधिकार भी हमारा है। हमारे शरीर, यौनिकता को लेकर समाज के द्वारा की जाने वाली पुलिसिंग, रूढ़िवादी विचारों के ऊपर हमें खुलकर बोलना होगा। अगर हम चुप्पी तोड़ते हैं, तो सरकारों को आगे आकर लोगों के शरीर और जीवन के बारे में निर्णय लेने के अधिकारों की रक्षा करनी होगी। यौन और प्रजनन अधिकार मानवाधिकार हैं। ये सभी का अधिकार हैं।