समाजख़बर महंगाई और घरेलू खर्च: भारतीय समाज की चुनौतियां

महंगाई और घरेलू खर्च: भारतीय समाज की चुनौतियां

स्वतंत्रता के बाद पहली बार भोजन पर औसत घरेलू खर्च आधे से कम हो गया है। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाह परिषद (ईएसी-पीएम) द्वारा तैयार किए गए इस पेपर के अनुसार, आधुनिक भारत में यह पहली बार है कि भोजन में औसतन खर्च परिवार के कुल मासिक खर्च के आधे से भी कम है, जो कि महत्वपूर्ण पतन का प्रतीक है।

भारतीय समाज में विभिन्न वर्ग, समुदाय और धर्म के लोग रहते हैं। कुछ आर्थिक रूप से मजबूत हैं, तो कुछ बेहद कमजोर हैं। वर्तमान समय में घरेलू सामग्री की लागत इतनी बढ़ गई है कि आयात करना मुश्किल हो गया है, चाहे वह अनाज हो, सब्जी हो, या द्रवित पदार्थ हो। हर चीज़ का मूल्य आसमान छू रहा है, जिससे आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों का जीवन संघर्षपूर्ण हो गया है। उनके लिए परिवार का सही ढंग से पालन-पोषण और दो वक्त का भोजन जुटाना अब कठिन हो गया है।

हमारी देश की महंगाई से जूझ रही है और किसी भी चीज़ को खरीदना अब आसान नहीं रहा। इस बीच, एक रिपोर्ट आई है जिसमें बताया गया है कि स्वतंत्रता के बाद पहली बार भोजन पर औसत घरेलू खर्च आधे से कम हो गया है। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाह परिषद (ईएसी-पीएम) द्वारा तैयार किए गए इस पेपर के अनुसार, आधुनिक भारत में यह पहली बार है कि भोजन में औसतन खर्च परिवार के कुल मासिक खर्च के आधे से भी कम है, जो कि महत्वपूर्ण पतन का प्रतीक है। कुल मिलाकर सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में रहने वाले परिवारों के औसत मासिक प्रति व्यय में व्यापक वृद्धि हुई है।

मैं अपने परिवार की अकेली कामकाजी हूं। मेरे दो बच्चे हैं जिनका पालन-पोषण, स्कूल और स्वास्थ्य आदि के खर्चे मुझे ही देखने होते हैं। अब किसी भी चीज़ को कम दाम में प्राप्त करना मुश्किल हो गया है। बाजार जाने के बाद कुछ खरीदने की हिम्मत नहीं होती।

क्या सचमुच घरेलू खर्च में बचत है

यह जानना बेहद जरूरी है कि क्या वाकई में लोग घरेलू खर्च में बचत कर पा रहे हैं। इतनी महंगाई होने के बावजूद मध्यवर्ग और गरीब परिवार के लोग किस तरह से गुजर-बसर कर रहे हैं? दिलशाद, एक 35 वर्षीय दिल्ली निवासी, कहती हैं, “मैं अपने परिवार की अकेली कामकाजी हूं। मेरे दो बच्चे हैं जिनका पालन-पोषण, स्कूल और स्वास्थ्य आदि के खर्चे मुझे ही देखने होते हैं। अब किसी भी चीज़ को कम दाम में प्राप्त करना मुश्किल हो गया है। बाजार जाने के बाद कुछ खरीदने की हिम्मत नहीं होती। पहले जो चीज़ दस रुपये के एक पाव मिलती थी, वही अब सत्तर-अस्सी रुपये के एक पाव मिल रही है। हरी सब्ज़ी खरीदी कई महीने हो गए हैं; किसी भी तरह से गुज़ारा करना पड़ रहा है।”

तस्वीर साभार: Canva

दिलशाद आगे कहती हैं, “महंगाई बढ़ती जा रही है और वेतन वही है। बाजार इतना महंगा हो गया है कि अब मन मारकर रहना पड़ता है। पहले जो चीज़ जब मन होता तब बन जाती थी, वही अब ऐसा है कि जब बाकी खर्चों से पैसा बचता है, तब ही मन की चीज़ बना पाती हूं। वरना ज्यादातर समय दाल बनाती हूं, जिसमें पानी की मात्रा ज्यादा और दाल कम होती है। इस तरह से किसी तरह दो वक्त का जुगाड़ हो पा रहा है।”

आधी से ज्यादा सैलरी घरेलू खर्च में निकल जाती है। महंगाई अपने चरम पर है; पहले जो चीज़ हम एक किलो खरीदते थे, वही अब सौ ग्राम खरीदते हैं ताकि पैसे बच जाएं। मैं बहुत कम पढ़ी-लिखी हूं, इसलिए सही जगह पर काम नहीं मिल पाता। एक घरेलू कामगार के रूप में काम करती हूं जिसमें बहुत कम पैसा मिलता है और नौकरी छूटने का भी डर रहता है

ग्रामीण और शहरी खर्च में वृद्धि

घरेलू उपयोग व्यय सर्वेक्षण 2011-12 और 2022-23 के बीच तुलना करें, तो ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति मासिक खर्च खपत में 164 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि शहरी क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति मासिक खर्च में 146 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। ग्रामीण भारत में खाद्य व्यय, कुल घरेलू उपभोग का लगभग 46 फीसद है, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह लगभग 39 फीसद है। इस प्रकार, बढ़ती महंगाई के कारण बहुत से लोगों का जीवन प्रभावित हो रहा है, खासकर उन समुदायों पर जो हाशिये पर हैं और जो दिन दो से पांच सौ रुपये जैसे न्यूनतम पैसे कमा पाते हैं। वे कैसे बचत कर सकते हैं, जब दो वक्त का खाना भी सही से नहीं मिल पाता? इस विषय पर उतर प्रदेश की निवासी दिल्ली में रह रही 45 वर्षीय पूनम कहती हैं, “मैं गाँव छोड़कर शहर आई थी ताकि यहां नौकरी करके परिवार का अच्छे से पालन-पोषण कर सकूं और बच्चों को पढ़ा-लिखाकर एक मुकाम पर पहुंचा सकूं। लेकिन अब लगता है कि यह सपना शायद ही पूरा हो पाए।”

फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए श्रेया टिंगल

वह आगे कहती हैं, “आधी से ज्यादा सैलरी घरेलू खर्च में निकल जाती है। महंगाई अपने चरम पर है; पहले जो चीज़ हम एक किलो खरीदते थे, वही अब सौ ग्राम खरीदते हैं ताकि पैसे बच जाएं। मैं बहुत कम पढ़ी-लिखी हूं, इसलिए सही जगह पर काम नहीं मिल पाता। एक घरेलू कामगार के रूप में काम करती हूं जिसमें बहुत कम पैसा मिलता है और नौकरी छूटने का भी डर रहता है। बढ़ती जिम्मेदारियों और महंगाई के कारण हालात इतने खराब हैं कि जैसे-तैसे सब चल रहा है। पोष्टिक आहार खाए हुए महीने हो गए हैं। रोज एक पाव सब्जी लाती हूं और उसे ही बनाती हूं ताकि वह दोनों समय चल सके। बचत करने के बाद भी आधे महीने में पैसे खत्म हो जाते हैं क्योंकि हर घरेलू सामग्री महंगी हो गई है।”

पहले जो चीज़ जब मन होता तब बन जाती थी, वही अब ऐसा है कि जब बाकी खर्चों से पैसा बचता है, तब ही मन की चीज़ बना पाती हूं। वरना ज्यादातर समय दाल बनाती हूं, जिसमें पानी की मात्रा ज्यादा और दाल कम होती है। इस तरह से किसी तरह दो वक्त का जुगाड़ हो पा रहा है।

प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना

‘द प्रिंट’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना (PMGKAY) अप्रैल 2020 में कोविड-19 महामारी के कारण हुए आर्थिक व्यवधानों को दूर करने के लिए शुरू की गई थी। शुरुआत में, 2020-21 में PMGKAY की घोषणा केवल 3 महीने (अप्रैल-जून) की अवधि के लिए की गई थी, लेकिन इसे सात चरणों में दिसंबर 2022 तक बढ़ा दिया गया था, जिससे 80 करोड़ लाभार्थियों को फायदा हुआ है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, भारतीय अर्थव्यवस्था में विकास हुआ है। लेकिन यह विकास जमीनी स्तर पर कितना दिखाई देता है? बिहार की निवासी 35 वर्षीय सरिता दिल्ली में रहती हैं। वह कहती हैं, “देश में विकास पीछे की ओर हो रहा है। यहां कोई भी महंगाई से खुश नहीं है। हमारी सैलरी का अधिकांश हिस्सा घरेलू खर्च में ही निकल जाता है। पहले जहां हम दो प्याज सब्ज़ी में डालते थे, अब एक प्याज डालते हैं या बिना प्याज डाले ही देखती हैं कि स्वाद कैसा है। पहले एक लीटर तेल 80 रुपये में मिलता था, वही अब 180 रुपये में मिल रहा है। हर चीज़ पहले के मुकाबले दोगुना महंगा हो गया है। ऐसे समय में देश की अर्थव्यवस्था से वही लोग खुश होंगे जो धनी हैं। मैं बहुत दुखी हूं।”

देश में विकास पीछे की ओर हो रहा है। यहां कोई भी महंगाई से खुश नहीं है। हमारी सैलरी का अधिकांश हिस्सा घरेलू खर्च में ही निकल जाता है। पहले जहां हम दो प्याज सब्ज़ी में डालते थे, अब एक प्याज डालते हैं या बिना प्याज डाले ही देखती हैं कि स्वाद कैसा है।

सरिता आगे कहती हैं, “अब बाजार जाना भी कम कर दिया है क्योंकि हर चीज़ महंगी हो गई है और महंगाई लगातार बढ़ रही है। अब खाना स्वाद के लिए नहीं, बल्कि पेट भरने के लिए बनाया जाता है। कैसे भी करके खर्चा मैनेज किया जा रहा है और यह भी सोचा जा रहा है कि कैसे पैसा बढ़ाया जाए ताकि खर्चे संभाले जा सकें, क्योंकि सरकार से कोई उम्मीद नहीं है।” हमारे समाज में ऐसे भी लोग हैं जिन्हें बहुत सी चीज़ें आसानी से नहीं मिल पातीं। वे आर्थिक रूप से इतने मजबूत नहीं होते कि चीज़ें खरीद सकें। बढ़ती महंगाई का सबसे ज्यादा प्रभाव उन लोगों पर पड़ता है जो गरीब हैं या हाशिये पर हैं। ऐसे लोगों का जीवन बहुत तनावपूर्ण रहता है। भारत में बढ़ती महंगाई एक बड़ा और चुनौतीपूर्ण विषय है। भोजन, जो इंसान के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है, अगर हम भरपेट खाना और पोष्टिक आहार नहीं ले पाएंगे, तो हम सही तरीके से काम कैसे कर पाएंगे? आंकड़ों में भारत भले ही प्रगति के पथ पर चल रहा हो, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि हम अभी भी विकास से काफी दूर हैं।

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