इंटरसेक्शनलजेंडर गैस से चूल्हे और अशिक्षा की ओर औरतों को दोबारा ढकेल रही है बढ़ती महंगाई

गैस से चूल्हे और अशिक्षा की ओर औरतों को दोबारा ढकेल रही है बढ़ती महंगाई

जब गाँव में महिलाओं की ये स्थिति देखती हूं तो कई बार ऐसा लगता है कि बेशक महंगाई में आम आदमी की कमर तोड़ दी है लेकिन इस महंगाई की मार महिलाओं पर कई गुना ज़्यादा पड़ती है। जैसे ही घर का बजट बिगड़ता है तो सबसे पहली कटौती महिलाओं के ही संसाधनों पर होती है।

करधना बसुहन गाँव में रहनेवाली राधिका को अपनी कोचिंग की पढ़ाई रोकनी पड़ी, क्योंकि उसके बड़े भाई को रोज़ कॉलेज पढ़ने शहर जाना होता है। पेट्रोल के बढ़े दाम ने राधिका के घर का पूरा बजट बिगाड़ दिया है। इसलिए घरवालों ने आर्थिक तंगी को देखते हुए उसका कोचिंग जाना बंद करवा दिया। इस बारे में राधिका बताती हैं, “मैं इस साल बारहवीं में हूं, मेरी अंग्रेज़ी कमज़ोर है। इसलिए मैंने कोचिंग में एडमिशन लिया था। लेकिन महंगाई इतनी बढ़ गई है कि घर का खर्च चलना मुश्किल हो गया है। इसलिए मुझे अपनी कोचिंग की पढ़ाई रोकनी पड़ी।”

चित्रसेनपुर गाँव की दलित बस्ती में रहनेवाली हेमा को चूल्हे के धुएं से आंखों में काफ़ी दिक़्क़त हुई थी, जिसके बाद उन्होंने उज्ज्वला योजना के तहत गैस का कनेक्शन लिया था। लेकिन गैस के दाम बढ़ने की वजह से अब वह गैस नहीं ख़रीद पा रही हैं। इसलिए उन्हें अब दोबारा चूल्हा पर खाना बनाना पड़ रहा है। हेमा कहती हैं, “आंख में काफ़ी दिक़्क़त होती है चूल्हे पर खाना बनाने में। लेकिन अब इस महंगाई में और कोई चारा नहीं है। पहले रोज़ के खाने का बंदोबस्त देखें या आंख का इलाज करवाएं। इसलिए दवा लेकर खाना बनाती हूं जिससे आंखों की समस्या ज़्यादा न बढ़े।”

और पढ़ें: बढ़ती महंगाई पर चुप्पी और गांव में मुसहर समुदाय के सवाल

दो वक्त के खाने के लिए संघर्ष करतीं मंजू

महंगाई की इस समस्या को लेकर जब हमने काशीपुर गाँव में रहनेवाली शकुंतला देवी से बात की तो उन्होंने बताया,”हम लोग पिछले तीन महीने से गैस भरवाना छोड़ चुके हैं। गैस का दाम इतना ज़्यादा बढ़ चुका है कि इसने पूरे महीने भर का बजट बिगाड़ दिया है। हम लोग खेती-किसानी करनेवाले लोग हैं और सब्ज़ी उगाकर मंडी में बेचते हैं। गैस के बाद पेट्रोल का दाम इतना बढ़ा कि अब जितना हम लोग सब्ज़ी से कमाते नहीं है उतना तो मंडी तक पहुंचने के साधन में चला जाता है। इसलिए हम लोग फिर से चूल्हे पर खाना बनाने को मजबूर हैं।”

जब गाँव में महिलाओं की ये स्थिति देखती हूं तो कई बार ऐसा लगता है कि बेशक महंगाई में आम आदमी की कमर तोड़ दी है लेकिन इस महंगाई की मार महिलाओं पर कई गुना ज़्यादा पड़ती है। जैसे ही घर का बजट बिगड़ता है तो सबसे पहली कटौती महिलाओं के ही संसाधनों पर होती है।

45 डिग्री तापमान में चूल्हा फूंकती हुई खरगूपुर गाँव की रेशमा कहती हैं, “इतनी गर्मी में हम लोगों के लिए खाना बनाना एक बड़ी समस्या बन गया है। ऊपर वाला इतनी गर्मी से मार रहा है और सरकार महंगाई से। जब मोदी सरकार ने उज्जवला योजना शूरू किया तो हम लोग बहुत खुश हुए। यहां तक कि अपनी रसोई भी घर के अंदर कर ली यह सोचकर कि अब तो गैस पर खाना बनाएंगे तो धुएं की समस्या नहीं होगी। हम लोग आराम के घर के भीतर रहेंगे पर गैस का दाम इतना ज़्यादा बढ़ा कि हम लोग फिर से घर के बाहर चूल्हे पर खाना बनाने को मजबूर हो गए हैं।” जब गाँव में महिलाओं की ये स्थिति देखती हूं तो कई बार ऐसा लगता है कि बेशक महंगाई में आम आदमी की कमर तोड़ दी है लेकिन इस महंगाई की मार महिलाओं पर कई गुना ज़्यादा पड़ती है। जैसे ही घर का बजट बिगड़ता है तो सबसे पहली कटौती महिलाओं के ही संसाधनों पर होती है।

और पढ़ें: चूल्हे का धुआँ महिलाओं के लिए बन रहा है जानलेवा बीमारियों की वजह

आज गैस, पेट्रोल, तेल, सब्ज़ी, फ, अनाज आदि जैसे ज़रूरी सामानों की बढ़ती क़ीमतों ने आम ज़िंदगी को और भी संघर्षपूर्ण बना दिया गया है। इस साल महंगाई ने पिछले आठ सालों का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। अप्रैल में खुदरा महंगाई दर उछलकर 7.79% पर जा पहुंची। लगभग हर चीज के दाम में उछाल आया है। गैस के दाम एक हज़ार से ऊपर जा रहे और पेट्रोल के सौ को पार करके आगे बढ़ रहे है और सरकार ज़मीनी मुद्दों को छोड़कर न जाने किस विकास के काम में व्यस्त है। अभी की सरकार ने जितने बड़े-बड़े दावे किए थे अब वे सब ढ़ेर होते दिखाई पड़ रहे है।

महिलाओं के विकास और सशक्तिकरण की बात और उनके नाम पर तमाम योजनाएं लानेवाली सरकार एक समय के बाद कहां ग़ायब हो जाती है? जब महिलाएं उनके विकास की योजनाओं का हिस्सा बनने के बाद महंगाई की मार झेलने को मजबूर होती हैं।

जिस बनारस ज़िले से विकास के वादे किए गए थे, उसी ज़िले के कितने गाँव की मुसहर बस्ती में लोग इस तपती धूप और गर्मी से बचने के लिए बगीचों में रहने को मजबूर हैं। सिर्फ़ इसलिए क्योंकि उनके सिर पर कोई छत नहीं है। इतना ही नहीं, साफ़ पीने के पानी की व्यवस्था न होने की वजह से उन्हें आज भी एक लोटा पानी लेने के लिए तथाकथित ऊंची जातिवालों की गालियां सुननी पड़ रही हैं। यह उसी बनारस ज़िले की सच्चाई है, जहां से विकास के लिए करोड़ों की योजनाओं का ऐलान किया गया।

और पढ़ें: विकास का ‘आदर्श ग्राम’ और ‘मॉडल ब्लॉक’ आज भी बुनियादी सुविधाओं से अछूता कैसे है?

जिस बनारस ज़िले में विकास के नाम पर न जाने कितनी योजनाओं के दावे किए गए, आज उसी ज़िले की जनता महंगाई से त्राहिमाम कर रही है, लेकिन इस पर कहीं कोई खबर नहीं है। ऐसा क्यों ये मेरे लिए कह पाना मुश्किल है पर जितना समझ आता है उससे यही लगता है कि सरकार के लिए महंगाई या आम जनता से जुड़े मुद्दे, उनके मुद्दे है ही नहीं। इसलिए महंगाई की बात आते ही वह दुनिया की राजनीति का हवाला देने लगते हैं।

इसके साथ ही हम लोगों को यह भी समझना होगा कि महिलाओं के विकास और सशक्तिकरण की बात और उनके नाम पर तमाम योजनाएं लानेवाली सरकार एक समय के बाद कहां ग़ायब हो जाती है? जब महिलाएं उनके विकास की योजनाओं का हिस्सा बनने के बाद महंगाई की मार झेलने को मजबूर होती हैं। राशन, शिक्षा, पेट्रोल या गैस दाम चाहे किसी भी चीज़ के बढ़ें पर कटौती महिलाओं को सबसे पहले करने पड़ती है। यह महंगाई का वह पहलू है जिसे हमेशा से नज़रअंदाज़ किया जाता रहा है। बस हम बस महंगाई को ‘आम आदमी की समस्या’ कहकर हम आगे बढ़ जाते हैं, लेकिन इस आम आदमी के घर की आम औरत को इस महंगाई का क्या प्रभाव झेलना पड़ता है, इस पर बात करने और इन समस्याओं को सामने लाने की ज़रूरत है।

और पढ़ें: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव: हमेशा की तरह आज भी मुसहर समुदाय के नेतृत्व का ज़िक्र तक नहीं है


सभी तस्वीर रेनू द्वारा उपलब्ध करवाई गई हैं।

Leave a Reply

संबंधित लेख

Skip to content