संस्कृतिसिनेमा सत्ता और समाज पर सवाल उठाती निठारी हत्याकांड पर आधारित फिल्म ‘सेक्टर-36’

सत्ता और समाज पर सवाल उठाती निठारी हत्याकांड पर आधारित फिल्म ‘सेक्टर-36’

फिल्म में निर्देशक ने पुलिस, सिस्टम और समाज को अच्छा आइना दिखाने की कोशिश की है। वहीं एक तरफ यह भी दिखाया गया है कि शहर में एक अमीर घर के लड़के का अपहरण हो जाता है। पूरा पुलिस महकमा इसी केस के पीछे लग जाता है और दो ही दिन में उसे ढूंढ लेते हैं।

साल 2006। टीवी पर ‘करोड़पति’ बनाने वाला शो चल रहा है और एक युवक सोफे पर उल्टा लेटकर टीवी देख रहा है। वह इस शो का इतना तगड़ा फैन है कि शो में सवालों के जवाब देने आए मेहमान से ज्यादा उसे सही जवाब पता हैं। कुछ देर बाद वह सोफे से उठता है, एक थाली में मीठ खाकर बर्तन साफ करता है और हड्डियों को अलग रखता है। अबतक यह फिल्म का एक सामान्य सीन है। अगले ही दृश्य में वह बाथरूम में जाता दिखता है, जहां एक लड़की की लाश पड़ी हुई है। वह बिना एक सेकंड गंवाए छुरे से उसके पांव की तरफ से लगता है और बेरहमी से टुकड़े-टुकड़े कर देता है। यह दृश्य देखकर शरीर में सिहरन सी दौड़ जाती है। 13 सितंबर को नेटफ्लिक्स पर आई फिल्म ‘सेक्टर-36’ नोएडा के निठारी में हुए भयावह और दिल दहला देने वाले घटना की याद दिला देता है। 

फिल्म की कहानी 

नोएडा के निठारी गांव से एक के बाद एक लगातार छोटे बच्चे गायब हो रहे है। परिवार थाने के चक्कर काट कर थक चुके हैं। लेकिन, पुलिस उनकी बात मानने को तैयार नहीं है। उन्हें लगता है कि गरीब घरों के बच्चे ऐसे ही भाग जाते हैं और कुछ समय बाद वापस आ जाते हैं, जबकि लड़कियां लड़कों के साथ भाग जाती हैं, जो अपनेआप ही घर आ जाएंगी। पुलिस को ये भी लगता है कि लड़कियों के गायब होने के पीछे माँ-बाप का लड़कियों को छूट देना है। आलम यह है कि गांव की दीवारें लापता हुए बच्चों के पोस्टरों से लद गई। चिंटू, बबली, गुड़िया, मनोज, वुंपी, गुड्डू और न जाने कितने ही नाम और चेहरे लापता बच्चों के पोस्टर्स में है। लेकिन पुलिस को इन बच्चों के गायब होने से कुछ ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। पास में ही पॉश इलाका है। बलबीर बस्सी की कोठी बस्सी निवास में वो और उनका नौकर प्रेम रहता है।

आलम यह है कि गांव की दीवारें लापता हुए बच्चों के पोस्टरों से लद गई। चिंटू, बबली, गुड़िया, मनोज, वुंपी, गुड्डू और न जाने कितने ही नाम और चेहरे लापता बच्चों के पोस्टर्स में है। लेकिन पुलिस को इन बच्चों के गायब होने से कुछ ज्यादा फर्क नहीं पड़ता।

बस्सी की भूमिका में आकाश खुराना हैं और नौकर प्रेम की भूमिका विक्रांत मैसी ने निभाई है। बिजनेसमैन बलबीर का परिवार पंजाब में सेटल है और वह महीने में एक दो बार ही कोठी पर आता है। ऐसे में नौकर प्रेम ही वहां की देख-रेख करता है और सब काम संभालता है। बस्सी लड़कियों से यौन संबंध के लिए ही कोठी पर आता है। प्रेम उसके लिए ऐसे लड़कियों से संपर्क कराता है, जो सेक्सवर्क करती हैं या जबरन सेक्सवर्क कराई जाती हैं।

कोठी पर आई एक लड़की से नौकर प्रेम यौन हिंसा करने की कोशिश करता है। इस दौरान वह उसकी हत्या करके उसे बाथरूम में ठिकाने लगाता है। इसके बाद, वह उसके शरीर के छोटे-छोटे टुकड़े कर देता है। यही नहीं, शरीर के हिस्सों को पकाकर खाता भी है। यह एक ऐसे आदमखोर व्यक्ति की कहानी है, जिसे देखना दर्शकों के लिए मुश्किल होता है।

कोठी पर आई एक लड़की से नौकर प्रेम यौन हिंसा करने की कोशिश करता है। इस दौरान वह उसकी हत्या करके उसे बाथरूम में ठिकाने लगाता है।

पुलिस की अनदेखी

इधर एक आदमी थाने में उसकी 14 साल की बेटी चुमकी के गायब होने की रिपोर्ट लिखवाने आता है। वह बताता है कि जिस कोठी में चुमकी काम करती थी, वह उस कोठी से बाहर नहीं आई है। वह इल्ज़ाम लगाता है कि कोठी मालिक ने उसका अपहरण करके उसे मार दिया है। फिल्म में थानेदार राम चरण पांडे की भूमिका में दीपक डोबरियाल हैं। वह इस तरफ ज्यादा ध्यान नहीं देते हैं और उन्हें घर जाने के लिए कह देते हैं। उनका कहना है कि इस एरिया की आबादी डेढ़ लाख है और हम तीन पुलिस वाले हैं, यानी एक के बदले 50 हजार लोग आते हैं। सबका ख्याल कैसे रखा जा सकता है। हालांकि, पांडे की आंख तब खुलती है जब खुद उनकी बेटी का भी अपहरण का प्रयास होता है।

कैसे पुलिस जागरूक होती है

तस्वीर साभार: Bollywood Hungama

उनकी आखों के सामने से ही उनकी लड़की को उठाकर ले जाया जा रहा था। किसी तरह वे अपनी बेटी को बचा लेते हैं, लेकिन इसके बाद वह बतौर पुलिस अपना काम करते हैं। पांडे इसकी छानबीन करता है कि इस सबके पीछे आखिर कौन है। वह उस नौकर और बलबीर बस्सी तक पहुंच भी जाता है, लेकिन राजनेताओं और पुलिस अधिकारियों से जान-पहचान होने के चलते उल्टा इंस्पेक्टर पांडे को ही सस्पेंड कर दिया जाता है। कुछ समय बाद एसएसपी के बदल जाने के बाद पांडे फिर से इस केस में लगते हैं और नौकर को उठा लेते हैं। इससे अगला सीन रौंगटे खड़े कर देने वाला है। 

पांडे इसकी छानबीन करता है कि इस सबके पीछे आखिर कौन है। वह उस नौकर और बलबीर बस्सी तक पहुंच भी जाता है, लेकिन राजनेताओं और पुलिस अधिकारियों से जान-पहचान होने के चलते उल्टा इंस्पेक्टर पांडे को ही सस्पेंड कर दिया जाता है।

बच्चों की हत्या और ऑर्गन बेचने की बात

वह सीरियल किलर नौकर प्रेम बिना झिझके सब कुछ एक कहानी की तरह सुनाता है कि किसको कैसे-कैसे मारा, उनके शरीर के हिस्सों को पकाकर किस तरह खाया, मरने के बाद उनके साथ बलात्कार, छोटे बच्चों को बलात्कार के बाद उनकी हत्या की बात भी कही। यह सब सुनकर एसएसपी और पांडे के होश उड़ जाते हैं। जब इंस्पेक्टर पांडे उससे पूछते हैं कि चुमकी घोष कहां है, तो वह जवाब देता है कि वह तो मर चुकी है। उसने बताया कि वह उसकी हत्या कर चुका है, उसके शरीर के हिस्से को खा चुका है। उसने बलात्कार और ऑर्गन बेचने की बात भी कही। लाश के साथ क्या किया, के जवाब में वह बताता है कि काटनी पड़ी और क्या। वह बताता है कि उसके मामा कसाई थे तो कटाई बचपन से आती है। यह बताते हुए उसे कोई पछतावा या अफसोस नहीं था, बल्कि हैवानियत और आदमखोरी साफ दिख रही थी।

तस्वीर साभार: Bombay Movie Reviews

वह तर्क देता है कि उसने 22 से 24 बच्चों का अपहरण करके हत्या की है। क्या लाइफ है इन बच्चों की, कोई नहीं पूछता, क्या ये बन पाएंगे डॉक्टर, इंजीनियर…। और आखिर में कोठी के पीछे बने नाले से सब कंकाल मिलते हैं। शरीर के अलग-अलग अंग प्लाटिक की थैलियों में ठूंसे हुए करीब 19 बच्चों के कंकाल मिलते हैं। यह देखकर सब हैरान रह जाते हैं। फिल्म में यह साफ नहीं हो पाया है कि इन हत्या और अपहरण के पीछे सिर्फ नौकर प्रेम का ही हाथ है या बलबीर बस्सी भी इसमें शामिल है। हालांकि सबूत जुटाने के लिए इंस्पेक्टर पांडे प्रेम के गांव भी जाता है। वापस आते समय कोई उनकी हत्या करवा देता है। अब पुलिस थाने के नोटिस बोर्ड पर एक और लापता का पोस्टर बढ़ गया। वहीं, फिल्म में बलबीर बस्सी का पड़ोसी डॉक्टर भी इसमें शामिल है, जो शरीर के अंगों को लेकर आगे भेजता है। शक होने पर बलबीर खुद ही उसे मरवा देता है। 


फिल्म में निर्देशक ने पुलिस, सिस्टम और समाज को अच्छा आइना दिखाने की कोशिश की है। वहीं एक तरफ यह भी दिखाया गया है कि शहर में एक अमीर घर के लड़के का अपहरण हो जाता है। पूरा पुलिस महकमा इसी केस के पीछे लग जाता है और दो ही दिन में उसे ढूंढ लेते हैं। मीडिया में भी यही केस सुर्खियों में रहता है। वहीं गरीब बस्ती के लगातार लापता होने के मामले को दरकिनार कर दिया जाता है। फिल्म में कोई गाना नहीं है, न ही कॉमेडी है। दो घंटे 4 मिनट की फिल्म दर्शक को गंभीर रूप से बांधे रखती है और एक तरह से डरा देती है। हर एक सीन में खून-खराबा डरावना और विचलित करने वाला लग सकता है। विक्रांत मैसी के किरदार से नफरत हो जाती है। मैडॉक फिल्म और जियो स्टूडियो के बैनर तले बनी फिल्म को आदित्य निबांलकर ने निर्देशित किया है। सभी की एक्टिंग ने फिल्म को सफल बनाया है। फिल्म एक बार जरूर देखी जानी चाहिए।

क्या था निठारी हत्याकांड 

साल 2006 में नोएडा के सेक्टर 31 में बनी कोठी डी5 के पीछे नाले में करीब 19 बच्चों के कंकाल मिले थे। कोठी मालिक और बिजनेसमैन और उसके नौकर ने आरोप कबूला था। नौकर बच्चों का कोठी के बाहर से चॉकलेट दिखाकर अपहरण कर लेता था। इसके बाद वह बलात्कार करता और हत्या कर देता था। वह शरीर के हिस्सों को पकाता, खाता और और बाकी हिस्सों को टुकड़े करके पोलीथीन में डालकर नाले में फेंक देता। 29 दिसंबर 2006 को एक लड़की गायब हुई थी जो कोठी से वापस नहीं आई। उनके पिता के प्रयास से ही पुलिस ने मामले में गंभीरता दिखाई। कोठी के मालिक और नौकर पर बलात्कार और हत्या के 14 मामले दर्ज हुए थे। नौकर पर अपहरण, हत्या, बलात्कार और सबूत मिटाने के लिए आईपीसी के तहत मामले दर्ज हुए। कई मामलों में दोनों को फांसी भी सुनाई जा चुकी थी, लेकिन अक्टूबर 2023 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नौकर को 12 और मालिक को 2 मामलों में बरी कर दिया। इस फैसले के बाद अदालत पर भी सवाल उठ रहे हैं, जो लाजमी हैं।  

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