शादी हुई है तो यौन संबंध के लिए पूछना क्यों, जब शादी करके एक-दूसरे के साथ हैं, तो यौन संबंध के लिए बार-बार क्यों पूछना, या पुरुष का मन है तो भला यौन संबंध के लिए महिला की रजामंदी की ज़रूरत क्यों है या वो मना नहीं कर सकती। ऐसी बहुत सी दलीलें शादी के बाद पति-पत्नी के बीच यौन संबंध लिए दी जाती है। भारतीय दंड संहिता की धारा 375 में बलात्कार की एक लंबी और जटिल परिभाषा दी गई है। मूल अवधारणा यह है कि यह एक बलपूर्वक, पेनेट्रेटिव यौन हिंसा है, जो सर्वाइवर की सहमति के बिना किया जाता है। मैरिटल रेप इन सभी मानदंडों को पूरा करता है, सिवाय इसके कि यह शादीशुदा संबंध के अंतर्गत किया जाता है। हैरानी की बात है कि सिर्फ एक वैवाहिक संबंध का लेबल इस प्रकार के आपराध को वैध नहीं बनाता है। यह देखते हुए कि भारत में घरेलू हिंसा एक दंडनीय अपराध है, और देश लगभग 90 प्रतिशत बलात्कार सर्वाइवर के परिचितों द्वारा किये जाते हैं, यह हैरानी की बात है कि वैवाहिक संबंध के भीतर होने वाले बलात्कार को अपराध ही नहीं माना गया है।
हाल ही में केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि पति के पास निश्चित रूप से पत्नी की सहमति का उल्लंघन करने का मौलिक अधिकार नहीं है। लेकिन, इस तरह के उल्लंघन को ‘बलात्कार’ कहना‘अत्यधिक कठोर है और इसलिए असंगत’ है। हालांकि केंद्र ने कानून में मैरिटल रेप के अपवाद पर पहली बार अपना रुख स्पष्ट करते हुए यह बात कही। लेकिन, ज़्यादातर देशों में मैरिटल रेप को सिर्फ़ घरेलू हिंसा या क्रूरता नहीं बल्कि अपराध माना जाता है। भारत उन तीन दर्जन देशों में से एक है, जहां मैरिटल रेप अबतक अपराध नहीं है। किसी पुरुष द्वारा अपनी पत्नी के साथ बिना सहमति यानी कॉन्सेंट के यौन संबंध बनाना भारतीय दंड संहिता में बलात्कार की परिभाषा का साफ तौर में अपवाद है। हमारे देश में ‘शादी’ को यौन संबंध बनाने का एक आसान तरीका समझा जाता है, जहां दो लोगों में ‘शादी’ ही सहमति का काम करती है।
मैरिटल रेप की वास्तविक स्थिति और कॉन्सेंट की कमी
असल में मैरिटल रेप को समझना जितना आसान है, उतना जटिल भी। मैरिटल रेप को समझने के लिए ये समझना जरूरी है कि दो लोगों के बीच यौन संबंध के लिए एक बार ही नहीं बल्कि हर बार साफ तौर पर कॉन्सेंट जरूरी है। असल में देश में मैरिटल रेप की वास्तविक भयावहता मौजूदा समय में एक अनजान पहलू है। इसका एक कारण मैरिटल रेप की परिभाषा में स्पष्टता की कमी और उसका लागू न होना है। हालांकि समस्या की भयावहता अलग-अलग आंकड़ों से समझ आता है। लगभग 3 दशक पहले, 1995 में उत्तर प्रदेश में पुरुष प्रजनन स्वास्थ्य सर्वेक्षण में लगभग 30 फीसद पतियों ने बिना कॉन्सेंट के यानी बलपूर्वक यौन संबंध बनाने की सूचना दी थी।
हाल ही में, मुंबई में किए गए एक अध्ययन के अनुसार, 1,783 महिलाओं में से 46.4 फीसद ने बताया कि घरेलू हिंसा के लिए सहायता का अनुरोध करते समय उन्होंने मैरिटल रेप का सामना किया था। इसके उलट 1664 महिलाओं में से केवल 1.1 फीसद ने ही असल में मैरिटल रेप की रिपोर्ट अस्पताल में मेडिकोलीगल फॉर्म में की थी। साल 2012 दिल्ली सामूहिक बलात्कार मामले के बाद, आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम, 2013 ने बलात्कार और यौन हिंसा पर एक मानकीकृत ढांचा प्रदान करते हुए महत्वपूर्ण बदलाव लाए। लेकिन अफसोस की बात है कि मैरिटल रेप में पति के किये गए यौन हिंसा और रेप के मुद्दे को छोड़ दिया गया।
क्या मैरिटल रेप ‘बलात्कार’ नहीं
सहमति से बनाया गया यौन संबंध स्वस्थ शादी या रिश्ते का मूलभूत है। लेकिन, हमारे पितृसत्तातमक समाज में आम तौर पर, पति के साथ बिना कॉन्सेंट के किया गया यौन संबंध, किसी अजनबी के साथ ज़बरदस्ती यौन संबंध के समान गरिमा का उल्लंघन, हिंसा या खतरे की भावना पैदा नहीं करता। हमारे देश में शादी में शारीरिक और यौन हिंसा आम है और मैरिटल रेप सहित विभिन्न रूपों में प्रकट होता है। मैरिटल रेप या विभिन्न यौन हिंसा के गंभीर शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य दुष्परिणाम होते हैं। यह महिलाओं के यौन और प्रजनन स्वास्थ्य अधिकारों का उल्लंघन भी है। महिलाओं के खिलाफ हिंसा (वीएडब्ल्यू) को एक सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या और महिलाओं के मानवाधिकारों के उल्लंघन के रूप में मान्यता दी गई है। लेकिन इसके बावजूद, मैरिटल रेप को बलात्कार के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया है।
मैरिटल रेप से प्रभावित होता शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य
अध्ययनों के अनुसार बलात्कार से कई मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं जुड़ी हैं, जिसमें अवसाद, पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD) और नींद संबंधी विकार शामिल हैं। शारीरिक और यौन हिंसा (इंटिमेट पार्टनर वैयलेन्स) यानी आईपीवी दोनों के सर्वाइवरों ने मानसिक स्वास्थ्य सामस्याओं से ग्रसित होने की बात बताई है। मैरिटल रेप न सिर्फ मानसिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में, बल्कि सर्वाइवर के बीच मदद मांगने के व्यवहार को प्रभावित करता है। नैशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसन के अध्ययनों के अनुसार ये विभिन्न संस्कृतियों के अनुसार अलग-अलग हो सकता है।
एक शोध के अनुसार न्यूजीलैंड में लगभग 61 फीसद सर्वाइवरों ने यौन आईपीवी के लिए मदद मांगने की सूचना दी, तंजानिया और जॉर्डन में 40 फीसद लेकिन भारत में यह केवल 24-26 फीसद था। वहीं हमारे देश में सिर्फ 2-4 फीसद ने अधिकारियों से मदद मांगी। इन आंकड़ों के बावजूद, मैरिटल रेप के मुद्दे के प्रति समाज की उदासीनता, इसकी जांच के लिए बुनियादी ढांचे और प्रक्रिया की कमी, पितृसत्तातमक सामाजिक व्यवस्था और मदद के लिए जरूरी अवसरों और सुविधाओं की कमी के कारण, भारतीय समाज में मैरिटल रेप के परिणामों का अनुमान लगाना चुनौतीपूर्ण है।
क्यों मैरिटल रेप की परिभाषा है जरूरी
ये समझना जरूरी है कि शादी का मतलब एक-दूसरे पर शारीरिक और बिना कॉन्सेंट या सहमति के यौन संबंध स्थापित करने का अधिकार नहीं होता जैसाकि आम तौर पर बॉलीवुड ने नैरेटिव गढ़ा है। वहीं, ये भी समझना जरूरी है कि शादी में यौन या शारीरिक हिंसा ‘सामान्य’ नहीं है। आम धारणा के उलट, शादी में ‘टेंशन’ का मतलब हिंसा नहीं हो सकता, न ही इसे सही ठहराया जा सकता है। समस्या ये भी है कि मैरिटल रेप की परिभाषा साफ तौर पर मौजूद नहीं है। ये परिभाषा इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि जब मैरिटल रेप पर आंकड़े एकत्र किए जा रहे हों, और जब इसे अपराध घोषित करने पर विचार किया जा रहा हो, तो परिभाषा स्पष्ट होनी चाहिए। यह देखते हुए कि हमारे देश में बलात्कार तब माना जाता है, जब यह बलपूर्वक, पेनेट्रेटिव यौन हमला होता है, जो साथी की सहमति के बिना किया जाता है, मैरिटल रेप शादीशुदा संबंधों की सीमाओं के भीतर किया गया ऐसा कृत्य होगा।
ये जरूरी है कि लोग समझें ‘नो मीन्स नो’ ही होता है। सहमति का मतलब ये भी नहीं कि किसी भी प्रकार के दबाव या डर में ‘सहमति’ दी गई हो। केंद्र की प्रतिक्रिया दंड संहिता में मैरिटल रेप के अपवाद को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक समूह में आई है। भारतीय न्याय संहिता में धारा 63(2) और भारतीय दंड संहिता की धारा 375 बलात्कार को परिभाषित करती है और सहमति की सात धारणाओं को सूचीबद्ध करती है, जो अगर नहीं होती है, तो एक पुरुष द्वारा बलात्कार का अपराध माना जाएगा। विश्व स्तर पर लगभग हर 3 में से 1 महिलाओं को अपने जीवनकाल में शारीरिक या/और इंटीमेट पार्टनर वायलेन्स या गैर इंटीमेट पार्टनर वायलेन्स का सामना करना पड़ा है। अलग-अलग अदालतों ने समय-समय पर मैरिटल रेप के विषय में राय दी है।
वक्त है कि मैरिटल रेप को अपराध की श्रेणी में लाया जाए और कानून में संशोधन किया जाए। यह न सिर्फ महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा करेगा, बल्कि समाज में इस मुद्दे पर जागरूकता भी बढ़ाएगा। इस मुद्दे पर व्यापक बातचीत की ज़रूरत है। समाज में बातचीत शुरू करने से ही हम इस मुद्दे की पितृसत्तातमक जड़ों को समझ सकते हैं और संबोधित कर सकते हैं। मैरिटल रेप एक गंभीर समस्या है, जिसे तत्काल संबोधित करना चाहिए। केंद्र के बयान ने इस मुद्दे पर एक महत्वपूर्ण चर्चा की शुरुआत की है। मैरिटल रेप को महज कानूनी दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि सामाजिक, मानसिक और भावनात्मक दृष्टिकोण से भी देखना चाहिए।
वैवाहिक संबंधों के भीतर यौन संबंध के लिए कॉन्सेंट को महत्व न देना या न मानना महिलाओं की एजेंसी, गरिमा और उनके मौलिक अधिकारों का हनन है। मौजूदा समय में मैरिटल रेप को अपराध न मानना इस मिथक को बढ़ावा देती है कि शादी के भीतर यौन संबंधों में अपनेआप ही सहमति होती है, जो एक ग़लत धारणा है। मैरिटल रेप के मामले में सामाजिक जागरूकता और कानूनी सुधार दोनों जरूरी हैं ताकि इसके प्रति संवेदनशीलता हो और इसे अपराध घोषित किए जाने की दिशा में ठोस कदम उठाए जा सकें।