अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन वैश्विक स्तर पर भूख के स्तर का आकलन और निगरानी करने के लिए चार संकेतकों— कुपोषण, बच्चों का बौनापन, बच्चों में अवरूद्ध विकास और शिशु मृत्यु दर के आधार पर वैश्विक भूख सूचकांक की गणना करते हैं। इस आधार पर हर साल अक्तूबर में एक रिपोर्ट जारी की जाती है। हाल ही में जारी रिपोर्ट के अनुसार इसमें भारत 127 देशों में 105वें स्थान पर है। रिपोर्ट के अनुसार, 2024 के वैश्विक भूख सूचकांक में 27.3 के स्कोर के साथ भारत में भूख का स्तर गंभीर है। पिछले कई सालों से भारत निचले दर्जे पर ही रहा है। पिछले साल 124 देशों में भारत का स्थान 111वां था और उससे पहले यानी 2022 में 117वां। थोड़ा सुधार के बावजूद, हालत अभी भी चिन्ताजनक है। भारत का 105वें स्थान पर होना यह बताता है कि देश में भूख से संबंधित गंभीर समस्याएं हैं। ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत अपने पड़ोसी देशों नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश और म्यांमार से भी पीछे है। साथ ही पड़ोसी देशों पाकिस्तान और अफ़गानिस्तान के साथ यह उन 42 देशों की सूची में शामिल है, जिनमें भूख का स्तर बहुत ज़्यादा है।
बच्चों में कुपोषण की समस्या
रिपोर्ट में बताया गया है कि चारों संकेतकों— अल्पपोषण, बच्चों का बौनापन, बच्चों में अवरुद्ध विकास और शिशु मृत्यु दर कम करने में हुई प्रगति अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहमत लक्ष्यों को पूरा नहीं कर सकी है। भारत में बच्चों में कुपोषण की बात करें, तो यूनिसेफ़ ने 2024 में प्रारम्भिक बाल्यावस्था में बच्चों में पोषण की कमी पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी। इसमें भी यह खुलासा हुआ कि गंभीर खाद्य संकट का सामना करनेवाले बच्चों में से 65 प्रतिशत बच्चे 20 देशों में पाए जाते हैं और भारत इन 20 देशों में से एक है। इसके अलावा प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया द्वारा दायर एक याचिका के जवाब में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने 2021 में यह जानकारी दी थी कि भारत में 33 लाख से ज़्यादा बच्चे कुपोषित हैं। ये सभी आंकड़े भारत में बच्चों में मौजूद कुपोषण की गंभीर स्थिति को दिखाते हैं।
बात करते हैं भारत में बच्चों में पोषण की समस्या को दूर करने के लिए किए गए महत्वपूर्ण प्रयासों में से एक मिड डे मील योजना की। इसे साल 1995 में देश भर के सरकारी स्कूलों में कक्षा पहली से आठवीं के बच्चों के लिए लागू किया गया था। इसका उद्देश्य बच्चों को स्कूल आने के लिए प्रोत्साहित करने के साथ-साथ हाशिए के समुदायों के बच्चों की पोषण सम्बन्धी ज़रूरतों को पूरा करना था। मिड डे मील से बच्चों को कितनी कैलोरी मिलनी चाहिए, यह इस योजना में निर्धारित है। फिलहाल मिड डे मील में प्राथमिक कक्षाओं के बच्चों के लिए 450 कैलोरी और 12 ग्राम प्रोटीन और उच्च प्राथमिक कक्षाओं के बच्चों के लिए 700 कैलोरी और 20 ग्राम प्रोटीन की मात्रा निर्धारित की गई है। इस योजना की एक और अच्छी बात यह है कि इसमें राज्य विशेष में रहनेवाले बच्चों की आहार सम्बन्धी आदतों को ध्यान में रखते हुए खाद्य पदार्थों को शामिल किया जाता है।
राज्यों को अपने राज्य की खाद्य सम्बन्धी आदतों के अनुसार खाद्य पदार्थों को मिड डे मील में शामिल करने की छूट होती है। उदाहरण के लिए राजस्थान में रोटी ज़्यादा प्रचलित है तो वहाँ आपको मिड डे मील में रोटी-सब्जी नज़र आएगी। वहीं छत्तीसगढ़ में परिवारों का मुख्य आहार चावल है तो यहाँ चावल सब्जी और दाल चावल को मिड डे मील में शामिल किया गया है। इसके अलावा समय-समय पर मिड डे मील योजना में नए दिशा-निर्देश जोड़े जाते हैं। उदाहरण के लिए 2022 में जारी मिड डे मील के दिशा-निर्देशों में आकांक्षी जिलों और अत्यधिक कुपोषण वाले राज्यों में पूरक पोषण प्रदान करने की बात शामिल की गई।
मिड डे मील पर राजनीति और बच्चों की पोषण सम्बन्धी जरूरतें
बेशक इस योजना से कई फ़ायदे हुए हैं, लेकिन इसे लेकर भी राजनीति होती रहती है। पूरक पोषण के लिए दिए जानेवाले खाद्य पदार्थों की बात करें, तो मिड डे मील के 2022 के दिशा-निर्देशों में यह साफ़ शब्दों में लिखा है कि पूरक खाद्य पदार्थ का चयन किसी खाद्य पदार्थ की शेल्फ लाइफ़ (यानी वह अवधि जब तक कोई खाद्य पदार्थ इस्तेमाल लायक रहेगा) के आधार पर किया जाना चाहिए। ऐसे में अंडे एक अच्छे विकल्प के तौर पर सामने आते हैं, जिन्हें रूम टेम्प्रेचर पर 7 से 10 दिनों तक रखा जा सकता है। वहीं अगर केले की बात करें तो उसकी शेल्फ लाइफ़ अंडे से कम होती है। इसके साथ ही एक केले की तुलना में एक अंडे में प्रोटीन ज़्यादा होता है। एक अंडे में 5 से 8 ग्राम प्रोटीन होता है, वहीं केले में प्रोटीन की मात्रा केवल 1 ग्राम तक होती है।
अंडों की इन्हीं ख़ूबियों को देखते हुए समय-समय पर मिड डे मील में इन्हें शामिल करने के सुझाव आते रहे हैं और इन सुझावों पर अमल भी किया गया है। लेकिन अक्सर मिड डे मील में अंडों को शामिल करना राजनीतिक विवाद का विषय बन जाता है। मिड डे मील में अंडों को शामिल करने और उन्हें मेन्यू से हटा दिए जाने की घटनाएं होती रहती हैं। जैसे, 7 नवम्बर 2023 को महाराष्ट्र सरकार ने सरकारी स्कूलों में पढ़नेवाले कक्षा आठवीं से लेकर बारहवीं तक के बच्चों, जो मांसाहारी भोजन खाते हैं, उन्हें हफ़्ते में एक बार अंडा दिए जाने का और अंडा ना खानेवाले बच्चों को अंडे के बजाए केले देने का आदेश दिया। लेकिन अफ़सोस की बात है कि इस आदेश को एक महीने ही हुआ था कि बीजेपी और शिवसेना की धार्मिक भावनाएं जाग उठीं।
उन्होंने यह तर्क देकर इसे निरस्त करने की मांग की कि इससे कई समुदायों की धार्मिक भावनाएं आहत होंगी। कुछ और बेबुनियाद तर्क भी दिए गए कि अंडा देना भेदभाव भरा होगा और सभी बच्चों को कोई एक ही चीज़ दी जानी चाहिए। हालांकि इन सब विरोधों के बावजूद अभी भी महाराष्ट्र में हफ़्ते में एक बाद विकल्प के तौर पर मिड डे मील में अंडा दिया जाता है और जो बच्चे अंडा नहीं खाते उन्हें केला दिया जाता है। लेकिन, गोवा में शाकाहारी माता-पिता के विरोध की वजह से मिड डे मील में अंडे शामिल किए जाने का प्रस्ताव खारिज कर दिया गया। इसके बजाए रागी का लड्डू और चिक्की दी जाने लगी। फिलहाल 16 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में मिड डे मील में अंडा दिया जाता है। इनमें से कुछ में हफ़्ते में एक बार अंडा दिया जाता है, जबकि तमिलनाडु और आन्ध्र प्रदेश में नियमित तौर पर दिया जाता है।
महिलाओं में कुपोषण की स्थिति
बच्चों में कुपोषण के साथ-साथ भारत में महिलाओं में भी कुपोषण की स्थिति चिन्ताजनक है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के पाँचवें दौर में महिलाओं की पोषण संबंधी स्थिति और उनमें खून की कमी को लेकर चिंता ज़ाहिर की गई। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) की ‘विश्व में खाद्य सुरक्षा और पोषण की स्थिति, 2022 रिपोर्ट’ में भी यह बात सामने आई कि भारत में 53 प्रतिशत प्रजनन की आयु वाली महिलाओं में खून की कमी है। किसी महिला के स्वास्थ्य से ही उसके बच्चे का स्वास्थ्य भी निर्धारित होता है। कुपोषित महिलाएं कुपोषित बच्चों को जन्म देती हैं और इस प्रकार कुपोषण का एक चक्र बन जाता है। 2018 में किशोर लड़कियों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान करानेवाली महिलाओं व 0 से लेकर 6 साल तक के बच्चों की पोषण की स्थिति को बेहतर करने के लिए भारत में पोषण अभियान शुरू किया गया। इस अभियान का उद्देश्य 2022 तक भारत को कुपोषण मुक्त करना था। इस साल यह अभियान अपने सातवें चरण में है, लेकिन 2024 के ग्लोबल हंगर इंडेक्स के आंकड़े बता रहे हैं कि अभी हम कुपोषण मुक्त भारत के लक्ष्य से कोसों दूर हैं।
यह विडंबना ही है कि एक तरफ भारत हंगर इंडेक्स में लगातार निचले दर्जे पर आ रहा है और दूसरी तरफ कुपोषण दूर करने की दिशा में सरकार की तरफ से जो थोड़े बहुत प्रयास हो भी रहे हैं उनसे भी अपेक्षित परिणाम हासिल नहीं हो पा रहे हैं या उन्हें लेकर भी राजनीति होती रहती है। सरकारी स्कूलों में अधिकतर ग़रीब तबक़े के बच्चे ही पढ़ते हैं जो अक्सर कुपोषण से जूझते हैं। बहुसंख्यकों की भावनाओं का आदर करने के नाम पर मिड डे मील में अंडा न देने जैसे फैसलों का असर हाशिए के समुदायों के बच्चों के स्वास्थ्य पर पड़ता है। ऐसी घटिया राजनीति से बच्चों के खाद्य अधिकारों का हनन होता है। अगर खानपान को लेकर इस तरह का रवैया बरकरार रहा तो देश से भुखमरी और कुपोषण की समस्या दूर करना और हंगर इंडेक्स में हमारी स्थिति बेहतर करना बहुत मुश्किल हो जाएगा।