2014 की बात है। उस समय मैं एक ग़ैर सरकारी संगठन के साथ काम कर रही थी। चूंकि मैं राजस्थान के सरकारी स्कूलों के बच्चों के साथ काम करती थी, इसलिए रोज़ाना अलग-अलग स्कूलों का दौरा करना मेरे काम का हिस्सा था। ऐसे ही एक दौरे के तहत मैं एक स्कूल में गई। मैं प्रधानाध्यापक से उनके कक्ष में कुछ बात कर रही थी, आस-पास अन्य पुरुष शिक्षक भी थे। उनमें से एक ने अखबार की एक सुर्खी की तरफ़ अपने अन्य साथी शिक्षकों का ध्यान आकृष्ट किया। उन शिक्षकों के लिए वह खबर किसी आश्चर्य से कम नहीं थी। अन्य शिक्षकों से हंसते हुए उन्होंने अपनी स्थानीय भाषा में कहा, “अरे देखो एक पत्नी ने पति पर बलात्कार का आरोप लगाया है।” विवाह में बलात्कार को लेकर समाज का ऐसा ही नज़रिया नज़र आता है, जैसा इस शिक्षक का था। ठीक इसी तरह से विवाह में ‘गोपनीयता’ की बात भी बहुत से लोगों के गले नहीं उतरती। ऐसा माना जाता है कि पति-पत्नी के बीच कुछ भी गोपनीय नहीं होना चाहिए और विवाह में गोपनीयता को बहुत ही नकारात्मक अर्थों में लिया जाता है। यहां तक कि गोपनीयता वाले वैवाहिक संबंधों को स्वस्थ नहीं माना जाता।
निजता के अधिकार का इतिहास
पुराने समय में विवाह में निजता का कोई अस्तित्व नहीं था, न तो लोगों को इस बारे में कोई समझ थी और न कानून में ही इसका कोई प्रावधान था। समय के साथ इसकी ज़रूरत महसूस हुई और वर्तमान में दुनिया भर की अदालतों ने इसे मान्यता दी जा रही है। आज विवाह के भीतर गोपनीयता को स्वायत्तता, पारस्परिक सम्मान और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के एक जरूरी तत्व के रूप में मान्यता दी जाती है, जो एक स्वस्थ और न्यायसंगत रिश्ते को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है। भारत में 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित किया। हाल ही में एक ऐतिहासिक फ़ैसले में मद्रास हाईकोर्ट की मदुरई बेंच ने निजता के मौलिक अधिकार में वैवाहिक संबंधों में निजता को भी शामिल किया है।
निजता का अधिकार किसी व्यक्ति को राज्य या किसी अन्य व्यक्ति के हस्तक्षेप के बिना अपने निजी जीवन का आनन्द लेने का पूरा अधिकार प्रदान करता है। इसमें अन्य व्यक्ति में पति या पत्नी को भी शामिल किया गया है। यह अधिकार संविधान की धारा 14, 19 और 21 से अस्तित्व में आया। इसमें निम्न को शामिल किया गया है—
- निगरानी से सुरक्षा— पति और पत्नी दोनों को अपने संचार (लिखित, मौखिक या डिजिटल) को निजी रखने का अधिकार है। दोनों में से कोई भी दूसरे की रज़ामंदी के बग़ैर उनके निजी चैट्स, संदेश या ईमेल्स पढ़ या सुन नहीं सकते। उनमें से किसी को भी एक-दूसरे की गतिविधियों, फोन कॉल्स पर चोरी-छिपे नज़र रखने का अधिकार भी नहीं है।
- शरीर की स्वायत्तता का अधिकार— इसमें ज़बरदस्ती या दबाव के डर के बिना शारीरिक अन्तरंगता को न कहने का अधिकार शामिल है। यह अधिकार विवाह के भीतर रेप से सुरक्षा प्रदान करता है।
- व्यक्तिगत जानकारी की सुरक्षा— पति-पत्नी को स्वास्थ्य की स्थिति, व्यक्तिगत बचत, ऋण, ईमेल्स के पासवर्ड, आधार कार्ड की जानकारी जैसी निजी जानकारियों को साझा करने से सुरक्षा प्रदान करता है। यानी वे ये जानकारियाँ एक दूसरे से साझा करना चाहते हैं या नहीं, यह उनका निजी निर्णय होगा।
मेरी दोस्त का पति उसकी रज़ामंदी से ही शायद उसका प्रोफाइल चला रहा था, लेकिन मैं यह सोचकर बहुत ही असहज हो गई थी कि कहीं मुझे भी भविष्य में अपने पार्टनर से अपने सोशल मीडिया पासवर्ड न शेयर करने पड़े।
क्यों ज़रूरी है विवाह में गोपनीयता
विवाह संस्था में दो व्यक्ति एक साथ साझा जीवन जीने का निर्णय लेते हैं। लेकिन एक-दूसरे से सब कुछ साझा किया जाए ऐसा ज़रूरी नहीं। पति या पत्नी एक-दूसरे को सब कुछ साझा करने के लिए बाध्य नहीं कर सकते। लेकिन भारत में विवाह संस्था जिस ढंग से कार्यरत है, उसमें निजता के अधिकार का हनन होने की काफ़ी गुंजाइश रहती है। यहां तक कि पति-पत्नी अक्सर एक-दूसरे को अपनी सम्पत्ति तक समझने लगते हैं। ऐसे में वे भूल जाते हैं कि एक व्यक्ति के तौर पर भी किसी के कई अधिकार होते हैं। अक्सर शक के आधार पर वे दूसरे साथी की रज़ामन्दी के बिना उनके निजी जीवन में ताक-झांक करने की कोशिश करते हैं।
निजता का अधिकार पति और पत्नी को एक-दूसरे की अनचाही निगरानी और ताक-झांक से बचाता है। फ़िलहाल तो बहुत से लोगों को इस अधिकार की जानकारी नहीं है, ऐसे में उनसे इनका पालन करने की क्या ही उम्मीद की जाए। लेकिन, जैसे-जैसे वक़्त के साथ वे इस अधिकार के बारे में जागरूक होंगे, हम उम्मीद करते हैं कि वे इसको अपने जीवन में भी उतारेंगे। वे इसे अपने जीवन में उतार सकें इसके लिए भी उनमें यह स्पष्टता होनी चाहिए कि उनका साथी केवल उनका साथी भर नहीं, एक व्यक्ति भी है और एक व्यक्ति के तौर पर उसके कुछ अधिकार हैं।
मुझे लगता था कि अपने फ्यूचर पार्टनर से कुछ हद तक निजता की अपेक्षा करने वाली मैं ही अनोखी तो नहीं? मेरा फंडा सिम्पल है। इन मामलों में मैं भी अपने पार्टनर को पूरी निजता दूँगी और ऐसी ही अपेक्षा मेरी उससे भी है कि वो भी मेरी निजता का सम्मान करे।
वैवाहिक संबंधों में निजता पर क्या है महिलाओं की राय
पति और पत्नी के बीच निजता के मामले पर महिलाओं की राय जानने के लिए फेमिनिज़म ऑफ इंडिया ने कुछ महिलाओं से बात की। इस विषय पर कानपुर की रहनेवाली 32 वर्षीय एकता (बदला हुआ नाम) कहती हैं, “कई सालों पहले की बात है, मैं फ़ेसबुक पर अपनी एक दोस्त से चैट कर रही थी। मैं तो यही सोच रही थी कि मेरी दोस्त मुझसे बात कर रही, लेकिन एक दो मेसेजेस के जवाब के बाद वहां से जवाब आया कि मैं उसका पति हूं। मेरी दोस्त का पति उसकी रज़ामंदी से ही शायद उसका प्रोफाइल चला रहा था, लेकिन मैं यह सोचकर बहुत ही असहज हो गई थी कि कहीं मुझे भी भविष्य में अपने पार्टनर से अपने सोशल मीडिया पासवर्ड न शेयर करने पड़े। मेरा सोशल मीडिया अकाउंट या मेरा व्हाट्सएप चैट कोई और इस्तेमाल करे यह मुझे कतई पसन्द नहीं।”
एकता ने आगे बताया कि उन्हें इस बात की बेहद खुशी है कि अब संवैधानिक रूप से निजता सुनिश्चित करने वाला कोई अधिकार है। उन्होंने कहा, “मुझे लगता था कि अपने फ्यूचर पार्टनर से कुछ हद तक निजता की अपेक्षा करने वाली मैं ही अनोखी तो नहीं? मेरा फंडा सिम्पल है। इन मामलों में मैं भी अपने पार्टनर को पूरी निजता दूँगी और ऐसी ही अपेक्षा मेरी उससे भी है कि वो भी मेरी निजता का सम्मान करे। और मुझे खुशी है कि अब संविधान भी इस मामले में मेरे साथ है।” वहीं बैंगलोर की रहनेवाली चित्रकार श्वेता कहती हैं, “मुझे लगता है कि दोनों पार्टनर के बीच किसी तरह की कोई निजता न हो, इसके लिए बहुत ज़्यादा आपसी समझ और परिपक्वता की ज़रूरत होती है। मेरे हिसाब से निजता अपने कुछ पहलुओं को छुपाने का भार ढोने और पूरी तरह से खुले होने के दुष्परिणामों के बीच चयन करने से जुड़ी है।”
मुझे लगता है कि दोनों पार्टनर के बीच किसी तरह की कोई निजता न हो, इसके लिए बहुत ज़्यादा आपसी समझ और परिपक्वता की ज़रूरत होती है। मेरे हिसाब से निजता अपने कुछ पहलुओं को छुपाने का भार ढोने और पूरी तरह से खुले होने के दुष्परिणामों के बीच चयन करने से जुड़ी है।
श्वेता आगे कहती हैं, “हमें यह भी देखना होगा कि हम निजता रखने में और किसी प्रकार की कोई निजता न रखने में कितने सक्षम हैं। हर किसी को भरोसेमंद लोगों के साथ अपने निजी विचारों को साझा करने का अधिकार है, और यह ज़रूरी नहीं कि यह भरोसेमंद इंसान उनका जीवनसाथी ही हो और जीवनसाथी इन निजी वार्तालापों में साझा की गई हर बात को जानने का हक़ नहीं है। गोपनीयता की इन सीमाओं को पार करने की ज़रूरत विवाहेतर सम्बन्धों के शक में पड़ती है, लेकिन उस स्थिति का सामना बातचीत करके किया जाना चाहिए, न कि ताक-झांक करके।”
किसी भी अन्य संबंध की तरह ही वैवाहिक संबंध भी भरोसे और ईमानदारी पर आधारित होते हैं। गोपनीयता के अधिकार में एक व्यक्ति के तौर पर लोगों की गोपनीयता के अधिकार का सम्मान शामिल है। इसलिए ये महत्त्वपूर्ण है। ऐसे में यह ज़रूरी है कि दोनों साथी यह ज़िम्मेदारी लें कि वे इन अधिकारों का हनन नहीं होने देंगे। तभी विवाह संस्था की बुनियाद मज़बूत हो सकेगी। कोई कानून तभी सफल हो सकता है, जब हम असल में उसे अपने व्यवहार में उतारें, वरना वह महज़ एक काग़जी दस्तावेज़ बनकर रह जाता है।