इंटरसेक्शनलजेंडर खनन प्रभावित क्षेत्र रायगढ़ में महिलाओं की स्वास्थ्य संबंधित समस्याएं

खनन प्रभावित क्षेत्र रायगढ़ में महिलाओं की स्वास्थ्य संबंधित समस्याएं

छत्तीसगढ़ का रायगढ़ जिला भारी मात्रा में कोयला खनन के लिए जाना जाता है जहां पिछले कई सालों से अडानी और जिंदल जैसे कंपनियों ने स्थानीय आदिवासियों और किसानों के ज़मीनों पर अवैध तरीक़ों से क़ब्ज़ा कर रखा है।

ऐतिहासिक रूप से दुनिया के देशों में विकास के नाम पर हुए विनाश की कहानियों से भारत भी अनछुआ नहीं है। ऐसे तमाम जगहों में संसाधनों के लूट पर सीमित रूप में ही पर बात हो जाती है। उन्हीं जल जंगल ज़मीन को बचाने की लड़ाई में तथाकथित डिवेलप्मेंट प्राजेक्ट्स (विशेषकर खनन) के पीछे उत्पन्न होने वाले स्वास्थ्य समस्याओं विशेषकर महिलाओं की रोज़मर्रा की स्वास्थ्य में होने वाले बुनियादी बदलाव पर बात नहीं हो पाती जो ऐसे परिस्थितियों में सबसे ज़्यादा प्रभावित हो रही होती है। भारत के विभिन्न हिस्सों में ऐसे खनिज संसाधनों के दोहन के पीछे महिलाओं के स्वास्थ्य पर इसका प्रभाव एक गम्भीर समस्या बन चुका है। ऐसी स्थिति में माइंस चाहे कहीं का हो, वैध हो या अवैध, उसमें काम करने वाली महिलाओं की स्थिति अत्यधिक ख़राब और चिंताजनक है। महिलाएं चाहे घर पर काम कर रही हो या बाहर उनके स्वास्थ्य को लेकर कभी खुल कर बात नहीं की जाती।

हमारे देश के आबादी का लगभग आधा हिस्सा महिलाएं हैं और संविधान के अनुसार इन्हें पुरुषों के समान अधिकार दिया गया है। फिर भी लैंगिक भेदभाव के कारण उन्हें अनेक असमानताओं का सामना करना पड़ता है। छत्तीसगढ़ का रायगढ़ जिला भारी मात्रा में कोयला खनन के लिए जाना जाता है जहां पिछले कई सालों से अडानी और जिंदल जैसे कंपनियों ने स्थानीय आदिवासियों और किसानों के ज़मीनों पर अवैध तरीक़ों से क़ब्ज़ा कर रखा है। ये बात भी जगजाहिर है कि खनन के वजह से बेरोज़गारी, भूमि अधिग्रहण, विस्थापन, कई प्रकार की स्वास्थ्य संबंधित बीमारियों का बहुत ही बुरा असर पड़ रहा है। पर आस-पास में रहने वाली और उन खदानों में मजबूरी में काम करने वाली महिलाएं इससे बुरी तरह प्रभावित हैं, जो चर्चा में नहीं के बराबर हैं। रायगढ़ में कोयला खदान के प्रदूषण से सभी लोग प्रभावित हैं पर महिलाओं की स्थिति और गंभीर होती जा रही है। वे कई जानलेवा बीमारियों का सामना कर रही हैं।

चार्ट इंडस्ट्री के एक रिपोर्ट के अनुसार खनन से मीथेन गैस, कार्बन मोनो आक्साइड, जैसे ज़हरीली गैस निकलती है। इस प्रदूषण से वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, भूमि प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण भी होता है। इस प्रदूषण से स्वास्थ्य पर भी गहर असर पड़ता है।

रायगढ़ कोयला खदान और प्रदूषण

खनन प्रभावित क्षेत्र रायगढ़ में  महिलाओं की स्वास्थ्य सम्बंधित समस्याएँ
तस्वीर में कोयला कम्पनी रायगढ़,साभार: पुष्पा

एन.जी.टी. द्वारा गठित जाँच टीम के आंकड़ों के अनुसार रायगढ़ के सिर्फ़ तमनार और घरघोडा ब्लॉक में 13 कोयला खदान, और 12  पावर प्लांट है, जिससे ये अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि पूरे रायगढ़ ज़िला किस स्तर पर इस खनन के क़ब्ज़े में है। इससे यहां के लोग पिछले 20 सालों से प्रदूषण के बीच रहने पर मजबूर हैं। यहां के निवासी ज़्यादातर आदिवासी हैं, जिन्हें विकास का वादा कर रोजगार देने का झाँसा देकर लोगों के ज़मीनों पर, खेतों पर क़ब्ज़ा कर खनन शुरू कर दिया गया है। अब लोगों के पास कुछ नहीं बचा। वे कोयला खदान में काम करने पर मजबूर हैं। रायगढ़ जंगलों से घिरा हुआ करता था पर अब माइंस के कारण कोयले का बड़ा-बड़ा पर्वत बना दिया गया है। प्रदूषण लोगों के स्वास्थ्य के साथ जंगल,पानी, जानवर,सभी पर अपना ज़हरीला प्रभाव छोड़ रहा है।

खनन से बढ़ता प्रदूषण और स्वास्थ्य समस्याएं

खनन के दौरान कई बम ब्लास्ट किया जाता है और कोयले को तोड़ा जाता है इससे निकलने वाले धुएं से ही प्रदूषण बढ़ता जाता है। चार्ट इंडस्ट्री के एक रिपोर्ट के अनुसार खनन से मीथेन गैस, कार्बन मोनो आक्साइड, जैसे ज़हरीली गैस निकलती है। इस प्रदूषण से वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, भूमि प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण भी होता है। इस प्रदूषण से स्वास्थ्य पर भी गहर असर पड़ता है। साइंस डायरेक्ट की रिपोर्ट अनुसार ऐसे प्रदूषण से सांस संबंधी बीमारी, अस्थमा, फेफड़ों में इंफ़ेक्शन, हृदयरोग, कैंसर, टीबी जैसे जानलेवा बीमारी होती होता है। आज लोगों के पास खेती करने के लिए ज़मीन भी नहीं बची। पेट पालने का कोई रास्ता नहीं रहता तो घर चलाने के लिए मजबूर होकर महिलाएं भी कोयला खदान में काम करने लगी हैं।

जितना डर हमें  कोविड के समय नहीं था, उससे कहीं ज़्यादा डर हमें इस खदान के प्रदूषण से हैं। महिलाओं को खदानों के अंदर काम नहीं दिया गया है पर खदान के बाहर के एरिया (छोटे कंपनियों के भीतर) में कोयले को छोटे टुकड़ों में  तोड़ने का काम, साफ़-सफ़ाई का काम, कंस्ट्रक्शन (राजमिस्त्री) का काम दिया गया है।

महिलाओं के स्वास्थ्य पर प्रदूषण का असर 

कामकाजी महिलाओं को दोहरी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं तो होती ही हैं, साथ में शारीरिक बीमारी भी महिलाओं में अत्यधिक देखा जाता है। रायगढ़ में रहने वाले खेमिन, उषा, हरिराम (बदला हुआ नाम) से बातचीत करने पर सामने आया कि महिलाओं को प्रदूषण के चलते कई बीमारियों का सामना करना पड़ रहा है। गायत्री एक छात्रा हैं और मिलुपरा रायगढ़ में रहती हैं। वह कहती हैं, “जितना डर हमें  कोविड के समय नहीं था, उससे कहीं ज़्यादा डर हमें इस खदान के प्रदूषण से हैं। महिलाओं को खदानों के अंदर काम नहीं दिया गया है पर खदान के बाहर के एरिया (छोटे कंपनियों के भीतर) में कोयले को छोटे टुकड़ों में  तोड़ने का काम, साफ़-सफ़ाई का काम, कंस्ट्रक्शन (राजमिस्त्री) का काम दिया गया है। फिर भी कहीं ना कहीं वे खदानों के आस-पास ही रह कर काम करती हैं और ज़हरीली  धुआँ लगातार सांसों में घुसती है और  काम के दौरान किसी भी प्रकार की कोई सुविधा नहीं दी जाती है। यहां तक कि उन्हें मास्क भी नहीं दिया जाता है।”

खनन प्रभावित क्षेत्र रायगढ़ में  महिलाओं की स्वास्थ्य सम्बंधित समस्याएँ
तस्वीर में कोयला कम्पनी रायगढ़,साभार:पुष्पा

गायत्री का कहना है कि कोविड में मास्क लगाकर घर में रहना होता था पर यहां तो ज़हरीली धूल के अंदर काम कराया जा रहा है और सुरक्षा के लिए एक मास्क भी नहीं दिया जाता है। काम के बीच में उन्हें शौचालय भी नहीं जाने दिया जाता है। अगर जाने भी दिए तो खुले में जाना पड़ता है जिसके कारण यूरिन इंफ़ेक्सन,पेशाब में जलन जैसी समस्या महिलाओं को होती है। प्रदूषण के कारण 40 से 45 उम्र की अधिकतर महिलाओं को हाथ-पैर में, शरीर में दर्द की परेशानी है। बहुत सी लोगों की ज़मीन छिन गई और अब सिर्फ़ उस खदान के भरोसे काम कर रही हैं, जिसमें काम अधिक और मेहनताना बहुत कम है जिससे घर चला पाना मुश्किल है। ऐसी हालत में काफ़ी महिलाएं कुपोषण का शिकार होती हैं। अधिकतर महिलाएं खून की कमी से ग्रसित हैं।

एन.जी.टी. द्वारा गठित जाँच टीम के आंकड़ों के अनुसार रायगढ़ के सिर्फ़ तमनार और घरघोडा ब्लॉक में 13 कोयला खदान, और 12  पावर प्लांट है, जिससे ये अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि पूरे रायगढ़ ज़िला किस स्तर पर इस खनन के क़ब्ज़े में है।

महिलाओं में पीरियड्स के दौरान समस्या

खनन प्रभावित क्षेत्र रायगढ़ में  महिलाओं की स्वास्थ्य सम्बंधित समस्याएँ
तस्वीर में रायगढ़ कोयला भंडार,साभार:गायत्री

ग्रामीण इलाकों में आधे से ज़्यादा महिलाएं पीरियड्स के समय स्वच्छता उत्पाद का इस्तेमाल नहीं करती। महिलाएं आज भी कपड़े का ही इस्तेमाल करती हैं। ऐसे में उस कपड़े को दूषित पानी से धोना और ज़हरीली हवा में सुखाना और उसे वापस इस्तेमाल करना, उनके स्वास्थ्य पर गंभीर असर करता है। पीरियड्स के दौरान सही भोजन न मिलना, आराम न मिलने की वजह से लगभग सभी महिलाओं को कमजोरी की शिकायत रहती है। गायत्री कहती हैं, “महिलाएं शारीरिक रूप से भी बीमारियों से ग्रसित हैं और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से  भी जूझ रही हैं। उन्हें  अपने घर-परिवार के साथ बाहर काम पर भी ध्यान देना होता है। महिलाओं के स्वास्थ्य के बारे में कभी कोई बात ही नहीं होती है।”

हालांकि खदान के प्रदूषण से महिला, पुरुष, बुजुर्ग या बच्चे कोई भी अछूता नहीं हैं और सभी इससे हो रही बीमारियों पर खुलकर बात कर पाते हैं। लेकिन महिलाओं के लिए इसे शर्मिंदगी झेलनी पड़ती है। महिलाओं का यौन और प्रजनन स्वास्थ्य एक टैबू है। रायगढ़ के खनन प्रभावित इलाकों में महिलाएं सालों से खनन के ख़िलाफ़ और बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए लगातार संघर्षरत हैं। जरूरी है कि सिर्फ सरकार ही नहीं बल्कि नागरिक समाज और परिवार इसे समझें और उनके स्वास्थ्य और देखभाल के लिए उचित कदम उठाए।  

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