इतिहास डॉ. रोहिणी गोडबोलेः विज्ञान क्षेत्र में लैंगिक समानता के लिए काम करने वाली वैज्ञानिक| #IndianWomenInHistory

डॉ. रोहिणी गोडबोलेः विज्ञान क्षेत्र में लैंगिक समानता के लिए काम करने वाली वैज्ञानिक| #IndianWomenInHistory

प्रोफेसर रोहिणी गोडबोले एक "एलिमेंटरी पार्टिकल फिनॉमेनोलॉजिस्ट" थीं। वह ऐसी वैज्ञानिक जो कण कोलाइडर्स में देखे जाने वाले घटनाक्रमों का अध्ययन करती हैं। उनके शोधपत्रों ने अमेरिका के फर्मिलैब (Fermilab) और जिनेवा के सर्न (CERN) जैसे प्रतिष्ठित प्रयोगशालाओं में किए गए प्रयोगों की व्याख्या की और सैद्धांतिक मॉडल्स के परीक्षण के लिए प्रयोगात्मक संकेतों को प्रस्तावित किया।

भारत में विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं के लिए समान अवसरों की प्रबल समर्थक रोहिणी गोडबोले वह नाम है विज्ञान जगत में लैंगिक पूर्वाग्रहों को तोड़ते हुए ख्याति और सफलता प्राप्त की। रोहिणी गोडबोले एक भारतीय भौतिकविद और शिक्षाविद थीं, जिन्होंने प्रारंभिक कण भौतिकी, क्षेत्र सिद्धांत और परिघटनात्मक भौतिकी में विशेषज्ञता हासिल की। साल 1970 के दशक में जब भारत में महिलाओं की रोजगार में मौजूदगी बेहद कम थी, उस समय उन्होंने विज्ञान की दुनिया में आगे कदम बढ़ाए। उन्होंने विज्ञान के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान देते हुए, उन तमाम महिलाएं के लिए मिसाल बनीं जो विज्ञान क्षेत्र में पुरुषों के वर्चस्व की वजह से पीछे रही।

रोहिणी गोडबोले का जन्म पुणे के एक मध्यमवर्गीय परिवार में 12 नवंबर 1952 में हुआ था। उनके पिता का नाम माधवसुदन गणेश गोडबोले और उनकी माता का नाम मालती था। उनके घर में शिक्षा को अधिक महत्व दिया जाता था। उनकी माता एक शिक्षिका के तौर पर भी काम करती थीं। रोहिणी का विज्ञान में रूचि बहुत छोटी उम्र से ही थी। जब वह सातवीं कक्षा में पढ़ती थी तब उन्होंने राज्य छात्रवृत्ति परीक्षा देने का फैसला लिया। इस परीक्षा में सामान्य विज्ञान का एक पेपर होता था। उनके स्कूल सातवीं कक्षा तक केवल गृह विज्ञान पढ़ाया जाता था, इसलिए उनके स्कूल से पहले किसी ने यह छात्रवृत्ति नहीं जीती थी। उनके शिक्षकों ने स्कूल के समय के बाद और छुट्टियों में उन्हें पढ़ाने का फैसला लिया। कड़ी मेहनत और प्रयास के साथ रोहिणी ने छात्रवृति मिली। इस तरह तैयारी के साथ उन्हेंने परीक्षा दी और इससे उनके भीतर विज्ञान के प्रति गहरी रूचि भी विकसित हुई।

इसके बाद रोहिणी गोडबोले ने मराठी की एक लोकप्रिय विज्ञान पत्रिका ‘सृष्टि ज्ञान’ पढ़नी शुरू की, और साथ ही गणित में रूचि बढ़ाने और विज्ञान निबंध प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने अपनी बाहरवीं की पढ़ाई सर परशुराम भाऊ (एस.पी.) कॉलेज से की थी और द्वितीय स्थान प्राप्त किया था। स्कूल की पढ़ाई पूरी होने के बाद उन्होंने सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय से बीएससी करने का फैसला लिया। बीएससी के बाद, उन्होंने आईआईटी कानपुर और आईआईटी बॉम्बे में आवेदन किया, लेकिन माता-पिता के करीब रहने के कारण उन्होंने आईआईटी बॉम्बे को चुना।

प्रोफेसर गोडबोले की कक्षा में कुल 17 छात्र थे, जिनमें सिर्फ तीन लड़कियां थीं। साल 1974 में प्रोफेसर गोडबोले ने पीएचडी की पढ़ाई के लिए स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ न्यूयॉर्क स्टोनी ब्रुक में दाखिला लिया। उन्होंने सैद्धांतिक उच्च-ऊर्जा भौतिकी के क्षेत्र में आगे बढ़ने का फैसला लिया।

आईआईटी में दाखिला लेना उनके लिए केवल उनकी प्रतिभा के कारण संभव हो पाया, क्योंकि उन्होंने राष्ट्रीय विज्ञान प्रतिभा छात्रवृत्ति (नैशनल साइंस टैलेंट स्कॉलरशिप) हासिल की, जिसमें उन्हें हर महीने 200-250 रुपये मिलते थे, जो उस समय के हिसाब से एक बड़ी रकम थी। इसके बाद उन्होंने भौतिकी में अपनी मास्टर्स की पढ़ाई पूरी की और सिल्वर मेडल प्राप्त किया। प्रोफेसर गोडबोल न केवल खुद विज्ञान के क्षेत्र में आगे बढ़ती रही बल्कि उन्होंने भारत में अन्य महिलाओं को भी इस क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। 

आईआईटी बॉम्बे में जीवन

तस्वीर साभारः Indian Express

पुणे के एक मराठी माध्यम कॉलेज से आने के कारण मुझे आईआईटी बॉम्बे में खुद को ढालने को लेकर प्रोफेसर गोडबोले में गहरी चिंता थी। अपने एक इंटरव्यू में वह कहती है, “मैं अंग्रेज़ी में कैसे बोलूंगी? मेरे लिए यह चिंता विज्ञान और प्रौद्योगिकी में एक महिला होने से कहीं अधिक बड़ी थी। इसके अलावा, आईआईटी में पढ़ाने का तरीका विश्वविद्यालय से काफी अलग था। क्विज़, होम असाइनमेंट, ओपन बुक परीक्षाएं, यह सब मेरे लिए नया था।” वह आगे बताती है कि छात्रावास (जिसे ‘एलएच’ लेडीज़ हॉस्टल कहा जाता था) की बी.टेक. छात्राएं भी ज़्यादा मददगार नहीं थीं, क्योंकि वे अक्सर सोचती थीं कि हमारे ‘फंडे’ (मूलभूत समझ) सही नहीं हैं! लेकिन यह धारणा जल्द ही बदल गई। हमने पढ़ाई के साथ-साथ खूब मज़े भी किए। हम झील किनारे सैर, पहाड़ियों की ट्रेकिंग, मिडनाइट में मूड इंडिगो फेस्टिवल में गाने सुनना, कॉन्वोकेशन हॉल में हिंदी और अंग्रेजी फिल्में देखना।

प्रोफेसर गोडबोले कहती है कि आईआईटी का माहौल शानदार था और कुछ शिक्षक भी प्रेरणादायक थे। विशेष रूप से प्रोफेसर एस.एच. पाटिल का मेरे जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा। मेरे एक सैद्धांतिक भौतिकविद होने का श्रेय उस ‘होम पेपर’ को जाता है, जिसे मैंने उनके साथ किया था। उसी ने मुझे इस विषय की गहराई और सुंदरता दिखाई। उनकी अपेक्षाओं पर खरा उतरने के लिए मुझे कड़ी मेहनत करनी पड़ी। प्रोफेसर गोडबोले की कक्षा में कुल 17 छात्र थे, जिनमें सिर्फ तीन लड़कियां थीं। साल 1974 में प्रोफेसर गोडबोले ने पीएचडी की पढ़ाई के लिए स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ न्यूयॉर्क स्टोनी ब्रुक में दाखिला लिया। उन्होंने सैद्धांतिक उच्च-ऊर्जा भौतिकी के क्षेत्र में आगे बढ़ने का फैसला लिया। 1979 में उन्होंने अपनी पीएचडी पूरी की और अमेरिका या यूरोप में काम करने के बजाय भारत लौटने का निर्णय लिया। भारत लौटने के बाद, उन्होंने टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (TIFR), मुंबई में पोस्टडॉक्टोरल फेलो के रूप में कार्य किया। टीआईएफआर के बाद, उन्होंने कुछ समय के लिए रॉयल इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, मुंबई में काम किया। 1982 में, मात्र 30 वर्ष की उम्र में, उन्होंने मुंबई विश्वविद्यालय में लेक्चर के रूप में कार्यभार संभाला।

साल 2001 में इंटरनेशनल यूनियन ऑफ प्योर एंड अप्लाइड फिजिक्स ने पहली अंतरराष्ट्रीय ‘वुमेन इन फिजिक्स’ कॉन्फ्रेंस आयोजित की। इस सम्मेलन में उन्हें भारत की एक सफल महिला भौतिकविद् के रूप में अपने अनुभव साझा करने के लिए आमंत्रित किया गया।

भारत में शुरुआती संघर्ष और वैज्ञानिक पहचान

भारत लौटने के बाद प्रोफेसर रोहिणी गोडबोले के लिए शुरुआती दिन आसान नहीं थे। बेहद उत्कृष्ट रिसर्च कार्य करने के बावजूद, कुछ लोगों ने यह कहकर उनकी क्षमताओं को कमतर आंका कि उनमें स्वतंत्र रूप से उच्च-स्तरीय शोध करने की प्रतिभा नहीं है। उन्होंने मुंबई विश्वविद्यालय में पढ़ाना शुरू किया, लेकिन वहां उनका शिक्षण भार बहुत अधिक था और शोध को लेकर संस्थागत समर्थन सीमित था। हालांकि, उन्होंने स्वीकार किया कि कुछ वरिष्ठ सहयोगियों ने उनका मार्गदर्शन किया और उन्हें समर्थन दिया।

प्रोफेसर गोडबोले ने परिस्थितियों को अपनी सफलता की राह में बाधा नहीं बनने दिया। दिनभर के भारी शिक्षण काम के बावजूद, वह मुंबई के एक छोर से टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च तक सफर करतीं और वहां के प्रोफेसरों के साथ रिसर्च का काम जारी रखतीं। उनके पास एक छोटा-सा डेस्क तक नहीं था, लेकिन उन्होंने कभी भी लैंगिक भेदभाव को लेकर शिकायत नहीं की और पूरा ध्यान केवल अपनी रिसर्च पर रखा। 1995 में उन्हें इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, बेंगलुरु में फैकल्टी पद की पेशकश हुई। यहां उनका शोध कार्य कम तनावपूर्ण हो गया और उन्हें पीएचडी छात्रों को मार्गदर्शन देने और अपनी शोध टीम बनाने का अवसर मिला। इसी दौर में उनका करियर नई ऊंचाइयों पर पहुंचा, और वे भारतीय विज्ञान समुदाय में एक प्रतिष्ठित नाम बन गईं।

तस्वीर साभारः CHEP

प्रोफेसर रोहिणी गोडबोले एक “एलिमेंटरी पार्टिकल फिनॉमेनोलॉजिस्ट” थीं। वह ऐसी वैज्ञानिक जो कण कोलाइडर्स में देखे जाने वाले घटनाक्रमों का अध्ययन करती हैं। उनके शोधपत्रों ने अमेरिका के फर्मिलैब (Fermilab) और जिनेवा के सर्न (CERN) जैसे प्रतिष्ठित प्रयोगशालाओं में किए गए प्रयोगों की व्याख्या की और सैद्धांतिक मॉडल्स के परीक्षण के लिए प्रयोगात्मक संकेतों को प्रस्तावित किया। उन्होंने सुपरसिमेट्रिक मॉडल्स पर एक पाठ्यपुस्तक भी सह-लेखन की, जिसमें उन मॉडलों की व्याख्या की गई है जिनके प्रमाण आज भी कण त्वरकों में खोजे जा रहे हैं।

तस्वीर साभारः X

प्रोफेसर रोहिणी गोडबोले को विज्ञान के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए कई प्रतिष्ठित सम्मान प्राप्त हुए। साल 2021 में आईआईटी कानपुर से मानद डॉक्टरेट की उपाधि प्रदान की गई। विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए 2019 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया। उन्होंने 2009 में भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी का सत्येंद्रनाथ बोस पदक ही हासिल किया था। साल 2007 में उन्हें नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज, इंडिया की फेलोशिप मिली, और साल 2009 में उन्हें अकादमी ऑफ साइंसेज ऑफ द डिवेलपिंग वर्ल्ड की फेलोशिप से सम्मानित किया गया। इसके अलावा, फ्रांसीसी सरकार ने उन्हें ऑर्ड्रे नेशनल ड्यू मेरिट से सम्मानित किया।

उनकी वैज्ञानिक विशेषज्ञता के कारण, उन्हें अक्सर महत्वपूर्ण पैनलों और कार्य समूहों में आमंत्रित किया जाता था। साल 2001 में इंटरनेशनल यूनियन ऑफ प्योर एंड अप्लाइड फिजिक्स ने पहली अंतरराष्ट्रीय ‘वुमेन इन फिजिक्स’ कॉन्फ्रेंस आयोजित की। इस सम्मेलन में उन्हें भारत की एक सफल महिला भौतिकविद् के रूप में अपने अनुभव साझा करने के लिए आमंत्रित किया गया। उदाहरण के लिए, 2012 में, वे सर्न (CERN) द्वारा गठित एक अध्ययन समूह में सबसे वरिष्ठ भारतीय वैज्ञानिकों में से एक थीं। इस समूह ने 600 पृष्ठों की एक रिपोर्ट तैयार की, जिसमें लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर (LHC) को इलेक्ट्रॉन बीम्स के साथ अपग्रेड करने की संभावनाओं का अध्ययन किया गया था।

1979 में उन्होंने अपनी पीएचडी पूरी की और अमेरिका या यूरोप में काम करने के बजाय भारत लौटने का निर्णय लिया। भारत लौटने के बाद, उन्होंने टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (TIFR), मुंबई में पोस्टडॉक्टोरल फेलो के रूप में कार्य किया।

विज्ञान में महिलाओं की भागीदारी

भारत में विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए उन्होंने प्रो. राम रामास्वामी के साथ मिलकर भारतीय विज्ञान अकादमी के ‘वुमेन इन साइंस’ पैनल के लिए एक परियोजना शुरू की, जिसका वह को-फाउंडर अध्यक्ष बनीं। उन्होंने 200 महिला वैज्ञानिकों से संपर्क किया और अंततः 99 कहानियों को संकलित कर ‘लीलावती’स डॉटर्स’ नामक पुस्तक प्रकाशित की। इस पुस्तक का टाइटल प्राचीन भारत की महान गणितज्ञ लीलावती के सम्मान में रखा गया। इसके बाद उन्होंने विज्ञान में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाने और इसे अधिक प्रभावी बनाने के लिए कई मंचों पर काम किया। प्रोफेसर रोहिणी गोडबोले का 25 अक्टूबर 2024 को बेंगलुरु स्थित अपने घर में एक बीमारी के कारण 71 वर्ष की आयु में निधन हो गया। प्रोफेसर गोडबोले भारतीय विज्ञान की दुनिया का एक महत्वपूर्ण नाम हैं।

सोर्सः

  1. The Hindu
  2. IIT Bombay
  3. Dean ACR Office
  4. Wikipedia

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