22 अप्रैल 2025 को जम्मू कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद से भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ा तनाव सिर्फ़ एक सैनिक संघर्ष नहीं, बल्कि यह एक सूचना युद्ध भी बन चुका है। पहलगाम में हुए हमले में 26 लोगों की मौत के बाद जवाबी कार्रवाई करते हुए 7 मई 2025 को भारत ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ नामक अभियान चलाया। इन दोनों घटनाओं के बाद से सोशल मीडिया पर न सिर्फ तरह-तरह की खबरें फैली बल्कि मेनस्ट्रीम मीडिया भी तथ्य आधारित खबरों के बजाय गलत सूचना और अफवाहों को चुना। आज आम जनता के लिए फर्ज़ी और ग़ुमराह करने वाली ख़बरों के बीच सच्चाई को समझना भी एक चुनौती ही बन गई है।
एक ग़लत सूचना भी देश के राजनीतिक या सांप्रदायिक रूप से कमजोर स्थिति को चुनौती देने के लिए काफी होती है। बीते कुछ हफ्तों से तेजी से झूठी और भ्रामक सूचनाएं फैल रही हैं। जैसेकि पुराने वीडियो को नए घटनाओं से जोड़कर दिखाया जा रहा है। एआई से बनी नकली चीजें सच्चाई को छुपा रही हैं। साथ ही, इन सबने खतरनाक रूप से देशभक्ति की उग्र भावना और गुस्से को बढ़ा दिया है। सूचना और तकनीक के युग में जब पूरी दुनिया में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के इस्तेमाल से मिनटों में किसी की छवि को बनाया और बिगाड़ा जा रहा है, ऐसे में सतर्क और सावधान रहना और भी ज़रूरी हो जाता है।
फॉग ऑफ वॉर यानी अफ़वाहों की उपजाऊ ज़मीन
युद्ध के समय अफरातफरी का माहौल होता है। ऐसे में अफ़वाहों के फैलने की गुंजाइश कई गुना बढ़ जाती है। सच्चाई और झूठ के बीच की सीमा के धुंधले हो जाने को ही फॉग ऑफ वॉर कहा जाता है। इस समय सोशल मीडिया, न्यूज़ चैनल्स और मैसेजिंग ऐप्स का इस्तेमाल बहुत ज़्यादा बढ़ जाता है। ऐसे में मिसइनफॉर्मेशन यानी बिना बुरे इरादे के फैलाई गई ग़लत ख़बरें और डिसइनफॉर्मेशन यानी जानबूझकर गुमराह करने वाली ख़बरें बहुत तेजी से फैलती है। सरकारें नैरेटिव बनाने के लिए भी इसका इस्तेमाल करती हैं। भारत-पाकिस्तान के बीच हुए हालिया संघर्ष के दौरान भी बड़ी संख्या में पुराने वीडियो, एआई जेनरेटेड वीडियो और मॉर्फ की गई तस्वीरों के माध्यम से आम जनता में ग़लत सूचनाएं फैलाई गई।

जैसे, न्यूज मिनट में छपी रिपोर्ट अनुसार कई पाकिस्तानी सोशल मीडिया हैंडल ने हमले के दृश्य पोस्ट किए और दावा किया कि यह पाकिस्तान की जवाबी कार्रवाई थी। उन्होंने दावा किया कि यह भारतीय सैन्य कॉलोनी पर पाक सेना का हमला था। हालांकि यह झूठ निकला। रिपोर्ट अनुसार वीडियो के सोर्स का पता नहीं चल पाया है, लेकिन यह निश्चित रूप से पहलगाम हमले से भी पहले का था और अंदाजा लगाया जा सकता है कि वह इंडोनेशिया का है। सोशल मीडिया पर पुरानी तस्वीरें साझा कर जम्मू एयर फोर्स बेस पर कई सारे विस्फोट के दावे भी किए गए। हालांकि जब भारत के प्रेस इनफॉर्मेशन ब्यूरो की फैक्ट चेक टीम ने इसकी जांच की, तो पाया कि इसमें इस्तेमाल की गई तस्वीर अगस्त 2021 में काबुल एयरपोर्ट पर हुए धमाके की थी।
कैसे गलत सूचनाएं फैलाई जा रही हैं
इसी तरह सोशल मीडिया पर एक और वीडियो वायरल हुआ, जिसमें यह दावा किया गया था कि यह गुजरात के हजीरा पोर्ट पर हुए हमले का वीडियो है। जब पीआईबी फैक्ट चेक टीम ने जांच की, तो यह भी पूरी तरह से ग़लत पाया गया। वह वीडियो 7 जुलाई 2021 को हुए एक तेल टैंकर विस्फोट का था। बीते दिनों भारत के एयरपोर्ट में एंट्री बैन होने की भी फर्ज़ी ख़बरें फैलाई गईं, जिसका खंडन प्रेस इनफॉर्मेशन ब्यूरो की फैक्ट चेक टीम ने किया। पाकिस्तान ने राजौरी और जम्मू-कश्मीर में आर्मी ब्रिगेड पर फ़िदायीन (आत्मघाती) हमले की भी फर्ज़ी ख़बरें प्रसारित की। द हिंदू के बिजनेस लाइन की ख़बर के अनुसार, चीन की शिन्हुआ समाचार एजेंसी ने भी पाकिस्तान के जेएफ-17 थंडर जेट द्वारा भारत के पंजाब में भारत की एस-400 वायु रक्षा प्रणाली को नष्ट करने के फर्ज़ी दावे का समर्थन किया।
भारतीय मेनस्ट्रीम मीडिया द्वारा फैलाई गई भ्रामक जानकारी
बूम की हालिया रिपोर्ट में भारत-पाकिस्तान के बीच हो रहे संघर्ष के दौरान देश के मेनस्ट्रीम मीडिया के फैलाए गए झूठे दावों और फर्ज़ी खबरों का खंडन किया गया। भारत के मुख्यधारा की मीडिया में कराची बंदरगाह पर हमला, इस्लामाबाद पर कब्ज़ा, पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ़ आत्मसमर्पण के लिए मजबूर जैसे हजारों शीर्षक से लगातार ख़बरें चलाई। इस तरह के भी दावे किए गए कि भारतीय नौसेना के जहाज आईएनएस विक्रांत ने कराची पर हमला किया था। इस तरह की ख़बरों के बीच कुछ वीडियो भी लगातार प्रसारित किए जा रहे थे। बूम ने अपनी जांच में यह पाया कि उसमें से एक वीडियो जनवरी 2025 में अमेरिका के फिलाडेल्फिया में हुए विमान हादसे का था। मातृभूमि, डीएनए और वन इंडिया जैसे अख़बारों में यह तक दावा किया गया कि पाकिस्तानी सेवा में आंतरिक तख़्तापलट हो गया है और पाकिस्तान के सेवा प्रमुख जनरल असीम मुनीर ने इस्तीफा दे दिया और उनकी जगह किसी और को नियुक्त किया गया।

कई मुख्यधारा के चैनल में भी इस तरह की रिपोर्ट की गई कि असीम मुनीर को हिरासत में ले लिया गया। हालांकि इनमें से किसी भी दावे के लिए भरोसेमंद स्त्रोत का जिक्र या आधार नहीं दिया गया। इसी तरह इसराइल के आयरन डोम द्वारा ड्रोन को रोकने वाले वीडियो को जैसलमेर के ऊपर भारतीय वायु रक्षा द्वारा ड्रोन को रोकने के फुटेज के रूप में दिखाया गया। हालांकि जैसलमेर के पास विस्फोट की पुष्टि तो हुई थी लेकिन उसके साथ दिखाया गया फुटेज जैसलमेर का नहीं था। भारतीय विदेश मंत्रालय और सशस्त्र बलों के साथ हुई संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस तरह के दावों की कोई पुष्टि नहीं की गई। न ही पाकिस्तान के आधिकारिक बयानों में ऐसे किसी दावे का समर्थन किया गया। देश की मेनस्ट्रीम मीडिया ने भी युद्ध और तनाव के दौरान संवेदनशीलता या जिम्मेदारी का परिचय नहीं दिया।
गलत सूचनाओं से बचने की हमारी जिम्मेदारी
ये सच है कि झूठी या गलत खबरों को खबरों से अलग रखना मीडिया और पत्रकारों की जिम्मेदारी है। लेकिन, जब झूठी खबरें फैलती हैं, तो सबसे ज्यादा नुकसान आम जनता को ही होता है। इसलिए ये जरूरी है कि हम क्या पढ़, देख या सुन रहे हैं और किन खबरों को आगे शेयर करते हैं, उसकी जांच करें और अपनी जिम्मेदारी निभाएं। इतिहास में कई बार जानकारी का इस्तेमाल एक हथियार की तरह किया गया है। न्यूज मिनट की एक रिपोर्ट अनुसार द्वितीय विश्व युद्ध के समय नाज़ी शासन ने प्रचार और अफवाहों के ज़रिए लोगों को गुमराह किया था। साल 1990 में खाड़ी युद्ध के दौरान भी एक छोटी बच्ची ने अमेरिकी कांग्रेस में बयान दिया कि इराकी सैनिकों ने कुवैत के अस्पतालों में इनक्यूबेटर से नवजात बच्चों को निकालकर मरने के लिए छोड़ दिया है। यह कहानी बेहद भावनात्मक थी और इससे युद्ध के समर्थन में माहौल बना गया। लेकिन, बाद में यह पता चला कि पूरी कहानी ही झूठी थी।
इसी तरह, साल 2003 में अमेरिका ने इराक पर हमला यह कहकर किया कि सद्दाम हुसैन के पास विनाशकारी हथियार हैं और उसका अल-कायदा से संबंधित है। लेकिन, बाद में यह आरोप भी निराधार निकला। इन झूठे दावों को मीडिया ने खूब बढ़ावा दिया, जिससे जनता के बीच डर और युद्ध के पक्ष में समर्थन फैला। एक कमजोर स्थिति में बतौर नागरिक ये हम सबकी जिम्मेदारी है कि हम फर्जी खबरों और गलत सूचनाओं के प्रति चौकन्ने रहे। युद्ध और तनाव के समय देशवासियों में भावनाएं चरम पर होती हैं। ऐसे समय में मीडिया का अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए इस तरह से फर्ज़ी ख़बरें और अफ़वाहें फैलाना लोगों में डर और तनाव को और बढ़ा देता है। खास तौर पर जब मामला धर्म से जुड़ा हो तो इस तरह की ख़बरों से सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ने का ख़तरा बढ़ जाता है। इससे दोनों देशों के बीच बातचीत के रास्ते मसला हल होने की गुंजाइश और कम हो जाती है।
सरकार की है अहम भूमिका

फर्ज़ी ख़बरें और अफवाहें फैलने से रोकने के लिए सरकार और आम जनता दोनों की ज़िम्मेदारी बनती है। साथ ही सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को अपनी पॉलिसी और रेगुलेशन को ध्यान में रखना चाहिए जिससे फर्ज़ी ख़बरों का रियल-टाइम फैक्ट चेक आसानी से किया जा सके। आज भी हमारे देश में ज़्यादातर जनता इंटरनेट पर मौजूद किसी भी बात को बिना फैक्ट चेक के सच मान लेती है, इसलिए यहां लोगों में मीडिया लिटरेसी को लेकर जागरूकता बढ़ाना बेहद ज़रूरी है। इसके अलावा मीडिया की निष्पक्षता और स्वतंत्रता सुनिश्चित करना भी ज़रूरी है, जिससे बिना किसी दबाव के विश्वसनीय और तथ्यपूर्ण ख़बरें ही आम जनता तक पहुंच सकें। साथ ही विभिन्न देशों में न्यूज के नाम पर फर्जी खबरों को जारी करने वाले चैनल पर सरकार की निगरानी जरूरी है। आज की तेजी से बदलती दुनिया में युद्ध का स्वरूप भी बदलता जा रहा है। यह जितनी ज़मीन पर लड़ी जाती है, उतनी ही डिजिटल माध्यमों से भी। इसलिए, युद्ध और संघर्ष जैसी तनावपूर्ण परिस्थितियों में तथ्य और सच सुनिश्चित करना और भी ज़रूरी हो जाता है।