हाल ही में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में पर्यटकों पर आतंकवादी हमले के बाद, हिंदुत्व समूहों और सोशल मीडिया अकाउंट्स ने कश्मीर विरोधी और मुस्लिम विरोधी बयानबाजी शुरू कर दी है। सोशल मीडिया पर मुसलमानों के नरसंहार से लेकर कश्मीर में आर्थिक बहिष्कार तक, लोग इसपर चर्चा करते हुए और वकालत करते हुए नज़र आ रहे हैं। हमले के तुरंत बाद, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर मुस्लिम विरोधी टिप्पणियों और पोस्ट्स की बाढ़ आ गई। कई उपयोगकर्ताओं ने मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाते हुए आपत्तिजनक भाषा का प्रयोग किया और उन्हें देशद्रोही करार दिया। कुछ पोस्ट्स में तो हिंसा की खुली धमकियां भी दी गईं। हमले के बाद, यूट्यूब और अन्य प्लेटफॉर्म्स पर ‘हिंदुत्व पॉप’ नामक एक नए संगीत शैली के गाने तक वायरल हुए, जिनमें मुस्लिम समुदाय के खिलाफ नफरत भरे संदेश थे। इन गानों में मुसलमानों को देशद्रोही बताया गया और उन्हें देश छोड़ने की धमकी दी गई।
वहीं सोशल मीडिया पर कश्मीरियों के खिलाफ़ भी भेदभावपूर्ण टिप्पणियां देखी गईं। कुछ पोस्ट्स में कश्मीरियों को आतंकवादी बताया गया और उनके बहिष्कार की मांग की गई। देश के विभिन्न हिस्सों में मुस्लिम समुदाय के खिलाफ हिंसा और भेदभाव की घटनाएं सामने आई हैं। द स्क्रॉल में छपी रिपोर्ट अनुसार मसूरी में दो कश्मीरी शॉल विक्रेताओं पर स्थानीय लोगों ने हमला किया, जिससे कम से कम 16 कश्मीरी विक्रेताओं को शहर छोड़ना पड़ा। पुलिस ने तीन आरोपियों को गिरफ्तार किया, जो बजरंग दल से जुड़े बताए गए। वहीं मंगलुरु में एक मुस्लिम व्यक्ति को कथित तौर पर पाकिस्तान समर्थक नारे लगाने के आरोप में भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला। बात सिर्फ सड़कों तक नहीं रुकी। अलीगढ़ में एक 15 वर्षीय मुस्लिम छात्र को पाकिस्तान का झंडा उठाने पर भीड़ ने उसे पेशाब करने के लिए मजबूर किया और उसके साथ मारपीट की। द इंडियन एक्स्प्रेस की रिपोर्ट अनुसार पहलगाम हमले से कुछ दिन पहले, जिसमें 26 लोगों की जान चली गई थी, पर्यटकों पर हमले का खुफिया अलर्ट था।
द स्क्रॉल में छपी रिपोर्ट अनुसार मसूरी में दो कश्मीरी शॉल विक्रेताओं पर स्थानीय लोगों ने हमला किया, जिससे कम से कम 16 कश्मीरी विक्रेताओं को शहर छोड़ना पड़ा। पुलिस ने तीन आरोपियों को गिरफ्तार किया, जो बजरंग दल से जुड़े बताए गए। वहीं मंगलुरु में एक मुस्लिम व्यक्ति को कथित तौर पर पाकिस्तान समर्थक नारे लगाने के आरोप में भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला। बात सिर्फ सड़कों तक नहीं रुकी।
क्या हिंसा का धर्म होता है?
पिछले कुछ वर्षों में देश में कई बार ऐसे मामले सामने आए हैं, जहां कुछ संगठनों ने मुस्लिम समुदाय के लोगों पर हिंसक हमले किए हैं। कभी ‘जय श्री राम’ कहलवाने के नाम पर, तो कभी ‘जन गण मन’ पढ़वाने के बहाने, इन घटनाओं में कई लोगों की हत्या हुई है। इसके बावजूद, इन घटनाओं को अंजाम देने वाले समूहों और न ही पूरे समुदाय को जिम्मेदार ठहराया गया। यह एक अहम सवाल उठाता है – अगर किसी हिंसक हमले में शामिल व्यक्तियों के कृत्य को उनके धर्म से नहीं जोड़ा जाता, तो फिर कश्मीर जैसे मामलों में, जहां कुछ लोगों द्वारा की गई हिंसा के लिए पूरे मुस्लिम समुदाय को दोषी ठहराया जाता है, वह कितना उचित है? यह जरूरी है कि हम हर हिंसा को इंसानियत के खिलाफ मानें, न कि धर्म के चश्मे से देखें।

किसी एक व्यक्ति या समूह के कृत्य की सज़ा पूरे समुदाय को देना ना केवल अन्याय है, बल्कि सामाजिक ताने-बाने के लिए भी बेहद खतरनाक है। आज लोग सोशल मीडिया पर ‘वी डोन्ट नीड सेक्यूलर इंडिया’ जैसे पोस्ट लिख रहे हैं और बदले की मांग कर रहे हैं। ये ध्यान देने की बात है कि जब भी ऐसे आतंकी हमले होते हैं, तो खुद केंद्र सरकार भी बदले की मंशा दिखाती है न कि आतंकवाद से छुटकारा पाने की। बीबीसी को दिए गए अपने इंटरव्यू में पहलगाम हमले में मारे गए उत्तर प्रदेश के शुभम द्विवेदी की पत्नी कहती है कि जगह जगह सीआरपीएफ होने के बावजूद, उनके पति की मौत हुई और सरकार ने वहां उन्हें और उन जैसों को अनाथ छोड़ दिया था।
आज लोग सोशल मीडिया पर ‘वी डोन्ट नीड सेक्यूलर इंडिया’ जैसे पोस्ट लिख रहे हैं और बदले की मांग कर रहे हैं। ये ध्यान देने की बात है कि जब भी ऐसे आतंकी हमले होते हैं, तो खुद केंद्र सरकार भी बदले की मंशा दिखाती है न कि आतंकवाद से छुटकारा पाने की।
इस्लामोफोबिया के बढ़ते मामले और सरकार की भूमिका

भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों, विशेषकर मुस्लिम समुदाय के खिलाफ हिंसा और भेदभाव कोई नई बात नहीं है। लेकिन हाल ही में पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद, इस समुदाय के प्रति नफरत और हिंसा की घटनाएं चिंताजनक रूप से बढ़ी हैं। इस हमले के ज़िम्मेदार कुछ आतंकियों के कृत्य के आधार पर पूरे मुस्लिम समुदाय को संदेह और शंका की नज़र से देखा जा रहा है। नागरिक अधिकारों के पक्षधर समूह एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स (एपीसीआर), ने 22 अप्रैल के बाद के दिनों में देश भर में मुस्लिम विरोधी हिंसा, धमकी और घृणास्पद भाषण की 21 घटनाएं दर्ज की हैं। इनमें कश्मीरी छात्रों और महिलाओं को निशाना बनाया गया, सार्वजनिक सभाओं में समुदाय के खिलाफ नफरत फैलाने की कोशिश की गई, और यहां तक कि कश्मीरी छात्रों को उनके किराए के घरों और छात्रावासों से जबरन निकाल देना शामिल है। कुछ लोगों ने तो कश्मीर में भी वैसी ही सैन्य कार्रवाई की मांग की है जैसी फिलिस्तीन में इज़रायल कर रहा है।
बात केंद्र सरकार की करें, तो न्यूज मिनट की रिपोर्ट अनुसार जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद, भारत सरकार ने यूट्यूब पर कई लोकप्रिय पाकिस्तानी ड्रामा चैनलों तक पहुंच को ब्लॉक कर दिया है, जिनमें ARY Digital, Har Pal Geo और Hum TV शामिल हैं। भारतीय दर्शकों के व्यापक रूप से देखे जाने वाले इन चैनलों पर अब एक संदेश दिखाया जा रहा है कि राष्ट्रीय सुरक्षा या सार्वजनिक व्यवस्था से संबंधित सरकार के आदेश के कारण यह सामग्री वर्तमान में इस देश में उपलब्ध नहीं है। यह कदम गृह मंत्रालय की सिफारिशों पर आधारित था। यह कार्रवाई सोशल मीडिया पर भी असर करती नज़र आई, जिसमें कई पाकिस्तानी हस्तियों के इंस्टाग्राम अकाउंट भारत में अब उपलब्ध नहीं हैं। प्रभावित लोगों में माहिरा खान, हानिया आमिर, अली जफर, सनम सईद, बिलाल अब्बास, इकरा अजीज, इमरान अब्बास और सजल अली जैसे अभिनेता शामिल हैं। हालांकि, फवाद खान और वहाज अली सहित कुछ अन्य लोगों के अकाउंट भारतीय उपयोगकर्ताओं के लिए सुलभ हैं।
न्यूज मिनट की रिपोर्ट अनुसार जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद, भारत सरकार ने यूट्यूब पर कई लोकप्रिय पाकिस्तानी ड्रामा चैनलों तक पहुंच को ब्लॉक कर दिया है, जिनमें ARY Digital, Har Pal Geo और Hum TV शामिल हैं।
अमानवीय व्यवहार और हिंसा की जिम्मेदारी आखिर किसकी

राज्यों और शहरों में फैलते इसलामोफोबिया के तहत कोलकाता में एक 27 वर्षीय गर्भवती महिला को कथित तौर पर एक डॉक्टर ने इलाज करने से मना कर दिया क्योंकि वो मुस्लिम समुदाय से थी। पिछले सप्ताह ही, आगरा के 25 वर्षीय बिरयानी विक्रेता की स्वयंभू गौरक्षकों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। उनका कहना था कि यह गोलीबारी पहलगाम हमले का बदला लेने के लिए की गई थी। वहीं, नादिया जिले के विधान चंद्र कृषि विश्वविद्यालय में एक नोटिस बोर्ड पर पोस्टर चिपका हुआ मिला, जिसपर लिखा था कि कुत्तों और मुसलमानों का प्रवेश वर्जित है। पोस्टर में स्पष्ट रूप से इस्लाम को आतंकवाद से जोड़ते हुए कहा गया था कि आतंकवाद का मतलब इस्लाम है। इस घटना पर वामपंथी छात्र समूहों के विरोध के बाद, विश्वविद्यालय के अधिकारियों ने पोस्टर हटा दिया और पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। विभिन्न राज्यों में हो रहे इसलामोफोबिक घटनाओं पर ध्यान देना और संवैधानिक मूल्यों की रक्षा करना हम सभी की जिम्मेदारी है। आतंकवाद और हिंसा से लड़ने के लिए एकजुटता की ज़रूरत है, न कि समुदायों को बांटने और उन्हें दोषी ठहराने की।
मीडिया की भूमिका है अहम
भारत में इस्लामोफोबिया यानी मुस्लिम विरोधी पूर्वाग्रह केवल राजनीतिक भाषणों या नीतियों तक सीमित नहीं रह गया है। यह प्रवृत्ति पिछले कुछ सालों में मुख्यधारा के मीडिया, विशेषकर टेलीविज़न न्यूज़ चैनलों में भी गहराई से दिखने लगी है। पहलगाम आतंकी हमले के बाद इसका असर और स्पष्ट रूप से देखने को मिला। इस हमले के पीछे की संभावित सुरक्षा चूक या जिम्मेदारी तय करने की बजाय, कई न्यूज़ चैनल कट्टरपंथी बयानों और सांप्रदायिक उत्तेजना से भरे विमर्श में उलझ गए। न्यूज़रूम, जो तथ्य आधारित और जिम्मेदार पत्रकारिता के केंद्र होने चाहिए, कई बार राष्ट्रवाद की आड़ में शोरगुल और गुस्से का मंच बन जाते हैं।
ऐसे समय में जब एंकरों को जिम्मेदार सवाल पूछने चाहिए थे, वे भावनात्मक और भड़काऊ भाषा का सहारा लेकर मुसलमानों के खिलाफ तीखी बयानबाज़ी करने में लगे हैं। यह समझना बेहद ज़रूरी है कि भारत जैसे देश में, जहां अब भी लगभग 40 फीसद जनसंख्या निरक्षर या सीमित शिक्षा प्राप्त है, वहां टेलीविज़न की भूमिका केवल सूचना देने तक सीमित नहीं है। कई दर्शक वही सच मानते हैं जो उन्हें टीवी स्क्रीन पर दिखाया जाता है। ऐसे में जब समाचार चैनल भड़काऊ भाषा और एकतरफा विमर्श पर ज़ोर देते हैं, तो इससे सामाजिक तनाव और इस्लामोफोबिया फैलने का खतरा बढ़ जाता है।
राज्यों और शहरों में फैलते इसलामोफोबिया के तहत कोलकाता में एक 27 वर्षीय गर्भवती महिला को कथित तौर पर एक डॉक्टर ने इलाज करने से मना कर दिया क्योंकि वो मुस्लिम समुदाय से थी।
2019 में अनुच्छेद 370 को निष्क्रिय कर जम्मू और कश्मीर को पूर्ण राज्य से घटाकर केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया। इसके बाद से क्षेत्र की सुरक्षा पूरी तरह से केंद्र सरकार, विशेषकर गृह मंत्रालय और दिल्ली द्वारा नियुक्त उपराज्यपाल की निगरानी में है। 2008 के मुंबई आतंकी हमलों के बाद, तत्कालीन गृह मंत्री शिवराज पाटिल ने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया था। वहीं, आज के हालात यह दिखाते हैं कि लगातार सुरक्षा विफलताओं के बावजूद वर्तमान गृह मंत्री अमित शाह और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल पद पर बने हुए हैं। 2019 में पुलवामा हमले में 40 CRPF जवान शहीद हुए थे, लेकिन तब भी कोई जिम्मेदारी तय नहीं की गई।
पहलगाम में हुआ आतंकी हमला केवल एक क्षेत्रीय त्रासदी नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए एक चेतावनी है। आतंकवाद की आड़ में पूरे समुदाय को दोषी ठहराना और उसके खिलाफ हिंसा भड़काना न सिर्फ असंवैधानिक है, बल्कि मानवता के भी खिलाफ है। सोशल मीडिया से लेकर सड़कों तक जिस तरह मुसलमानों और कश्मीरियों के खिलाफ घृणा फैलाई जा रही है, वह भारत के बहुलतावादी और लोकतांत्रिक मूल्यों पर सीधा हमला है। हमें यह समझने की ज़रूरत है कि सुरक्षा की विफलताओं की जवाबदेही तय करना जरूरी है, लेकिन उसके नाम पर धार्मिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा देना समाधान नहीं है। मीडिया, प्रशासन, और आम नागरिक — सभी को मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि आतंक के खिलाफ हमारी लड़ाई न्याय, संवेदनशीलता और एकता के रास्ते पर चले।