समाजख़बर बेंगलुरु मेट्रो में महिलाओं का गुप्त रूप से वीडियो बनाना और निजता का उल्लंघन

बेंगलुरु मेट्रो में महिलाओं का गुप्त रूप से वीडियो बनाना और निजता का उल्लंघन

एक एक्स यूजर ने 'बेंगलुरु मेट्रो चिक्स' नाम के एक इंस्टाग्राम पेज को पुलिस के संज्ञान में लाकर संबंधित व्यक्ति के ख़िलाफ़ कार्रवाई की मांग की है। इस पेज पर ग़ैरक़ानूनी तरीके से बेंगलुरु मेट्रो से सफ़र करने वाली महिलाओं की तस्वीरें और वीडियो साझा किए जा रहे थे।

आज के डिजिटल युग ने जहां सूचना की पहुंच, शिक्षा रोजगार और नेटवर्किंग की दिशा में क्रांति लाई है, वहीं इससे निजता पर ख़तरे भी कई गुना बढ़ गए हैं। स्मार्टफ़ोन, सोशल मीडिया और दूसरे तकनीकी माध्यमों का ग़लत इस्तेमाल लोगों की ज़िंदगियों ख़ास तौर पर महिलाओं के लिए आए दिन नई-नई समस्याएं खड़ी कर रहा है। इसमें किसी की मर्ज़ी के बिना उसकी तस्वीरें लेना, वीडियो बनाना, फर्ज़ी प्रोफाइल बनाना, साइबर स्टॉकिंग और ऑनलाइन यौन हिंसा जैसे मामले आम हैं। ऐसी घटनाएं न केवल किसी महिला की सुरक्षा को चुनौती देती है, बल्कि यह उनके आत्मसम्मान और आत्मविश्वास को भी प्रभावित करती है। इस तरह उनकी आज़ादी पर भी एक तरीके से पहरा लगाने जैसा होता है। हाल ही में बेंगलुरु में महिलाओं की निजता के उल्लंघन से जुड़ा एक गंभीर मामला सामने आया है। एक एक्स यूजर ने ‘बेंगलुरु मेट्रो चिक्स’ नाम के एक इंस्टाग्राम पेज को पुलिस के संज्ञान में लाकर संबंधित व्यक्ति के ख़िलाफ़ कार्रवाई की मांग की है।

इस पेज पर ग़ैरक़ानूनी तरीके से बेंगलुरु मेट्रो से सफ़र करने वाली महिलाओं की तस्वीरें और वीडियो साझा किए जा रहे थे। टाइम्स ऑफ़ इंडिया के अनुसार इस पेज के 5000 से ज़्यादा फॉलोअर्स हैं। इस घटना के सामने आते ही बेंगलुरू सेंट्रल के सांसद पीसी मोहन ने भी ‘गोपनीयता और गरिमा का उल्लंघन’ बताते हुए पुलिस से तत्काल कार्रवाई करने को कहा। हालांकि इस मामले में 27 वर्षीय कथित आरोपी की गिरफ़्तारी हो चुकी है, जोकि पेशे से अकाउंटेंट है। पूछताछ के दौरान आरोपी ने पुलिस को बताया कि उन्होंने ऐसा ज़्यादा लाइक और फॉलोअर्स पाने के लिए किया था। एक दूसरी घटना बेंगलुरु के ही एक जानी-मानी स्वीट शॉप आनंद स्वीट्स में घटी। जहां एक महिला ने वॉशरूम में रिकॉर्डिंग करता हुआ छुपा हुआ फोन होने का दावा किया। इस तरह की घटनाएं न सिर्फ़ डिजिटल स्पेस में महिलाओं की प्राइवेसी से जुड़े मुद्दे उठाती हैं, बल्कि किस तरह से सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स को महिलाओं के ख़िलाफ़ इस्तेमाल किया जा रहा है उस पर भी सवाल खड़े करती हैं।

इस पेज पर ग़ैरक़ानूनी तरीके से बेंगलुरु मेट्रो से सफ़र करने वाली महिलाओं की तस्वीरें और वीडियो साझा किए जा रहे थे। टाइम्स ऑफ़ इंडिया के अनुसार इस पेज के 5000 से ज़्यादा फॉलोअर्स हैं।

गिग इकॉनमी में महिलाओं की निजता 

डिजिटल तकनीक के विस्तार और फ्लेक्सिबल काम के वादों के साथ भारत में गिग इकॉनमी तेज़ी से बढ़ रही है। यह नया कामकाजी मॉडल पारंपरिक नौकरियों से अलग है, जहां लोग फुल-टाइम नौकरी की जगह ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म्स के ज़रिए पार्ट-टाइम या टास्क-बेस्ड काम करते हैं। हालांकि गिग इकॉनमी ने कई लोगों को रोज़गार के नए अवसर दिए हैं, खासकर महिलाओं के लिए, लेकिन इसके पीछे की सच्चाई उतनी आसान नहीं है। भारत में तेजी से फैल रही गिग इकॉनमी लोगों को अपने सुविधाजनक समय में काम करके पैसे कमाने का मौका तो दे रही है लेकिन इसके साथ ही इसमें बहुत सारे नुकसान भी उठाने पड़ते हैं। मार्च 2025 में फ्रंटलाइन में प्रकाशित एक रिपोर्ट में पाया गया कि निगरानी के नाम पर गिग इकॉनमी में काम कर रही महिलाओं की निजता का उल्लंघन किया जा रहा है।

तस्वीर साभार: India Today

इन्हें हर वक़्त डिजिटल निगरानी में रहना पड़ता है और किसी भी तरह की असहमति जताने पर उनकी आईडी ब्लॉक कर दी जाती है। यानी उन्हें हमेशा के लिए उस प्लेटफ़ार्म से निकाल दिया जाता है जिससे उनकी आमदनी अचानक से बंद हो जाती है। ऐसे कठोर निगरानी वाले माहौल में इन्हें खाने-पीने या वॉशरूम इस्तेमाल करने के लिए कई बार सोचना पड़ता है। नीति आयोग के अनुसार भारत के गिग वर्कर्स की संख्या 2030 तक 2.35 करोड़ पहुंचने का अनुमान है, जिसमें महिलाओं की संख्या काफ़ी ज़्यादा है। ऐसे माहौल में महिलाओं को अपनी आमदनी बचाए रखने के लिए निजता से समझौता करना पड़ता है, जो कि बेहद चिंताजनक है।

मार्च 2025 में फ्रंटलाइन में प्रकाशित एक रिपोर्ट में पाया गया कि निगरानी के नाम पर गिग इकॉनमी में काम कर रही महिलाओं की निजता का उल्लंघन किया जा रहा है।

डिजिटल प्राइवेसी और डेटा प्रोटक्शन के कानून

भारत का संविधान नागरिकों के मूल अधिकारों के रूप में अनुच्छेद 21 के तहत निजता का अधिकार सुनिश्चित करता है। लेकिन इसके लगभग 75 साल बीत जाने के बावजूद आज तक देश के नागरिकों ख़ास तौर पर महिलाओं और हाशिए के समुदायों को यह हासिल नहीं हो पाया। आए दिन महिलाओं के ख़िलाफ़ हो रहे निजता के उल्लंघन के मामले आसानी से देखे जा सकते हैं। सोशल मीडिया के ग़लत इस्तेमाल ने इस तरह की समस्याओं को और ज़्यादा बढ़ाने का काम किया है। ऐसे हमलों से बचने के लिए हमें सख़्त डेटा प्राइवेसी क़ानूनों की ज़रूरत होती है। भारत में डिजिटल प्राइवेसी के लिए बनाए गए क़ानून अभी भी अधूरे हैं और इन्हें लागू नहीं किया जा सका है। 2023 में आया डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन (DPDP) एक्ट और इसके जनवरी 2025 में जारी ड्राफ्ट बेहद अहम कदम साबित हो सकते हैं अगर इन्हें जल्दी और सही तरीके से लागू किया जाए।

इसे लागू करने के लिए डेटा प्रोटेक्शन बोर्ड ऑफ इंडिया (DPBI) का जल्द से जल्द गठन किया जाना ज़रूरी है वरना यह महज़ कागजों तक सिमट कर रह जाएगा। आईटी एक्ट 2000 की कुछ धाराओं जैसे 66E और 67 में इस तरह के साइबर अपराधों और डेटा प्राइवेसी से जुड़े कुछ प्रावधान ज़रूर किए गए हैं लेकिन बदलते हालातो में उनका इस्तेमाल सीमित और कम प्रभावी है। इस तरह अगर देखा जाए तो इस समय डेटा प्राइवेसी से जुड़ा कोई भी ठोस क़ानून देश में मौजूद नहीं है।  इस मामले में यूरोपियन यूनियन का जनरल डेटा प्रोटक्शन रेगुलेशन (GDPR) और अमेरिका का कैलिफोर्निया कंज्यूमर प्राइवेसी एक्ट (CCPA) जैसे क़ानूनों से काफ़ी कुछ सीखा जा सकता है, जिससे भारत के DPDP ऐक्ट को और भी उपयोगी और प्रभावशाली बनाया जा सके।

भारत में डिजिटल प्राइवेसी के लिए बनाए गए क़ानून अभी भी अधूरे हैं और इन्हें लागू नहीं किया जा सका है। 2023 में आया डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन (DPDP) एक्ट और इसके जनवरी 2025 में जारी ड्राफ्ट बेहद अहम कदम साबित हो सकते हैं अगर इन्हें जल्दी और सही तरीके से लागू किया जाए।

भारत में महिलाओं के निजता से जुड़ी बाधाएं

फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए रितिका बैनर्जी

देश में महिलाओं की निजता का उल्लंघन सिर्फ़ तकनीकी और क़ानूनी मुद्दा नहीं है। यह समाज में गहराई से जड़ें जमाए पितृसत्तात्मक संरचना और लैंगिक भेदभाव से भी जुड़ा हुआ है। पारंपरिक रूढ़िवादी समाज के ज़्यादातर लोग यही मानते हैं कि महिलाओं को घर-परिवार और बच्चों तक सीमित रहना चाहिए। ऐसे में जब वे जिंदगी के अलग-अलग क्षेत्रों में और सार्वजनिक जगहों पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराती हैं तो उन्हें बहुत सारी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। आज भी महिलाओं को सार्वजनिक जगहों पर उनके कपड़ों, रहन-सहन, खान-पान आदि के लिए असहज महसूस कराया जाता है। सोशल मीडिया पर आज भी ऐसे मीम्स तेजी से वायरल होते हैं, जिसमें महिलाओं को आब्जेक्टिफाइ किया जाता है। असल दुनिया हो या ऑनलाइन स्पेस समाज अभी महिलाओं की निजता और आज़ादी को लेकर सहज नहीं है। ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म्स पर महिलाओं के निजी डेटा के दुरुपयोग, ट्रोलिंग, साइबर स्टॉकिंग, मॉर्फिंग जैसे मामले बढ़ने के पीछे पितृसत्तात्मक सोच काफ़ी हद तक ज़िम्मेदार है।

क्या हो सकता है समाधान 

बेंगलुरू मेट्रो जैसे मामलों में जनता के गुस्से के बाद वहां के प्रशासन ने कार्रवाई करते हुए आरोपी को गिरफ़्तार तो कर लिया लेकिन इससे कोई ख़ास बदलाव नहीं आ सकता। दंडात्मक कार्रवाई के साथ ही कोशिश यह होनी चाहिए कि ऐसी घटनाएं होने के पहले ही उन्हें रोका जा सके। इसके लिए कठोर क़ानून बनाने की ज़रूरत है, जिन्हें सख़्ती से लागू किया जाना भी उतना ही ज़रूरी है। एआई और डीपफेक के बढ़ते दुरुपयोग को देखते हुए पुलिस और जांच एजेंसियों को तकनीकी रूप से सक्षम बनाना चाहिए, जिससे वे ऐसे जटिल मामलों से कुशलता से निपट सकें। इसके अलावा कंपनियों, ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स और सोशल मीडिया को भी अपनी प्राइवेसी पॉलिसी और डेटा प्रोटक्शन को और मजबूत बनाना होगा, जिससे निजता के उल्लंघन वाले कंटेंट पर रोक लगाई जा सके।

फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए रितिका बैनर्जी

सोशल मीडिया या ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर प्रोफाइल बनाने के लिए बायोमेट्रिक डेटाबेस का इस्तेमाल भी किया जा सकता है, जिससे ज़रूरत पड़ने पर संबंधित व्यक्ति तक आसानी से पहुंचा जा सके। साथ ही डिजिटल प्राइवेसी और अधिकारों के बारे में भी समाज को जागरूक किया जाना बेहद ज़रूरी है। इन सब के साथ ही सामाजिक बदलाव भी ज़रूरी है। ऐसा समाज बनाना होगा जहां महिलाओं को उनका मौलिक अधिकार मिल सके और वे बिना किसी डर और चिंता के अपनी मर्ज़ी से अपनी ज़िंदगी जी सकें।

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