स्वास्थ्यशारीरिक स्वास्थ्य स्ट्रेस इटिंग: महिलाओं की सेहत को प्रभावित करने वाली आदत

स्ट्रेस इटिंग: महिलाओं की सेहत को प्रभावित करने वाली आदत

जब हम ज्यादा परेशान होते हैं, तब हम अक्सर वो काम करने लगते हैं जिससे हमें अच्छा महसूस हो। ऐसी ही एक आदत है तनाव में खाना-खाना जिसे स्ट्रेस ईटिंग कहा जाता है।

आज की तेज रफ्तार ज़िंदगी में तनाव एक आम समस्या बन चुका है, चाहे वह काम का दबाव हो, रिश्तों की उलझन या अकेलापन। हर कोई किसी न किसी मानसिक बोझ से गुज़र रहा है। एक-दूसरे के साथ समय बिताना, बातचीत करना एक विशेषाधिकार बनता जा रहा है। ऐसे में चिंता, बेचैनी जैसी बातें आम हो गई हैं। जब हम बहुत ज्यादा परेशान होते हैं, तब हम अक्सर वो काम करने लगते हैं जिससे हमें अच्छा महसूस हो। ऐसी ही एक आदत है तनाव में खाना-खाना जिसे अंग्रेजी भाषा में स्ट्रेस इटिंग कहा जाता है। स्ट्रेस इटिंग चिंता, अवसाद और गुस्से या किसी ओर वजह से शुरू हो सकती है, जिसका सामना तनावग्रस्त व्यक्ति भोजन से करता है।

रिसर्च गेट में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तर भारत में किए गए एक अध्ययन में यह पाया गया कि करीब 70 फीसदी  वयस्क लोग बिना भूख के सिर्फ मन की हालत की वजह से खाना खाते हैं। इनमें से 35 फीसदी  लोग कभी-कभी ऐसा करते हैं, 30 फीसदी लोग अक्सर मन के दबाव में खाना खाते हैं,और 4 फीसदी  लोग बहुत ज्यादा भावनात्मक कारणों से खाते हैं, यानी उन्हें बार-बार ऐसा महसूस होता है कि मन खराब है तो कुछ खा लिया जाए। इसका मतलब यह है कि भूख न लगने पर भी बार-बार खाना खाना, सिर्फ इसलिए क्योंकि हमें अच्छा महसूस नहीं हो रहा, मूड खराब है या फिर हम खुद को  परेशान महसूस कर रहे हैं।

रिसर्च गेट में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तर भारत में किए गए एक अध्ययन में यह पाया गया कि करीब 70 फीसदी  वयस्क लोग बिना भूख के सिर्फ मन की हालत की वजह से खाना खाते हैं।

कई बार यह भी देखा गया है कि तनाव के कारण भूख भी कम हो जाती है, लेकिन ऐसा तब होता है जब तनाव ज्यादा समय से न हो। जब हम लगातार तनाव में रहते हैं तब हमारे शरीर की एड्रेनल ग्रंथियां कॉर्टिसोल नामक एक हार्मोन बनाती है। इसे भूख हार्मोन भी कहा जाता है क्योंकि यह हमारे शरीर को खाने के लिए प्रेरित करता है, तब हम अक्सर आरामदायक या जंक खाना का सहारा लेते हैं जैसे चिप्स,ज्यादा मीठा और फास्ट फूड। यह खाने में बहुत अच्छे लगते हैं और उस वक्त हमें कुछ देर के लिए बहुत ज्यादा सुकून भी देते हैं। इसलिए, धीरे-धीरे हमें इसकी आदत लग जाती है। अच्छा लगने के साथ-साथ हमारे दिमाग और हमारे पाचनतंत्र पर पर इसका बुरा असर पड़ता है। नतीजन धीरे-धीरे वजन बढ़ना भी शुरू हो जाता है। 

तनाव, जंक खाना और महिलाओं की सेहत पर असर

फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए श्रेया टिंगल

 खासकर महिलाओं में तनाव पुरुषों के मुकावले और भी ज्यादा होता है क्योंकि उन्हें घर और बच्चों को संभालने की  जिम्मेदारी भी निभानी पड़ती है और अगर वह बाहर काम करती हैं तो दफ्तर की भी। ऊपर से समाज में अच्छी बहू और बेटी बनने का बोझ, रिश्तों को संभालने की जिम्मेदारी और इसी के साथ-साथ अपनी पहचान को बनाए रखने की जद्दोजहद यह सारी चीजें महिलाओं के मन पर धीरे- धीरे असर डालती हैं, क्योंकि वह अपनी भावनाओं को खुलकर किसी के सामने नहीं बता पातीं जिस बजह से उन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इन में से एक समस्या है तनावग्रस्त भोजन, कई बार तो उन्हें खुद भी पता नहीं होता कि वे खाना अपने मन की तकलीफ को मिटाने के लिए खा रहीं हैं या फिर अपनी भूख मिटाने के लिए।

जब हम लगातार तनाव में रहते हैं तब हमारे शरीर की एड्रेनल ग्रंथियां कॉर्टिसोल नामक एक हार्मोन जारी करती हैं। इसे भूख हार्मोन भी कहा जाता है क्योंकि यह हमारे शरीर को खाने के लिए प्रेरित करता है, तब हम अक्सर आराम दायक भोजन का सहारा लेते हैं।

एक अध्ययन में पाया गया है कि पुरुषों के मुकाबले महिलाएं ज्यादा स्ट्रेस इटिंग करती हैं जबकि पुरुष तनाव में शराब या धूम्रपान का सहारा लेते हैं। हमें अक्सर छोटी- छोटी बातों से भी तनाव हो जाता है। माइंडवॉयज में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार   2013 में एक अन्य अध्ययन में भारत में किशोरियों में खाने के विकारों की व्यापकता पर नज़र डाली गई। 13-17 वर्ष की आयु की 120 लड़कियां  इस अध्ययन का हिस्सा थीं। परिणामों में पाया गया कि अध्ययन में भाग लेने वाले लगभग 26.67 फीसदी  प्रतिभागियों में खाने के प्रति दृष्टिकोण और व्यवहार में गड़बड़ी थी। राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण, 2015 के अनुसार खाने के विकार भारतीय आबादी के लगभग 2 से 2.4 फीसदी को प्रभावित करते हैं।

इसके अलावा, लाइसेंस प्राप्त चिकित्सकों द्वारा किए गए अन्य सर्वेक्षणों की रिपोर्ट बताती है कि भारतीय आबादी में खाने के विकारों की व्यापकता 2-3 फीसदी है, जिसमें महिलाओं में अधिक व्यापकता है,जैसे किसी से झगड़ा हो गया हो या फिर हमारा कोई काम समय पर खत्म नहीं हुआ हो या फिर इससे जुड़ा हुआ कोई ओर कारण भी हो सकता है जो हमारे लिए तनाव का कारण बन सकता है। अध्ययन से पता चलता है कि काम से होने वाला तनाव और अन्य प्रकार की समस्याएं वजन बढ़ने से जुड़ी हुई हैं। जब हमें तनाव होता है तब हमारा वजन बढ़ना आम बात है। तनाव में खाना खाना हमारी आदत बन जाती है। अध्ययन से पता चलता है कि जो व्यक्ति पहले से ही मोटा होता है उसके शरीर में पहले से ही इंसुलिन अधिक मात्रा में होता है जिससे तनाव में बजन बढ़ने की संभावना और अधिक बढ़ जाती है।

माइंडवॉयज में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार   2013 में एक अन्य अध्ययन में भारत में किशोरियों में खाने के विकारों की व्यापकता पर नज़र डाली गई। 13-17 वर्ष की आयु की 120 लड़कियां  इस अध्ययन का हिस्सा थीं।

फिनलैंड में 5,000 से अधिक पुरुषों और महिलाओं पर किए गए एक अध्ययन से पता चला कि महिलाओं में मोटापा तनाव-संबंधी खान-पान से जुड़ा था, लेकिन पुरुषों में नहीं। स्ट्रेस इटिंग का एक कारण हार्मोनल बदलाव भी हो सकता है। महिलाओं के शरीर में हार्मोन जैसे एस्ट्रोजन और कॉर्टिसोल लगातार बदलते रहते हैं। पीरियड्स, गर्भावस्था और मेनोपॉज के वक्त ये बदलता रहता है। इन हार्मोनल बदलावों का असर सीधे मूड पर पड़ता है, कभी चिड़चिड़ापन, कभी उदासी, कभी गुस्सा, और कभी बिना वजह रोने का मन भी हो सकता है। ऐसे समय में मन कुछ मीठा या चटपटा खाने को करता है। कई बार महिलाएं खुद को संभालने के लिए ज़रूरत से ज़्यादा खाना खाने लगती हैं, जो एक आदत बन जाती है।

तस्वीर साभार : Diane Petrella

यह हमारे स्वास्थ्य पर गहरा असर डालती है। इसी के साथ-साथ जब महिलाओं को घरों के काम में उलझे होने के कारण सही से खाने-पीने का समय नहीं मिलता, तब वह जल्दी-जल्दी में या जंक खाने पर भी निर्भर करती है। यह भी एक तनाव का कारण है जिससे महिलाओं के स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव देखने को मिलता है। आजकल लोग बाहर की दुनिया को छोड़कर घर में रहना पसंद करने लगे हैं ताकि तनाव से मुक्त रह सकें। यह भी तनावग्रस्त भोजन का एक कारण बनता जा रहा है। घर में अकेले रहकर टीवी दखते समय कुछ न कुछ खाते रहना, इससे मोटापा तो बढ़ ही रहा है साथ ही बिना भूख के लगातार खाना पचने की क्षमता पर असर डालता है। इससे गैस, कब्ज जैसी समस्याएं पैदा हो सकती हैं।

फिनलैंड में 5,000 से अधिक पुरुषों और महिलाओं पर किए गए एक अध्ययन से पता चला कि महिलाओं में मोटापा तनाव-संबंधी खान-पान से जुड़ा था, लेकिन पुरुषों में नहीं। 

स्ट्रेस इटिंग से कैसे बचा जा सकता है

स्ट्रेस इटिंग एक ऐसी समस्या बन चुकी है, जो हर एक इंसान के जीवन में गहरा प्रभाव डाल रहा है। इससे बचने के लिए हमें खुद पर काम करना होगा ताकि इससे बचा जा सके। सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि आप तनाव क्यों महसूस कर रहे हैं? क्या वह काम से जुड़ा है, रिश्तों से, या कोई और कारण है, जिससे हम तनावग्रस्त भोजन की और झुकाव महसूस करते हैं। माइंडफ़ुल  इटिंग यानी हम जो खा रहे हैं उससे हमें कैसा महसूस हो रहा है, इसपर ध्यान देना बहुत जरूरी है। यह तनाव से निपटने का एक बहुत अच्छा तरीका है क्योंकि यह हमें इस बात पर ज्यादा ध्यान देने में मदद करता है कि हमारे शरीर को असल में क्या चाहिए। माइंडफुल इटिंग का अभ्यास करके, हम अपनी भूख के संकेतों को समझने के लिए समय निकाल सकते हैं, जिससे हमें भावनात्मक और असल भूख के बीच अंतर को समझने में मदद मिलती है।

हमें अपने घर में रखे हुए मीठे और वसा युक्त भोजन का स्टॉक हटा देना चाहिए या सीमा में रखना चाहिए क्योंकि इसकी वजह से हम बार-बार इसे खाते रहते हैं। अपनेआप को तनाव के माहौल से दूर रखने के लिए खुद के लिए समय निकालकर अपनी पसंद की चीजें करनी चाहिए। चाहे वो गाने सुनना हो, पढ़ना हो, घूमना हो, यह हमें स्ट्रेस इटिंग के ट्रिगर से ध्यान हटाने में मदद करता है। खुद के लिए समय निकालकर अपनी पसंद के काम करने से भी तनाव का स्तर कम होने लगता है, जिससे हम भोजन में आराम ढूंढने के बजाय खुद का ख्याल रखने के लिए प्रेरित होते हैं, जिससे हम असल भूख और भावनात्मक भूख के बीच में अंतर को समझ सकते हैं। थोड़े-थोड़े समय के अंतराल में पानी पीते रहना चाहिए जिससे हमारा शरीर हाइड्रेटेड रहता है और हमारे शरीर में ऊर्जा बनी रहती है।

माइंडफुल इटिंग का अभ्यास करके, हम अपनी भूख के संकेतों को समझने के लिए समय निकाल सकते हैं, जिससे हमें भावनात्मक और असल भूख के बीच अंतर को समझने में मदद मिलती है।

यह हमारे शरीर के लिए बहुत अच्छा सिद्ध होता है और इससे हम बहुत शांत भी महसूस कर पाते हैं और इससे नींद संबंधी समस्याओं को कम करने में मदद मिलती है । इससे हमारा पाचनतंत्र भी सही से काम करने लगता है। जब सब कुछ हावी होने लगे तब खाना खाने की बजाय व्यायाम करें क्योंकि व्यायाम हमारे शरीर को ही स्वस्थ नहीं रखता, बल्कि हमारे मानसिक स्वास्थ्य में संतुलन बनाए रखने में मददगार साबित होता है। व्यायाम हमारे दिमाग में फील-गुड न्यूरोट्रांसमीटर एंडोर्फिन को रिलीज करता है, जिससे हमें  बहुत खुशी और शांति का अनुभव होता है। तनाव के कारण खाना खाना यानी स्ट्रेस ईटिंग, हमारी आज की ज़िंदगी का एक आम हिस्सा बनता जा रहा है। हम जब परेशान होते हैं, अकेलापन महसूस करते हैं या खुद की परेशानी किसी के साथ बता नहीं पाते, तो अक्सर खाना हमारा सबसे आसान सहारा बन जाता है। ऐसा खाना जो हमारी भूख से ज़्यादा हमारे मन को शांत करने के लिए खाया जाता है।

तस्वीर साभार : Reclaim Therapy

यह आदत कुछ समय के लिए राहत तो देती है, लेकिन लंबे समय में हमारे शरीर और मन दोनों को नुकसान पहुंचाता है। खासतौर पर महिलाओं के लिए यह समस्या और भी गंभीर है क्योंकि वे घर, काम और समाज की कई जिम्मेदारियों को एक साथ संभाल रही होती हैं। जब वे अपनी भावनाओं को खुलकर बता नहीं  पातीं, तो वही भावनाएं चुपचाप उनके खाने की आदतों में बदल जाती हैं। धीरे-धीरे यह एक चक्र बन जाता है  तनाव से खाने की आदत, फिर वजन बढ़ना, फिर और तनाव, और फिर  ज़रूरत से ज़्यादा खाना खाना। लेकिन यह जरूरी नहीं कि हम इसमें फंसे रहें। जब हम अपनी भावनाओं को समझना शुरू करते हैं, जब हम ध्यान देना शुरू करते हैं कि हमें सच में भूख है या सिर्फ मन खराब है, तो हम इस आदत से बाहर निकल सकते हैं। हमें यह समझने की ज़रूरत है कि खाना सिर्फ पेट भरने के लिए होता है, मन को बहलाने का जरिया नहीं। जब हम खुद को समझते हैं, खुद के साथ समय बिताते हैं, और अपनी देखभाल को समय  देते हैं, तभी हम एक स्वस्थ जीवन जी सकते हैं । 

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