संस्कृतिकिताबें पूमनी का उपन्यास ‘हीट’ : जाति और वर्ग की दीवारों को लांघती एक तमिल कहानी 

पूमनी का उपन्यास ‘हीट’ : जाति और वर्ग की दीवारों को लांघती एक तमिल कहानी 

साल 2018 में पूमनी का प्रसिद्ध उपन्यास वेक्काई, जिसका अनुवाद एन कल्याण रमन ने अंग्रेज़ी में 'हीट' नाम से किया है। यह कहानी एक सच्ची घटना पर आधारित है।

पूमनी एक ऐसे लेखक हैं जिन्होंने अपनी कहानियों के माध्यम से तमिल पाठकों को समाज में फैले भेदभाव और वर्गीकरण के बारे में जागरूक किया। साल 1982 में उन्होंने ‘वेक्काई’ नाम का उपन्यास लिखा, जो उनका दूसरा उपन्यास था। इससे पहले उन्होंने उपन्यास पिरागु लिखा था। दोनों ही कहानियां ग्रामीण तमिल इलाकों पर आधारित थी। तमिल साहित्य में पूमनी की पहचान बहुत मजबूत है, लेकिन इसके बावजूद उनके पहले दो उपन्यासों का अंग्रेज़ी में अनुवाद होने में करीब 40 साल लग गए। पिरागु का अंग्रेजी अनुवाद 2019 के अंत में चेन्नई स्थित एमराल्ड पब्लिशर्स ने किया है।

जबकि साल 2018 में पूमनी का प्रसिद्ध उपन्यास वेक्काई, जिसका अनुवाद एन कल्याण रमन ने अंग्रेज़ी में ‘हीट‘ नाम से किया है। यह कहानी एक सच्ची घटना पर आधारित है और इसकी भाषा सरल है। यह एक पंद्रह साल के लड़के की कहानी है जो तथाकथित दलित समुदाय से है, वह एक व्यक्ति की हत्या कर देता है। इसके बाद वह अपने पिता के साथ जंगल और पहाड़ियों में छिप जाता है जो उनके गांव के पास हैं। दोनों एक हफ्ते तक जंगल में बहुत कठिन हालात में ज़िंदा रहते हैं। इस दौरान वे एक तरह से डाकू जैसी ज़िंदगी जीते हैं। वे कभी जंगल के तालाब, कभी पत्थरों से भरी चट्टान और कभी गन्ने के खेतों में जाकर रुकते हैं। कहानी के किरदारों के माध्यम से लेखक ने समाज की राजनीति और भेदभाव पर कई ज़रूरी सवाल उठाए हैं।

साल 2018 में पूमनी का प्रसिद्ध उपन्यास वेक्काई, जिसका अनुवाद एन कल्याण रमन ने अंग्रेज़ी में ‘हीट’ नाम से किया है। यह कहानी एक सच्ची घटना पर आधारित है और इसकी भाषा सरल है।

जिम्मेदार बेटा और आदर्श पुरुष बनने की चाह

तस्वीर साभार : The News Minute

चिदंबरम के पिता परमशिवम जिन्हें वह अय्या कहते हैं, बहुत सख्त स्वभाव के हैं। तमिल लोक कथाओं में अक्सर यह देखने को मिलता है कि पिता और बेटे की भूमिका बदल जाती है। यानी बेटा पिता की ज़िम्मेदारियां निभाता हुआ दिखाई देता है। चिदम्बरम अक्सर अपने पिता की पसंद का खाना पकाते हैं और जब वह अपने पिता को खाना खरीदने के लिए पैसे देते हैं, तो वह पैसे लेने से मना कर देते हैं। अय्या बार-बार चिदंबरम से कहते हैं कि वह गांव के लोगों से नहीं मिलना चाहता। इसका कारण यह नहीं है कि उसके बेटे ने किसी को मार दिया है।  

बल्कि इसलिए कि लोग उसे कायर कहेंगे क्योंकि उसने पहले वार या हमला क्यों नहीं किया। यह किताब कुछ मायनों में रूढ़िवादी मर्दानगी के बारे में भी बात करती है। निडर,अपने संकल्प पर डटे रहने वाले और कठोर चिदम्बरम कहानी के आदर्श नायक हैं। जैसा कि उनके चाचा उनके बारे में टिप्पणी करते हैं, तुम्हारे पिता सही थे। तुम्हारा दिल पत्थर का है लड़के। चिदंबरम बार-बार खुद को अपने भाई जैसा बनाने की कोशिश करते हैं जिनकी मृत्यु हो चुकी है। वे चाहते हैं कि लोग उन्हें भी वैसा ही बहादुर और मजबूत समझें जैसे उनका भाई था। 

चिदंबरम बार-बार खुद को अपने भाई जैसा बनाने की कोशिश करते हैं जिनकी मृत्यु हो चुकी है। वे चाहते हैं कि लोग उन्हें भी वैसा ही बहादुर और मजबूत समझें जैसे उनका भाई था। 

चिदंबरम की लड़ाई अन्याय के खिलाफ थी

तस्वीर साभार : Pravakta.com

इस कहानी का नायक सिर्फ 15 साल का है। उसने एक आदमी को मारा जरूर है, लेकिन वह कोई हत्यारा नहीं है। ‘हीट’ की शुरुआत एक हत्या से होती है, लेकिन यह कहानी न तो रहस्य है और न ही थ्रिलर यानि न ही रोमांचक कहानी है। इसका ज़्यादातर हिस्सा फ्लैशबैक यानि पुरानी घटनाओं को याद करते हुए बताया गया है। अगर इसे पीछे से देखा जाए, तो यह एक बदले की कहानी लगती है। यह कहानी बहुत गहराई से कुछ बातों की ओर इशारा करती है। यह सिर्फ कहानी कहने के अंदाज़ को नहीं दिखाती, बल्कि उनके सोचने के तरीके को भी समझने में मदद करती है। उदाहरण के लिए, कानून की नज़र में भगोड़ा लेकिन खुद अन्याय के खिलाफ लड़ने वाला चिदंबरम, कानून और न्याय के बीच के अंतर से चिंतित हैं।

वडक्कूरन एक अमीर आदमी था जिसके पास सत्ता थी, जो चिदंबरम और उसके परिवार की ज़मीन हड़पना चाहता था । अब उसके पास बस वही ज़मीन बची थी, जिसे वह खरीदना चाहता था। पहले उसने किसानों को धोखा दिया, फिर उनकी ज़मीन पर जिनिंग फैक्टरी बना ली। एक बार वह बैलगाड़ी चलाते हुए प्रदर्शनकारी बनकर आया, लेकिन वह असल में कोई आंदोलनकारी नहीं था। चिदंबरम और उसके बीच दुश्मनी वडक्कुरान की जमीन हड़पने के लालच और हिंसा के कारण शुरू हुई। क्योंकि उसे ऐसा लगा कि कानून वडक्कुरान को कभी सज़ा नहीं देगा, इसलिए चिदंबरम ने खुद उसे मारने का फैसला किया और उसे मार दिया। 

चिदंबरम और वडक्कुरान के बीच दुश्मनी वडक्कुरान की जमीन हड़पने की लालच और हिंसा के कारण शुरू हुई। क्योंकि उसे ऐसा लगा कि कानून वडक्कुरान को कभी सज़ा नहीं देगा, इसलिए चिदंबरम ने खुद उसे मारने का फैसला किया और उसे मार दिया। 

न्याय मांगने में डर का अनुभव 

तस्वीर साभार : Down To Earth

एक जगह अय्या चिदंबरम को सावधान करते हैं कि जाति, वर्ग और पुलिस की रिश्वतखोरी से बचकर रहना चाहिए। वह कहते हैं आज पुलिस हमारे पीछे नहीं आएगी। लेकिन अगर हमारा दुश्मन उन्हें पैसे देता है, तो वे शिकारी कुत्तों की तरह दौड़े चले आएंगे। इससे पता चलता है कि किस तरह रिश्वत लेने और देने की बजह से हाशिये पर रहने वाले व्यक्ति न्याय की मांग करने से डरते हैं। कानून वही है जो अमीर लोग बनाते हैं। अमीर लोग इस बात को बर्दाश्त नहीं कर पाए कि हम अपनी ज़मीन पर खेती कर रहे थे। पूमनी सीधे तौर पर इसे जाति की बात नहीं कहते, लेकिन वह यह साफ दिखाते हैं कि हमारे समाज में जो हिंसा है। वह उस गहरी असमानता से आती है जो हमारी व्यवस्था में पहले से ही मौजूद है। चिदंबरम के परिवार की तरह, कई लोग सामाजिक और आर्थिक शोषण के लंबे समय से चल रहे अन्याय का विरोध कर रहे हैं।

उपन्यास के एक तिहाई हिस्से में हमें यह पता चलता है कि चिदंबरम के पिता, परमशिवम ने अपनी जवानी में एक ऐसा अपराध किया था, जिसकी वजह से उन्हें जेल जाना पड़ा। लेकिन यह अपराध भी एक लंबे समय से चले आ रहे अन्याय और शोषण के बदले में किया गया था। उपन्यास में ऐसे अनौपचारिक न्याय के तरीकों का भी ज़िक्र है जो कानून का चालाकी से इस्तेमाल करते हैं। यानि कुछ लोग कानून को अपने हिसाब से मोड़कर इंसाफ पाने या दूसरों को दबाने की कोशिश करते हैं। पूरी कहानी में, पुलिस को छोड़कर कोई भी चिदंबरम से सवाल नहीं करता। उसने एक आदमी की हत्या की है। लेकिन कोई उसे गलत नहीं कहता है और उसके इस काम की आलोचना भी नहीं करता है। असल में वे सभी उसकी सराहना करते हैं और उसका समर्थन और सुरक्षा करते हैं, हालांकि चिदंबरम अपराध स्वीकार करने के लिए तैयार है। गांव के लोगों का मानना है कि चिदंबरम ने जो किया वह सही था, असल में कोई भी ऐसा कर सकता था। 

पूमनी सीधे तौर पर इसे जाति की बात नहीं कहते, लेकिन वह यह साफ दिखाते हैं कि हमारे समाज में जो हिंसा है, वह उस गहरी असमानता से आती है जो हमारी व्यवस्था में पहले से ही मौजूद है।

 हाशिए पर रह रहे लोगों के अस्तित्व की लड़ाई 

तस्वीर साभार : Jansatta

‘वेक्कई’ सीधी तरह से जाति की राजनीति की बात नहीं करती, बल्कि सिर्फ वर्ग भेद यानी अमीर-गरीब के फर्क को दिखाती है। चिदंबरम को अपनी पहचान या जाति की समझ नहीं है, लेकिन वह इतना ज़रूर जानते हैं कि सत्ता हमेशा कुछ चुनिंदा लोगों का ही साथ देती है और यह बहुत अन्यायपूर्ण है। उन्हें एक ऐसी दुनिया में इंसाफ की तलाश है, जो उन्हें बार-बार हाशिए पर धकेलती है। इस दुनिया में अपनी आवाज़ उठाने के लिए, वे हिंसा का रास्ता अपनाते हैं। क्योंकि उन्हें लगता है कि यही एक तरीका है जिससे वे अपनी ताकत दिखा सकते हैं। उपन्यास का अंत चिदंबरम और उसके पिता के साथ होता है, जो कई भावनात्मक संघर्षों से गुजरने के बाद इस नतीजे पर पहुंचते हैं कि जो उन्होंने किया, वह एक अपराध था। लेकिन इसके बावजूद, हम उनके भीतर आपदा से पहले और बाद दोनों समय में गरिमा, सम्मान और साहस को ज़िंदा पाते हैं। वे टूटते नहीं हैं, बल्कि अपनी गलती को समझकर भी मज़बूती से खड़े रहते हैं।

यह उपन्यास एक बदले की कहानी जरूर है, लेकिन यह सिर्फ हिंसा या खून-खराबे तक सीमित नहीं है। यह कहानी जाति-आधारित हिंसा और हाशिए पर रह रहे लोगों के अस्तित्व की लड़ाई को भी गहराई से दिखाती है। उपन्यास उन लोगों की कहानी कहता है जो लंबे समय से इस तरह का शोषण झेल रहे हैं, यह उनके संघर्ष और आत्म-सम्मान को बहुत सहज और संवेदनशील तरीके से सामने लाता है। यह ऐसे लड़के की कहानी हैं जो जाति से परे हैं उसे जातिभेद पता नहीं है वह यह भी नहीं जानता कि वडक्कूरन कौन है या वह किस जाति का है। चिदंबरम को सिर्फ यह दिखता हैं की शक्ति कुछ ही लोगों के पास है और शक्ति का दुरुपयोग कैसे मजदूर वर्ग के साथ हों रहा है और चिदंबरन इसके खिलाफ लड़ना चाहता हैं।

सही मायने में वेक्कई मनोरंजक और सोचने पर मजबूर करने वाला उपन्यास है। जो पहले अध्याय से आपका ध्यान आकर्षित करता है और आप लाइनों के बीच रोमांच को महसूस कर सकते हैं। जबकि पुस्तक खुले तौर पर जाति पर चर्चा नहीं करती है, लेकिन उपन्यास में कैसे  तथाकथित उच्च वर्ग शक्ति का दुरुपयोग करते हैं और निम्न श्रमिक वर्ग की दुर्दशा कैसी है उसको साफ तौर पर दिखाती है। उपन्यास के माध्यम से हमे तमिल गांव और संस्कृति के बारे में नई चीज़ें बता सकता है जो शायद कई मैंस्ट्रीम उपन्यास में नहीं मिल पता हैं। यह उपन्यास जाति की राजनीति के बारे में हमारी समझ को जगाएगा क्योंकि यह बताता है कि सामाजिक वर्गीकरण और असमानताएं भारतीय राजनीति और समाज को कितनी गहराई तक प्रभावित करती हैं। यह  हाशिए पर रहने वाले समुदायों के लिए संसाधनों तक पहुंच, लोगों की आवाज़ और उनकी भलाई पर असर डालता है।

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