साल 2018 6 सितंबर का वह दिन जब सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले के तहत समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया था। लेकिन क्या सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद सब बदल गया है? इसका जवाब होगा नहीं, क्योंकि आज भी हमारे समाज में LGBTQIA+ समुदाय के प्रति नफरत, भेदभाव व्याप्त है। उनके खिलाफ कई पूर्वाग्रह और मिथ्य मौजूद हैं। आइए, आज हम जानते हैं LGBTQIA+ से जुड़े ऐसे ही 6 मिथ्य।
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मिथ्य : बायसेक्सुअलिटी (bisexuality) और पानसेक्सुअलिटी (pansexuality) एक ही चीज़ है।
तथ्य : बायसेक्सुअलिटी में दो या दो से अधिक लिंगों के प्रति आकर्षण होता है| वहीं पानसेक्सुअलिटी में लोगों के लिंग की परवाह किए बिना उनके प्रति आकर्षण होता है। एक पानसेक्सुअल व्यक्ति कभी यह देखकर आकर्षित नहीं होता कि सामने वाला पुरुष है, स्त्री है, नॉन बायनरी है या फिर ट्रांसजेंडर है। यौनिकता प्रवाही है। यह व्यक्ति पर निर्भर करता है कि कौन-सा लेबल उसकी यौनिकता को सही तरीके से दर्शाता है।
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मिथ्य : बच्चे अपने लिंग की पहचान नहीं कर सकते।
तथ्य : लिंग पहचान की कोई निर्धारित उम्र नहीं होती है। बहुत से बच्चों को बचपन से ही अपना लिंग समझ आ जाता है। उनसे पूछताछ करने की बजाए बेहतर होगा कि हम उन्हें प्रोत्साहित करें, जिससे वे इस विषय को और अच्छे से जान सकें।
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मिथ्य : एलजीबीटीक्यू+ के लोग अच्छे अभिभावक नहीं बन सकते।
तथ्य : एलजीबीटीक्यू+ समुदाय के लोग भी उन्हीं परिवारों से आते हैं जिन परिवारों से विषमलैंगिक लोग। साथ ही अभिभावकों और उनके बच्चों की यौनिकता का कोई परस्पर संबंध नहीं होता है। किसी भी वैध खोज ने यह नहीं कहा है कि समलैंगिक अभिभावक विषमलैंगिक अभिभावकों से कम या ज़्यादा हानिकारक होते हैं।
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मिथ्य : समलैंगिक मर्दों का व्यवहार औरतों जैसा होता है।
तथ्य : ये धारणा ग़लत है कि हर समलैंगिक मर्द औरतों की तरह चलता-फिरता, कपड़े पहनता और बोलता है। समलैंगिक और विषमलैंगिक मर्दों में बस इतना ही फ़र्क़ है कि वे किस लिंग की ओर आकर्षित होते हैं।
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मिथ्य : बाईसेक्शुअल लोग सिर्फ़ एक पार्टनर से संतुष्ट नहीं हो सकते।
तथ्य : ऐसा नहीं है। बाईसेक्शुअल लोग ज़िंदगीभर सिर्फ़ एक पुरुष या महिला पार्टनर से ज़रूर खुश रह सकते हैं, हालांकि वे दोनों लिंगों की ओर आकर्षण महसूस क्यों न करते हों।
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मिथ्य : समलैंगिक विवाह हमारी संस्कृति के खिलाफ़ है।
तथ्य : विवाह एक व्यक्ति का संवैधानिक अधिकार है, चाहे उसका लिंग, जाति, धर्म, या वर्ग कुछ भी हो। इससे संस्कृति का कुछ लेना-देना नहीं है। कोई अगर अपने पसंद के साथी से विवाह करना चाहे तो उसे संस्कृति का पाठ पढ़ाने के बजाय हर तरह का सामाजिक और कानूनी समर्थन देना चाहिए।
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