फेमिनिज़म इन इंडिया अपने बेहतरीन लेखकों में से एक लेखक को हर महीने उनके योगदान का आभार जताने के लिए फीचर करता है। लेखकों के योगदान के बिना फेमिनिज़म इन इंडिया का सफ़र अधूरा होता। फरवरी की फीचर्ड राइटर ऑफ द मंथ हैं ऐश्वर्य अमृत विजय राज से। महिलाओं के स्वास्थ्य, सामाजिक, राजनीतिक मुद्दों से लेकर छात्र राजनीति, लैंगिक समानता, नारीवाद, स्वास्थ्य के मुद्दों पर लिखने वाली ऐश्वर्य ने हमारे लिए कई लेख लिखे हैं। इन्होंने दिल्ली में कृषि कानूनों के ख़िलाफ़ चल रहे प्रदर्शन पर हमारे लिए कई ग्राउंड रिपोर्ट्स भी की हैं; जिसमें ग्राउंड रिपोर्ट : किसानों की कहानी, उनकी ज़ुबानी, बिहार से सिंघु बॉर्डर तक, ग्राउंड रिपोर्ट : किसान आंदोलन के समर्थन में ये दिल्लीवासी हर रोज़ तख्तियां लेकर खड़े होते हैं, ग्राउंड रिपोर्ट : मीडिया के एजेंडे के बीच सिंघु बॉर्डर से ज़मीनी हकीकत
फेमिनिज़म इन इंडिया: अपने बारे में हमें बताएं और आप क्या करती हैं?
ऐश्वर्य अमृत विजय राज: बिहार के भागलपुर जिले से हूं। नानीघर का ज़िक्र अक्सर लोग अपने शहर के तौर पर नहीं करते लेकिन मैं नानी गांव हरला का जिक्र करूंगी। क्योंकि परिवार या कम्युनिटी फ़ीलिंग का बिहार में मिला हिस्सा, जितना भी सही, उसी जगह की वजह से रहा। अपने शहर में आर्थिक स्थिति के कारण घर अपना घर नहीं रहा, रेंट के मकान बदलते हुए बस मकान दिखे, भागलपुर में ‘घर’ के नाम पर बस दो लोग हैं, मां-बाप। पिता की तरफ़ के लोग लड़की होने के कारण अपना नहीं पाए। इसलिए अपने बारे में बताते हुए भागलपुर के बारे में कुछ कहना बेमानी लेकिन जरूरी लगता है। बस इतना कि जन्म और बाहरवीं तक की पढ़ाई है उस शहर से। नानी गांव का ज़िक्र इसलिए भी क्योंकि जब-जब कम्फर्म्टेबल बबल जिसके नहीं होने पर भी होने का भ्रम हो जाता है वहीं से टूटता रहता है। फिलहाल मैं मिरांडा हॉउस कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में स्नातक कर रही हूं। इस साल स्नातक पूरा हो जाएगा। मास्टर्स की तैयारी चल रही है।
फेमिनिज़म इन इंडिया: आप फेमिनिज़म इन इंडिया से बतौर लेखक कैसे जुड़ी?
ऐश्वर्य अमृत विजय राज: फेमिनिज़म इन इंडिया की अंग्रेजी वेबसाइट की पाठक थी। हिंदी के बारे में तब पता चला जब एक दोस्त का हिंदी में आया आर्टिकल पढ़ने को मिला। फिर कई सारे आर्टिकल्स पढ़े और हिंदी में इस तरह का काम होते देखकर अच्छा लगा। पाठक से लेखक बनने में एक दोस्त काम आई। उसने इंटर्नशिप की जानकारी देते हुए कहा था, “यहां लिखकर देखो, अच्छा लगेगा। अगर मौका मिलता है तो।” उस दोस्त को यह जानकारी देने का पूरा क्रेडिट रहेगा।
फेमिनिज़म इन इंडिया: आप कब और कैसे एक नारीवादी बनीं? नारीवाद से जुड़े कौन से मुद्दे आपके बेहद करीब हैं?
ऐश्वर्य अमृत विजय राज: नारीवाद या फेमिनिज़म शब्द के बारे में मुझे स्कूल में नहीं पता था। मेरी मां को, गांव की अन्य औरतों को आजतक नहीं मालूम। नारीवाद का इतिहास, राजनीति इत्यादि काफी बाद में, कॉलेज में पता आकर मुझे पता पड़ा। लेकिन घर पर घूंघट डाले बेटियों के लिए लड़ती माएं नारीवाद में उतनी ही हिस्सेदारी रखती हैं जितना यूनिवर्सिटी आकर अपनी आइडेंटिटी और नारीवाद को अकादमिक तौर पर समझती उसकी बेटियां। व्यवहार से पूर्णतः नारीवादी खुद को कहना ग़लत लगेगा क्योंकि रोज़ अपने अंदर बैठाई गई कंडीशनिंग तोड़ने का मामला है। खुद को लेकर। अन्य औरतों को लेकर। अन्य जेंडर आइडेंटिटी को लेकर। किसी भी वाद का अकादमिक ज्ञान और उसे सबसे निजी स्पेस में व्यवहार में ला पाना दो अलग बातें हैं। नारीवाद के संदर्भ में कॉन्शियसली इस कोशिश में रहते हुए तीन चार साल हुए हैं। मिरांडा हॉउस के अंदर अलग-अलग सांस्कृतिक, सामाजिक पहचान की औरतों के साथ और कई बार उनके विरोध की प्रक्रिया में रहते हुए नारीवाद के समावेशी होने की अहमियत समझ आई। इसलिए, व्यक्तिगत तौर पर समावेशी नारीवाद जो किसी के हर सामाजिक पहचान के साथ नारीवाद को जोड़कर देखता है मेरे सबसे करीब है। कोई भी इंसान के साथ उसकी जातिगत पहचान, जॉग्राफिकल लोकेशन, भाषाई पहचान जुड़ी हैं, वह आर्थिक तबक़े से है, शारीरिक बनावट ‘सामान्य’ है या नहीं, इन सभी बातों के साथ में जेंडर आइडेंटिटी है। सभी सामाजिक पहचानों को जोड़कर यह पता चलता है कि शक्ति श्रेणी में आप किसके मुकाबले कहाँ खड़े हो। इसलिए नारीवाद अन्य सामाजिक पहचान यानी सोशल आइडेंटिटी के बिना काम नहीं कर सकता। इसलिए नारीवाद को एको चैंबर न बनाते हुए अलग अलग समुदाय जिनका समाजिक प्रतिनिधित्व पहले से ही कम है उनसे जुड़े नारीवाद के मुद्दे मेरे लिए जरूरी हैं।
फेमिनिज़म इन इंडिया: हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित आपके लेखों में से कौन सा लेख आपको सबसे अधिक पसंद है?
ऐश्वर्य अमृत विजय राज: ख़बर और फैक्चुअल बातों के अलावा ज्यादातर वैचिरिकी के लेख मेरे निज़ी अनुभव से निकले आइडिया रहे हैं। ओवीयसली फिर उसमें फैक्ट्स और रिसर्च जोड़े गए हैं। ये वे कुछ वैसे लेख हैं जिनपर मैं व्यक्तिगत जीवन में सबसे ज्यादा ट्रिगर होती हूं, जिससे मेरा निज़ी जीवन रोज़मर्रा के स्तर पर प्रभावित हैं, ऐसे लेखों में ‘स्लट शेमिंग’ ‘बॉडी हेयर’ ‘लिव इन संबंध’ ‘फेमिनिज़्म का झंडा उठती हो’ वाले लेख हैं। कुछ ऐसे लेख हैं जो सीधे सीधे मेरे समाजिक पहचान से जुड़कर व्यापक सामाजिक स्तर पर प्रभावित करते हैं। और जिसपर और जानकारी बटोरते हुए कई चीजें मालूम पड़ीं जिसने आसपास की घटनाओं को देखने का तरीक़ा प्रभावित किया। जैसे, सावित्री बाई फुले पर लिखा गया लेख। ग्राउंड रिपोर्ट्स करते हुए सीमित संसाधनों में ज़मीनी सचाई दिखाने वाले पत्रकारों, स्वतंत्र पत्रकारों के लिए मान और बढ़ा। लेखन की नई विधा जानने के दृष्टिकोण से और ग्राउंड ज़ीरो पर लोगों को समझते हुए मिले अनुभव के कारण सिंघु बॉर्डर के ग्राउंड रिपोर्ट्स भी मेरे करीब हैं। देखिए, मैंने कितने लेख गिनवा दिए, माफ़ी, लेकिन मैं इन्हें कम नहीं कर पाऊंगी क्योंकि मेरे लिए प्रोसेस बहुत अहमियत रखता है।
फेमिनिज़म इन इंडिया: जब आप नारीवादी मुद्दों, जेंडर, सामाजिक न्याय पर नहीं लिख रहे होते तब आप क्या करती हैं?
ऐश्वर्य अमृत विजय राज: खूब सोती हूं। सोना सबसे सस्ता एस्केप है। आलसी भी हूं ये भी कारण है। हुलाहूप आजकल सीखा है। वो करते हुए अच्छा लगता है। दिल्ली में कभी बिल्ली पालने के बारे में सोचकर खुश होती हूँ, हालांकि स्टूडेंट्स लाइफ और दिल्ली के किराए के मकान में हो नहीं सकता। नानी घर के बच्चों को खूब याद करती हूँ। जब मिरांडा हाउस खुला था तब धूप में लेटकर दोस्तों को सुनना अच्छा लगता था। विज़ुअल फॉर्म में कई बार मोमेंट्स को कैद करना, डॉक्यूमेंट करना भी पंसद है। ये भी मेरे एक्सप्रेशन का एक हिस्सा है।
फेमिनिज़म इन इंडिया: आपको फेमिनिज़म इन इंडिया और हमारे काम के बारे में क्या पसंद है? आप हमसे और किन-किन चीज़ों की उम्मीद करती हैं?
ऐश्वर्य अमृत विजय राज: काम करना शुरू करने से पहले जब मुझे मेल से टूलकिट मिला था तब ही मैंने कुछ बातें गौर की थी, जैसे भाषा के स्तर पर सेंसटिविटी, किसी अन्य कम्युनिटी को अप्रोप्रिएट न करना। ये अच्छा था। काम करते हुए ऐसा अनुभव रहा कि लिखने वालों को सिर्फ़ ह्यूमन रिसोर्स के तरह नहीं बल्कि लोगों की तरह देखा जाता है, लोग जिनकी अपनी दिक्क़तें हो सकती हैं, नॉन टॉक्सिक वातावरण रखते हुए वर्क एथिक्स बनाए रखना सुंदर बात होती है जो अक्सर किसी प्रोफेशनल क्षेत्र में आए नए लोगों को नहीं मिलता। मुझे यहां मिला। मुझे उम्मीद है कि फेमिनिज़म इन इंडिया में अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के लोग को खुद को रिप्रेसेंटेड नहीं पाते वे जुड़ेंगे और एक पाठक के तौर पर उनसे जुड़े मुद्दे पर उनका पक्ष सीधा उनसे, उनके नज़र से जानने समझने मिलेगा। हिंदी में समावेशी नारीवाद के नज़रिए से किसी न्यूज़ वेबसाइट पर जानकारी मिलना एक पाठक के रूप में ढूंढना मुश्किल लगता था, इस कमी को फेमिनिज़म इन इंडिया पूरी करती है।
फेमिनिज़म इन इंडिया ऐश्वर्य का उनके योगदान और उनके बेहतरीन लेखन के लिए आभार व्यक्त करता है। हमें बेहद खुशी है कि वह हमारी लेखकों में से एक हैं। आप उन्हें इंस्टाग्राम पर यहां फॉलो कर सकते हैं।