समाजख़बर कोरोना महामारी के जानलेवा दौर में ‘हमारी एकता’ ही एकमात्र उपाय है | नारीवादी चश्मा

कोरोना महामारी के जानलेवा दौर में ‘हमारी एकता’ ही एकमात्र उपाय है | नारीवादी चश्मा

कोरोना महामारी के इस मुश्किल दौर में जब हमारी चुनी सत्ता ने हमारा साथ छोड़ना शुरू किया है तो हमें आपस में एक होने की ज़रूरत है।

आज उत्तर प्रदेश के बीस ज़िलों में दूसरे चरण का ग्राम पंचायत चुनाव हो रहा है। पिछले कई दिनों से लगातार ग्राम पंचायत चुनाव का प्रचार ज़ोरों पर था। वहीं दूसरी तरफ़, उत्तर प्रदेश में कल तक कोरोना केस की कुल संख्या 67,123 थी। एकतरफ़ जनता अपने प्रतिनिधि चुन रही है, वहीं दूसरी तरफ़ देश अपने चुने हुए प्रतिनिधियों के कामों का ख़ामियाज़ा भुगत रही है। देश में लगातार कोरोना की दूसरी लहर बढ़ रही है। इस बार युवा और बच्चे कोरोना महामारी का शिकार हो रहे हैं। हर तरफ़ से मौत की खबरें अब मानो आम हो चुकी है, क्योंकि वास्तव में आम आदमी की ज़िंदगी सत्ता के लिए बहुत आम हो चुकी है।

दूसरी तरफ़ सत्ता लोकतंत्र का उत्सव मनाने में चूर है। देश के पाँच राज्य – पश्चिम बंगाल, असम, तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी में चुनावी दौर जारी है। बंगाल में राजनीतिक पार्टियाँ चुनाव प्रचार में अपनी पूरी ताक़त झोंकें हुए है। बड़ी-बड़ी रैलियों का आयोजन किया जा रहा है और बड़े वादे-इरादे और जुमलों की हवाई फ़ायरिंग जारी है। देश के बड़े नेता-अभिनेता स्टार प्रचारक बन इसमें अपनी सक्रिय भागीदारी भी दर्ज कर रहे है। लेकिन इलाज के अभाव में दम तोड़ती जनता की सुध लेने वाला कोई नहीं है।

ग़ौरतलब है कि भारत में कोरोना वायरस संक्रमण का सबसे पहला मामला केरल के त्रिशूर में 30 जनवरी 2020 को सामने आया था। इसके अगले ही दिन यानी 31 जनवरी को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना वायरस को वैश्विक चिंता की अंतरराष्ट्रीय आपदा घोषित किया था। भारत में जैसे ही कोरोना केस बढ़ने लगे तब सरकार ने बिना किसी तैयारी के अचानक लॉकडाउन की घोषणा कर दी थी और पूरी दुनिया के सामने पलायन की भयावह तस्वीर सामने आयी। किसी भी आपदा से निपटने के लिए देश की चिकित्सा और बुनियादी व्यवस्था तब भी सवालों के घेरे में थी और आज भी है क्योंकि सरकार ने कभी भी इन व्यवस्थाओं को अहमियत दी ही नहीं।

और पढ़ें : चुनाव में ‘पंचायती राज’ को ठेंगा दिखाते ‘प्रधानपति’| नारीवादी चश्मा

बात प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी की हो या फिर धर्म के हवाले से इलाहाबाद बदलकर प्रयागराज की हो, हर जगह की हालात बेहद भयावह है। कोरोना के बढ़ते केस के साथ शहर में लाशों का ढ़ेर बढ़ता जा रहा है। शमशान घाटों पर लाइन लगने लगी है। लोग अपने परिजन को लेकर अस्पतालों के चक्कर लगा रहे हैं और हमारे चुने प्रतिनिधि सत्ता के नशे में चूर चुनावी प्रपंचों में लगकर हरिद्वार में हज़ारों की संख्या में गोते लगाते संतों के उत्सव को प्रतीकात्मक बता रहे है।

कोरोना महामारी के इस मुश्किल दौर में जब हमारी चुनी सत्ता ने हमारा साथ छोड़ना शुरू किया है तो हमें आपस में एक होने की ज़रूरत है।

सत्ताधारी राजनीतिक पार्टी भाजपा के कार्यकर्ता भी चिकित्सा की बुनियादी सुविधाओं और सरकार के उदासीन रवैये को आम जनता की तरह की झेल रहे है। कहने का आशय ये है कि सत्ता चाहे जो भी हो उसने धर्म के नामपर लोगों को गुमराह करने और चुनाव से पहले विकास का जुमला थमाने को अपना चरित्र बना लिया है। अब ज़रूरत है सत्ता के इस चरित्र को समझने-परखने की ज़रूरत है। हमें ख़ुद साफ़ करना होगा कि हमारे लिए विकास के मानक क्या है? क्या शहर का नाम बदलना या महामारी के दौर में मंदिर के नामपर पूरे देश से चंदा उतारना विकास का मानक है या फिर जनता के लिए उचित चिकित्सा, शिक्षा और रोज़गार की व्यवस्था करना विकास का मानक है ? चुनावी मौसम पास आते ही अक्सर हमलोग अपने क्षेत्र, जाति, धर्म और व्यक्तिगत लाभ के नामपर वोट देते है, लेकिन अब ये दौर सीख लेने का है। सीख अपने समझ-बूझ और प्राथमिकताओं की।

इसके साथ ही, इस मुश्किल दौर में जब हमारी चुनी सत्ता ने हमारा साथ छोड़ना शुरू किया है तो हमें आपस में एक होने की ज़रूरत है। हम जिन भी माध्यमों से एक-दूसरे से जुड़ पाए और लोगों की मदद कर पाएँ, अच्छा होगा। कई बार सही संवाद से मुश्किलें आसान होती है। सोशल मीडिया के इस दौर में एक-दूसरे से जुड़िए, अफ़वाहों से दूर लोगों तक सही जानकारी पहुँचाने में मदद कीजिए और याद रखिए महामारी के दौर में ‘एकता’ ही एकमात्र उपाय है।  

और पढ़ें : के.के. शैलजा: केरल को कोरोना और निपाह के कहर से बचाने वाली ‘टीचर अम्मा’


तस्वीर साभार : businesstoday

Leave a Reply

संबंधित लेख

Skip to content