इंटरसेक्शनलजाति गिन्नी माही : अपने संगीत के ज़रिये जातिगत शोषण के ख़िलाफ़ लड़ती एक सशक्त आवाज़

गिन्नी माही : अपने संगीत के ज़रिये जातिगत शोषण के ख़िलाफ़ लड़ती एक सशक्त आवाज़

गिन्नी माही ने अपने संगीत के ज़रिये भारतीय समाज में जातिगतग भेदभाव, हिंसा और शोषण का सामना कर करे समुदाय को एक आवाज़ दी है।

जर्मनी में ग्लोबल मीडिया फोरम (जीएमएफ 2018) में भाग लेने वाली, गुरुकंवल कौर उर्फ गिन्नी माही भारतीय पंजाबी लोक, रैप और हिप-हॉप गायिका हैं। वह जालंधर पंजाब की रहने वाली हैं। वर्तमान में संगीत की पढ़ाई कर रही गिन्नी ने अपने गीतों, “फैन बाबा साहिब दी” और “डेंजर चमार” से प्रसिद्धि हासिल की। वह अपने गीतों में बाबा साहब आंबेडकर के संदेशों को व्यक्त करने के लिए मशहूर हैं। गिन्नी माही ने बाबा साहब आंबेडकर की विचारधारा को पंजाबी संगीत के साथ जोड़कर शानदार गीतों का निर्माण किया। वह मानती हैं, “बाबा साहब आंबेडकर सभी के लिए समानता की बात करते हैं, खासकर दलित समुदाय और महिलाओं के लिए। यह उनकी वजह से है कि हम में से बहुत से लोग शिक्षित हैं और हमारे पास वह अधिकार है जो हमारे पास अन्यथा नहीं होते।”

अगर उनके शुरुआती करियर की बात करें, तो माही सिर्फ आठ साल की थीं जब उनके परिवार ने उनकी संगीत प्रतिभा पर ध्यान दिया और उनका दाखिला जालंधर के कला जगत नारायण स्कूल में करवाया। बाद में उन्होंने अमर ऑडियो के अमरजीत सिंह के समर्थन से धार्मिक गीत गाना शुरू किया, जिन्होंने उनके भक्ति एल्बमों का निर्माण किया। उन्होंने अपना पहला लाइव शो तब किया जब वह सिर्फ 12 साल की थी। माही के परिवार की बात करें तो उनका परिवार रविदास आस्था से ताल्लुक रखता है। पंजाबी आबादी के बीच एक पहचान हासिल करने के लिए उन्होंने शुरुआती तौर पर रविदास समुदाय से संबंधित भक्ति गीत गाना शुरू किया। अब वह राजनीतिक, आंबेडकरवादी और जातिवाद विरोधी विषयों पर गाने गाती हैं।

गिन्नी माही के पहले दो एल्बम, ‘गुरु दी दीवानी’ और ‘गुरुपुरब है कांशी वाले दा’ भक्ति भजन थे। माही बाबासाहेब आंबेडकर को अपनी प्रेरणा मानती हैं। वह जाति के आधार पर होनेवाले सामाजिक उत्पीड़न और शोषण के बारे में गीत लिखती आई हैं। आंबेडकर पर आधारित उनके पहले गीतों में से एक ‘फैन बाबा साहिब दी’ था। यह गाना बाबा साहेब आंबेडकर के सम्मान में उन्होंने गाया था जिसने उन्हें प्रसिद्धि दिलाई। यह गाना देखते ही देखते यूट्यूब पर बहुत वायरल हो गया था। इस गाने में वह वह खुद को बाबा साहब की बेटी बताते हुए गाती हैं, “मैं थी बाबासाहेब दी, जिन लिखेया सी संविधान” यानि मैं बाबासाहेब की बेटी हूं, जिन्होंने संविधान लिखा था। गिन्नी माही के गाने जैसे हक (2016), फैन बाबा साहिब दी (2016), राज बाबा साहिब दा (2018) आजि दलित समुदाय के बारे में उनकी आवाज को बुलंद करते आए हैं। माही अपने अधिकारों के लिए लड़ने के बारे में गाती हैं। वह गाती हैं कि चुप मत रहो क्योंकि तुम डरते हो, बाबासाहेब ने हमें अपने अधिकारों के लिए लड़ना सिखाया है।

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साल 2016 में आया ‘डेंजर चमार’ उनके प्रसिद्ध गानों में से एक है। यह गीत उनकी जाति के नाम, चमार से जुड़े जातीय दंश और पूर्वाग्रहों को मिटाने और इसे एक सशक्त और गर्व की बात में बदलने पर केंद्रित है। गिन्नी माही जब स्कूल में थीं तो उनसे उसकी जाति पूछी गई और तब उन्होंने जवाब दिया कि वह अनुसूचित जाति से संबंधित हैं। उनकी सहपाठी ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि अरे चमार बड़े खतरनाक होते हैं, उनसे पंगा नहीं लेना चाहिए। घर आने पर माही ने इस घटना को अपने परिवारवालों से साझा किया और यह कहानी उनके दोस्तों में फैल गई। एक दिन उसके पिता को एक गीतकार का फोन आया जिसने “डेंजर चमार” के इर्द-गिर्द एक सशक्त गीत लिखा था। इस तरह इस गीत का जन्म हुआ। 

माही ने भारत के बाहर कनाडा, ग्रीस, इटली, जर्मनी और यूनाइटेड किंगडम में भी कॉन्सर्ट किए हैं। इसमे कोई दो राय नहीं है कि गिन्नी माही ने अपने संगीत के ज़रिये भारतीय समाज में जातिगतग भेदभाव, हिंसा और शोषण का सामना कर करे समुदाय को एक आवाज़ दी है, उनके मुद्दों को प्रमुखता से उठाया है। उनकी कला दलित समुदाय की एक सशक्त आवाज़ है और वह उन लाखों करोड़ों लोगों की बात को दुनिया के सामने रख रही है जिन्होंने जाति के आधार पर हिंसा झेली है। 

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तस्वीर साभार : Catch News

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