क्लिनिक के बाहर एक लड़की हिजाब पहने व्हीलचेयर पर बैठी वहां मौजूद और मरीज़ों की तरह ही डॉक्टर का इंतज़ार कर रही थी। तब वहां कुछ लोग उसे भिखारिन समझकर पैसे देने लगे लेकिन जैसे ही उस लड़की ने अपने हिजाब को हटाया तो पैसे देनेवालों में से एक लड़का यह देख आश्चर्यचकित रह गया और उसने अपनी लड़खड़ाती ज़बान में कहा, “अरे आप तो पैरा एथलीट इशरत अख्तर हैं। आपका वीडियो मैंने सोशल मीडिया पर देखा था।”
24 साल की इशरत अख्तर के साथ यह वाकया साल 2018 के शुरुआती महीने में हुआ था, लेकिन वक्त-बेवक्त इसकी याद ज़ख्म की तरह ज़ेहन में आज भी आ जाया करती है। समाज की सोच विकलांगों को लेकर कितनी बदली है, यह इशरत की मिसाल से भी मालूम पड़ता है। आमतौर पर यही समझा जाता है कि जो व्हीलचेयर पर है वह कुछ कर नहीं सकता या दबी ज़बान में कहते सुना जा सकता कि वह ज़्यादा कुछ नहीं कर सकते हैं। इसी मानसिकता को बदलने में इशरत अख्तर अब अहम भूमिका निभा रही हैं। मूल रूप से उत्तरी कश्मीर के बारामूला के बांगदरा गांव की रहने वाली इशरत जम्मू कश्मीर की पैरा एथलीट अंतरराष्ट्रीय बास्केटबॉल खिलाड़ी हैं। महिला व्हीलचेयर बास्केटबॉल में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वह भारत का प्रतिनिधित्व करती हैं। अख्तर को लोग कश्मीर में प्रेरणा के तौर पर देखते हैं।
और पढ़ें : ख़ास बात : टोक्यो पैरालंपिक्स में हिस्सा ले रहीं पहली पैरा-ताइक्वांडो खिलाड़ी अरुणा सिंह तंवर से
दुर्घटना ने छीना पैर तो संघर्ष ने खोला सफलता का द्वार
इशरत के वालिद फोर्थ ग्रेड मुलाज़िम हैं और वह चार बहनों में दूसरे नंबर पर आती हैं। वह बताती हैं, ‘साल 2016 से पहले तक मेरी जिंदगी गरीबी और परेशानियों के होते हुए भी सामान्य थी लेकिन साल 2016 में मैं अपने घर की दूसरी मंजिल से गिर गई। इस हादसे में मेरी रीढ़ की हड्डी में गंभीर चोटें आईं। कई अस्पतालों में रेफर किया गया और फिर एक बड़ा ऑपरेशन हुआ। मेरा चलना-फिरना बंद हो गया था। छह महीने पूरी तरह से बिस्तर पर गुजारे हैं मैंने। छह महीने बाद जब व्हीलचेयर पर चलने की अनुमति दी गई तो लोगों के तानों ने मेरे दिमाग को तनाव से भर दिया। लोगों ने बहुत हतोत्साहित किया। मेरे मुंह पर ही लोग बोलने लगे कि मेरा मर जाना ही बेहतर था।’
मगर इस बीच इशरत के साथ उनका परिवार लगातार खड़ा रहा और वह अपने संघर्ष के बूते सफलता की सड़क सरपट दौड़ती गईं। इशरत आगे कहती हैं, ‘एक दिन मुझे फिजियोथेरेपी के लिए श्रीनगर में मेडिकेयर सोसाइटी ले जाया गया। वहां मैंने कुछ लड़कों को देखा जो व्हीलचेयर पर थे और बास्केटबॉल खेल रहे थे। उन्हें देखकर मेरा आत्मविश्वास आया कि जब ये खेल सकते हैं तो मैं क्यों नहीं। मैंने लड़कों के साथ अभ्यास करना शुरू कर दिया। तीन दिनों तक अभ्यास करने के बाद मुझे पहली बार इंडोर स्टेडियम में एक शिविर के लिए चुना गया। उसके बाद मैंने तमिलनाडु और मोहाली में राष्ट्रीय मैच खेले।’
और पढ़ें : पलक कोहली : पैरालंपिक्स में शिरकत कर रही बैडमिंटन की सबसे युवा खिलाड़ी
मूल रूप से उत्तरी कश्मीर के बारामूला के बांगदरा गांव की रहने वाली इशरत जम्मू कश्मीर की पैरा एथलीट अंतरराष्ट्रीय बास्केटबॉल खिलाड़ी हैं। महिला व्हीलचेयर बास्केटबॉल में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वह भारत का प्रतिनिधित्व करती हैं। अख्तर को लोग कश्मीर में प्रेरणा के तौर पर देखते हैं।
80 फ़ीसद लोग नहीं जानते कश्मीरी कैसे हैं
साल 2019, पांच अगस्त को जब जम्मू कश्मीर से अनुछेद 370 हटाकर विशेष राज्य का दर्जा निरस्त किया गया तो इस दौरान राज्य में फ़ोन, इंटरनेट और संचार के तमाम साधन प्रतिबंधित थे। ऐसे में अपने घर बैठी इशरत को नहीं मालूम था कि उसका चयन चेन्नई के एक राष्ट्रीय शिविर के लिए हो गया है। तब इशरत के लिए मददगार बनकर सेना के रिटायर्ड कर्नल आइज़ेनव्होर सामने आए। इशरत के मुताबिक भारतीय महिला व्हीलचेयर फ़ुटबाल फ़ेडरेशन ऑफ़ इंडिया का उनसे संपर्क नहीं हो पा रहा था। इसके कोच कैप्टन लुईस जार्ज ने अपने एक दोस्त सेना के रिटायर्ड कर्नल आइज़ेनव्होर से एक दिन बातों में ऐसे ही ज़िक्र किया कि उनका जम्मू-कश्मीर की ख़िलाड़ी से संपर्क नहीं हो पा रहा है। कर्नल आइज़ेनव्होर ने अपने संसाधन का इस्तेमाल करते हुए सेना और जम्मू-कश्मीर पुलिस की मदद से कुछ समय में इशरत को ढूंढ निकाला।
राज्य के हालात को देख कर इशरत बहुत घबराई हुई थीं कि वह ऐसे में अकेले कैसे चेन्नई जाएंगी लेकिन कर्नल आइज़ेनव्होर न सिर्फ़ इशरत का हौसला बढ़ाया बल्कि चेन्नई पहुंचने का पूरा इंतज़ाम करवाया। इशरत ने चेन्नई पहुंचकर शिविर में भाग लिया और उनका चयन थाईलैंड के पटाया में होने वाली एशिया ओशिनिया व्हीलचेयर बास्केटबॉल टूर्नामेंट के लिए हो गया। इस टूर्नामेंट में उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया।
इस बारे में रिटायर्ड कर्नल आइज़ेनव्होर कहते हैं, “जिस वक़्त मेरे दोस्त (कोच) ने मुझे इशरत के बारे में बताया कि वह कश्मीर से है। तब मैं भी बोल सकता था कि कश्मीर में फ़ोन नहीं चल रहा, उसका एड्रेस भी नहीं मालूम है तो उसे कैसे ढ़ूढेंगे लेकिन मैंने ऐसा नहीं किया। मैं तब सेना में था और अगर किसी की मदद कर सकता हूं तो ज़रूर करूंगा चाहे वह किसी भी राज्य से हो, मेरी फीलिंग नेशनल हैं और चाहे वह किसी भी धर्म से हो मेरे लिए इंसानियत पहले है। हिंदुस्तान में अस्सी प्रतिशत लोगों को नहीं मालूम कि कश्मीरी कैसे हैं। उधर उनका जीवन कैसा है। कई लोगों को कश्मीर की स्पेलिंग भी सही से नहीं मालूम है, लेकिन वे समझते हैं कि वहां सारे उग्रवादी हैं। इसके अलावा उन्हें कुछ नहीं आता है। मैं मानता हूं कि इसमें मीडिया का रोल भी है। वह (मीडिया) असलियत क्यों सामने नहीं लाते हैं। मैं कश्मीर में रहा हूं और जानता हूँ कि वहां लोग कैसे हैं। वे लोग भी अच्छे हैं, हम-आप की तरह।”
और पढ़ें : ज्योति बालियान : टोक्यो पैरा ओलंपिक में हिस्सा लेने वाली इकलौती महिला तीरंदाज़
दुर्घटना के बाद इशरत ने दसवीं तक पढ़ाई कर, आगे की पढ़ाई छोड़ दी थी। इसकी वजह वह खुद के पैरों लाचारी और घर की आर्थीक बदहाली को बताती हैं। लेकिन अब उन्होंने दोबारा अपनी पढ़ाई शुरू कर दी है और इसका श्रेय सेना के रिटायर्ड अधिकारी कर्नल आइज़ेनव्होर को देती हैं। वह बताती हैं कि दोबारा पढ़ने के लिए उन्होंने मना कर दिया था, क्योंकि दुर्घटना के बाद वालिद के लिए चार बेटियों की पढ़ाई का खर्च उठा पाना मुश्किल था। वह कहती हैं कि तब कर्नल सर ने ही उन्हें हौसला दिया और कहा कि वे उनकी मदद करेंगे। तब से आज तक कर्नल आइजेनव्होर इशरत की आर्थिक मदद करते आ रहे हैं।
साल 2019, पांच अगस्त को जब जम्मू कश्मीर से अनुछेद 370 हटाकर विशेष राज्य का दर्जा निरस्त किया गया तो इस दौरान राज्य में फ़ोन, इंटरनेट और संचार के तमाम साधन प्रतिबंधित थे। ऐसे में अपने घर बैठी इशरत को नहीं मालूम था कि उसका चयन चेन्नई के एक राष्ट्रीय शिविर के लिए हो गया है।
फिलहाल इशरत भारतीय महिला व्हीलचेयर बास्केटबाल की सीनियर टीम में हैं। वह अपने ज़िले बारामूला की ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ भारत सरकार के अभियान की हेड भी हैं। इसी साल गणतंत्र दिवस के मौके पर बारमूला जिला प्रशासन की तरफ से उन्हें सम्मानित भी किया गया और स्वतंत्रता दिवस पर उन्हें श्रीनगर जिला प्रशासन की ओर से “आउटस्टेंडिंग परफोर्मेंस इन पब्लिक सर्विस अवार्ड” से नवाज़ा गया था। इसके अलावा साल 2019 में केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजू ने मिलकर इशरत को स्पोर्ट्स व्हीलचेयर भेंट की थी। कई एनजीओ भी इशरत को सम्मानित कर चुके हैं। इशरत कहती हैं कि एक समय ऐसा भी आया कि जो लोग उन्हें मर जाने का ताना दिया करते थें वहीं लोग बाद में उन्हें रश्क भरी नज़रों से देखने लगे और आज अपने बच्चों को उनकी मिसाल देते हैं। इशरत इस बदलाव को अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी उपलब्धि के तौर पर देखती हैं।
समाज को विकलांगों के प्रति बदलनी होगी अपनी सोचः कोच
भारतीय महिला व्हीलचेयर बास्केटबाल के कोच कैप्टन लुईस जार्ज कहते हैं, “टीम की बाकि खिलाड़ियों की तरह इशरत भी एक बेहतरीन ख़िलाड़ी हैं। व्हीलचेयर पर लोगों को देखकर समाज के लोग सोचते हैं कि बेचारे (विकलांग) ये क्या करेंगे, समाज को अपनी यह सोच बदलनी होगी। व्हीलचेयर पर जो लोग हैं वे भी बहुत कुछ कर सकते हैं। अभी थोडा वक़्त लगेगा लेकिन व्हीलचेयर बास्केटबाल के बारे में भी लोग जानेंगे। मैं यही चाहूंगा कि हमारे ख़िलाड़ी एशिया गेम्स में गोल्ड मेडल जीतकर आए और आने वाले सालों में पैरा ओलंपिक खेलें।
इशरत भी भविष्य में पैरा ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व करना चाहती हैं लेकिन उससे पहले वह समाज और सरकार से कुछ चाहती हैं। वह समाज से चाहती हैं कि जो आज़ादी और सहयोग उन्हें उनके परिवार से मिल रहा है वही घाटी में उन सभी महिलाओं महिलाओं, लड़कियों को मिलना चाहिए। उन्हें जिंदगी बेहतर बनाने और उसके विकल्प चुनने का अवसर मिलना चाहिए। उन्हें अकेले कहीं आने-जाने की स्वतंत्रता मिलनी चाहिए जबकि सरकार से वह चाहती हैं कि जब वह राज्य से बाहर कहीं भी जाती हैं तो वहां विकलांग लोगों के लिए सार्वजनिक स्थानों पर रैम्प और शौचालय की सुविधा तो मिलती है, लेकिन उनके राज्य (जम्मू कश्मीर) में विकलांगजन इससे महरूम हैं। उनका सरकार और ज़िला प्रशासन से आग्रह है कि वे विकलांग लोगों के लिए राज्य में सार्वजनिक स्थानों पर रैम्प और शौचालय की सुविधा मुहैया करवाएं।
और पढ़ें : अवनी लेखरा : शूटिंग में गोल्ड मेडल लाने वाली पहली पैरा शूटर
फीचर्ड तस्वीर साभार : फरहाना रियाज़