जेंडर, सेक्स, सेक्सुअल ओरिएंटेशन, होमोसेक्शुअल, हेट्रोसेक्सुअल, सिस, ट्रांस, अक्सर इन शब्दों के मायने से लोग अनजान पाए जाते हैं, ख़ासकर हिंदी पट्टी में। आज हम अपने इस लेख के ज़रिये जेंडर और सेक्स और एलजीबीटी+ समुदाय से जुड़े ऐसे ही कुछ शब्दों को आसान भाषा में समझाने जा रहे हैं। इससे पहले कि हम LGBTQAI+ की डिक्शनरी के पन्ने पलटना शुरू करें, हमें ज़रूरत है कुछ बुनियादी शब्दों को समझने की।
जेंडर : स्कूल, कॉलेज, नौकरी, अस्पताल कहीं भी जाओ एक कॉलम तो हमें हमेशा दिखता है-अपने जेंडर पर टिक लगाएं लेकिन क्या ये जेंडर का मलतब बस मेल, फीमेल और अन्य तक सीमित है? बिल्कुल नहीं! जेंडर एक सामाजिक सांस्कृतिक संरचना है यानि समाज द्वारा तय किए गए पैमाने। किस इंसान की भूमिका क्या होगी, व्यवहार क्या होगा ये हमारा पितृसत्तात्मक समाज तय करता है। आसान शब्दों में इसे समझे तो अगर लड़की है तो खाना ही बनाएगी और लड़का है तो क्रिकेट ही खेलेगा। ये समाज की तय की गई जेंडर संरचना ही है। जिसकी नींव बचपन से ही हमारे घरों में रखी जाती है। हमारे पितृसत्तात्मक समाज ने जेंडर की परिभाषा को सिर्फ लड़का-लड़की या मेल-फीमेल तक की सीमित कर दिया है लेकिन इसके मायने वृहद हैं।
सेक्स : सेक्स यानि वे विशेषताएं जो जैविक हैं जिन्हें बायोलॉजिकल आधार पर परिभाषित किया जाता है लेकिन इनके ही आधार पर तुरंत हमारा जेंडर भी तय कर लिया जाता है। अगर कोई वजाइना के साथ पैदा होता है तो उसे लड़की और पीनस के साथ पैदा हो तो लड़के का तमगा दे दिया जाता है। इसके आगे तो हमारे समाज को कुछ दिखता ही नहीं।
और पढ़ें : क्वीयर बच्चों पर एडवर्स चाइल्डहूड एक्सपीरियंस का असर
जेंडर आइडेंटिट : जेंडर आइडेंटिटी यानि मनोवैज्ञानिक या अंदरूनी तौर पर खुद को लेकर जेंडर बोध होना कि वे महिला, पुरुष हैं या ट्रांस या नॉन बाइनरी या इनमें से किसी भी जेंडर से खुद को जुड़ा हुआ नहीं पाते।
सेक्शुअल ओरिएंटेशन : सेक्शुअल ओरिएंटेशन यौन रूझान का मतलब है सेक्सुअल पार्टनर को लेकर किसी व्यक्ति की पसंद।
सिसजेंडर : सिसजेंडर यानि वे इंसान जिनकी जेंडर की पहचान यानि जेंडर आईडेंटिटी उनके जन्म के समय दिए गए जेंडर से मेल खाती है। इसे ऐसे समझिए जब मैं पैदा हुई तब जो जेंडर मुझे दिया गया वह लड़की का था और मैं आज भी अपनी पहचान यानि जेंडर आइडेंटिटी लड़की के रूप में ही करती हूं।
ट्रांस पर्सन : ट्रांसजेंडर या ट्रांस पर्सन यानि वे लोग जिनकी अपनी जेंडर पहचान यानि जेंडर आइडेंटिटी उससे मेल नहीं खाती जो उन्हें जन्म के समय दी गई थी। उदाहरण के लिए, एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति जो पैदा तो पुरुष जननांग के साथ हुआ था लेकिन वह खुद की पहचान एक महिला के रूप में करता है।
लेस्बियन : लेस्बियन यानि वे महिलाएं जो महिलाओं की ओर आकर्षित होती हैं। आसान शब्दों में इसे समझें तो वे महिलाएं जो सेक्सुअली, इमोशनली, रोमैंटिकली महिलाओं को पसंद करती हैं।
और पढ़ें : नारीवादी विचारधारा के बिना अधूरा है ‘क्वीर आंदोलन’
गे : LGBTQAI की डिक्शनरी से आपने ये शब्द शायद सबसे ज़्यादा अपने आस-पास सुना होगा। जब आप एक आम डिक्शनरी में इस शब्द के मायने खोजेंगे तो आपको इसका मतलब दिखेगा खुश मिज़ाज़, चियरफुल पर इस डिक्शनरी के मुताबिक गे यानि वे पुरुष जो दूसरे पुरुषों की ओर सेक्सुअल, इमोशनल या रोमैंटिक रूप से आकर्षित होते हैं। इस शब्द का इस्तेमाल कई लोग पूरे एलजीबीटी समुदाय के लिए भी करते हैं लेकिन ध्यान रखिए, ज़रूरी नहीं कि हर LGBTQIA+ समुदाय के लोग ख़ुद को गे के रूप में संबोधित करें।
बाईसेक्सुअल : बाईसेक्सुअल यानि वे लोग जो सेम सेक्स के साथ साथ दूसरे लिंगों के प्रति भी सेक्सुअली और रोमैंटिक रूप से आकर्षित महसूस करते हैं।
ट्रांस पर्सन : जैसा कि हमने पहले ही बताया था कि ट्रांस पर्सन वे होते हैं जो जिनकी अपनी जेंडर पहचान यानि जेंडर आइडेंटिटी उससे मेल नहीं खाती जो उन्हें जन्म के समय दी गई थी। लेकिन ट्रांस एक अंब्रेला टर्म है जिसके तहत कई और टर्म यानि शब्द आते हैं। ट्रांस वीमन यानि वह शख्स जो खुद को एक औरत मानती है लेकिन जन्म के समय उसे एक मर्द का जेंडर दिया गया था। ट्रांस मेन यानि वे शख्स जो खुद को मर्द मानते हैं लेकिन जन्म के समय उन्हें एक औरत माना गया था। कई ट्रांस पर्सन सेक्स रीअसाइन्मेंट सर्जरी या जेंडर रिअफर्मिंग सर्जरी के ज़रिये अपने जेंडर के और करीब जाना चाहते हैं तो कुछ ट्रांस पर्सन ऐसा नहीं चाहते। हालांकि, इस प्रक्रिया के कई चरण होते हैं और यह एक बेहद ही महंगी सर्जरी होती है जिसका खर्च उठाना अधिकतर ट्रांस समुदाय के लोगों के मुमकिन नहीं होता।
क्वीयर : ऐतिहासिक रूप से इस शब्द का इस्तेमाल पहले लेस्बियन या गे व्यक्तियों को अपमानित करने के लिए किया जाता था। अब इसे कई लेस्बियन, गे, बाईसेक्सुअल और ट्रांसजेंडर व्यक्तियों ने दावे के साथ अपना लिया है, एक साथ लाने वाला सकारात्मक शब्द मानकर जो उन सबकी पहचान का पर्याय बन गया है जो विषमलैंगिक यानि हेट्रोसेक्सुअल लोगों भेदभाव के निशाने पर हैं।
और पढ़ें : एलजीबीटीक्यू+ के बारे में स्कूल के बच्चों को पढ़ाना अश्लीलता नहीं, बेहद ज़रूरी है
इंटरसेक्स : इंटरसेक्स होना एक व्यक्ति की Sex characteristic और पहचान से संबंधित होता है लेकिन ऐसा भी होता है कि कुछ इंटरसेक्स लोग खुद को इंटरसेक्स मेल, इंटरसेक्स फीमेल या सिर्फ मेल या फीमेल के रूप में पहचान करें। साथ ही इंटरसेक्स होना किसी की सेक्सुअल ओरिएंटेशन तय नहीं करता एक इंटरसेक्स व्यक्ति एसेक्सुअल, बाइसेक्सुअल या हेट्रोसेक्सुअल आदि भी हो सकता है।
एसेक्सुअल : वे लोग जो सेक्सुअली किसी की ओर आकर्षित नहीं होते लेकिन ऐसा नहीं समझना चाहिए कि ये लोग रोमैंटिक भी नहीं होते हैं। एसेक्सुअल लोग हमेशा एरोमैंटिक नहीं होते और एरोमैंटिक हमेशा एसेक्शुल नहीं होते। सभी एसेक्सुअल लोगों के सेक्स, सेक्सुअलिटी और रिलेशनशिप से जुड़े अनुभव एक जैसे बिल्कुल नहीं होते।
नॉन बाइनरी : इस शब्द का इस्तेमाल एक अंब्रेला टर्म के तौर पर भी किया जाता है जिसमें या तो कई जेंडर आइडेंटिटी शामिल होती हैं जो मेल-फीमेल की बाइनरी तक सीमित नहीं होते इसे और आसान शब्दों में ऐसे कह सकते हैं कि वे लोग जो खुद की पहचान न ही एक पुरुष और न ही एक महिला के तौर पर करते हैं।
ये तो थे वे शब्द जिनका मतलब जानना बेहद ज़रूरी है। लेकिन इन शब्दों के अलावा भी कई ज़रूरी शब्द हैं जिनके मायने जानना ज़रूरी है। क्या आप ये जानते हैं कि LGBTQIA+ समुदाय के लोगों के लिए अपनी पहचान के साथ दुनिया के सामने आना, उसे स्वीकार करना किस हद तक चुनौतियों और मुश्किलों से भरा होता है। इसलिए जब LGBTQIA+ समुदाय के लोग जब अपनी पहचान के साथ दुनिया के सामने आते हैं तो उसे कमिंग आउट कहते हैं।
6 सितंबर 2018 का दिन शायद आपको याद हो ये वो दिन था जिस दिन सुप्रीम कोर्ट ने इंडियन पीनल कोड की धारा 377 को रद्द किया था ये अंग्रेज़ों के ज़माने की बनाई गई धारा थी जिसके मुताबिक समलैंगिकता एक अपराध थी लेकिन क्या सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद क्या सबकुछ बदल गया है? जबाव है नहीं! एक और शब्द है जिससे हमें जानना बेहद ज़रूरी है और वह शब्द है होमोफोबिया यानि LGBTQIA+ समुदाय के प्रति नफ़रत या घृणा की भावना रखना। आए दिन हम ऐसी ख़बरों से गुज़रते हैं जहां कभी समलैंगिक पार्टनर अपनी सुरक्षा के लिए अदालत का रुख करते हैं या कहीं ट्रांस व्यक्तियों के साथ हिंसा, मारपीट हो रही होती है। ये घटनाएं, ये खबरें बताती हैं कि सिर्फ़ कानून का बदलना ही काफ़ी नहीं होता। ज़रूरत है हमें इस मुद्दे पर अधिक से अधिक बात करने की, खुद को और दूसरों को जागरूक करने की।
और पढ़ें : “लड़का हुआ या लड़की?” – इंटरसेक्स इंसान की आपबीती
तस्वीर : श्रेया टिंगल फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए