मानसिक स्वास्थ के मुद्दे पर हमेशा से ही भारतीय समाज में एक चुप्पी रही है। खासकर औरतों और क्वीयर समुदाय के मानसिक स्वास्थ्य को लेकर। आज भी लोग मानसिक स्वास्थ पर बात करने में असहज महसूस करते हैं। ऐसे में क्वीयर समुदाय जो एक लंबे समय से तर्क के कटघरे में बंद था और उनकी पहचान को मानसिक रोग से जोड़कर देखा जाता था। उनके लिए इस विषय पर अपनी बात रखना और भी मुश्किल हो जाता हैं। यूं तो विश्व के 132 देशों में भारत भी एक देश है जहां हर साल 17 मई को आईडाहॉट (IDAHOT) मनाया जाता है। यह दिन डब्लूएचओ द्वारा आई सी डी (इंटरनेशनल क्लासिफिकेशन ऑफ डिसीजेस) से समलैंगिकता को हटाए जाने पर मनाया जाता हैं।
भारत में पूर्वाग्रहों से ग्रसित डॉक्टरों और काउंसलरों के कारण क्वीयर समुदाय को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा है। यह भी एक बड़ी वजह है कि इस समुदाय के लोग आज भी मेंटल हेल्थ काउंसलर या चिकित्सकों के पास जाने में सहज महसूस नहीं करते। साथ ही हमें इस पहलू को भी ध्यान में रखना बेहद आवश्यक है की क्वीयर समुदाय की चुनौतियां और संघर्ष बाकी आम विषमलैंगिक लोगों की चुनौतियों से कई स्तरों में अलग और अधिक हैं। समुदाय के लोग लगातार अपनी पहचान को लेकर खुद से, परिवार से और बाकी की दुनिया से संघर्ष करते हैं। जरूरत है कि विशेष रूप से क्वीयर मुद्दों पर संवेदनशील काउंसिलर चिकित्सकों को तैयार किया जाए। साथ ही साइकोलॉजी की पढ़ाई में भी क्वीयर विषयों को जोड़ा जाए।
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क्वीयर समुदाय के मानसिक स्वास्थ को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं:
1) जेंडर डिसफोरिया यानि जन्म के साथ मिलने वाली लैंगिक पहचान के साथ असहज महसूस करना।
2) जेंडर बाइनरी यानि पितृसत्तात्मक समाज में जेंडर के साथ जुड़ी परिभाषा और लैंगिक ढांचे में खुद को ना रख पाने की जद्दोजहद, ताउम्र एक क्वीयर व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ को प्रभावित करने वाला कारक है।
3) होमोफोबिया यानि समाज में व्याप्त लैंगिक गैरबराबरी, क्वीयर समुदाय के प्रति नफरत, पूर्वाग्रह और घृणा का भाव रखना, उनके साथ होने वाला भेदभाव भी एक प्रमुख कारण के तौर पर उभरता है।
4) जेंडर एक्सप्रेशन यानि ट्रांस अथवा नॉन बाइनरी लोगों में अपने पसंद के अनुरूप कपड़े ना पहन पाने की आज़ादी अपने प्रोनाउंस का इस्तेमाल ना कर पाना भी उनके मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने में एक अहम भूमिका निभाता है।
5) अकेलापन- आज फिर भी इंटरनेट के ज़माने में अपने जैसे लोगों को ढूंढ पाना काफ़ी आसान हो चुका है पर फिर भी अपने परिवार द्वारा ना अपनाया जाना, मुख्यधारा में जब आप को समझ सकने वाला कोई नहीं होता तो ऐसे में प्रेम और अपनत्व का अभाव भी एक बड़ी चुनौती के रूप में उभरते हुए नज़र आता है।
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भारत में पूर्वाग्रहों से ग्रसित डॉक्टरों और काउंसलरों के कारण क्वीयर समुदाय को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा है। यह भी एक बड़ी वजह है कि इस समुदाय के लोग आज भी मेंटल हेल्थ काउंसलर या चिकित्सकों के पास जाने में सहज महसूस नहीं करते।
ऐसे ही कई अन्य विषय जैसे यौन उत्पीड़न, शारीरिक हिंसा, ब्लैकमेल और कई निजी अनुभव होते हैं जो विशेष रूप से क्वीयर लोगों के मानसिक स्वास्थ को प्रभावित करते हैं। इसीलिए क्वीयर मानसिक स्वास्थ के ऊपर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। हाल ही में मारीवाला हेल्थ इनिशिएटिव और टिस द्वारा ‘क्वीयर एफरमेटिव काउंसलिंग प्रैक्टिस’ के अंतर्गत विशेष रूप से क्वीयर मुद्दों पर संवेदनशील काउंसलरो को तैयार किया जा रहा है पर सरकार द्वारा ऐसी किसी भी पहल को किसी प्रकार का सहयोग प्राप्त नहीं है।
सरकार वैसे भी मानसिक स्वास्थ पर कोई विशेष ध्यान नहीं देती। हाल ही में लॉकडाउन और कोरोना काल में हमने देखा की कुछ राज्य सरकारों ने संक्रमित लोगों और औरतों के मानसिक स्वास्थ्य पर कुछ काम किया। कई गैर-सरकारी संगठन द्वारा भी हेल्प लाइन नंबर जारी किए गए जिनके माध्यम से आम लोग मानसिक स्वास्थ को लेकर सुझाव ले सकते थे पर क्वीयर समुदाय यहां पर भी वंचित ही रहा। अब समय है की क्वीयर समुदाय की सुध ली जाए और उन तक जल्दी और सस्ती मानसिक स्वास्थ सुविधाएं पहुंचाई जाए।
साथ ही इस पहलू पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए की समुदाय के लोग कई बार परिवार या समाज के सामने अपनी क्वीयर पहचान के साथ नहीं रह पाते। ऐसे में उनकी निजता और पहचान की गोपनीयता का विशेष ध्यान रखना चाहिए। स्कूल और कॉलेज तक इनकी पहुंच होनी चाहिए ताकि क्वीयर युवा बेझिझक इनका लाभ ले सकें। सरकार द्वारा इसका प्रचार भी ज़रूरी है क्योंकि कई बार ऐसा देखा गया ही की बहुत तबकों तक इसी जानकारियां पहुंच ही नहीं पाती।
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तस्वीर : रितिका बनर्जी फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए