इंटरसेक्शनलजेंडर पितृसत्तात्मक समाज कैसे करता है महिलाओं की ‘स्लट शेमिंग’

पितृसत्तात्मक समाज कैसे करता है महिलाओं की ‘स्लट शेमिंग’

एक ट्रेंड की तरह स्लट शेमिंग समाज के साथ-साथ सोशल मीडिया पर भी तेज़ी से बढ़ रही है। सोशल मीडिया पर खुद की तस्वीरें लगाती, विचार रखती महिलाओं को अपनी पसंद जाहिर करने पर स्लट कहा जाता है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म में केवल किसी विषय पर अपनी राय जाहिर करने से ही महिलाएं स्लट शेमिंग का शिकार हो जाती हैं।

भारतीय समाज में स्वतंत्र रूप से रहनेवाली, अपने हक के लिए आवाज़ उठानेवाली, अपनी बात खुलकर रखनेवाली महिलाओं को अनेक तरह की आलोचनाओं का सामना करना पड़ता है। जब भी महिलाएं पितृसत्ता के अलिखित, अतार्किक सामाजिक व्यवहार के नियमों का पालन नहीं करती हैं तो सबसे पहले उसके चरित्र को निशाना बनाया जाता है। महिलाओं को अनेक तरह की आलोचनाओं का सामना करना पड़ता है, उन्हें स्लट यानि बेशर्म कहा जाता है। रोज़मर्रा के जीवन में महिलाओं के लिए स्लट शेमिंग इतनी आम बात है कि शायद ही कोई इस शब्द से जुड़े मायने पर ध्यान भी देता हो।

स्लट शेमिंग भारतीय पितृसत्तात्मक समाज में एक परंपरा की तरह रची-बसी हुई है है। यहां महिलाओं को उनके कपड़े के चयन, किसी पुरुष के साथ मित्रता रखना, उनके पेशे, रिलेशनशिप और केवल खुलकर हंसने और तेज़ आवाज में बात करने तक पर उनके चरित्र को निशाना बनाकर उन्हें ‘स्लट’ कह दिया जाता है। भारत में स्लट शेमिंट का महिलाओं को ही नहीं बल्कि ट्रांस, नॉन-बाइनरी, एलजीबीटीक्यूएआई+ समुदाय के आनेवाले लोगों को भी सामना करना पड़ता है। महिलाओं को चुप कराने के लिए स्लट शेमिंग को एक हथियार की तरह इस्तेमाल किया जाता है। ‘स्लट शेमिंग’ समाज में लैंगिक भेदभाव की खाई को गहरा करती है।

स्लट शेमिंग पितृसत्तात्मक समाज की देन है जहां औरतों के शोषण के कई तरीके अपनाए जाते हैं। पितृसत्तात्मक समाज में स्लट शेमिंग औरतों के शोषण का एक तरीका है। स्लट शेमिंग को आसान शब्दों में समझने की कोशिश करें तो यह खासतौर पर महिलाओं के खिलाफ इस्तेमाल किए जानेवाले कई अपमानजनक शब्द होते हैं। महिलाओं के खिलाफ ऐसे शब्दों का प्रयोग करने का चलन बहुत पुराना है। समय के साथ इस तरह के चलन में और बढ़ोतरी हुई है। इन अपमानजनक शब्दों या स्लट शेमिंग को ज्यादातर महिलाओं की यौनिकता और उनकी शारीरिक इच्छाओं से जोड़कर बनाया गया है। भारतीय समाज में सभी महिलाओं के लिए स्लट शेमिंग का प्रयोग पुरुषों द्वारा किया जाना आम बात है। तरह-तरह के शब्दों का इस्तेमाल कर स्लट शेम करने के कई तरीके हैं जैसे देह पर बनी गालियां, औरतों के चरित्र पर आरोप लगाना, उनकी बेइज्ज़ती करना, उसके तौर-तरीकों को गलत ठहराना आदि।

और पढ़ेंः फेमिसाइड : जब महिलाओं की हत्या सिर्फ उनके जेंडर के कारण होती है

स्लट शेमिंग भारतीय पितृसत्तात्मक समाज में एक परंपरा की तरह रची-बसी हुई है है। यहां महिलाओं को उनके कपड़े के चयन, किसी पुरुष के साथ मित्रता रखना, उनके पेशे, रिलेशनशिप और केवल खुलकर हंसने और तेज़ आवाज में बात करने तक पर उनके चरित्र को निशाना बनाकर उन्हें ‘स्लट’ कह दिया जाता है।

पुराने समय और आज के समय में स्लट शेमिंग का प्रयोग और ज्यादा बढ़ा है। जैसे-जैसे महिलाएं घर से बाहर निकलकर अपना काम कर रही हैं। पुरुषों के साथ हर क्षेत्र में अपनी मौजूदगी दर्ज करवाकर उनके लिए प्रतिस्पर्धा बन रही हैं। ऐसी स्थिति में पितृसत्तात्मक मानसिकता उन्हें पीछे करने के लिए स्लट शेमिंग का प्रयोग सबसे पहले करती है।

आज के समय में जहां पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं को समानता देने की आवाज़ बुलंद है। इसी समाज में स्त्री के रहन-सहन, उसके कपड़े पहनने के तौर-तरीके को देखते हुए भी उस पर आपत्तिजनक शब्दों का प्रयोग किए जाने का चलन है। एक ट्रेंड की तरह स्लट शेमिंग समाज के साथ-साथ सोशल मीडिया पर भी तेज़ी से बढ़ रही है। सोशल मीडिया पर खुद की तस्वीरें लगाती, विचार रखती महिलाओं को अपनी पसंद जाहिर करने पर स्लट कहा जाता है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म में केवल किसी विषय पर अपनी राय जाहिर करने से ही महिलाएं स्लट शेमिंग का शिकार हो जाती हैं। सोशल मीडिया पर स्लट शेमिंग का चलन ऐसा है कि एक आम महिला हो या किसी पद पर आसीन महिला पुरुषों के द्वारा हर वर्ग की औरत को स्लट शेमिंग का शिकार होना पड़ता है। स्लट शेमिंग पितृसत्ता का वह नजरिया दिखाता है, जो स्त्रियों से घृणा करता है।

पितृसत्तात्मक सोच से लिपटा समाज औरतों को आज़ादी से जीवन जीने की इज़ाजत नहीं देता है। जो महिलाएं बंधन मुक्त जीवन जीती हैं अक्सर उन्हें स्लट शेमिंग का सामना सबसे पहले करना पड़ता है। पुरुषों का किसी भी विषय पर बात करना नैतिक समझा जाता है पर यही काम यदि औरतों द्वारा किया जाए तो उसे अनैतिक करार दिया जाता है। यदि कोई महिला या लड़की अपनी शारीरिक इच्छाओं, महिलाओं की दैहिक स्वायत्तता पर बात करती है तो उसे बेशर्म कहा जाता है। प्रकृति ने पुरुष और स्त्री दोनों की शारीरिक बनावट में फर्क ज़रूर किया है लेकिन यौन इच्छाओं का जेंडर से कोई वास्ता नहीं है। लेकिन पितृसत्ता स्त्री-पुरुष की इस समानता को नहीं मानता बल्कि पितृसत्तात्मक समाज स्त्रियों को खोखले नियमों में बांधकर रखता है। इसी का नतीजा है कि इन नियमों से ऊपर जो औरत आगे बढ़ती है उसे स्लट शेमिंग का सामना करना पड़ता है ।

और पढ़ेंः स्टॉकिंग के अपराध को गंभीरता से क्यों नहीं लिया जाता ?

एक ट्रेंड की तरह स्लट शेमिंग समाज के साथ-साथ सोशल मीडिया पर भी तेज़ी से बढ़ रही है। सोशल मीडिया पर खुद की तस्वीरें लगाती, विचार रखती महिलाओं को अपनी पसंद जाहिर करने पर स्लट कहा जाता है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म में केवल किसी विषय पर अपनी राय जाहिर करने से ही महिलाएं स्लट शेमिंग का शिकार हो जाती हैं।

महिलाएं समाज में, वर्चअल दुनिया में और घर की चारदीवारी में भी अपने ही परिवार के पुरुषों द्वारा स्लट शेमिंग का शिकार होती हैं। तमाम तरह के महिला हिंसा के आंकड़े के अनुसार भारत में महिलाओं के खिलाफ सबसे अधिक अपराध घरेलू हिंसा के होते हैं। इसी घरेलू हिंसा का एक पहलू है ‘स्लट शेमिंग’। पुरुष द्वारा अपनी पत्नी को अपमानजनक शब्द कहना अपना हक़ मानता है। पितृसत्तात्मक समाज स्लट शेमिंग को औरतों के खिलाफ इस्तेमाल करने का अपना अधिकार समझते हैं।

स्लट शेमिंग में औरतों के चरित्र पर आरोप लगाए जाते हैं। लेकिन इसे इतनी गंभीरता से नहीं लिया जाता है। जब भी इस पर सवाल किए जाते हैं तो इसे मज़ाक या सामान्य बात कहा जाता है। मजाक का मुखौटा पहनकर की गई यह बातें महिलाओं के ख़िलाफ़ की जानेवाली हिंसा का ही एक रूप है। मज़ाक कहकर औरतों के खिलाफ स्लट शेमिंग करके आसानी से बचने का रास्ता चुन लिया गया है। पुरुषों द्वारा समाज में मज़ाक की शक्ल में कही महिला विरोधी बातों को और बढ़ावा मिलता है। स्लट शेमिंग को मज़ाक का मुखौटा पहनाकर छिपाया नहीं जा सकता है। औरतों के खिलाफ स्लट शेमिंग का प्रयोग करना गंभीर मुद्दा है। रोजमर्रा के जीवन में इसका उपयोग करना कोई आम बात नहीं बल्कि यह एक सामाजिक समस्या है जिसका विरोध करना बेहद ज़रूरी है।

और पढ़ेंः इंटिमेट पार्टनर वायलेंस : पति या पार्टनर द्वारा की गई हिंसा को समझिए


तस्वीर: श्रेया टिंगल फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए

Leave a Reply

संबंधित लेख

Skip to content