इक्कीसवीं सदी की दुनिया की एक सच्चाई जलवायु परिवर्तन और मानव जीवन पर पड़ता उसका असर है। दिन-प्रतिदिन यह समस्या बढ़ती जा रही है। जलवायु परिवर्तन पर तमाम रिपोर्ट्स में इस बढ़ते संकट का ज़िक्र है। दुनियाभर में जलवायु परिवर्तन ने लोगों के रोजमर्रा के जीवन को प्रभावित किया है। वहीं, दूसरी ओर जलवायु परिवर्तन की यह समस्या गरीबी रेखा में रहनेवाले लोगों के लिए सबसे ज्यादा मुसीबत बन रही है। वह भी तब जब वे इस समस्या को पैदा करने के लिए सबसे कम ज़िम्मेदार हैं।
सीमित संसाधनों में रहनेवाले गरीब लोगों का जीवन जलवायु परिवर्तन से हर तरीके से प्रभावित हो रहा है। पर्यावरण संबंधी आपदाओं से गरीब महिलाएं का जीवन पुरुषों की तुलना में ज्यादा प्रभावित हो रहा है। हाल ही में जारी हुई होमनेट साउथ एशिया की रिपोर्ट के अनुसार ग्लोबल वॉर्मिग के कारण घरेलू कामगार महिलाओं की आय में कमी दर्ज की गई है। जलवायु परिवर्तन के कारण उनके काम करने के घंटे कम हो रहे हैं जिस वजह से उनकी आय पर सीधा असर देखने को मिला है।
घरेलू कामगार महिलाओं के लिए काम करनेवाले संगठन होमनेट साउथ एशिया ने भारत, नेपाल और बांग्लादेश की 202 महिलाओं का सर्वेक्षण करने के बाद एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि ये महिलाएं अब पहले के मुकाबले कम काम कर रही हैं, इसलिए इनकी आय भी कम हो गई है। यह अध्ययन भारत के अहमदाबाद और सूरत समेत नेपाल के भक्तापुर और बांग्लादेश के ढाका जैसे शहरों की महिलाओं पर किया गया है। ये महिलाएं सिलाई, कढ़ाई, पैकेजिंग और खाने की रेहड़ी लगाने जैसे छोटे-मोटे काम करती हैं। इनमें से 61 फीसद महिलाएं 30 से 50 वर्ष की थी, जिसमें 83 फीसद विवाहित थी, जबकि 63 फीसद के बच्चे 14 वर्ष के कम उम्र के थे। इस सर्वे के बाद होमनेट साउथ एशिया ने ‘इम्पैक्ट ऑफ क्लाइमेट चेंज ऑन अर्बन होम-बेस्ड वर्कर्स इन साउथ एशिया’ के नाम से एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की है।
और पढ़ेंः महिलाओं की भागीदारी के बिना जलवायु संकट से निपटना मुश्किल है
रिपोर्ट की मुख्य बातें :
- 83 फीसद महिलाओं ने मौसम में बदलाव गर्मी बढ़ने की बात कही।
- 55 फ़ीसद महिलाओं ने माना है कि जलवायु परिवर्तन उन्हें प्रभावित करता है।
- 43 फीसद महिलाओं ने आय में कमी की बात कही, इन महिलाओं की मासिक आय 5000 से भी कम है।
- 60 फीसद ने इस कारण काम का बोझ बढ़ने की बात कही।
- 11 फीसद महिलाएं जलवायु परिवर्तन के बदलाव को भगवान का काम मानती हैं।
दक्षिण एशिया में कामकाजी महिलाओं की संख्या में लगभग एक चौथाई महिलाएं ऐसी हैं जो घर से काम काम करती हैं जैसे सिलाई, बुनाई आदि। यह संख्या पुरुषों की तुलना में बहुत अधिक है क्योंकि केवल 6 फीसद पुरुष ही घर से काम करते हैं। होमनेट का कहना है कि घर से काम करनेवाली महिलाओं का यह समूह सबसे कम आय प्राप्त करने वाले समूहों में से एक है और सबसे कमजोर भी है। रिपोर्ट के अनुसार बढ़ते तापमान के कारण महिलाओं की उत्पादक क्षमता पर सीधा असर पड़ता है। अत्याधिक गर्मी बढ़ने के कारण महिलाओं के काम करने की क्षमता घटी है। रिपोर्ट के अनुसार ये महिलाएं अक्सर भोजन या कपड़े आदि के निर्माण का काम करती हैं और उनकी उत्पादकता में 30 फीसद तक की कमी देखी गई है।
सर्वे में शामिल 83 प्रतिशत महिलाओं ने बताया है कि उन्होंने पिछले 10 वर्षों में गर्मी के दौरान बढ़ते तापमान को देखा है। दो तिहाई से अधिक 66.3 फीसद महिलाएं मौसम में आते इस तरह के बदलावों से अनजान हैं। दूसरी ओर लगभग 11 फीसद ने इस तरह के बदलाव को दैवीय शक्ति यानि भगवान का काम माना है। 55 फीसद महिलाओं ने सीधे स्वीकारा है कि जलवायु परिवर्तन उनके परिवार को प्रभावित करता है। इस वजह से महिलाओं को पहले के मुकाबले अपने घरेलू रोजमर्रा के कामों पर ज्यादा ध्यान देना पड़ता है और इसके लिए उन्हें कोई वेतन नहीं मिलता है।
सर्वे में शामिल 60 फीसद महिलाओं ने कहा है कि उन्हें रोजाना दो घंटे और अधिक काम करना पड़ता है। उनके अनुसार उन्हें बीमार व्यक्ति की देखभाल, पानी भरना और खाने के सामान के रखरखाव पर ज्यादा वक्त देना पड़ता है। लगभग 15 फीसद का कहना है कि उनके परिवार के किसी ने किसी सदस्य ने पिछले कुछ सालों में हीटस्ट्रोक यानि लू लगना स्वीकारा है। इससे अलग 33 फीसद ने गंदे पानी के कारण होनेवाली बीमारियां और 34 फीसद ने वेक्टर जनित रोगों की बात कही।
और पढ़ेंः कैसे मानवाधिकार से जुड़ा हुआ है जलवायु परिवर्तन ?
जलवायु परिवर्तन के कारण छत छिनने का खतरा बढ़ा
बड़े शहरों की ऊँची इमारतों के बीच स्लम में रहनेवाले इन परिवारों को जलवायु परिवर्तन के कारण आवास की समस्या का भी सामना करना पड़ता है। लगभग एक तिहाई 30 फीसद ने कहा है कि मानसून के दौरान उनके घरों में बारिश का पानी भर गया था, जबकि 47 फीसद ने घर को नुकसान पहुंचने की बात कही है। 48 फीसद ने जलवायु परिवर्तन की मार से बचने के लिए अतिरिक्त उपाय की बात कही है। लगभग 20 फीसद ने अपने घर बदलने और 16 फीसद ने जीविका बदलने तक की बात मानी।
43 फीसदी महिलाओं ने मानी आय में कमी
घरेलू कामगार महिलाएं पहले से ही अपने काम के घंटों और मेहनत के लिए कम वेतन पाती हैं। यह रिपोर्ट बताती है कि 43 फीसद महिला कामगारों ने अपनी नगद आय में गिरावट की बात कही और 41 फीसद ने उत्पादकता में कमी की सूचना दी। इस गिरावट का मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन को बताया गया है। तापमान में वृद्धि इसका प्रमुख कारण है। लगभग दो तिहाई यानि 57 फीसद ने कम मासिक आय के साथ पार्टटाइम काम करने की सूचना दी है। इनकी मासिक आय 5000 से भी कम है। इनमें से अधिकतर घरेलू कामगार महिलाओं की दैनिक आय अंतरराष्ट्रीय गरीबी सीमा से नीचे है। इन महिलाओं की औसत आय औसतन 1.90 डॉलर लगभग रोज का 140 रूपये से बहुत कम है। केवल 65 फीसद के पास बचत खाते की सुविधा है।
जलवायु परिवर्तन के कारण उनके स्वास्थ्य पर बुरा असर डालता है। उसके प्रभाव से बचने के लिए उनके पास बहुत कम साधन के साथ जानकारी भी न के बराबर है। आधे से ज्यादा महिलाओं ने कहा है कि जलवायु परिवर्तन से बचने के लिए उनके पास कोई उपाय नहीं है। इन महिलाओं में से केवल 24 फीसद ने स्वास्थ्य बीमा होने की जानकारी दी।
जलवायु परिवर्तन लगातार लैंगिक असमानता को बढ़ाने का काम कर रहा है। इसका सीधा असर महिलाओं पर काम का बोझ, व्यवसायिक खतरे, मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक तनाव और पुरुष की तुलना में उच्च मृत्यु दर के परिणाम भी देते हैं। होमनेट की रिपोर्ट में इससे बचाव के लिए गर्मी से बचने के लिए गर्मी रोधी निर्माण सामग्री, घरों को अपग्रेड, पीने का साफ पानी, पर्यावरण के बारे में जानकारी जैसी सिफारिश की गई है। सामाजिक सुरक्षा के साथ वित्तीय सहायता प्रदान करने के सुझाव भी दिए गए हैं, जिससे ये महिलाएं अपने साथ अपने बच्चों के लिए भी एक बेहतर और सुरक्षित भविष्य बना सकें।
और पढ़ेंः जलवायु परिवर्तन की मार से प्रभावित होती महिलाएं और उनका स्वास्थ्य
तस्वीर साभारः hnsa.org.in