संस्कृतिसिनेमा के.पी.ए.सी. ललिताः वह कलाकार जो जीवन के अंत तक अभिनय की दुनिया में किसी न किसी रूप में सक्रिय रहीं

के.पी.ए.सी. ललिताः वह कलाकार जो जीवन के अंत तक अभिनय की दुनिया में किसी न किसी रूप में सक्रिय रहीं

महेश्वरी अम्मा जिन्हें सब के.पी.ए.सी. ललिता के नाम से जानते हैं। भारतीय अभिनय जगत का एक जाना पहचाना नाम हैं। बहुमुखी प्रतिभा की धनी के.पी.ए.सी. ललिता वह नाम है जिन्होंने थियेटर, फिल्मों और टीवी की दुनिया में एक जैसी शोहरत अपने नाम की। पांच दशक से लंबे करियर में अपने दमदार अभिनय के बलबूते उन्होंने एक मिसाल कायम की। मलयालम सिनेमा में उनका मुख्य योगदान था। अभिनय से निस्वार्थ प्रेम ही कारण था कि वह जीवन के अंत तक अभिनय की दुनिया में किसी न किसी रूप में सक्रिय रहीं। उन्होंने अपने फिल्मी जीवन में 500 से अधिक फिल्मों में हर तरह के किरदार को बखूबी निभाया। के.पी.ए.सी. ललिता का अभिनय इतना दमदार था कि उन्होंने अपनी युवा उम्र में भी अपने से बड़ी उम्र के किरदारों में जान डाली। वह बड़ी सरलता से हर किरदार को अपना बना लेती थीं।

शुरुआती जीवन

के.पी.ए.सी. ललिता का जन्म 25 फरवरी 1947 में केरल के अलाप्पुझा ज़िले के रामपुरम में हुआ था। इनके पिता का नाम के. अनंतन नायर था। वह पेशे से एक फोटोग्राफर थे। इनकी माँ का नाम भार्गवी अम्मा था। वह एक गृहणी थीं। ललिता अपने माता-पिता की पांच संतानों में सबसे बड़ी थीं। ललिता की रुचि बचपन से ही कला और अभिनय में थी। इनको नृत्य की शिक्षा देने के लिए इनका परिवार कोयट्टम के चंगनास्सेरी में रहने लगा था। वहां उन्होंने चेलप्पन पिल्लई और कलामंडलम गंगाधरन के मार्गदर्शन में नृत्य सीखा। दस वर्ष की उम्र में उन्होंने नाटकों में अभिनय करना शुरू कर दिया था।

सबसे पहले उन्होंने मंच पर पहली प्रस्तुति ‘गीतायुद्ध बाली’ नामक नाटक में दी थी। इसके बाद वह के.पी.ए.सी. ( केरल पीपुल्स आर्ट्स क्लब) केरल की प्रमुख थियेटर ग्रुप से जुड़ी। यह केरल की एक प्रमुख वामपंथी नाटक मंडली थी। यहां से के.पी.ए.सी. ललिता बनने के सफ़र की शुरुआत हुई। थोपिल भासी ने माहेश्वरी अम्मा का ललिता नाम रखा। इसके बाद जब उन्होंने फिल्मों में काम करना शुरू किया। ललिता नाम की अन्य अभिनेत्रियों से अलग करने के लिए उन्होंने के.पी.ए.सी. को अपने सिल्वर स्क्रीन नाम से जोड़ा।

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तस्वीर साभार: Stars and Stardust

फिल्मी करियर

1969 में के.एस. सेतुमाधवन ने केपीएसी के नाटक ‘कुट्टुकुडुंबम’ को सिल्वर स्क्रीन पर फिल्माया था। यह ललिता के करियर की पहली फिल्म थी। इस फिल्म से उन्होंने मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखा था। 1970 के दशक में ललिता ने थोपिल भासी की ‘निंगलेने कम्युनिस्टक्की’ में काम किया। इसके बाद उनके करियर में अनुभवंगल’, पालीचकल, ओरु सुंदरिय्यूद कथा, पोन्त्री और चक्रवाकम, स्वयंवरम जैसी फिल्में शामिल हैं। बीच में उन्होंने फिल्म अभिनय से कुछ समय के लिए दूरी बना ली थी लेकिन कुछ समय बाद वह दोबारा अभिनय की दुनिया में लौट आईं।

बहुमुखी प्रतिभा की धनी के.पी.ए.सी. ललिता वह नाम है जिन्होंने थियेटर, फिल्मों और टीवी की दुनिया में एक जैसी शोहरत अपने नाम की। पांच दशक से लंबे करियर में अपने दमदार अभिनय के बलबूते उन्होंने एक मिसाल कायम की। अभिनय से निस्वार्थ प्रेम ही कारण था कि वह जीवन के अंत तक अभिनय की दुनिया में किसी न किसी रूप में सक्रिय रहीं।

1983 में अपने करियर के दूसरे हिस्से में फिल्म ‘कट्टाथे किलिककूडू’ से दोबारा सिल्वर स्क्रीन पर दिखी। इस फिल्म का निर्देशन इनके पति भारतन ने किया था। इसके बाद उन्होंने अपने करियर में एक से एक फिल्मों में काम किया। अमरम और अरवम जैसी फिल्मों के बाद वह घर-घर में पहचाने जाने वाला नाम बन गईं। उन्होंने कई प्रसिद्ध हास्य भूमिकाओं सहित कई तरह के किरदारों को बहुत स्वाभाविक अंदाज में पर्दे पर निभाया। वह अकेले अपनी अभिनय प्रतिभा के बल दर्शकों को सिनेमा हॉल तक खींच लाने में सफल अभिनेत्री मानी गई। अदूर गोपालकृष्णन की ‘मथिलुकल’ में नारायणी के किरदार में केवल आवाज़ के जादू से जान भरीं।

तस्वीर साभार: Kerala Kaumudi

1986 से 2006 के तक के लंबे करियर में उन्होंने गजसायकियायोगम, अपोरवम चिलर, मक्कल महात्माम, माई डियर मुथचन, कन्ननम पोलिसम, शुभ यात्रा, अर्जुनान पिल्लैयम अंजु मक्कलम, इंजंकद्दाई माथन एंड संस, पावम पावम राजकुमारम जैसी सफल फिल्मों में काम किया। अपने बेजोड़ अभिनय के दम पर वह लगातार दर्शकों और फिल्म समीक्षकों की वाहवाह बटोरती रहीं। उन्होंने समीक्षकों द्वारा सराहनीय बहुत सी फिल्मों में काम किया। कट्टुकुथिरा (1990), सन्मानसुल्लावरक्कु समाधानम (1986), पोन मुत्तिदुन्ना थरवु (1988), मुकुंथेट्टा सुमित्रा विल्क्कुन्नु (1988), वडक्कु नुकी यंत्रम (1993), अमरम (1991), वियतनाम कॉलोनी (1993), पवित्रम (1993), मनिचित्रथाजु (1994), स्फदिकम (1995), और अनियति प्रवु (1997) आदि इनके करियर की कुछ प्रमुख फिल्में हैं।

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के.पी.ए.सी ललिता ने मलयालम में 500 से भी अधिक फिल्मों में काम किया। मलयालम के अलावा उन्होंने कुछ तमिल फिल्मों में भी अभिनय किया। जिनमें कधलुक्कु मरियाधई (1997), मणिरत्नम की अलैपायुथे (2000) और कटरू वेलियाडाई (2017) शामिल हैं। फिल्म और रंगमंच के अलावा ललिता ने टेलीविजन पर भी अपनी पहचान बनाई। अपने बाद के वर्षों में ललिता ने टीवी के माध्यम से घर-घर में पहुंची। इसमें उन्होंने कई हास्य भूमिकाएं भी निभाईं। टीवी पर ‘थत्तीम मुत्तीम’ में उनका किरदार मातृशक्ति की एक नई पहचान बना।

साल 1978 में इनकी शादी मलयालम सिनेमा जगत के प्रसिद्ध निर्देशक भारतन से हुई। इन्होंने अपने पति द्वारा निर्देशित फिल्मों में भी अभिनय किया। इनके दो संतान है। इनकी बेटी का नाम श्रीकुटी और बेटे का नाम सिद्धार्थ है। 2010 में के.पी.ए.सी. ललिता नें काडा थुडारम (द स्टोरी कंटीन्यूज) के टाइटल के नाम से अपनी आत्मकथा जारी की थी।    

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सम्मान

के.पी.ए.सी ललिता को अपने अभिनय के लिए राष्ट्रीय से लेकर राज्य स्तर के कई पुरस्कार मिलें। 1990 में फिल्म ‘आमरम’ के लिए सर्वश्रेष्ठ साहयक कलाकार के रूप में राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला। 2000 में फिल्म ‘शांतथम’ के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित हुईं। फिल्मों में योगदान और शानदार अभिनय के लिए ललिता को केरल स्टेट फिल्म की ओर से भी कई फिल्मों के लिए सर्वश्रेष्ट अभिनेत्री का पुरस्कार मिल चुका हैं। 2009 में उन्हें फिल्म फेयर की ओर से लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 2010 में ‘भारत मुरली सम्मान’ मिला और पीके रोजी सम्मान अपने नाम कर चुकी हैं। ललिता केरल संगीत नाटक अकादमी से भी जुड़ी रही। खराब लीवर और स्वास्थ्य की अन्य समस्याओं से जुझते हुए बीती 22 फरवरी 2022 में त्रिपुनिथुरा, एर्नाकुलम केरल में उनका निधन हो गया। के.पी.ए.सी ललिता उन दुर्लभ अभिनेत्रियों में से एक थीं जिन्होंने अभिनय के हर मंच पर अपनी प्रस्तुति से दर्शकों से प्यार मिला।    

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तस्वीर साभारः Indian Express

स्रोत:

ONMANORAMA

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The Hindu

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