समाजख़बर कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न कैसे डाल रहा है महिलाओं के स्वास्थ्य पर असर

कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न कैसे डाल रहा है महिलाओं के स्वास्थ्य पर असर

अमेरिका में हुए एक नए शोध के मुताबिक कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न का संबंध हाई ब्लड प्रेशर और अन्य बीमारियों से है। शोध के मुताबिक जिन महिलाओं के साथ कार्यस्थल पर यौन हिंसा की घटनाएं हुई, उनमें उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर) की समस्या होने की संभावना ज्यादा होती है।

अमेरिका में हुए एक नए शोध के मुताबिक कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न का संबंध हाई ब्लड प्रेशर और अन्य बीमारियों से है। शोध के मुताबिक जिन महिलाओं के साथ कार्यस्थल पर यौन हिंसा की घटनाएं हुई, उनमें उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर) की समस्या होने की संभावना ज्यादा होती है। यह महिलाओं में हार्ट से जुड़ी बीमारियों के बढ़ने का भी बड़ा कारण बनता है। हाई ब्लड प्रेशर दिल से जुड़ी बीमारियों के होने का एक प्रमुख कारक माना जाता है। हाल ही में जर्नल ऑफ अमेरिकन हार्ट एसोशिएसन में छपे एक शोध के मुताबिक कार्यस्थल पर अगर कोई महिला यौन हिंसा और उत्पीड़न का सामना करती है तो उस महिला में हाई ब्लड प्रेशर की समस्या ज्यादा देखी गई है। इस कारण महिलाओं में हाइपरटेंशन और हार्ट अटैक का खतरा भी बढ़ जाता है।

सीएनएन न्यूज की ख़बर के अनुसार इस अध्ययन में 33,000 से अधिक महिलाओं को शामिल किया गया। इन महिलाओं को साल 2008 तक हाई ब्लड प्रेशर की कोई शिकायत नहीं थी। साल 2015 में सात साल बाद दोबारा सभी महिलाओं की स्वास्थ्य रिपोर्ट देखी गईं। उनसे शोध में से जुड़े कुछ सवाल दोहराए गए। रिसर्च में पाया गया कि सात सालों में पांच में से एक महिला हाई ब्लड प्रेशर का शिकार हुई। इसके अलावा निजी जीवन में यौन उत्पीड़न और कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न का सामना करनेवाली महिलाओं में 21 प्रतिशत अधिक हाई ब्लड प्रेशर की शिकायत देखी गई।

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शोध में शामिल महिलाओं से कार्यस्थल पर होनेवाले किसी भी तरह की शारीरिक और मौखिक यौन उत्पीड़न से जुड़ी घटना के बारे में पूछा गया। साथ ही उनसे पूछा गया क्या उन पर कभी किसी अवांछित यौन संपर्क के लिए दबाव डाला गया या बनाने पर विवश किया गया। अध्ययन में शामिल 23 प्रतिशत महिलाओं ने यौन हिंसा और 12 प्रतिशत ने कार्यस्थल पर हिंसा की बात कबूली है। साथ ही 6 प्रतिशत महिलाओं ने किसी भी तरह की यौन हिंसा और कार्यस्थल पर हिंसा दोनो का सामना करने की बात को माना है। ऐसी महिलाएं जिन्होंने दोनों हालात का सामना किया, उनमें हाईपरटेंशन का खतरा 21 प्रतिशत अधिक पाया गया।

इस स्टडी में पाया गया कि कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न का सामना करनेवाली महिलाओं में 15 प्रतिशत और किसी अन्य यौन उत्पीड़न का सामना करनेवाली महिलाओं में 11 प्रतिशत हाई ब्लड प्रेशर का खतरा बढ़ा। हार्वर्ड के बॉस्टन स्थित चान स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ की महामारी विज्ञान रिसर्चर रिबेका लॉन के अनुसार, “हमारे परिणाम दिखाते हैं कि जिन महिलाओं ने कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न और यौन दुर्व्यवहार का सामना किया है उनमें हाई ब्लड प्रेशर का जोखिम सबसे अधिक था।”

हाल ही में जर्नल ऑफ अमेरिकन हार्ट एसोशिएसन में छपे एक शोध के मुताबिक कार्यस्थल पर अगर कोई महिला यौन हिंसा और उत्पीड़न का सामना करती है तो उस महिला में हाई ब्लड प्रेशर की समस्या ज्यादा देखी गई है। इस कारण महिलाओं में हाइपरटेंशन और हार्ट अटैक का खतरा भी बढ़ जाता है।

हम जानते हैं कि यौन उत्पीड़न और कार्यस्थल पर यौन हिंसा के अनुभव सामान्य है। महिलाएं इस तरह की हिंसा का सामना करती है। आकंड़े बताते हैं कि 44 प्रतिशत महिलाएं ही यौन हिंसा की रिपोर्ट दर्ज करवाती हैं। वहीं, 80 प्रतिशत महिलाएं कार्यक्षेत्र में हुए यौन दुर्व्यवहार का सामना करने पर रिपोर्ट दर्ज करवाती हैं। यह अध्ययन इस बात पर भी प्रकाश डालता है कि स्वास्थ्य अनुसंधान के लिए यौन उत्पीड़न और कार्यस्थल यौन उत्पीड़न के महिलाओं के अनुभवों की जांच करना क्यों जरूरी है। इससे पहले भी कई रिसर्च में यह बात सामने आ चुकी है कि महिलाओं के साथ यौन हिंसा की घटनाएं और स्वास्थ्य समस्याओं के बीच संबंध है।

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डॉक्टर को यौन दुर्व्यवहार के बारे में भी पूछना चाहिए

इस रिसर्च की प्रमुख रिबेका लॉन के अनुसार महिलाओं की मौत के लिए हार्ट से जुड़ी बीमारियां पहला प्रमुख कारण है। अब समय आ गया है कि डॉक्टर को अपने इलाज करने के दौरान मरीज से उसके सेक्सुअल ट्रामा के बारे में पूछना चाहिए और महिलाओं को भी खुलकर इस पर बात करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि इन परिणामों से पता चलता है कि नियमित स्वास्थ्य स्क्रीनिंग में यौन उत्पीड़न, कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न और साथ में किसी भी प्रकार की मौखिक हिंसा के बारे में भी जानकारी लेनी चाहिए। हार्ट हेल्थ से जुड़े परिणामों के बारे में जागरूक होकर महिलाएं की ऐसी जानकारी लंबे समय तक स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है। महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा को कम करना बहुत महत्वपूर्ण है। साथ में यह महिलाओं में हृदय संबधी स्वास्थ्य को सुधारने में भी एक रणनीति बन सकती है। लॉन आगे कहती हैं कि अलग-अलग आबादी और उम्र (नस्ल, जातीयता और लिंग) में यौन उत्पीड़न की घटना और उस पर अधिक खोज करने की ज़रूरत है।

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इससे अलग 2019 में ही एक अध्ययन में कहा गया कि जिन महिलाओं ने कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की घटना को रिपोर्ट किया उनमें भी हाई ब्लड प्रेशर उन महिलाओं की तुलना में ज्यादा था जिन्होंने ऐसा नहीं किया। इन महिलाओं में ब्लड प्रेशर इतना अधिक था कि वह महिलाओं को स्ट्रोक, किडनी की बीमारी, हार्ट अटैक और हार्ट से जुड़ी अन्य बीमारियों में डाल सकता है। रिसर्च में यौन उत्पीड़न को हाई लेवल के ट्राइग्लिसराइड्स से भी जोड़ा गया, जो हार्ट की बीमारियां होने का एक प्रमुख कारक माना जाता है।

डीडब्ल्यू न्यूज में प्रकाशित ख़बर अनुसार जिन महिलाओं के साथ यौन हिंसा की घटना होती है उनके दिमाग में खून संचार में रूकावट होने की संभावना ज्यादा हो जाती है। इस वजह से उन्हें डिमेंशिया या ब्रेन स्ट्रोक होने का खतरा बढ़ जाता है। इस ख़बर के अनुसार यौन हिंसा का सामना करने वाली महिलाओं को हमले के दौरान लगी चोट के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है। इस कारण महिलाओं को पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर, चिंता या डिप्रेशन जैसी स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। 2018 में पिट्सबर्ग विश्वविद्यालय की प्रोफेसर रेबेका थर्स्टन ने कहा था, ”जिन महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न हुआ था, उनमें अवसाद या चिंता विकसित होने की अधिक संभावना थी। साथ ही, यौन हिंसा का सामना करने वाली महिलाओं में नींद की कमी की समस्या भी देखी गई।” 

महिला के खिलाफ हिंसा के प्रभाव

महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा का प्रभाव उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ता है यह बात दुनियाभर में होने वाले शोध में स्पष्ट हो चुकी है। दूसरा, अगर हिंसा की पहचान जल्दी कर ली जाए तो उसके प्रभाव से होने वाली स्वास्थ्य के लंबे नुकसान को भी रोका जा सकता है। महिलाओं के खिलाफ होनेवाली यौन हिंसा महिला के जीवन के सभी क्षेत्रों को प्रभावित करती है। हिंसा और दुर्व्यवहार न केवल महिलाओं को बल्कि उनके बच्चों, परिवार और समुदायों को भी प्रभावित करती है। कार्यस्थल पर होने वाली हिंसा महिलाओं के आर्थिक पक्ष को कम करने का काम करती है। महिलाओं की पहले से ही कम सामाजिक भागीदारी को यौन हिंसा की घटनाएं और कम करने का काम करती है। महिलाओं की शारीरिक स्वायत्ता, यौन प्रजनन स्वास्थ्य और बच्चे की देखभाल की स्थिति को कमजोर करती है।

यूएन वीमन के अनुसार दुनियाभर में 736 मिलयन महिलाएं यानी लगभग तीन में से एक शारीरिक और यौन हिंसा को अपने जीवन में कम से कम एक बार सामना करती है। अवसाद, चिंता, यौन संचारित संक्रमण और एचआईवी की दर उन महिलाओं की तुलना में अधिक होती है जिन्होंने हिंसा का अनुभव नहीं किया है। साथ बहुत सारी अन्य स्वास्थ्य समस्याएं हिंसा के खत्म होने के बाद तक भी बनी रहती हैं। महिलाओं के साथ होने वाली यौन हिंसा की घटनाएं उन्हें बीमारियों से घेरती है। लेकिन हिंसा के बारे में खुलकर बात न करने पर बीमारियों का बोझ उन पर और अधिक बढ़ता है। महिलाओं के खिलाफ़ होनेवाली हिंसा के बारे में स्पष्ट तरीके से बात करके उनको बचाया जा सकता है। हिंसा का स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर के पहलू को चिकित्सा प्रणाली में जोड़कर इस तरह के खतरे को कम किया जा सकता है। कुल मिलाकर यौन हिंसा के शारीरिक और मानसिक कई स्वास्थ्य परिणाम हो सकते हैं, जिन्हें सही समय पर पहचान कर टाला जा सकता है।

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तस्वीर: मारवा एम फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए

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