इंटरसेक्शनलजेंडर गार्मेंट फैक्ट्रियों में महिलाओं के शोषण के ख़िलाफ़ डिंडीगुल और लेसोथो एग्रीमेंट क्यों हैं खास

गार्मेंट फैक्ट्रियों में महिलाओं के शोषण के ख़िलाफ़ डिंडीगुल और लेसोथो एग्रीमेंट क्यों हैं खास

काम की जगहों पर महिलाओं के खिलाफ यौन उत्पीड़न और हिंसा एक घिनौना सच है। कपड़ा उद्योग इससे अछूता नहीं है। इस उद्योग में महिलाएं भारी संख्या में काम करती हैं। यौन शोषण की अनेक घटनाओं के बाद भी कुछ खबरें ही मेरे और आपके कानों तक पहुंच पाती हैं। अपना मुनाफ़ा बढ़ाने में लगे कपड़ा विक्रेता इन खबरों से बड़ी आसानी से अपना पल्ला झाड़ लेते हैं।

आपके मेरे वॉडरोब में रखी लीवाइज़ की जींस पहनने में कितनी कंफर्टेबल और फैशनेबल लगती है न! दुनियाभर के बड़े-बड़े ब्रांड और साल दर साल आते उनके स्प्रिंग और ऑटम कलेक्शन किसके पसंदीदा नहीं हैं। खैर! फैशन से ऊपर आज युवा ‘पर्पज़ ड्रिवन ब्रांड‘ में निवेश कर रहे हैं। एचएनएम, ज़ारा जैसे मल्टीनेशनल कपड़ा विक्रेता सस्टेनेबल कपड़े और पैकेजिंग का सहारा ले रहे हैं। जबकि कपड़ा उद्योग में श्रमिक अधिकार और लैंगिक शोषण को लेकर आज भी बहुत सारा काम करना बाकी है।

काम की जगहों पर महिलाओं के खिलाफ यौन उत्पीड़न और हिंसा एक घिनौना सच है। कपड़ा उद्योग इससे अछूता नहीं है। इस उद्योग में महिलाएं भारी संख्या में काम करती हैं। यौन शोषण की अनेक घटनाओं के बाद भी कुछ खबरें ही मेरे और आपके कानों तक पहुंच पाती हैं। अपना मुनाफ़ा बढ़ाने में लगे कपड़ा बनानेवाली ये कंपनियां इन खबरों से बड़ी आसानी से अपना पल्ला झाड़ लेती हैं। शिकायत करनेवाली महिलाओं की आवाज़ों को या तो दबा दिया जाता है या उन्हें नौकरी से निकाल दिया जाता है। लचर आंतरिक शिकायत समिति, सरकारी कानूनों का आभाव, ब्रांड्स एवं आपूर्तिकर्ताओं का मुद्दे के प्रति उदासीन रवैये के चलते इससे निपटने को लिए कुछ साल पहले तक विशेष प्रयास नहीं हुआ था।

डिंडीगुल और लेसोथो एग्रीमेंट इस दिशा में लिए गए दो प्रमुख कदम हैं। कार्यस्थल पर लिंग आधारित उत्पीड़न और हिंसा को खत्म करने के लिए साल 2019 का लेसोथो एग्रीमेंट और बीते हफ्ते हस्ताक्षरित डिंडीगुल एग्रीमेंट ने एक नज़ीर पेश की है। दोनों ही एग्रीमेंट्स ब्रांड्स, आपूर्तिकर्ताओं और श्रम संगठनों के सराहनीय प्रयास के बाद सामने आए हैं।

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दलित युवती जयश्री कथैरवेल की हत्या और डिंडीगुल एग्रीमेंट 

तमिलनाडु के डिंडीगुल जिले के कैथायनकोट्टई गांव (Kaithayankottai village) से आने वाली 21 वर्षीय दलित युवती जयश्री कथैरवेल (Jeyasre Kathrivel) नाटची अपैरल में बतौर क्वॉलिटी चेकर काम करती थीं। एक दिन काम पर गई जयश्री जब देर रात घर नहीं लौटी तो परिवार पुलिस स्टेशन गया। कुछ दिनों बाद 5 जनवरी 2021 को युवती का शव फैक्ट्री से 50 किमी दूर स्थित एक गांव से बुरी हालत में मिला। पुलिस रिपोर्ट के मुताबिक कंपनी के सुपरवाइजर वी थंगदुरई ने अपने एक रिश्तेदार के साथ मिलकर घटना को अंजाम दिया। आरोपी थंगदुरई ने लड़की की हत्या की बात कबूली है। फिलहाल मामला कोर्ट में लंबित है।

तस्वीर साभार: TTCU

द न्यूज़मिनट की रिपोर्ट के मुताबिक नाटची अपैरल फैक्ट्री, ईस्टमैन एक्सपोर्ट ग्लोबल क्लोदिंग प्राइवेट लिमिटेड के अंतर्गत आती है, जो एचएंडएम को कपड़ों की आपूर्ति करती है। लड़की के परिवार वालों का आरोप है कि सुपरवाइजर उनकी बेटी का यौन उत्पीड़न कर रहा था। परिवार ने लड़की की हत्या से पहले यौन शोषण का आरोप लगया है। बुरी हालात में मिले शव के पोस्टमॉर्टम से कुछ स्पष्ट नहीं हुआ। हालांकि द कारवां की रिपोर्ट के तथ्य पोस्टमॉर्टम में अनियमितताओं की ओर इशारा करते हैं। 

लिंग आधारित शोषण सबसे अधिक उन क्षेत्रों में होता है जहां लैंगिक असंतुलन सबसे अधिक है- जैसे कपड़ा उद्योग। इन घटनाओं के पीछे कोई एक वजह या स्थिति जिम्मेदार नहीं है। इसके पीछे पूरी मशीनरी काम कर रही है। इसका शिकार शोषित गरीब, सामाजिक रूप से पिछड़े और कम शिक्षित लोग होते हैं।

कई महिलाओं ने जांच में नाटची अपैरल में लिंग आधारित शोषण की गवाही दी है। टीटीसीयू-एएफडब्ल्यू की फैक्ट-फाइंडिंग रिपोर्ट में भी यही बात कही गई है। फैक्ट-फाइंडिंग टीम के सामने 7 महिलाओं ने सुपरवाइज़र के खिलाफ गवाही दी है। उनका आरोप है कि सुपवारज़र जयश्री का यौन उत्पीड़न कर रहा था और पहले भी वह अन्य महिलाओं के साथ ऐसा कर चुका है। जयश्री के साथ फैक्ट्री और बाहर लिंग आधारित और जातिगत हिंसा के खिलाफ तमिलनाडु टेक्सटाइल एंड कॉमन लेबर यूनियन (टीटीसीयू) कई महीनों से संघर्षरत है और न्याय की मांग कर रहा है। अब लंबे संघर्ष के बाद ईस्टमैन एक्सपोर्ट, तमिलनाडु टेक्सटाइल एंड कॉमन लेबर यूनियन (टीटीसीयू), द एशिया फ्लोर वेज अलायंस, ग्लोबल लेबर जस्टिस और एचएडंएम ने लिंग आधारित शोषण को खत्म करने के लिए डिंडीगुल एग्रीमेंट की घोषणा की है।

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क्यों है डिंडीगुल एग्रीमेंट ख़ास?

एग्रीमेंट की भाषा अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के कन्वेंशन 190 से ली गई है। यह कन्वेंशन कार्यस्थल से लैंगिक हिंसा और उत्पीड़न खत्म करने की बात करता है। बातचीत के बाद सामने आया एग्रीमेंट कानूनी रूप से बाध्य है। लेसोथो एग्रीमेंट के बाद कपड़ा उद्योग में यौन शोषण खत्म करने की दिशा में ये अपनी तरह का दूसरा महत्वपूर्ण एग्रीमेंट है। वहीं एशिया में यह अपनी तरह का पहला एग्रीमेंट है।

भारतीय कानून कंपनियों को आंतरिक शिकायत समिति के गठन का निर्देश देता है पर नाटची आंतरिक शिकायत समिति जयश्री और अन्य महिलाओं के साथ हो रहे अपराधों पर चुप रही। एग्रीमेंट में सुनिश्चित किया गया है कि महिलाएं अब यौन उत्पीड़न के मामले एक स्वतंत्र समिति के सामने रख सकेंगी। समिति के पास ताकत होगी कि वह अपराधी को नौकरी से निकाल सकें और पीड़ित परिवार के लिए मुआवज़े की मांग कर सकें। समझौते की शर्तों के तहत, सभी श्रमिकों, पर्यवेक्षकों और अधिकारियों को लिंग आधारित हिंसा प्रशिक्षण से गुजरना होगा। इसे ‘सेफ सर्कल’ प्रोग्राम नाम दिया गया है। टीटीसीयू महिला श्रमिकों को ‘शॉपफ्लोर मॉनिटर’ के रूप में भर्ती और प्रशिक्षित करेगा, जो यह सुनिश्चित करेगा कि महिलाओं के खिलाफ मौखिक उत्पीड़न और यौन हिंसा न हो।

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दलित महिला श्रम संगठन टीटीसीयू की महत्वपूर्ण भूमिका

टीटीसीयू की महासचिव जीवा एम ने कहा, “एग्रीमेंट महिलाओं को अधिकार और सहायता देता है कि वह लिंग आधारित हिंसा और उत्पीड़न को खत्म कर सकें। ये सामूहिक और प्रबंधन के स्तर पर निगरानी, रोकथाम और उपचार में मदद करेगा। हम इस एग्रीमेंट के सहारे कपड़ा उद्योग में व्यापत लैंगिक और जातिगत हिंसा खत्म करने की दिशा में काम करेंगे।” टीटीसीयू की अगुवाई 11000 सशक्त, स्वतंत्र दलित महिला श्रमिक करती हैं। ये कंपड़ा फैक्ट्रियों से लिंग और जाति आधारित हिंसा खत्म करने और कामगारों को उचित वेतन दिलाने की दिशा में काम करते हैं। 

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क्या है 2019 का लेसोथो एग्रीमेंट

लेसोथो एग्रीमेंट कपड़ा उद्योग में व्यापत यौन उत्पीड़न को खत्म करने का ऐसा ही सशक्त प्रयास है। दरअसल, साल साल 2019 में वर्कर राइट कंसोर्टियम (डब्ल्यूआरसी) की रिपोर्ट से यह सिलसिला शुरू हुआ जो लेसोथो अग्रीमेंट तक पहुंचा। लेसोथो एक स्थलरुद्ध देश है। इसकी पूरी सीमा दक्षिण अफ्रीका से लगती है। इसकी राजधानी है- मासेरू। मासेरू में कई कपड़े बनाने वाली वैश्विक कंपनियों की फैक्ट्रियां हैं। ताइवान की निएन सिन कंपनी (Nien Hsing) इन प्रमुख कंपनियों में एक है। ये लीवाइस, रैंगलर और अमेरिकी विक्रेता ‘द चिल्ड्रन प्लेस’ जैसे कई फैशन हाउस के लिए कपड़े बनाती है।  

साल 2019 में डब्ल्यूआरसी नामक एनजीओ की रिपोर्ट में मासेरू स्थित कपड़े बनाने वाली फैक्ट्रियों में यौन शोषण, रेप और उत्पीड़न की सैकड़ों घटनाओं का खुलासा हुआ। वर्कर राइट्स कंसोर्टियम एक स्वतंत्र श्रमिक अधिकार निगरानी संगठन है। ये दुनियाभर में कारखानों में श्रमिकों के लिए काम करने की स्थिति की जांच करते हैं। इनका उद्देश्य काम के अमानवीय हालात का दस्तावेजीकरण और मुकाबला करना है। 

यौन उत्पीड़न की घटनाएं केवल एक ब्रांड या आपूर्तिकर्ता से नहीं जुड़ी हैं। सरकार श्रम अधिकारों को मजबूत करें, कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ कड़े कानून बनाए। लेसोथो और डिंडीगुल एग्रीमेंट निश्चित आपूर्तिकर्ता, ब्रांड तक सीमित हैं, ऐसे में इनका दायरा बढ़ाया जाए और व्यापक स्तर पर लागू हो।

रिपोर्ट में 120 महिलाओं का ज़िक्र है। इन महिलाओं ने आरोप लगाया कि अपनी नौकरी बचाने के लिए उन्हें पुरुष सुपरवाइज़र के साथ सेक्स करने के लिए मजबूर होना पड़ा। फैक्ट्री परिसर तक में रेप के आरोप लगे हैं। आरोप है कि कुछ महिलाओं पर सुपरवाइज़र ने असुरक्षित सेक्स करने का दबाव बनाया और जब तक वे महिलाएं ऐसा करने के लिए राज़ी नहीं हुईं तब तक उनकी सैलरी नहीं दी गई। कुछ महिलाओं ने एचआईवी होने की बात कही है। आरोप है कि कंपनी में शिकायत करनेवालों को निकाल दिया गया। ये बड़े-बड़े ब्रांड जिन कंपनियों से कपड़े बनवाते हैं उनका समय-समय पर सोशल ऑडिट और कारखाना निरीक्षण करते हैं। फैशन हाउस इस रिपोर्ट के प्रकाशित होने से पहले इन फैक्ट्रियों के उत्पीड़न भरे माहौल को क्यों नहीं पकड़ सके?

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डब्ल्यूआरसी की रिपोर्ट ने पहली बार बड़े ब्रांड को लेसोथो में हो रहे यौन उत्पीड़न से सीधे जोड़ा। इससे पहले भी अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के लिए कपड़ा बनाने वाली फैक्ट्रियों में श्रमिकों ने यौन उत्पीड़न और अमानवीय परिस्थितियों में काम की शिकायत की है। ये शिकायत भारत, ब्राजील, मैक्सिको, श्रीलंका, तुर्की, चीन, बांग्लादेश और वियतनाम से सामने आई हैं। द गार्डियन ने अपने एक लेख में लिखा है, “लेसोथो में कपड़ा श्रमिकों में 80 फीसदी तादाद महिलाओं की है। इस देश में महिला अपने घरों में प्रमुख कमाऊ सदस्य हैं। मासेरू में कपड़ा फैक्ट्रियां खुलने के बाद से यहां महिला कामगारों की संख्या दोगुनी हो गई। लेकिन ये फैक्टियां महिलाओं को सम्मान और आत्मनिर्भरता पूर्ण जीवन देने में विफल रहीं। अधिकतर महिलाओं ने बताया कि वो महीने में एक लीवाइस जींस के दाम (करीबन 6000 हजार रुपये) जितनी कमाई भी नहीं कर पाती हैं। फिर भी लोग इतने कम पैसे और ऐसे हालात में काम करने को मजबूर हैं।”

बिजनेस एंड ह्यूमन राइट्स रिसोर्स सेंटर में वरिष्ठ शोधकर्ता बॉबी स्टा मारिया ने द गार्डियन को बताया, “दुनिया में कपड़ा श्रमिकों को अधिकारहीन किया जाता है क्योंकि ये अधिकतर गरीब महिलाएं हैं। कम कौशल वाले काम इन्हें दिए जाते हैं। इन्हें सुपरवाइज़ करने के लिए ज्यादातर पुरुष नियुक्त होते हैं। ब्रांड्स को इस तरह के मॉडल से फायदा होता है, जहां उन्हें उत्पादन में कम लागत पर अधिक मुनाफा हो। इन ब्रांड्स को पता है कि महिलाएं अपने परिवार को सहारा देने के लिए कम पैसे में भी काम करना स्वीकार करेंगी।”

फैशन उद्योग ग्राहकों को कुछ नया देने और तेजी से बदलाव के लिए फास्ट-मूविंग प्रोडक्शन मॉडल पर काम करता है। वे कम पैसे में अधिक उत्पादन करना चाहते हैं। इसका भार आपूर्तिकर्ता पर आता है। इनमें से कुछ आपूर्तिकर्ता दुनिया के सबसे गरीब देशों में हैं। यहां बेरोजगारी दर अधिक है और श्रमिक एवं मानव अधिकारों पर जोर कम है। ऐसे दौर में जब वैश्विक अर्थव्यवस्था कोरोना के चंगुल से निकलने की कोशिश कर रही है तब इन कामगारों पर नकारात्मक प्रभाव केवल बढ़ेगा ही।

डब्ल्यूआरसी ने जब महिलाओं के आरोपों को निएन सिन के सामने रखा तो वे इससे पूरी तरह मुकर गए। कंपनी ने कहा कि पिछले दो साल में रेप या उत्पीड़न का कोई मामला सामने नहीं आया है। हरकत में आई लीवाइस ने स्थानीय श्रम संगठनों, महिला अधिकार संगठनों एवं समूहों के साथ मिलकर फैक्ट्रियों में महिलाओं की काम की स्थिति सुधारने पर काम किया। इस रिपोर्ट और बातचीत के दौर से निकला है- लेसोथो एग्रीमेंट। कार्यकर्ताओं ने इस प्रयास की सराहना की है। एग्रीमेंट लीवाइस, रैंगलर, द चिल्ड्रन प्लेस और निएन सिन के बीच हुआ है।

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लीवाइस ने निएन सिन कंपनी, श्रमिक और महिला अधिकार संगठनों से समझौता किया। समझौते में श्रमिकों को सुरश्रा प्रदान करने वाले कदम उठाने और “डेलीज़” की प्रथा समाप्त करने की बात कही गई। “डेलीज़” को दिहाड़ी मौजूदर के तौर पर समझा जा सकता है। साथ ही समझौते में कहा गया कि उत्पीड़न के मामलों में स्वतंत्र समिति द्वारा जांच की जाएगी। निएन सिन ने स्वीकारा कि वह यौन अपराधों को लेकर जीरो टॉलेरेंस पॉलिसी अपनाएगा, श्रम संगठनों को मान्यता देगा, ज्यादा से ज्यादा महिला सुपरवाइजर्स को नौकरी देगा, और श्रमिकों को अधिकारिक कॉन्ट्रैक्ट पर रखेगा। पूर्णकालिक स्वतंत्र समिति का गठन करेगा जो यौन उत्पीड़न की शिकायक की जांच और निपटान करेगी। निएन सिन ऐसा करने में विफल रहता है तो उन पर जर्माने के तौर पर ऑर्डर कम होंगे या कॉनट्रैक्ट तक से हाथ धौना पड़ सकता है। 

लिंग आधारित शोषण सबसे अधिक उन क्षेत्रों में होता है जहां लिंग असंतुलन सबसे अधिक है- जैसे कपड़ा उद्योग। इन घटनाओं के पीछे कोई एक वजह या स्थिति जिम्मेदार नहीं है। इसके पीछे पूरी मशीनरी काम कर रही है। इसका शिकार शोषित गरीब, सामाजिक रूप से पिछड़े और कम शिक्षित लोग होते हैं। जरूरी है कि सरकार और ब्रांड, आपूर्तिकर्ता की जिम्मेदारी तय करें। ऐसे में ब्रांड और श्रमिकों के बीच होने वाले लागू करने योग्य करार अहम हो जाते हैं। इनके तहत ब्रांड्स कानूनी रूप से बाध्य होते हैं कि वो श्रमिक अधिकारों को सुरक्षित करने की दिशा में कड़े कदम उठाएं। इस दिशा में महिलाओं को शिक्षित करने के लिए लेसोथो महिला अधिकार संगठन ट्रेनिंग प्रोग्राम चलाएगा। आईडीयूएल, यूएनआईटीई, एनएसीटीडब्ल्यूयू और महिला अधिकारों की वकालत करने वाले एफआईडीए एवं डब्ल्यूएलएसए इस प्रोग्राम के कार्यान्वयन प्रमुख भूमिका निभाएंगे। ये एग्रीमेंट कार्यकर्ताओं और संगठनों पर होने वाली किसी प्रतिक्रिया से उन्हें बचाता है।

आगे की राह

यौन उत्पीड़न की घटनाएं केवल एक ब्रांड या आपूर्तिकर्ता से नहीं जुड़ी हैं। सरकार श्रम अधिकारों को मजबूत करें, कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ कड़े कानून बनाए। लेसोथो और डिंडीगुल एग्रीमेंट निश्चित आपूर्तिकर्ता, ब्रांड तक सीमित हैं, ऐसे में इनका दायरा बढ़ाया जाए और व्यापक स्तर पर लागू हो। बतौर उपभोक्ता हमारी जिम्मेदारी है कि हम सरकार, ब्रांड्स और आपूर्तिकर्ताओं पर इस तरह के करार करने का दबाव बनाएं। दोनों ही एग्रीमेंट अभी अपने लागू होने के शुरुआती दौर में हैं। ऐसे में देखना होगा कि ये एग्रीमेंट आने वाले समय में काम की जगहों पर लिंग एवं जाति आधारित उत्पीड़न खत्म करने में कितने कारगर सिद्ध होंगे।

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तस्वीर साभार: The Independent

स्रोत:

The Newsminute

The Guardian

Workers Rights

Justice for Jeyasre

Caravan

(यह लेख आरती प्रजापति ने लिखा है जो पेशे से एक मीडियाकर्मी हैं। वह गांव-समाज से लेकर राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर अपनी राय रखती हैं। आरती को सामाजिक सिनेमा देखना पसंद है और वह स्मिता पाटिल की बहुत बड़ी फैन हैं)

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