पानी हमारे जीवन का बहुत अहम हिस्सा है। हमारी रोज़मर्रा की जिंदगी के सारे काम पानी पर ही निर्भर होते हैं। सुबह की शुरुआत से लेकर रात तक के हर काम के लिए पानी की ज़रूरत पड़ती है। इसलिए तो जल ही जीवन कहा जाता है। लेकिन हमारे देश में ख़ासकर ग्रामीण इलाकों में सदियों से एक नीति बनी हुई है कि औरतें ही पूरे परिवार के लिए पानी का इंतज़ाम करती हैं। ये सिर्फ एक गाँव में नही देखा गया है बल्कि ये सारे गाँव में देखने को मिलता है कि केवल औरतें ही कहीं दूर से पानी लाती हैं। ऐसे ही एक गाँव में हम गए जहां पर सिर्फ महिलाएं ही पानी लाने का काम करती हैं।
हिमाचल प्रदेश के पालमपुर के पास ‘नैन’ नाम का एक गाँव है। इस गाँव की आबादी की बड़ी संख्या कम पढ़ी-लिखी है। कुछ मर्द ही थोड़े बहुत पढ़े-लिखे हुए हैं। गाँव के लोग बहुत ज्यादा मेहनती हैं और मुख्य रूप से खेती से जुड़े काम करते हैं। यह पहाड़ी इलाका है तो खेती के काम में बहुत ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है। अधिकतर लोग खुद के खाने के लिए खेती करते हैं, जैसे सब्जी उगाना, कम मात्रा में चावल या गेहूं की फसल भी उगाते हैं। सबसे ज़रूरी बात यह है कि इस गाँव की अधिकतर महिलाएं खेतों में भी काम करती हैं। वे अपनी पीठ पर लादकर घास लाती हैं। साथ में अपने बच्चे को भी दूसरी तरफ थामे रखती हैं। इस गाँव की एक बहुत बड़ी समस्या है पानी। यहां पानी की सुगम सुविधा हर घर तक नहीं है। हर दिन पानी लाने के लिए कुछ दूरी तय करनी पड़ती है। पानी लाने का काम महिलाएं ही करती हैं। यह गाँव की किसी एक महिला की कहानी नहीं है बल्कि वहां की हर महिला की पानी के इंतज़ाम से जुड़ी दिनचर्या एक सी है।
और पढ़ें: पानी के संकट को दूर करने के लिए महिलाओं को केंद्र में रखकर ही समाधान खोजने होंगे
इस गाँव में थोड़ा बदलाव यह हुआ है कि केवल एक नल से पानी लाने की निर्भरता खत्म हो गई है। अब सभी घरों से कुछ दूरी पर नल लगाए गए हैं। लेकिन अहम बात निकलकर यह आई कि आज भी नल नजदीक होने के बावजूद कोई भी पुरुष पानी लेने नहीं जाता है।
इस गाँव में जाकर वहां की महिलाओं से बात करने पर पता चला कि पूरे गाँव में सरकारी नल या टंकी एक जगह पर होती थी। ये सरकारी नल और हैंडपंप कही ऐसी जगह पर बने थे जिससे गांव के सारे लोग पानी भरकर अपने घर तक ले जाते थे। कभी-कभी तो पानी भरने के दौरान लोगों से बहस या फिर लड़ाई भी हो जाती थी। इससे सभी महिलाओं को बहुत देर तक रुकना पड़ता था। महिलाएं नल में पानी आने का घंटों इंतजार करती थीं। कभी-कभी घर में पानी ले जाने में थोड़ी देर हो जाने की वजह से पति-पत्नी में झगड़े भी हो जाते थे। महिलाओं से बात करके हमें यह भी पता चला की लंबी दूर से पानी लाने में बहुत परेशानी होती थी। दूरी और साथ में पानी के वजन की वजह से महिलाओं के कभी पैर भी सूज जाते थे तो कभी हाथों में दर्द और थकावट का भी सामना करना पड़ता था।
वर्तमान में पानी लाने के लिए कितना संघर्ष करती हैं नैन गाँव की औरतें
अभी भी नैन गाँव की औरतों को पानी लाने के लिए एक लंबी दूरी रोज़ाना तय करनी पड़ती है। हालांकि, पहले के मुकाबले पानी लाने की दूरी कम हुई है लेकिन खत्म नहीं हुई है। इस गाँव में थोड़ा बदलाव यह हुआ है कि केवल एक नल से पानी लाने की निर्भरता खत्म हो गई है। अब सभी घरों से कुछ दूरी पर नल लगाए गए हैं। लेकिन अहम बात निकलकर यह आई कि आज भी नल नजदीक होने के बावजूद कोई भी पुरुष पानी लेने नहीं जाता है। यह बात हमेशा सुनने को मिलती है कि सब कुछ बदल रहा है लेकिन हमें याद रखना होगा कि महिलाओं के लिए पितृसत्ता द्वारा बनाई गई रीति-नीति में कोई बदलाव नहीं होता है।
इस गाँव की अधिकतर महिलाएं अपने घरों में पानी को कुछ बड़े बर्तनों या फिर बाल्टियों में भरकर रखती हैं। गाँव में सुबह 5 बजे से 9 बजे तक पानी आता है। उसके बाद शाम को 5 बजे दोबारा पानी आ जाता है। कभी-कभी समय पर पानी भी नहीं आता है जिससे महिलाओं के लिए पानी के प्रबंध करने के काम और अन्य घरेलू काम को करने में कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है। आज भी महिलाएं उन्हीं दिक्कतों का सामना कर रही हैं। घर के बाहर नल से पानी लाने में उनको ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है। उनके हाथ-पैर में दर्द होता है। शारीरिक थकावट का ज्यादा सामना करना पड़ता है। यही नहीं पानी लाने के काम में महिलओं को अपने जीवन का एक लंबा समय इसी को देना पड़ता है।
और पढ़ें: साफ पानी और स्वच्छता की कमी महिलाओं के विकास में कैसे है एक रुकावट
पानी का भार कैसे महिलाओं को थका रहा है
इन महिलाओं की हालत देखकर एक सवाल मेरे मन में घूम रहा था कि जब औरतें इतना सब कुछ झेल रही हैं तो वे अपने घर के मर्दों से सवाल क्यों नही करती है की आखिर मैं ही क्यों पानी लेकर आऊं, वे क्यों नही ला सकते हैं पानी। पानी लाने में सबसे अधिक इन औरतों को मुश्किल होती है पीरियड्स के दौरान। गाँव की ज्यादातर महिलाएं आज भी पीरियड्स के दौरान कपड़े का ही इस्तेमाल करती हैं। जिन औरतों को पैड इस्तेमाल करने की जानकारी होती है वही महिलाएं ही पैड का इस्तेमाल करती हैं। कपड़ा इस्तेमाल करनेवाली औरतों ने बताया कि पानी के भार से कपड़ा इधर-उधर खिसक जाता है जिससे चलने में भी मुश्किल होती है।
चूलमा देवी नैन गाँव की रहनेवाली हैं। यह पूछने पर कि उनके अलावा घर में और कौन पानी लाने के काम में आपकी मदद करता है तो इसका जवाब हमें कुछ यूं मिला, “और कौन लाएगा पानी।”
लेकिन सोचने वाली बात यह है कि पीरियड्स के दौरान भी इन महिलाओं को पानी का भार ढोना पड़ता है। बातचीत के दौरान हमें यह भी पता चला कि जब औरतें कभी पानी लाना भूल जाती हैं या घर पर पानी समय से पहले खत्म हो जाता है तो उन्हें हिंसा का सामना भी करना पड़ता है। गाँव की महिलाओं से बात करके ये सब बातें सामने आई। इन परेशानियों को लेकर हमने बात की नैन गाँव की कुछ महिलाओं से।
और पढ़ें: बुधा जैसी औरतों के घर तक अब तक क्यों नहीं पहुंच पा रही ‘हर घर नल जल योजना’
चूलमा देवी नैन गाँव की रहनेवाली हैं। चूलमा देवी की उम्र 40 साल है। जब मैंने इनसे पूछा कि वह पानी कहां से लाती हैं तो चूलमा देवी ने बताया कि वह अपने घर से लगभग 200 मीटर की दूरी पर लगे नल पर पानी के लिए निर्भर है। यह पूछने पर कि उनके अलावा घर में और कौन पानी लाने के काम में आपकी मदद करता है तो इसका जवाब हमें कुछ यूं मिला, “और कौन लाएगा पानी।” हमने इनसे पूछा कि आपके पति पानी क्यों नही लाते है। इस पर चूलमा देवी कहती है कि पति जॉब पर चले जाते हैं। घर का काम करने की जिम्मेदारी हमारी है और हमें ही इतनी दूर से अकेले पानी लाना पड़ता है।
इनके परिवार में कुल चार लोग हैं। चूलमा देवी से बात करके यह भी पता चला कि वह जो पानी लाती हैं वह ज्यादा साफ पानी नहीं रहता है। चूलमा देवी ने रोज के 200 मीटर की दूरी से पानी लाने की अपनी परेशानी को खत्म करने के लिए अपने घर से लेकर पानी की टंकी तक के लिए एक पाइप लगा दिया ताकि इनकी तकलीफ़ थोड़ी कम हो सके। खुद के 5000 हजार रुपये खर्च करके उन्होंने पाइप लिया है। पाइप लगवाने के बाद इनके लिए पहले से चीजें थोड़ी आरामदायक हो गई है। पानी की व्यवस्था को लेकर बातें करने के दौरान वह हमसे एक चीज बार-बार कहती रही, “मेरे घर के पास अच्छे वाला पाइप लगावा दीजिए।” चूलमा देवी की कहानी यह भी कहती है कि सरकार द्वारा दी गई सुविधाएं कितने लोगों तक पहुंच रही हैं और जहां तक पहुंच रही हैं किस तरीके पहुंच रही हैं।
कंचन देवी के दो बच्चे हैं। घर के काम और परिवारवालों के लिए इनको घर से थोड़ी दूरी पर लगे एक नल से पानी लाना पड़ता है। रोज़ के कामों को निपटाने के लिए पानी लाना इनके सबसे ज़रूरी काम में से एक है। कभी-कभी पानी समय पर नहीं आने की वजह से इन्हें घंटों इंतजार करना पड़ता है जिस वजह से इनका बहुत समय बर्बाद हो जाता है। पानी समय पर न आने की वजह से और काम करने में बहुत देरी भी हो जाती है।
वहीं सलोचना देवी की कहानी भी गाँव की अन्य महिलाओं जैसी ही है। ये पूरे दिन में लंबा समय पानी को नल से घर तक ढोने का काम करती हैं। वह कहती हैं कि सुबह से शाम इस नल तक कितने चक्कर लगते हैं उन्हें पता नहीं होता है। घर के काम और अन्य लोगों की ज़रूरतों के लिए पानी ढोने के बीच उनके पास खुद के लिए समय नहीं बचता है।
और पढ़ें: क्यों हमें अब एक ऐसे कानून की ज़रूरत है जो घर के काम में बराबरी की बात करे?
कैसे बेहतर की जा सकती है महिलाओं की स्थिति
सबसे पहला कदम तो यह है कि गाँव में ज्यादा संख्या में नल लगने चाहिए। ज्यादा नल लगने से महिलाओं की पानी के लिए तय की गई दूरी को खत्म किया जा सकता है या कम से कम उस दूरी को छोटा किया जा सकता है। दूरी की वजह से वजन लादकर उन्हें जो समस्या होती है उसको कम किया जा सकता है। दूसरा हमें इस नैरेटिव को बदलने की ज़रूरत है कि घर का काम महिलाओं का होता। महिलाएं जिस घर को संवारने का काम करती है उसमें पूरा परिवार रहता है तो क्यों ना हर सदस्य इसमें योगदान दें। महिलाओं के पास उनके काम के लिए पानी की सुगम पहुंच न होने की वजह से उनसे वह वक्त भी छीन लिया जाता है जिसमें वह दो पल आराम कर सकती हैं क्योंकि हर काम के तार पानी से जुड़े होने की वजह से वह उसकी चिंता में रहती है।
और पढ़ें: कभी सोचा है कि औरतों को घर के काम से एक भी छुट्टी क्यों नहीं मिलती है?
सभी तस्वीरें रीता द्वारा उपलब्ध करवाई गई हैं।