स्वास्थ्यशारीरिक स्वास्थ्य जानें, भारत में अबॉर्शन के कानून से जुड़ी कुछ अहम जानकारियां

जानें, भारत में अबॉर्शन के कानून से जुड़ी कुछ अहम जानकारियां

क्या आप जानते हैं अबॉर्शन पर भारत का कानून एक बेहद ही प्रगतिशील कानून माना जाता है। इस कानून के तहत महिलाओं को अबॉर्शन से जुड़े कौन-कौन से अधिकार दिए गए हैं, उसकी कुछ ज़रूरी बातें इस लेख के ज़रिये हम जानने की कोशिश करेंगे।

Roe VS Wade एक फ़ैसला जो अमेरिका की सभी औरतों को अबॉर्शन का अधिकार देता है। अब खबर है कि 1973 के इस फ़ैसले को अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट पलट सकता है। इसे लेकर अमेरिका के लोग गुस्से में है। सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला जो भी हो लेकिन इकलौता अमेरिका वह देश नहीं है जहां साल 2022 में भी अबॉर्शन के अधिकार के लिए लोग सड़कों पर हैं. पोलैंड में भी लोग इस अधिकार के लिए लड़ रहे हैं तो वहीं अर्जेंटिना में साल 2020 में जाकर औरतों को अबॉर्शन का अधिकार मिला।

आज भी माल्टा, एल-सैलवाडोर, सेनेगल, मिस्त्र, फिलिपींस और लाओ, जैसे 24 देश दुनिया में मौजूद हैं जहां अबॉर्शन पूरी तरीके से बैन है। क्या आप जानते हैं अबॉर्शन पर भारत का कानून एक बेहद ही प्रगतिशील कानून माना जाता है। इस कानून के तहत महिलाओं को अबॉर्शन से जुड़े कौन-कौन से अधिकार दिए गए हैं, उसकी कुछ ज़रूरी बातें इस लेख के ज़रिये हम जानने की कोशिश करेंगे।

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भारत में अबॉर्शन से संबंधित कानून कब बना?

क्या आप जानते हैं इंडियन पीनल कोड के सेक्शन 312 के तहत भारत में अबॉर्शन पूरी तरह गैर-क़ानूनी था। एक अध्ययन के अनुसार भारत में गर्भवती होनेवाली महिलाएं अपना अबॉर्शन कुछ अनुभवहीन हाथों जैसे झोलाछाप डॉक्टरों, अयोग्य नर्सों से करवाती थी। यह अबॉर्शन पांच रुपये से लेकर 300 में कराया जाता था। वे ऐसा इसलिए करती थी क्योंकि वे अबॉर्शन की कानूनी व्यवस्था से डरती थीं। वह वक़्त था 1964 का जब भारत सरकार ने शांतिलाल शाह कमिटी का गठन किया। इस कमिटी का काम यह देखना था कि अबॉर्शन को लेकर भारत में किस तरह के कानून की ज़रूरत थी। इस एक्ट को बनाने के दौरान कमिटी को यह भी डर था कि धार्मिक नेता इस कानून का विरोध ज़रूर करेंगे।

कमिटी ने भारत की सामाजिक-सांस्कृतिक, कानूनी और मेडिकल स्थिति को देखते हुए तब की इंदिरा गांधी सरकार को रिकमेंड किया कि भारत को ज़रूरत है अबॉर्शन पर एक डिटेल्ड अबॉर्शन कानून की। इस कमिटी की रिकमेंडेशन पर अगस्त 1971 में भारत की संसद में पास किया गया था- Medical Termination of Pregnancy (MTP) Act, 1971। वक़्त के साथ इस एक्ट में कई ज़रूरी बदलाव किए गए। सबसे ज़रूरी संशोधन साल 2021 में किया गया। अब इस ऐक्ट को अब हम The Medical Termination of Pregnancy (Amendment) Act, 2021 के नाम से जानते हैं। चलिए अब समझते हैं कि भारत में अबॉर्शन का कानून महिलाओं को कौन-कौन से अधिकार देता है।

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भारत में अबॉर्शन कौन करवा सकता है?

भारत में एक प्रेग्नेंट औरत 20 हफ्तों तक की प्रेग्नेंसी को अबॉर्ट या टर्मिनेट करवा सकती है। 1971 के एक्ट के तहत एक 12 से 20 हफ्ते की प्रेग्नेंसी को अबॉर्ट करवाने के लिए 2 डॉक्टरों के अप्रूवल की ज़रूरत होती थी। नये संशोधन के बाद अब 12 से 20 हफ्ते की प्रेग्नेंसी को अबॉर्ट करवाने के लिए सिर्फ 1 डॉक्टर की इजाज़त की ज़रूरत है।

स्पेशल केसेज़ में एक महिला 20-24 हफ्तों तक की प्रेग्नेंसी को अबॉर्ट करवा सकती है अगर महिला एक रेप सर्वाइवर हो, नाबालिग हो या फिर शारीरिक रूप से विकलांग। 2021 में हुए संशोधन से पहले ये पीरियड सिर्फ 20 हफ्ते तक का था।

24 हफ्ते से अधिक की प्रेग्नेंसी को अबॉर्ट करने के लिए एक मेडिकल बोर्ड की इजाज़त लेनी होगी। इसमें ऐसी प्रेग्नेंसी शामिल हैं जिसमें भ्रूण में विकार की संभावना हो। इस बोर्ड में एक स्त्री रोग विशेषज्ञ, एक रेडियोलॉजिस्ट या सोनोलॉजिस्ट या एक पीडियाट्रिशन और राज्य या यूनियन टेरीटरीज़ द्वारा निर्धारित सदस्य शामिल होंगे।

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क्या भारत में अबॉर्शन के लिए क्या एक औरत को किसी की इजाज़त की ज़रूरत है?

अगर एक औरत की उम्र 18 साल और उससे अधिक उम्र की हर औरत कानूनी रूप से अबॉर्शन करवा सकती है। इसके लिए उसका शादीशुदा होना कोई मायने नहीं रखता। न ही अबॉर्शन के लिए उसे किसी की इजाज़त मसलन पार्टनर, पति, या गार्डियन की ज़रूरत होती है। भारत में अबॉर्शन के लिए एक बालिग महिला की सहमति काफी होती है।

क्या एक्ट के तहत आपकी पहचान गोपनीय रखी जाती है?

किसी भी मेडिकल प्रैक्टिशनर को ये इजाज़त नहीं होती कि वह अबॉर्शन करवाने वाली महिला का नाम या उससे जुड़ी कोई भी जानकारी सामने लाए। अगर कोई ऐसा करता है तो उसे एक साल की कैद की सज़ा या जुर्माना या दोनों ही हो सकते हैं।

भारत में अबॉर्शन कानूनी रूप से कौन कर सकता है?

अबॉर्शन की प्रक्रिया कानूनी रूप से उन्हीं मेडिकल संस्थानों, अस्पतालों या क्लिनिक में हो सकता है जिसे सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त हो। साथ ही अबॉर्शन की प्रक्रिया सिर्फ एक रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिशनर ही परफॉर्म कर सकता है।

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भारत में अबॉर्शन की प्रक्रिया कैसे होती है?

हमारे देश में कानूनी तौर पर अबॉर्शन की प्रक्रिया 2 तरीके से परफॉर्म की जाती है:

सर्जिकल अबॉर्शन जहां सर्जरी के ज़रिये प्रेग्नेंसी को अबॉर्ट किया जाता है।

मेडिकल अबॉर्शन जहां एक रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिशनर की देखरेख में प्रेग्नेंट महिला को अबॉर्शन की गोलियां दी जाती हैं प्रेग्नेंसी अबॉर्ट करने के लिए।

प्रगतिशील होने के बावजूद इस कानून की कमियां क्या हैं?

ये कुछ बेहद ज़रूरी प्रावधान हैं जिसके तहत हमारे देश में औरतों को कानूनी रूप से अबॉर्शन का अधिकार प्राप्त है। लेकिन क्या ये कानून हमारे देश में अबॉर्शन को सबके लिए सुरक्षित और पहुंच के भीतर बनाते हैं? जवाब है नहीं! अब बात इस ऐक्ट की कमियों और हमारे देश के हेल्थ स्ट्रक्चर की! तभी तो भारत में आज भी अनसेफ अबॉर्शन मातृ मृत्यु दर की सबसे बड़ी वजहों में से एक है। आज भी भारत में हर दिन अनसेफ अबॉर्शन के कारण 8 औरतों की मौत क्यों होती है? साल 2007-2011 के दौरान हुए 67% अबॉर्शन भारत में असुरक्षित तरीके से हुए।

यह एक्ट आज भी अबॉर्शन को महिलाओं के अधिकार के रूप में नहीं देखता। इस ऐक्ट के मौजूद होने के बावजूद क्या कोई महिला सीधे तौर पर एक क्लिनिक या डॉक्टर के पास जाकर अबॉर्शन के लिए पूछ सकती है? इसमें कई अलग-अलग लेयर्स हैं। सबसे पहला कि इस एक्ट की भाषा सिर्फ सिस-हेट महिलाओं तक ही इस कानून को सीमित करती है। इस एक्ट में हर जगह एक ही शब्द का इस्तेमाल किया गया है- गर्भवती महिला इस तरीके से ट्रांस-नॉन बाइनरी समुदाय के लोगों को इस एक्ट के प्रावधानों से काट दिया गया है।

इस एक्ट के तहत अबॉर्शन के लिए डॉक्टरों की इजाज़त सबसे अहम मानी गई है। हमारे पितृसत्तात्मक समाज में अबॉर्शन को जिस तरीके से एक कलंक माना गया है, अबॉर्शन करवाने वाले को एक ‘अपराधी’ की तरह देखा जाता है।

तीसरा- इस ऐक्ट में 24 हफ्तों के बाद के अबॉर्शन के लिए एक मेडिकल बोर्ड की इजाज़त को ज़रूरी बना दिया गया है। इस बोर्ड तक महिला का पहुंचना, बोर्ड के बनने की प्रक्रिया, फिर उसकी कार्यवाही और फिर फैसला। यह अपने आप में एक जटिल और थका देनेवाली प्रक्रिया है जहां महिलाओं के उनके शरीर पर अपने ही अधिकार से दूर रखा गया है। इस बोर्ड में जितने मेडिकल प्रोफेशनल्स की ज़रूरत है क्या उसके लिए हमारे देश का ढांचा तैयार है? 2016 का एक डेटा बताता है कि भारत के 62% सरकारी अस्पतालों में स्त्री रोग विशेषज्ञ है ही नहीं। और हम यह बेहतर जानते हैं कि भारत में कितने फीसद लोग प्राइवेट क्लिनिकों का खर्चा उठा सकते हैं!

शब्दों और भावनाओं को एक ज़रिया बनाकर अबॉर्शन का चयन करनेवाले लोगों को अपराधबोध महसूस करवाया जाता है। अबॉर्शन से जुड़ी सोच, इसका कानून एक अहम भूमिका निभाते हैं यह तय करने में कि लोगों तक सुरक्षित अबॉर्शन की एक्सेस होगी या नहीं। अबॉर्शन पर बनने वाले कानून और नीतियां भी मेल गेज़ से ही बनाई जाती हैं। अबॉर्शन को एक कलंक और अपराध की तरह देखे जाने के कारण, स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी, आर्थिक और सामाजिक बाधाएं मुख्य वजहें हैं हमारे देश में अनसेफ़ अबॉर्शन की।

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तस्वीर साभार: US News

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