समाजख़बर क्यों भारतीय बैंक गर्भवती महिलाओं को नौकरी के अवसर से वंचित करनेवाले नियम बना रहे हैं

क्यों भारतीय बैंक गर्भवती महिलाओं को नौकरी के अवसर से वंचित करनेवाले नियम बना रहे हैं

इंडियन बैंक ने तीन महीने की गर्भवती महिलाओं को नौकरी के लिए अस्थायी रूप से अयोग्य कहा है। बैंक द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार,“एक महिला उम्मीदवार जांच के बाद 12 सप्ताह या उससे अधिक की गर्भवती पाई जाती है, उसको तब तक अस्थायी रूप से अयोग्य घोषित किया जाना चाहिए। महिला उम्मीदवार को प्रसव की तारीख़ के छह हफ्ते बाद रजिस्टर्ड डॉक्टर से फिटनेस सर्टिफिकेट देना होगा

कोई समाज कितना बेहतर, समृद्ध और तरक्कीपंसद है इस बात का पता वहां रहनेवाली महिलाओं और बच्चों की स्थिति को देखकर लिया जा सकता है। पितृसत्तात्मक स्ट्रक्चर में महिलाओं और बच्चों को सबसे कमज़ोर माना जाता है। इस वजह से उनके अधिकारों और नियम-कायदों को बनाने का जिम्मा खुद पुरुषों ने ले रखा है। हाल ही में इंडियन बैंक ने इसी पितृसत्तात्मक मानसिकता के आधार पर महिला उम्मीदवारों के लिए ऐसा सर्कुलर जारी किया है जिसके अनुसार गर्भवती महिलाएं नौकरी के लिए ‘अस्थायी रूप से अयोग्य’ मानी जाएंगी। 

बिजनेस स्टैंडर्ड में छपी ख़बर के मुताबिक सार्वजनिक क्षेत्र के इंडियन बैंक ने तीन महीने की गर्भवती महिलाओं को नौकरी के लिए अस्थायी रूप से अयोग्य कहा है। बैंक द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार, “एक महिला उम्मीदवार जांच के बाद 12 सप्ताह या उससे अधिक की गर्भवती पाई जाती है, उसको तब तक अस्थायी रूप से अयोग्य घोषित किया जाना चाहिए। महिला उम्मीदवार को प्रसव की तारीख़ के छह हफ्ते बाद रजिस्टर्ड डॉक्टर से फिटनेस सर्टिफिकेट देना होगा।”

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अन्य बैंक भी ले चुके हैं ऐसा फैसला

गौरतलब है कि इसी साल की शुरुआत में देश के सबसे बड़े बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने भी भर्ती प्रक्रिया के लिए ठीक इसी तरह के नियम बनाए थे। इसमें कहा गया था कि यदि कोई महिला उम्मीदवार तीन महीने या अधिक की गर्भवती है तो उसको ‘अस्थायी रूप से अयोग्य’ माना जाएगा। वह डिलीवरी के बाद चार महीने के अंदर बैंक में शामिल हो सकती है। एसबीआई के इस फैसले की आलोचना के बाद महिलाओं की भर्ती के लिए बनाए गए दिशा-निर्देशों को संशोधित कर वापिस लिया था। 

बैंक वर्कर्स यूनिटी डॉट कॉम के अनुसार इंडियन बैंक से स्पोर्न्स तमिलनाडु ग्राम बैंक (टीजीबी) ने भी महिलाओं उम्मीदवारों के लिए तीन महीने या उससे ज्यादा की गर्भवती होने पर उनकी नौकरी जॉइन करने पर रोक लगाने जैसे नियम लागू किए हैं। बैंक ने डिलीवरी के चार महीने मेडिकल जांच के बाद नौकरी पर आने की अनुमति दी है। बैंक की भेदभावपूर्ण नीतियों के ख़िलाफ़ तमिलनाडु ग्राम बैंक ऑफिर्स एसोसिएशन और तमिलनाडु ग्राम बैंक वर्कर यूनियन विरोध-प्रदर्शन कर रही हैं।

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बैंक द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार,“एक महिला उम्मीदवार जांच के बाद 12 सप्ताह या उससे अधिक की गर्भवती पाई जाती है, उसको तब तक अस्थायी रूप से अयोग्य घोषित किया जाना चाहिए। महिला उम्मीदवार को प्रसव की तारीख़ के छह हफ्ते बाद रजिस्टर्ड डॉक्टर से फिटनेस सर्टिफिकेट देना होगा।”

इंडियन बैंक के नियमों की बात सामने आने के बाद से बैंक के इस कदम की आलोचना हो रही है। कई महिला संगठन और अन्य लोगों ने बैंक ने नियमों पर विरोध जताया है। दिल्ली महिला आयोग ने इस पर बैंक को एक नोटिस जारी किया है। आयोग ने बैंक से भर्ती प्रक्रिया के लिए जारी किए गए निर्देश को वापस लेने की मांग की है। इस नोटिस में आयोग ने कहा है कि बैंक लिंग के आधार पर महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों का हनन कर रहा है। इससे आगे दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्षा स्वाती मालीवाल ने रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के गवर्नर को भी इसके लिए चिठ्ठी लिखी है। उन्होंने कहा है कि यह दिशा-निर्देश पूरी तरह से लैंगिक भेदभाव वाले हैं। इन्हें जल्दी से निरस्त करना चाहिए। उम्मीद है की आरबीआई इस मामले में जल्द ही कार्रवाई कर बैंकों की विश्वसनीयता बनाए रखने की दिशा में काम करेगा।  

द वायर के मुताबिक ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक वीमंस एसोसिएशन (एआईडीडब्ल्यूडी) ने भी इंडियन बैंक के लिए फैसले को महिला विरोधी बताया है। उन्होंने इन निर्देशों को महिलाओं के लिए बेहद भेदभावपूर्ण बताया है। एआई़डीडब्ल्यूडी ने कहा है कि बैंक मैनजमेंट के ऐसे निर्देश आगे महिलाओं की नौकरी अवसरों पर गलत असर डालेंगे। बैंकों में काम करने वाली महिला कर्मचारियों की संख्या पहले से ही कम है। बैंक का गर्भावस्था की वजह से महिलाओं को काम न देना उनके ‘राइट टू वर्क’ छीनना है। 

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बैंक ने रखा अपना पक्ष

नौकरी में शामिल करने के बैंक के गर्भवती महिलाओं के लिए जारी किए गए नियमों की कई संगठनों ने आलोचना की है। इस बात पर सफाई देते हुए इंडियन बैंक ने कहा है कि मीडिया के कुछ भाग में बैंक की जारी की गई गाइडलाइंस को महिलाओं के भेदभावपूर्ण वाली बतायी जा रही है। बैंक मौजूदा बनाई नीतियों में कोई बदलाव नहीं कर रहा है। अपना पक्ष रखते हुए ट्विटर हैंडिल से बैंक ने कहा, “इंडियन बैंक महिला कर्मचारियों की देखभाल और सशक्तिकरण को सर्वोच्च महत्व देता है। हमारे कुल कार्यबल में 29 फीसदी महिला कर्मचारियों का योगदान है। इंडियन बैंक ने गर्भावस्था की वजह से किसी भी महिला उम्मीदवार को रोजगार से वंचित नहीं किया है। बैंक आगामी नौकरियों के लिए जारी दिशा-निर्देशों में और स्पष्ठता लाने की कोशिश करेगा।

इससे पहले महिलाओं को लेकर किए गए असमानता वाले फैसलों को भारी आलोचना के बाद भले ही वापस लेना पड़ा हो लेकिन बैंक अपना पक्ष रखते हुए घटना में महिला विरोधी मानसिकता को स्वीकार नहीं करते है। एसबीआई ने चौतरफा आलोचनाओं के बाद जब अपना फैसला लिया था तो उस बयान की भाषा पर विशेष ध्यान देना आवश्यक है। मिंट में छपी ख़बर के अनुसार बैंक ने अपना बयान जारी करते हुए कहा, “जनभावनाओं को ध्यान में रखते हुए एसबीआई गर्भवती महिलाओं की भर्ती प्रक्रिया में नियमों को संशोधित कर रहा है। भर्ती प्रक्रिया में पुराने नियम बने रहेंगे।”

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गौर करनेवाली बात है कि एसबीआई ने यह फैसला केवल तीखी आलोचनों से बचने के लिए लिया है। बैंक ने अपने बयान में यह नहीं माना था कि यह नियम भेदभावपूर्ण वाले थे। जनभावना और नैतिकता के दबाव में पीछे हटने वाले मैनजमेंट में अभी भी वहीं मानसिकता मौजूद है जो नियमों को जारी करते हुए थी। वहीं इंडियन बैंक ने तो अबतक अपनी सफाई में महिला सशक्तिकरण के महत्व को बताते हुए बैंक के नियमों पर बने रहने की बात कही है। बैंकों का यह न मानना कि फैसला गलत है दिखाता है कि कार्यस्थल महिलाओं के लिए कितने भेदभावभावपूर्ण होते हैं। महिलाओं को लेकर मानसिकता कितनी पक्षपाती है। 

तमाम आंकड़े यह बात बताते हैं कि भारत में कार्यक्षेत्र में महिलाओं की संख्या पुरुषों के मुकाबले बहुत कम है। दूसरी ओर पुरुषों ने कामकाजी महिलाओं के काम करने के तरीके पर नैरेटिव सेट किए हुए हैं कि महिलाएं अच्छा काम नहीं करती हैं, वे छुट्टियां ज्यादा लेती हैं। यदि मैटरनिटी लीव की ही बात करें तो असंगठित क्षेत्र में काम करने वाली अधिक महिलाएं इसके दायरे में नहीं आती है। 

द इंडियन रिव्यू के एक अध्ययन के अनुसार केवल एक प्रतिशत महिलाएं मैटरनिटी लीव का लाभ ले पाती हैं। भारत में लगभग 70 प्रतिशत महिलाएं कार्यक्षेत्र में नहीं हैं। यदि 30 प्रतिशत संगठित, फॉर्मल सेक्टर में (6.7 प्रतिशत) महिलाएं काम करती हैं उसमें से केवल 2 प्रतिशत ही श्रम शक्ति कानून की लाभार्थी हैं। आंकलन कर संगठित क्षेत्र में काम करनेवाली महिलाओं में से केवल 1.3 फीसद ही कानून के तहत आवदेन कर पाती हैं। एक प्रतिशत से कम कानून का लाभ ले पाती हैं। 

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नौकरी में भर्ती के लिए कब तक पुरुषों की बनाई पॉलिसी को मानक माना जाएगा? साथ ही इंडियन बैंक ने डिलीवरी के बाद सर्टिफिकेट देना होगा जैसे नियम से एक आशय यह भी निकलता है कि बच्चे को जन्म देने के बाद महिला नौकरी के लिए अयोग्य हो जाती है। गर्भावस्था को एक सामान्य बदलाव ने मानकर ऐसे देखा जा रहा है जैसे यह कोई बीमारी हो। दोबारा मेडिकल जांच के बाद सर्टिफिकेट देकर सामान्य होने का प्रूफ देना होगा।

ऐसे फैसलों का क्या असर होगा

एक के बाद एक बैंकों द्वारा जारी हो रहे मनमाने नियम महिलाओं के साथ भेदभावपूर्ण वाले हैं। इन नियमों की बनावट मैनजमेंट में मौजूद पुरुष सत्ता के केंद्र को भी जाहिर करती है। देश में कामकाजी महिला को गर्भावस्था के दौरान मैटरनिटी लीव यानी मातृत्व अवकाश की सुविधा होने के बावजूद भी उनकी नौकरी में भर्ती प्रक्रिया में अस्थायी रोक उनके कार्य अधिकारों का हनन है। किसी भी नौकरी में यदि किसी महिला के चयन के बाद गर्भावस्था की वजह से उसकी जॉइनिंग पर इस तरह की रोक लगती है तो उसकी नौकरी में आगे बढ़ने के अवसरों को भी प्रभावित करेगा। यह साधारण सी लगने वाली बात दफ्तरों में महिलाओं को क्रमवार पीछे रखने का एक कदम भी साबित होगा।

भारत में कार्यक्षेत्र में महिलाओं की पुरुषों के मुकाबले असमान स्थिति है। वर्ल्ड बैंक के एक आंकलन के अनुसार फीमेल लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन में भारत की स्थिति सबसे कमजोर है। इसमें समाजिक व्यवहार बड़ी बाधा बताया गया है। बैंकों के द्वारा लिए गए ऐसे फैसले महिलाओं की कार्यक्षेत्र में मौजूदगी को कम करने का काम करते है। ये नियम वर्क स्पेस में मौजूद महिला विरोधी मानसिकता को जाहिर करते है। सवाल यह है कि 2022 में लगातार जारी होते नियम और उनकी वापसी के बाद भी अन्य संस्थान महिलाओं के ऐसे नियम क्यों जारी कर रहे हैं? नौकरी में भर्ती के लिए कब तक पुरुषों की बनाई पॉलिसी को मानक माना जाएगा? साथ ही इंडियन बैंक ने डिलीवरी के बाद सर्टिफिकेट देना होगा जैसे नियम से एक आशय यह भी निकलता है कि बच्चे को जन्म देने के बाद महिला नौकरी के लिए अयोग्य हो जाती है। गर्भावस्था को एक सामान्य बदलाव ने मानकर ऐसे देखा जा रहा है जैसे यह कोई बीमारी हो। दोबारा मेडिकल जांच के बाद सर्टिफिकेट देकर सामान्य होने का प्रूफ देना होगा।

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तस्वीर साभारः Navbharat

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