अच्छी ख़बर डॉ. नूरी परवीन: 10 रुपये में करती हैं गरीबों का इलाज

डॉ. नूरी परवीन: 10 रुपये में करती हैं गरीबों का इलाज

डॉक्टर नूरी परवीन ने आंध्र प्रदेश के कडपा ज़िले के एक निजी मेडिकल कॉलेज से मेडिकल की पढ़ाई यानी एमबीबीएस (MBBS) पूरी की है। पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने अपना जीवन आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के इलाज में समर्पित कर दिया। वह जी-जान से गरीबों करती हैं और बदले में लेती हैं मात्र 10 रुपये।

कहावत है कि ‘स्वास्थ्य ही धन है’ यानी हमारा वास्तविक धन हमारा अच्छा स्वास्थ्य ही है। यह बिलकुल ही वास्तविक तथ्य है कि स्वस्थ इंसान ही धनवान होता है। आज के दौर में तो अच्छा स्वास्थ्य होना एक विशेषाधिकार की तरह है। इलाज की कमी, खराब व्यवस्था, महंगे इलाज जैसे कई कारणों के चलते कोरोना काल के दौरान कई परिवारों ने अपनों को खो दिया, जिन्हें वे अब किसी भी कीमत पर वापस नहीं पा सकते हैं। इसलिए स्वास्थ्य से कीमती कुछ भी नहीं है। 

वैसे तो दुनिया का हर एक व्यक्ति स्वस्थ तो रहना चाहता है लेकिन बढ़ती महंगाई के चलते वह सस्ते इलाज की तलाश में दम तोड़ देता है। ज्यादातर लोग बेहतर और सस्ते इलाज की चाह में सरकारी अस्पतालों की ओर रुख करते हैं। लेकिन सरकारी अस्पतालों में स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव को देखकर आखिरकार न चाहते हुए भी उन्हें प्राइवेट हॉस्पिटल्स में ही इलाज करवाना पड़ता है। प्राइवेट हॉस्पिटल्स का खर्च काफी महंगा होता है इसलिए भारत का एक बड़ा तबका आज भी स्वास्थ्य सुविधाओं की पहुंच से बेहद दूर है।

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डॉक्टर नूरी परवीन ने आंध्र प्रदेश के कडपा ज़िले के एक निजी मेडिकल कॉलेज से मेडिकल की पढ़ाई यानी एमबीबीएस (MBBS) पूरी की है। पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने अपना जीवन आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के इलाज में समर्पित कर दिया। वह जी-जान से गरीबों का इलाज करती हैं और बदले में लेती हैं मात्र 10 रुपये।

लेकिन कुछ लोग ऐसे लोगों की मदद करने से पीछे नहीं हटते। इन्हीं में से एक हैं आंध्र प्रदेश की डॉक्टर नूरी परवीन, जो गरीब लोगों के लिए किसी मसीहा से कम नहीं हैं। परवीन खुद भी एक मध्यम वर्गीय परिवार से हैं लेकिन उनके जूनून और कड़ी मेहनत ने उन्हें आज इस मुकाम पर खड़ा कर दिया है कि वह हर ज़रूरतमंद की सहायता करने में सक्षम हैं।

मीडिया रिपोर्ट्स इस बात की तस्दीक करती हैं कि देश में चौतरफा दवाइयों और इलाज की कालाबाजारी है। कई माफिया गिरोह इलाज के नाम पर लोगों को ठगते हैं। कालाबाजारी के इस चक्रव्यूह को देखते हुए ही परवीन ने मात्र 10 रुपये में लोगों के लिए इलाज संभव किया है। उन्होंने बताया कि ये 10 रुपये भी वह लेती नहीं हैं बल्कि उनकी क्लिनिक में एक बॉक्स रखा गया है जिसमें लोग अपनी इच्छा से उसमें ये पैसे डाल सकते हैं।

डॉक्टर नूरी परवीन ने आंध्र प्रदेश के कडपा ज़िले के एक निजी मेडिकल कॉलेज से मेडिकल की पढ़ाई यानी एमबीबीएस (MBBS) पूरी की है। पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने अपना जीवन आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के इलाज में समर्पित कर दिया। वह जी-जान से गरीबों का इलाज करती हैं और बदले में लेती हैं मात्र 10 रुपये।

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फेमिनिज़म इन इंडिया से बातचीत के दौरान डॉ. नूरी कहती हैं, “मुझे हॉस्पिटल खोलने का पहले से ख्याल नहीं था। मैं एमबीबीएस के सेकंड ईयर में सर्विस के दौरान में कई संगठनों के साथ मिलकर काम करती थी। मेरा डॉक्टर बनने का कारण लोगों की सेवा करना था। मैं जब फिल्मों में डॉक्टर्स को देखती थी कि लोग कैसे डॉक्टर्स को देखते ही हाथ जोड़ लेते थे। भगवान के बाद डॉक्टर्स को ही लोग भगवान मानते हैं।” 

आगे वह कहती हैं, “मैंने सोचा कि मैं अपनी पढ़ाई का इस्तेमाल कैसे कर रही हूं। अगर मैं दूसरे डॉक्टर्स की तरह ही इसका इस्तेमाल करती तो महंगी फीस लेती या किसी अस्पताल में 50-60 हजार सैलरी के लिए काम करती। गरीब लोग सरकारी दवाखाने जाते हैं लेकिन वहां अच्छी सुविधाएं नहीं रहती हैं। सरकारी दवाखाने भी लोगों की पहुंच से दूर भी थे। इन सबके बीच किसी भी मेडिकल स्टोर से लोग दवाई लेकर खा लेते हैं। मेडिकल स्टोर वाले कुछ भी दवा दे देते हैं। विदेशों में आप देखेंगे कि बिना प्रिसक्रिप्शन के कोई भी दवा नहीं दी जाती है लेकिन भारत में ऐसा नहीं है। हर मेडिकल स्टोर वाला ही डॉक्टर बन जाता है। मैंने सोचा कि कई मरीज़ तो ऐसे भी होते हैं जो न मेडिकल की दुकान का खर्चा उठा सकते हैं न डॉक्टर के पास जा सकते हैं। ज्यादातर मरीज़ जल्दी ठीक होना चाहते हैं। ऐसे में मेडिकल स्टोर वाले उन्हें एंटीबायोटिक दे देते हैं जिससे भविष्य में मरीज की तबियत और ज्यादा बिगड़ जाती। इसी कारण मैंने इलाज का खर्च केवल 10 रुपये रखा जो हर गरीब व्यक्ति खर्च कर सकता है। “

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नूरी परवीन की पढ़ाई पूरी करवाने के लिए उनके माता-पिता ने बहुत पैसे खर्च किए। इस दौरान परवीन ने भी मेहनत और अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने लगन से पढ़ाई पूरी की। वह कहती हैं कि जब पहली बार उन्होंने अपना क्लिनिक खोला तो इसकी जानकारी उनके माता-पिता को नहीं थी। लेकिन जब उन्हें पता चला तो उनके अभिभावकों ने इस पर ख़ुशी जाहिर की। अपने इस सराहनीय काम के बलबूते आज परवीन कई महिला डॉक्टर्स के लिए भी मिसाल बन गई हैं। मेडिकल क्षेत्र और समाज में जरूरतमंदों के लिए एनजीओ और अपने अथक प्रयासों से वह चर्चाओं में हैं। इतना ही नहीं लोगों को और अधिक मदद पहुंचाने के लिए डॉ. नूरी परवीन द्वारा दो सामाजिक संगठनों का संचालन भी किया जाता है।

नूरी कहती हैं, “मैंने सोचा कि मैं अपनी पढ़ाई का इस्तेमाल कैसे कर रही हूं। अगर मैं दूसरे डॉक्टर्स की तरह ही इसका इस्तेमाल करती तो महंगी फीस लेती या किसी अस्पताल में 50-60 हजार सैलरी के लिए काम करती। गरीब लोग सरकारी दवाखाने जाते हैं लेकिन वहां अच्छी सुविधाएं नहीं रहती हैं। सरकारी दवाखाने भी लोगों की पहुंच से दूर भी थे। इन सबके बीच किसी भी मेडिकल स्टोर से लोग दवाई लेकर खा लेते हैं। मेडिकल स्टोर वाले कुछ भी दवा दे देते हैं।”

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अपने परिवार के बारे में नूरी बताती हैं, “मेरे पेरेंट्स बचपन से मेरा साथ देते रहे हैं। मेहनत करके मुझे पढ़ाया। मेरी एक बहन भी डॉक्टर है और मेरा एक भाई भी डॉक्टर है। हमारे परिवार ने बहुत आर्थिक दिक्कतें देखी हैं। मेरे पापा भी बहुत मेहनत से पढ़े हैं। इसलिए हमें गरीबों की स्थिति और उनकी मजबूरियां का एहसास है। मेरे दादाजी एक वामपंथी लीडर थे। आप जानते हैं कि वामपंथी नेताओं का जीवन कैसा होता है। अपने लिए कमाना और अपने ऊपर खर्च करना उनकी प्राथमिकता नहीं थी।” डॉ परवीन ने बताया कि उन्होंने जानबूझकर अपना क्लिनिक कडपा के पिछड़े इलाके में खोला है, क्योंकि यहां के लोग गरीब हैं और महंगा इलाज इनकी पहुंच से बहुत दूर है।

डॉ. नूरी ने ‘मोटिवेशनल हेल्दी यंग इंडिया’ नाम की एक संस्था अपने दादा की स्मृति में बनवाई है। उनके दूसरे एनजीओ का नाम ‘नूर चैरिटेबल ट्रस्ट’ है। इस एनजीओ के माध्यम से वह बच्चों और युवाओं को शिक्षा और स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करती हैं। जब कोरोना काल में सभी लोगों की आस टूटने लगी थीं तब भी डॉक्टर नूरी ने लॉकडाउन के समय में भी गरीबों की सहायता करने का जिम्मा उठाया था। लॉकडाउन में उनका क्लिनिक सभी सेवाओं के लिए खुला रहा है।

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तस्वीर साभार: The Hindu

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