इतिहास उमाबाई कुंडापुर: इतिहास की परतों में दबी एक निस्वार्थ समाजसेवी और स्वतंत्रता सेनानी| #IndianWomenInHistory

उमाबाई कुंडापुर: इतिहास की परतों में दबी एक निस्वार्थ समाजसेवी और स्वतंत्रता सेनानी| #IndianWomenInHistory

नारीवादी विचारधारा को गति देने और महिला उत्थान के क्षेत्र में जिन लोगों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई उसमें उमाबाई कुंडापुर का नाम गर्व से लिया जाता है। यह इतिहास की परतों में दबी एक ऐसी गुमनाम शख्सियत का नाम है जिन्होंने आधुनिक भारत की नींव रखने में अहम भूमिका निभाई।

इतिहास खंगालने पर पता चलता है कि आज़ादी की लड़ाई में केवल पुरुषों का ही नहीं बल्कि बड़ी संख्या में महिलाओं का भी बहुमूल्य योगदान रहा है। नारीवादी विचारधारा को गति देने और महिला उत्थान के क्षेत्र में जिन लोगों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई उसमें उमाबाई कुंडापुर का नाम गर्व से लिया जाता है। यह इतिहास की परतों में दबी एक ऐसी गुमनाम शख्सियत का नाम है जिन्होंने आधुनिक भारत की नींव रखने में अहम भूमिका निभाई। आधुनिक भारत की निर्माता के रूप में उमाबाई कुंडापुर का नाम उल्लेखनीय है। इन्होंने भारतीय स्वाधीनता संग्राम में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

उमाबाई का जन्म सन् 1892 में मैंगलोर में गोलिकेरी कृष्णा राव और जुंगाबाई के घर हुआ था। उनकी शादी महज 13 साल की उम्र में आनंदराव कुंडापुर के पुत्र संजीव राव कुंडापुर से हो गई थी। आनंदराव कुंडापुर महिला सशक्तिकरण के सच्चे समर्थक थे। उनके प्रोत्साहन से उमाबाई ने शादी के बाद भी पढ़ाई जारी रखी और मैट्रिक तक की परीक्षा पास की। इसके बाद वह बंबई (मुंबई) आ गईं। उन्होंने एक स्थानीय महिला समाज के साथ जुड़कर महिलाओं को शिक्षित करने में अपना बहुमूल्य योगदान दिया।

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उमाबाई ने महिला स्वयंसेवकों का एक समूह बनाया और उनके साथ मिलकर खादी के वस्त्रों के लिए अभियान चलाया। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं को बढ़-चढ़कर भाग लेने के लिए भी प्रोत्साहित किया। इस बीच, उमाबाई के पति संजीव राव कुंडापुर की मृत्यु हो गई। बेटे की मृत्यु के बाद आनंदराव कुंडापुर ने अपनी बहू को एक पिता की तरह संभाला। वह अपने परिवार को बंबई से हुबली ले आए। हुबली आने के बाद उमाबाई के ससुर ने उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए हुबली में ही ‘कर्नाटक प्रेस’ और एक ‘कन्या पाठशाला’ की स्थापना की। ‘कन्या पाठशाला’ के जरिए उमाबाई महिला शिक्षा के क्षेत्र में एक बार फिर सक्रिय हुईं। इस कार्य को ‘भगिनी मंडल’ के माध्यम से और गति मिली। ‘भगिनी मंडल’ महिला स्वतंत्रता सेनानियों का एक स्वैछिक संगठन था। इसकी स्थापना भी उमाबाई के ससुर आनंदराव द्वारा ही की गई थी।

नारीवादी विचारधारा को गति देने और महिला उत्थान के क्षेत्र में जिन लोगों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई उसमें उमाबाई कुंडापुर का नाम गर्व से लिया जाता है। यह इतिहास की परतों में दबी एक ऐसी गुमनाम शख्सियत का नाम है जिन्होंने आधुनिक भारत की नींव रखने में अहम भूमिका निभाई।

इस मंडल के माध्यम से उमाबाई सक्रिय रूप से अपने राज्य का दौरा करती रहीं और महिलाओं को भारतीय स्वाधीनता आंदोलन की मुख्यधारा से जुड़ने के लिए प्रेरित करती रहीं। उन्होंने न केवल अपने राज्य (कर्नाटक) बल्कि पूरे भारत का घूम-घूमकर दौरा किया और समाज में व्याप्त रूढ़ियों के प्रति लोगों को जागरूक किया। इस कार्य को पूरा करने के लिए उन्होंने नुक्कड़ नाटकों का साहरा लिया। इन नाटकों को देखकर लोग सहज ही उनकी ओर आकर्षित होते थे। लोगों को अपने अधिकारों और कर्त्तव्यों के प्रति जगरूक करने में इन नाटकों ने अहम भूमिका निभाई उन्होंने भारतीयों को खादी पहनने और चरखा चलाने के लिए भी प्रेरित किया।

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इसी बीच उनकी मुलाक़ात डॉ.एन.एस हार्डिकर से हुई जो साल 1921 में भारतीय स्वाधीनता संग्राम में भाग लेने के लिए अमेरिका से वापस आए थे। उन्होंने हुबली में ‘हिंदुस्तानी सेवा दल’ की स्थापना के माध्यम से भारत के युवाओं को देश की आज़ादी के लिए संगठित किया। अपनी सक्रिय भागीदारी और कुशल प्रदर्शन के कारण उमाबाई जल्द ही इस दल की महिला विंग की प्रमुख अधिकारी के रूप में नियुक्त हुईं।

उमाबाई ने महिला स्वयंसेवकों का एक समूह बनाया और उनके साथ मिलकर खादी के वस्त्रों के लिए अभियान चलाया। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं को बढ़-चढ़कर भाग लेने के लिए भी प्रोत्साहित किया।

साल 1924 में कांग्रेस के बेलगाम अधिवेशन में महात्मा गांधी ने भी उमाबाई के राष्ट्र समर्पित व्यक्तित्व को पहचाना। उन्होंने उमाबाई और डॉ. हार्डिकर को इस अधिवेशन के लिए देश भर से लोगों को इकठ्ठा करने की जिम्मेदारी सौंपी थी। इस अधिवेशन में बड़ी संख्या में आई महिला प्रतिनिधियों और स्वयंसेवकों की उपस्थिति को देखकर महात्मा गाँधी ने उमाबाई की खूब प्रशंसा की। उस अधिवेशन में करीब 150 महिला स्वयंसेवक और बड़ी संख्या में महिला प्रतिनिधि मौजूद थीं।

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इसके बाद,1932 में भारतीय स्वाधीनता आंदोलना के महत्वपूर्ण आंदोलन नमक सत्याग्रह में भी उनकी सक्रिय भागीदारी बनी रही। इस आंदोलन में भाग लेने के कारण उमाबाई को यरवदा जेल भी भेजा गया। चार महीने के करावास के बाद बाहर आने पर, ब्रिटिश सरकार ने उमाबाई की सक्रियता को कम करने के लिए अनेक प्रतिबंध लगाए। उनके प्रेस पर प्रतिबंध लगा दिया गया, ‘कन्या पाठशाला’ को बंद कर दिया गया और ‘भगिनी मंडल’ को अवैध घोषित कर दिया गया। प्रतिकूल परिस्थियों के बावजूद, उमाबाई ने अंग्रेजों के खिलाफ अपनी लड़ाई जारी रखी।

1934 में, बिहार में जब भूकंप आया उस समय भी उमाबाई महिला स्वयंसेवकों के साथ भूकंप प्रभावित शरणार्थियों की सेवा करने पहुंच गईं थीं। ब्रिटिश सरकार की सख्त निगरानी के बावजूद भी उमाबाई ने भोजन, वित्तीय सहायता और आश्रय के माध्यम से कई स्वतंत्रता सेनानियों की मदद की थी।

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स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद उमाबाई ने सार्वजनिकता से दूरी अवश्य बनाई लेकिन अपनी समाज सेवा में कहीं कोई कमी नहीं आने दी। कई अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के विपरीत, उन्होंने सबसे प्रतिष्ठित ताम्र-पत्र पुरस्कार (फ्रंटलाइन स्वतंत्रता सेनानियों को दिया गया पुरस्कार) और सरकारी पेंशन लेने से इनकार कर दिया। इस प्रकार, वह अपनी अंतिम सांस तक राष्ट्र को समर्पित, एक राष्ट्रवादी बनी रहीं। हुबली में 1992 में 100 साल की उम्र में उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।

इसके बाद,1932 में भारतीय स्वाधीनता आंदोलना के महत्वपूर्ण आंदोलन नमक सत्याग्रह में भी उनकी सक्रिय भागीदारी बनी रही। इस आंदोलन में भाग लेने के कारण उमाबाई को यरवदा जेल भी भेजा गया। चार महीने के करावास के बाद बाहर आने पर, ब्रिटिश सरकार ने उमाबाई की सक्रियता को कम करने के लिए अनेक प्रतिबंध लगाए।

इस प्रकार, उमाबाई एक निस्वार्थ राष्ट्र निर्माता के रूप में उभरकर सामने आती हैं। देश को आज़ाद करवाने में जिन महिलाओं के योगदान को स्मरण किया जाता है उसमें उमाबाई कुंडापुर का नाम उल्लेखनीय है। यह एक ऐसी क्रान्तिकारी महिला थीं जिनसे प्रेरणा प्राप्त कर देश की अन्य अनेक महिलाओं में क्रांति की ज्योति प्रज्ज्वलित हुई। इनसे प्रेरणा पाकर देश की अनेक महिलाओं ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपनी सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित की। स्वतंत्रता की नींव डालने और राष्ट्र निर्माताओं की श्रेणी में उमाबाई कुंडापुर का नाम स्मरणीय है। भारतीय इतिहास के पन्नों में संचित उमाबाई का राष्ट्रवादी व्यक्तित्व आज भी हमारी पीढ़ी का प्रेरणास्रोत है।

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स्रोत:

1- Live History India

2- Women’s Web

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