इंटरसेक्शनलशरीर महिला स्वास्थ्य पर शर्म से बढ़ती भ्रांतियां और जोखिम में महिलाएं

महिला स्वास्थ्य पर शर्म से बढ़ती भ्रांतियां और जोखिम में महिलाएं

महिला गुप्तांग और प्रजनन स्वास्थ्य से जुड़ी ऐसी कई समस्याएँ है, जिसके बारे में ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी बहुत ज़्यादा जानकारी का अभाव है और महिलाओं को गंभीर बीमारी का सामना करना पड़ता है।

‘शर्म’ औरत का गहना होता है। यह बात अपने भी कभी न कभी ज़रूर सुनी होगी। लेकिन कई बार ये शर्म महिलाओं के लिए जानलेवा भी साबित हो जाती है, जब बात महिलाओं के शरीर और ख़ासकर उनके निजी अंग से जुड़ी समस्याओं पर आती है।मुझे भी बचपन से यही सिखाया गया कि अपने शरीर से जुड़ी कोई भी समस्या पर कभी खुलकर बात मत करना।

लेकिन मैं अकेली नहीं हूं, मेरे घर और गाँव में लड़कियों को इसी सीख के साथ बड़ा किया जाता है। ग़ौरतलब है कि ये सारी बातें सिर्फ़ बातों तक सीमित नहीं होती बल्कि हमारे आसपास का पूरा माहौल इसी तरह तैयार किया जाता है, जिसमें हम महिलाएं अपने शरीर से जुड़ी बातों या किसी भी समस्या पर कुछ भी कहने से झिझकती हैं।

महिला शरीर से जुड़ी समस्याओं पर बातचीत के अभाव का नतीजा यह रहा है कि हमें अपने शरीर से जुड़े कई सारे तथ्य और इससे जुड़ी बीमारियों के बारे में जानकारी भी नहीं होती है। यही वजह है कि जब भी महिलाओं के साथ समुदाय स्तर पर बैठक का आयोजन किया जाता है तो उनके पास अपने शरीर से जुड़े कई सवाल और अनुभव होते हैं।

‘शर्म’ औरत का गहना होता है। यह बात अपने भी कभी न कभी ज़रूर सुनी होगी। लेकिन कई बार ये शर्म महिलाओं के लिए जानलेवा भी साबित हो जाती है, जब बात महिलाओं के शरीर और ख़ासकर उनके निजी अंग से जुड़ी समस्याओं पर आती है।

गुप्तांगों को लेकर जानकारी का अभाव

जब भी मैं महिलाओं और किशोरियों के साथ यौन प्रजनन और स्वास्थ्य के मुद्दे पर बात करती हूं तो उनसे मेरा पहला सवाल यह होता है कि आपके गुप्तांग में कितने छेद होते हैं? अधिकतर महिलाओं और लड़कियों को इस बात की जानकारी ही नहीं होती है कि उनके गुप्तांग में तीन छेद (मूत्राशय, योनि और मलमार्ग) होते हैं। मुझे भी इन बैठकों से पहले यही लगता था कि महिलाओं के गुप्तांग में सिर्फ़ दो छेद होते हैं।

इतना ही नहीं, कई बार तो कई बच्चों की माँ या फिर दादी-नानी उम्र की महिलाओं का ज़वाब भी यही होता है कि उनके गुप्तांग में दो छेद होते हैं। यह एक ऐसा सवाल है, जिस पर चर्चा तो क्या इसके बारे में सोचना भी गलत समझा जाता है। लेकिन अपने शरीर को लेकर महिलाओं की जानकारी का यह स्तर बताता है कि पितृसत्ता ने महिलाओं के ऊपर अपना शिकंजा किस कदर मज़बूत रखा है।

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पीरियड्स का पहला ‘डर वाला’ अनुभव

पहली बार जब मेरे पीरियड्स आए तो मैं बुरी तरह डर गई थी। मुझे ऐसा लगा कि मुझे कोई गंभीर बीमारी हो गई है, जिसकी वजह से मेरे मूत्रमार्ग से खून आ रहा है। इसके बाद जब मेरी मां ने मेरे कपड़ों में दाग देखा तब मुझे कपड़ा लेने को कहा और बताया कि मुझे इस दौरान कौन-कौन से काम नहीं करने चाहिए।

ग्रामीण क्षेत्रों में पीरियड्स को लेकर आज भी लड़कियों का अनुभव यही होता है कि पीरियड्स शुरू होने से पहले उन्हें इसके बारे में कोई जानकारी नहीं होती है। इसकी वजह से उनके पहले पीरियड्स का अनुभव हमेशा ‘डर वाला’ होता है। पीरियड्स चूंकि शरीर की योनि से जुड़ी एक प्रक्रिया है इसलिए इस मुद्दे पर कोई भी बात करना हमेशा से अपने समाज में प्रतिबंधित रहा है।

यूरिन इंफ़ेक्शन जैसा कुछ नहीं होता का मिथ्य

विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक, 50 प्रतिशत महिलाओं यानी प्रत्येक पांच में से एक महिला को अपने जीवन में एक बार यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन होता ही है। फिर भी काफी महिलाएं इस बीमारी के बारे में जानती ही नहीं हैं। मैं और मेरे परिवार की महिलाएं भी शायद इन्हीं महिलाओं में से एक हैं। जब मुझे यूरिन इन्फेक्शन हुआ था तब मेरे परिवार का यही कहना था कि मैं देखने में तो एकदम ठीक थी, बुखार भी नहीं था इसलिए यह कोई बीमारी नहीं है। यह कहते हुए मुझे लंबे समय तक सही इलाज नहीं मिला। फिर जब सही इलाज तक पहुंची तो डॉक्टर ने यूरिन इंफ़ेक्शन की समस्या बताई। इस पर मेरे घरवालों का कहना था कि यूरिन इंफ़ेक्शन जैसा कुछ नहीं होता। इसके बारे में जब मैंने अपने आसपास की महिलाओं और लड़कियों से भी चर्चा की तो उनका कहना भी यही था कि‘उन्हें कई बार ऐसी समस्या हुई, लेकिन उनके भी परिवार से उन्हें ऐसी ही बातों का सामना करना पड़ा।

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इसी क्रम में, वाइट डिस्चार्ज को लेकर भी जानकारी का अभाव, कई गंभीर बीमारियों का कारण बन जाता है। जागरूकता की कमी के कारण ही जब वाइट डिस्चार्ज में खून या फिर इन्फेक्शन होने के संकेत होते हैं यह बिल्कुल भी सामान्य नहीं होता है। इसी वजह से वे लंबे समय तक वाइट डिस्चार्ज की समस्या को नज़रंदाज़ करती हैं और जब वे डॉक्टर के पास पहुंचती हैं तो तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।

महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य से जुड़ी ऐसी कई बुनियादी समस्याएं हैं जिनके बारे में ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी बहुत ज़्यादा जानकारी का अभाव है। परिवार और समाज में सिर्फ बुख़ार, खांसी या ऊपरी शरीर में दिखाई देने वाले लक्षणों को ही बीमारी माना जाता है। ऐसे में महिलाओं के शरीर से जुड़ी किसी भी समस्या को कभी भी गंभीरता से नहीं लिया जाता है।


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