31 वर्षीय कमला एक घरेलू कामगार हैं। वह हाउस हेल्प के तौर पर काम करके महीने के छह हज़ार रुपये कमाती हैं। कमला एक सिंगल मदर भी हैं। उन्हें रसोई, बच्चों की पढ़ाई, बीमारी और अन्य सभी खर्चे इसी रकम में पूरे करने पड़ते हैं। बचत के नाम पर आज उनके पास एक रुपया भी नहीं है जिसकी एक वजह है कोविड-19 महामारी। तालाबंदी के बाद काम छूटने की वजह से उन्होंने कई महीने बिना काम के गुज़ारे थे। उस दौरान उनके पास जो जमा-पूंजी थी वह खर्च हो गई थी। कमला इकलौती नहीं हैं जिनका जीवन महामारी के बाद और जटिल हो गया है। एक ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार कोविड-19 के बाद से भारत समेत दुनियाभर में गरीबी बढ़ी है।
रोजी-रोटी, स्वास्थ्य, भोजन और अन्य बुनियादी ज़रूरतों की चीज़ों की कमी को कोरोना महामारी ने बेहिसाब नुकसान पहुंचाया है। साथ ही करोड़ों लोगों को गरीबी की खाई में धकेल दिया है। हाल ही में जारी विश्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक़ कोविड-19 की वजह से 2020 में जो 80 फीसदी लोग गरीब हुए हैं वे भारत के हैं। महामारी के चलते वैश्विक स्तर पर सात करोड़ लोग आर्थिक नुकसान की वजह से गरीब हुए हैं। इसमें 5.6 करोड़ भारतीय शामिल हैं।
“पोवर्टी एंड शेयर्ड प्रॉस्पेरटि 2022” के शीर्षक से जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि महामारी वैश्विक गरीबी के लिए एक बड़ा झटका साबित हुई है। इस वजह से दुनियाभर में गरीबी की दर में इज़ाफा हुआ है। वैश्विक गरीबी की दर 2019 में 8.4 प्रतिशत थी जो साल 2020 में 9.3 प्रतिशत हो गई है। दशकों में पहली बार दुनिया में गरीबी में इस तरह की बढ़ोतरी देखी गई है।
महामारी के चलते वैश्विक स्तर पर सात करोड़ लोग आर्थिक नुकसान की वजह से गरीब हुए हैं। इसमें 5.6 करोड़ भारतीय शामिल हैं। विश्व बैंक ने कहा है कि गरीबी पर भारत के आधिकारिक आंकड़ों की कमी की वजह से वैश्विक स्तर पर गरीबी के आंकलन करने में बाधा उत्पन्न हुई है।
साल 1990 के बाद से जब से वैश्विक स्तर पर गरीबी से जुड़े आंकड़ों पर निगरानी शुरू हुई है यह पहला साल है जिसमें दुनिया में सबसे ज्यादा गरीबी बढ़ने के आंकड़े सामने आए हैं। रिपोर्ट के अनुसार 2020 के अंत तक 719 मिलियन लोगों ने प्रतिदिन 2.15 यूएस डॉलर (लगभग 177 भारतीय रुपये) से भी कम में गुजारा किया। हालांकि, दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी वाले देश चीन का वैश्विक गरीबी को बढ़ाने में ज्यादा योगदान नहीं रहा है।
वैश्विक और क्षेत्रीय गरीबी के अनुमान को दिखाने के लिए भारत के 2015-19 के नये आंकड़ों को शामिल किया गया है। विश्व बैंक के अनुसार 2020 के लिए भारत के गरीबी के आंकलन में बड़े अंतर की वजह यह है कि भारत सरकार ने अभी अपने 2020 के गरीबी से जुड़े आंकड़ों को अंतिम रूप से नहीं दिया है, इसलिए यहां गरीबी के अनुमान के लिए अलग तरीकों का इस्तेमाल करना पड़ा है।
‘द वायर’ में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक़ भारत की बड़ी आबादी होने की वजह से वैश्विक स्तर पर गरीबी बढ़ने में भी बड़ा योगदान है। विश्व बैंक ने कहा है कि भारत के गरीबी पर आधिकारिक आंकड़ों की कमी की वजह से वैश्विक स्तर पर गरीबी के आंकलन करने में बाधा हुई है। साल 2011 के बाद से भारत सरकार ने गरीबी से जुड़े आंकड़े प्रकाशित करने बंद कर दिए है।
भारत सरकार के आंकड़े नहीं है उपलब्ध
भारत सरकार के गरीबी से जुड़े आधिकारिक आंकड़े न होने की वजह से विश्व बैंक भारत के आंकड़ों के लिए सीपीएचएस डेटा पर निर्भर है। सीएचपीएस डेटा के अनुसार 2020 में 5.6 करोड़ लोग गरीबी में आ गए थे। रिपोर्ट में कहा गया है कि विश्व बैंक ने भारत से जुड़े सीएसपीएस के 2022 के अप्रैल में जारी डेटा का इस्तेमाल किया गया है जिसके अनुसार 2022 में 2.3 अतिरिक्त लोग भारत में गरीबी की सीमा में आ गए थे क्योंकि भारत में उसके अनुमान से अधिक गरीबी थी।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के आकार और हाल के आंकड़े उपलब्ध नहीं होने की वजह से वैश्विक स्तर पर गरीबी के आंकलन को प्रभावित किया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि आंकड़े बताते हैं कि 2011 के के बाद भारत में गरीबी में कमी आई थी, जो काफी हद तक ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी घटने का नतीजा रही है। हालांकि, यह भी कहा गया है कि उस अवधि के दौरान समग्र गरीबी में गिरावट थी।
कोविड के बाद में भारत में लगातार बढ़ती गरीबी
भारतीय समाज असमानता से भरा हुआ है गरीबी उनमें से एक है। भारत में करोड़ों लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन जीने पर मजबूर है। कोविड-19 महामारी की वजह से अर्थव्यवस्था की रफ़्तार में कमी के बड़ी संख्या में लोगों को बेरोजगार होना पड़ा। बाद गरीबी को और बढ़ा दिया है। महामारी के बाद से बाजार में मंदी, बेरोजगारी ने पूरी तरह लोगों का जीवन प्रभावित कर दिया था। गैर सरकारी संगठन ऑक्सफैम की 2021 में ‘द इनइक्वैलिटी वायरस’ के नाम से जारी रिपोर्ट में कहा गया कि महामारी ने भारत में असमानता को और बड़ा कर दिया है। रिपोर्ट के अनुसार भारत में आय की असमानता तेजी से बढ़ी है। लॉकडाउन में भारतीय अरबपतियों की संपत्ति में 35 फीसदी बढ़ोत्तरी देखी गई थी।
भारत सरकार के गरीबी से जुड़े आधिकारिक आंकड़े न होने की वजह से विश्व बैंक भारत के आंकड़ों के लिए सीपीएचएस डेटा पर निर्भर है। सीएचपीएस डेटा के अनुसार 2020 में 5.6 करोड़ लोग गरीबी में आ गए थे।
महंंगाई बनी हुई है बड़ी परेशानी
महामारी के बाद बिगड़ी आर्थिक स्थिति को भारत में बढ़ती महंगाई ने और ज्यादा बिगाड़ दिया है। बढ़ती महंगाई ने आम लोगों को पूरी तरह परेशान कर दिया है। महंगाई पर गृहणी प्रीति शर्मा का कहना है, “चीजों के बढ़ते दामों को लेकर बहुत हैरान हूं। खाने-पीने की चीजें और रोजमर्रा की ज़रूरत की तमाम चीजों की कीमतें आसमान पर है। तेल, चीनी, सब्जियां की कीमती पहले के मुकाबले दोगुनी हो गई है। कमाई नहीं बढ़ रही है लेकिन हर महीने का बजट बिगड़ता जा रहा है। त्यौहार का सीजन है जिससे रसोई खर्च और भी ज्यादा बढ़ गया है।”
पिछले 28 सालों से राजमिस्त्री का काम करने वाले मानसिंह का कहना है, “मजदूरी बढ़ी है इस बात को हर कोई बोलता है लेकिन ये भूल जाता है कि महंगाई कहाँ से कहाँ पहुंच गई। हम रोज कमाकर खाने वालो के पास ज्यादा जमा पैसा नहीं होता है। मजदूरी का रेट सालों-साल में एक बार बढ़ता है और महंगाई आए दिन बढ़ती जा रही है। चार लोगों के परिवार को रोज चाय पीने के लिए जो दूध चाहिए होता है उसका दाम 65 रूपये प्रति किलो हो गया। महंगाई की वजह से सब्जी और दाल मजदूरों के लिए रोज खाने का सामान नहीं रहा है। करोना के बाद से तो सारा काम ही बिगड़ गया है। ऐसे मंहगाई के दौर में रोज कमाकर खाने वाला क्या ही बचा लेता होगा, आप खुद ही सोच लो।”
बढ़ती महंगाई भारत में गरीबी के दर्द को और बढ़ाती जा रही है। कमला जैसे लोगों के लिए पहले कोविड और उसके बाद लगातार बढ़ती मंहगाई जीवन चलाने के लिए मुश्किल पैदा करती जा रही है। नये आंकड़ो के मुताबिक़ लगातार पांचवें महीने में महंगाई दर में बढ़ोत्तरी हुई है जिस वजह से खाद्य पदार्थों में तेजी देखी जा रही है। द मिंट में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक़ सितंबर में भारत में खुदरा मुद्रास्फीति की दर 7.41 प्रतिशत पर पहुंच गई है। खाद्य मुद्रास्फीति की दर अगस्त 7.62 फीसदी से बढ़कर सितंबर में 8.60 फीसद हो गई है। डेटा के अनुसार तेल और बिजली के दामों में साल-दर-साल सितंबर में 11.44 फीसदी बढ़त हुई है, जबकि अगस्त में इसमें 10.78 प्रतिशत की बढ़त हुई थी।