भारत के अलग-अलग इलाकों में रहनेवाले लोग किसी भी तरह की प्राकृतिक आपदा से बचने के लिए अपने स्तर पर कुछ प्रारभिंक समाधान करते हैं। कई बाढ़ वाले क्षेत्रों में लोग नदी के कटाव रोकने के लिए लकड़ियों से बना जाल लगा देते हैं। ये केवल बाढ़ प्रभावित इलाकों में ही नहीं होता है। अन्य क्षेत्रों में हर साल आनेवाली अलग-अलग प्राकृतिक आपदाओं से बचने के लिए सामुदायिक स्तर पर, पंरपराओं के आधार पर लोग कई तरह के प्रबंध कर प्रारंभिक तौर पर खुद की और अपनी जगह की सुरक्षा करते हैं। ये उपाय पूरी तरह प्राकृतिक होते हैं। इसी वजह से इन्हें प्रकृति आधारित समाधान यानी ‘नेचर बेस्ड सलूशंस’ कहा जाता है। आइए विस्तार से जानते हैं कि नेचर बेस्ड सलूशंस क्या हैं और पर्यावरण के बढ़ते संकट को खत्म करने के लिए ये कितने महत्वपूर्ण हैं।
नेचर-बेस्ड सलूशंस क्या हैं?
नेचर बेस सलूशंस सुनने में एक नया टर्म लग सकता है लेकिन यह अवधारणा बहुत पुरानी और प्रचलित है। नेचर बेस सलूशंस का आशय सामाजिक-पर्यावरणीय चुनौतियों के समाधान के लिए प्रकृति के स्थायी प्रबंधन और उपयोग से है। आसान शब्दों में कहें तो प्रकृति के माध्यम से ही प्राकृतिक आपदाओं से होनेवाले नुकसान को कम करना। प्राकृतिक समाधान कोई नयी अवधारणा नहीं है। आज भी कई समुदाय, परंपराओं के तौर पर इनका पालने करते आ रहे हैं। इस तरह के समाधान लोगों में पीढ़ी दर पीढ़ी प्रचलित होते हैं। नेचर बेस्ड सलूशंस संरक्षण, बहाली और बेहतर भूमि प्रबंधन की क्रियाएं है जो कार्बन स्टोरेज को बढ़ाती है और आद्रभूमि में ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन से बचाती हैं।
इंटरनैशनल यूनियन फॉर कन्जर्वेशन ऑफ नेचर के अनुसार नेचर बेस्ड सलूशंस प्राकृतिक और पारिस्थितिक तंत्र की रक्षा, स्थायी प्रबंधन और दोबारा से स्थापित करने का काम है। ये सामाजिक चुनौतियों को प्रभावी तरीके से संबोधित करने के साथ-साथ मानव कल्याण और जैव विविधता से जुड़े लाभ भी देता है। ये जलवायु परिवर्तन, आपदाओं के खतरों में कमी, खाद्य और पानी सुरक्षा, जैव विविधता में नुकसान और मानव स्वास्थ्य जैसी चुनौतियों को लक्षित करते हैं।
नेचर बेस्ड सलूशंन के तरीके
इंसानी तौर-तरीकों और क्रियाकलापों के कारण पृथ्वी का अस्तित्व खतरे की तरफ बढ़ रहा है। लगातार दुनिया का तापमान बढ़ रहा है। नैशनल एकेडमी ऑफ साइंस और द नेचर कंजरवेसी और 15 अन्य संस्थानों के नेतृत्व में हुए अध्ययन के अनुसार साल 2030 तक नेचर बेस्ड सलूशंस की मदद से वैश्विक तापमान को दो डिग्री सेल्सियस से रखने में आवश्यक उत्सर्जन में 37 फीसदी की कमी संभव है।
नेचर बेस सलूशंस सुनने में एक नया टर्म लग सकता है लेकिन यह अवधारणा बहुत पुरानी और प्रचलित है। नेचर बेस सलूशंस का आशय सामाजिक-पर्यावरणीय चुनौतियों के समाधान के लिए प्रकृति के स्थायी प्रबंधन और उपयोग से है। आसान शब्दों में कहें तो प्रकृति के माध्यम से ही प्राकृतिक आपदाओं से होनेवाले नुकसान को कम करना।
नेचर बेस्ड सलूशंस को चार श्रेणी में बांटा गया है जिसमें जोखिम को कम करनेवाले, पारंपरिक, आजीविका और सामाजिक-आर्थिक विकास जैसे समाधान शामिल हैं। इस तरह से नेचर बेस्ड स्लूशंस के माध्यम से खेती के तरीकों में बदलाव कर प्रकृति के अनुरूप खेती करना, बाढ़ से निपटने के लिए वेटलैंड हैबिटैट्स बनाना, नेचर बेस्ड टूरिज्म को बढ़ावा देना और प्रकृति की सुरक्षा के उसी के अनुरूप योजनाओं को तैयार करना।
अमेरिकन यूनिवर्सिटी, वाशिंगटन डीसी के अनुसार भी मोटे तौर पर नेचर बेस्ड सलूशंस को चार श्रेणी में बांटा गया है। वेटलैड से जुड़ी प्रैक्टिस, जंगल, जमीन को उपजाऊ बनाने वाली खेती और महासागर बेस्ड प्रैक्टिस है। जगंल से जुड़े नेचर बेस्ड सलूशंस में नये जंगल लगाना, जंगलों को प्राकृतिक रूप से फिर से उगने देना जहां उन्हें काटा गया है और जंगल के प्रबंधन को बेहतर करना है। दूसरा वेटलैंड में तटीय क्षेत्र की भूमि की आर्द्रता बढ़ाना, मैग्रोव का संरक्षण करना आदि। खेती के आधार पर नेचर बेस्ड सलूशंस में सारा केंद्र फसलों का चक्र, एग्रोफॉरेस्टी, मिट्टी में कार्बन का निर्णामहै। समुद्र के आधार पर होनेवाली क्रियाओं में समुद्र के पारिस्थिकी तंत्र को बहाल करना करना या शेलफिश को बढ़ाना और समुद्री घास के मैदानों को बढ़ाना है।
इतना ही नहीं नेचर बेस्ड टूरिज्म को बढ़ावा देना भी इसके उदाहरणों में है। नेचर बेस्ड टूरिज्म के माध्यम से यात्रा के माध्यम से स्थानीय समुदाय और पर्र्यावरण दोनों को बचाने के प्रयास किए जाते हैं। लेकिन इसे कहने में भी कोई परहेज नहीं है कि ईकोटूरिज्म में बहुत ग्रीनवाशिंग भी है। इस वजह से ये प्रकृति के लिए समाधान कम मुश्किल ही बढ़ाने का काम करता है। ईको टूरिज्म के इस पहलू को ध्यान में रखने की बहुत ज्यादा आवश्यकता है।
नेचर बेस्ड सलूशंस क्यों महत्वपूर्ण हैं
नेचर बेस्ड सलूशंस लोगों और प्रकृति के बीच सामंजस्य स्थापित कर पारिस्थितिकी विकास को बेहतर करने का काम करते हैं। जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों और उसके प्रभावों से निपटने के लिए ये मनुष्य की प्राकृतिक तौर पर मदद कर संरक्षण में सहायक हैं। जलवायु परिवर्तन और उसके प्रभावों की स्थिति को देखें तो नेचर बेस्ड सलूशंस की बहुत उपयोगिता है।
नेचर बेस्ड सलूशंस स्थानीय लोगों की मदद करने और पारिस्थितिकी तंत्र की सेवाओं में सुधार करने और कार्बन के भंडारण में बहुत सफल रहे हैं। मिट्टी के कटाव, पानी की गुणवत्ता में सुधार, जैव विविधता को बढ़ाने में ये पूरी तरह मददगार हैं। द थर्ड पोल में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक नेचर बेस्ड सलूशंन के अनुसार सिक्किम में बेमौसम बाढ़ और भूस्खलन से निपटने के लिए नदी के किनारों की मजबूती के लिए देसी पौधों का उपयोग किया जाता है। इसके अलावा पूर्वोत्तर भारत में रिजेरेटिव एंड इंटीग्रेटेड फार्मिंग भी इसका उदाहरण है जो भोजन की आपूर्ति करते हुए उत्पादन प्रणालियों को सक्रिय कर देता है। भारत में नेचर बेस्ड टूरिज़्म को भी बढ़ावा देकर रोजगार के विकल्प तक बनाए जा रहे हैं। इस तरह की योजनाएं राजस्व को पैदा करने में भी मदद करती है।
नेचर बेस्ड सलूशंस को चार श्रेणी में बांटा गया है जिसमें जोखिम को कम करने वाले, पारंपरिक, आजीविका और सामाजिक-आर्थिक विकास है। इस तरह से नेचर बेस्ड स्लूशंस के माध्यम से खेती के तरीकों में बदलाव कर प्रकृति के अनुरूप खेती करना, बाढ़ से निपटने के लिए वेटलैंड हैबिटैट्स बनाना, नेचर बेस्ड टूरिज्म को बढ़ावा देना और प्रकृति की सुरक्षा के उसी के अनुरूप योजनाओं को तैयार करना।
भारत में नेचर बेस्ड सलूशंस की दिशा में काम
भारत दुनिया के उन देशों में शामिल है जिसने पेरिस जलवायु समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। जलवायु परिवर्तन की समस्या के समाधान के लिए नेचर बेस्ड सलूशंस की नीतियों का कई स्तर पर इस्तेमाल किया जा रहा है। द हिंदू में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार भारत में नेचर बेस्ड सलूशंस की कई सफल कहानियां हैं जिनमें से अधिकांश ग्रामीण क्षेत्र से आती हैं। महाराष्ट्र के कोकण क्षेत्र चिरगाँव में घटती गिद्धों की संख्या में बढ़ोतरी के लिए प्रकृति आधारित समाधान का इस्तेमाल किया गया है। तेलगांना के कई किसान हैं जो जैविक खेती कर रहे हैं। इस क्षेत्र में प्राकृतिक कृषि की पद्धतियों को सामूहिक तौर पर अपनाया जा रहा है। पिछले सालों में द इंस्टीट्यूट फॉर ट्रांसपोर्टेशन एंड डेवलपमेंट पॉलिसी के तहत चेन्नई और पुणे शहर में परिवहन के मॉडल में परिवर्तन करने का काम किया है।
नेचर बेस्ड सलूशंस के तहत ही भारत के कई शहरों में प्राकृतिक जल प्रबंध के डिजाइन को अपनाया जा रहा है। वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट के ब्लॉग के अनुसार एशियन सिटीज क्लाइमेट चेंज रिजिलिएंस नेटवर्क सूरत, गुजरात के माध्यम से प्राकृतिक जल प्रबंधन और शहर में बाढ़ से होनेवाले नुकसान से बचने के लिए मॉडल को डिजाइन किया गया है। ठीक इसी तरह मध्य प्रदेश के बुरहानपुर और इंदौर में भी पारंपरिक जल स्रोतों के सरंक्षण के लिए मदद की गई। एक ओर जहां दूर-दराज क्षेत्रों में लोग अपने समुदाय या परंपराओं के तौर पर नेचर बेस्ड सलूशंस से प्रकृति का संरक्षण कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर, शासन के स्तर पर भी प्रबंधन योजनाओं में शहरों के ढ़ांचे को प्रकृति के अनुरूप और उसको बचाने वाले कदमों को शामिल किया जा रहा है।
नेचर बेस्ड सलूशंस स्थानीय लोगों की मदद करने और पारिस्थितिकी तंत्र की सेवाओं में सुधार करने और कार्बन के भंडारण में बहुत सफल रहे हैं। मिट्टी के कटाव, पानी की गुणवत्ता में सुधार, जैव विविधता को बढ़ाने में ये पूरी तरह मददगार हैं।
सिर्फ भारत में ही नहीं दुनिया के अलग-अलग देशों में नेचर बेस्ड सलूशंस की दिशा में बड़े-बड़े कदम उठाए जा रहे हैं। सूखे, पानी की कमी और भूस्खलन का समाधान निकालने के लिए में स्प्रिंगशेड मैनेजमेंट जैसे नेचर बेस्ड सलूशंस पर भी ध्यान दिया गया है। नेचर बेस्ड सूलशंस के डिजाइन को लेकर आईयूसीएन ने कुछ वैश्विक मानक का सुझाव दिया है। इसके मुताबिक ऐसे समाधान का डिजाइन बड़े स्तर का होना चाहिए। बायोडायवर्सिटी नेट गेन का प्रदर्शन होना चाहिए। आर्थिक रूप से व्यवहारिक होना चाहिए।
जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता और विकास से जुड़े खतरों को हल के लिए नेचर बेस्ड सलूशंस को लागू करना न केवल हमारी ज़रूरत है बल्कि मजबूरी भी है। पृथ्वी के जीवन का संकट को टालने के लिए उसके आधार पर उसको बचाने वाले कदम ही एकमात्र विकल्प है इसलिए बड़ी संख्या में नेचर बेस्ड सलूशंन को अपनाने पर जोर दिए जाने की ज़रूरत है।