संस्कृतिमेरी कहानी एक वायरल वीडियो के बहाने, ‘बिहारी’ होने के कुछ ‘ऑटोएथनोग्राफिक’ नोट्स!

एक वायरल वीडियो के बहाने, ‘बिहारी’ होने के कुछ ‘ऑटोएथनोग्राफिक’ नोट्स!

मैंने विश्वविद्यालय और अन्य जगहों पर एक और बात नोटिस की है, वह यह है कि बिहारी अस्मिता के नाम पर केवल बिहारी उच्च जाति के पुरुष सारा स्पेस ले लेते हैं। महिलाओं और अन्य जातिगत पहचान के लोगों के बिहारी होने के अनुभव को बिहार से बाहर अन्य बिहारी खुद जगह नहीं देते हैं। उनके पास बिहारियों के साथ अन्य राज्य वालों द्वारा किए गए भेदभाव को लेकर शिकायत तो रहती है, लेकिन वह बिहार के प्रतिनिधित्व में अनुभवों, पहचानों की विविधता नहीं देखना चाहते।

कई दिनों बाद आज फ़ेसबुक पर पहुंची तो नयी ख़बर मिली। ख़बर थी, इंटरनेट पर एक वायरल वीडियो के बारे में। यह वीडियो मुख्यतः बिहारी होने के मायने, अनुभवों पर अलग-अलग उदाहरणों से स्पोकन वर्ड आर्ट की विधा में कुछ कह रहा है। कहनेवाले का नाम है साहिल कुमार। 23 वर्षीय कुमार नालंदा के रहनेवाले हैं। इस ‘कहन’/स्पोकन वर्ड को कविता कही जा सकती है या नहीं इस पर साहित्यकारों और/या सोशल मीडिया साहित्यिकरों के बीच एक अलग डिबेट हो सकती है कि कविता क्या है? लेकिन यह लेख उस वाद-विवाद और उससे निकले नतीजे पर बात नहीं करता है। अलग-अलग राज्यों से आए लोगों को लेकर जो विभिन्न असंवेदनशील शब्द हैं उस पर साहिल कुमार का वीडियो टिप्पणी करता है।

हालांकि, वीडियो में साहिल कुमार ने गणित को शून्य देनेवाले आर्यभट्ट के लिए ‘व्यभिचारी’ शब्द का प्रयोग कर दिया, उनकी इस शाब्दिक भूल-चूक को ‘ग़लती से मिस्टेक’ की सूची में डाला जा सकता है। इस ख़बर से मेरे फ़िलहाल दिल्ली में बीत रहे दैनिक जीवन में शायद ही कुछ ख़ास बदलाव हो, लेकिन ‘बिहारी’ अस्मिता अंदर से बोल पड़ी, ‘ऐसे कैसे!।’ इसलिए ‘बिहारी’ होने के इर्दगिर्द जो मेरे अनुभव बने-बुने हैं उस पर कुछ ऑटोएथनोग्राफिक नोटस लिख रही हूं। लेख के साथ आगे बढ़ते-बढ़ते आपको ‘ऐसे कैसे’ के कुछ कारण पता चलते रहेंगे।

दिल्ली विश्वविद्यालय आने से पहले मैं कलकत्ता के एक इंजीनियरिंग कॉलेज में थी। जब कलकत्ता जाने की बात आसपास के लोगों को पता चली, एक अंकल ने हितैषी के रूप में मुझे समझाया था कि बंगालियों से बचकर रहूं, वे ‘बर्बाद’ कर देते हैं। हालांकि, उन्होंने बाइनरी सेक्स की बराबरी बरतते हुए बंगाली लड़के और लड़कियां दोनों से ही सतर्क रहने को कहा। यह बातचीत बिहार के ज़िला भागलपुर, मेरे होमटाउन में हो रही थी। यह अंकल पढ़े-लिखे थे और भागलपुर के जिलाधिकारी के पर्सनल असिस्टेंट थे। मुझे उनकी सलाह बहुत काम की लगी नहीं, क्योंकि मुझे नये घनिष्ठ दोस्त बनाने और सोशलाइज़ करने में ख़ास दिलचस्पी नहीं रहती है। 

कलकत्ता में जिस संस्थान में मैं थी वहां क्लास के विद्यार्थियों को मोटामोटी दो गुटों में बंटा जा सकता था। ज्यादातर बंगाली, ज़ाहिर सी बात है, और लगभग उनसे थोड़ी कम संख्या में बिहारी। कलकत्ता छोड़ने तक मेरी ठीकठाक दोस्त जिससे रोज़ बात हो जाती हो, उनमें से एक बंगाली सीनियर महिला थीं और दो बिहारी सीनियर पुरुष। इनके अलावा एक बंगाली सीनियर को मैं उनकी कलात्मकता की वजह से बहुत पसंद करती थीं। वह अच्छी पेंटिंग करती थी! मुझे याद है एक बार मैंने उनकी एक तस्वीर भी बनाई थी। हालांकि हमारे कोई ख़ास बातचीत कभी नहीं हो पाई, आज भी वो मेरे सोशल मीडिया पर हैं और कभीकभार के ‘लाइक’ से हमें एक दूसरे के होने का पता चलता रहता है।

बिहार में बंगालियों ख़ासकर बंगाली महिलाओं को लेकर अक्सर ऐसी बातें सुनने में आती हैं। सुशांत सिंह राजपूत के निधन के बाद, प्राइम टाइम से लेकर ट्रोल्स बंगाली महिलाओं की टार्गेटेड सल्ट शेमिंग करते देखे गए। उन्हें “भोले लड़कों को प्रेम में फंसाने”, “काला जादू करनेवाली” महिलाएं बताया गया। कई बंगाली महिलाएं जैसे टीएमसी की नेता नुसरत जहान, बीजेपी महिला मोर्चा की अध्यक्ष अग्निमित्रा पोल ने इस हेट स्पीच के विरोध में बयान दिए। रूपा चक्रबर्ती खान नामक बंगाली महिला ने इस तरह के ऑनलाइन पोस्ट और ट्रोलिंग के ख़िलाफ़ पुलिस में शिकायत दर्ज़ की थी। “लोग इस तरह के बेवकूफ़ाना समानीकरण कैसे कर सकते हैं। बंगाली महिलाओं को गोल्ड डिग्गर्स कहा जा रहा है, खान ने कहा था। थोड़े और नज़दीक से देखें तो भोजपुरी मुख्यधारा में आपको ऐसे कई गाने मिलेंगे जो कहते हैं कि बिहार की महिलाएं बंगाली महिलाओं से असुरक्षित महसूस करती हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि बंगाली महिलाएं जानबूझकर उनके पति को उनसे दूर करती हैं। जैसे इस गाने को देखिए:

“दिल्ली गुजरात बम्बे गोवा चाहे झाझा
जाऐ के बा त जाई रोकब ना ऐ राजा
रोकब ना ऐ राजा !
अरे दिल्ली गुजरात बम्बे गोवा चाहे झाझा
जाऐ के बा तs जाई रोकब ना ऐ राजा
जंतर मंतर जादू जंतर टोना कसेले
की पिया मोरा जाहु जनि कलकतिया
उहा सवतिया बसेले”

गाना 2:


“तोहसे निक बा बंगाल वाला पनिया अरे पनिया
तs मति मार के भतार के फसवलस रे बंगलिनिया”

ऐसे कई गाने आपको यूट्यूब पर सुनने को मिल जाएंगे। इन गानों की पृष्ठभूमि को समझने के लिए यह जानना ज़रूरी है कि बिहार से हर साल नौकरी, रोज़गार की तलाश में लोग बड़ी संख्या में अन्य राज्यों में जाते हैं, जिसमें बंगाल एक प्रमुख राज्य है। 90% मौसमी प्रवासी बिहारी होते हैं। ऐसे गाने लिखनेवालों की कल्पना का बीज यहां से उपजता है। लेकिन वे प्रवासी श्रमिक बिहारियों को केवल पुरुष मानते हैं, जबकि दिल्ली में मौजूद महिला प्रवासियों में सबसे अधिक महिलाएं बिहार और उत्तर प्रदेश से होती हैं।

प्रवासी बिहारी पुरुषों की पीछे छूटी पत्नियों की सामाजिक आर्थिक स्तिथि पर गंभीरता से बात होनी चाहिए। इनमें से अधिकतर महिलाएं बहुजन समाज से होती हैं और अकेले घर संभाल रही होती हैं। जो गाने उन्हें बंगाली महिलाओं को ‘दूसरी औरत’ बताकर उनके सामने खड़ा करते हैं, कितने स्त्रीद्वेष से भरे होते हैं यह उनके बोल से पता चलता है। वहीं, एक गाना है:

“हरदम फेरा में रहेला सवतिनिया के
एहमे दोष नईखे
एहमे दोष नईखे कोनो बंगलिनिया के
झूठे बदनाम बा बंगाल के चितबदलि
नेचर सिगनेचर तोहार कबहुँ ना बदली”

इसका भाव अन्य गानों से अलग जान पड़ता है। इसमें पिछले गानों की तरह पति को ‘भोला’/’नासमझ’ और बंगाली महिला को ‘उसे फंसाने वाली चतुर औरत’ नहीं बताया जा रहा है। प्रेम और रिश्तों की गंभीरता को समझें तो संभव है कि बिहार से कमाने गए पुरुष को उस नयी जगह पर किसी अन्य इंसान से लगाव या प्रेम महसूस हो। वहीं बिहार में रह रही उसकी पत्नी को मुमकिन है इससे परेशानी या जलन हो सकती है, लेकिन ये उनका आपसी मामला होगा। इसे बंगाली और बुरी और बिहारी पुरुष भोला जैसी बाइनरी में बांधना ग़लत है।

इसी तरह की बात बिहारियों के साथ दिल्ली में होती हैं जिसका ज़िक्र इस वायरल वीडियो में है। जैसे बिहार शब्द का गाली की तरह प्रयोग किया जाना एक आम बात है। हालांकि मैंने स्वयं ऐसा कुछ नहीं अनुभव किया, लेकिन, “आप बिहारी लगती नहीं हैं” तारीफ़ की तरह मुझसे कुछ लोगों ने कहा है। मुझे यह कहीं से भी तारीफ़ तो नहीं लगती है। मैं इसे ‘बिहारी पासिंग’ कहूंगी यानी कई बार लोग मुझे बिहारी नहीं समझते। लेकिन कई बार वे मुझे बंगाली या कई बार ‘साउथ इंडियन’ समझ लेते हैं, इस तरह के पूर्वाग्रह मुझे खुद में बहुत रोचक भी लगते हैं।

अभी बीते हफ्ते ही नॉर्थ दिल्ली के विजय नगर मोहल्ले में एक अधेड़ उम्र का एक पुरुष “केरला वापस जाओ” कहते हुए मेरे बगल से गुजर गया। उस व्यक्ति का यह कैंपस में केरल से आए विद्यार्थियों के प्रति फैलाए गए नफ़रत की झलक है। साल 2021 में केरल के विद्यार्थियों के लिए किरोड़ीमल कॉलेज के प्रोफेसर राकेश पांडेय ने ‘मार्क्स ज़िहाद’ शब्द का प्रयोग करते हुए कहा था, “केरल के विद्यार्थी दिल्ली विश्वविद्यालय को दूषित कर रहे हैं। यह लेफ्टिस्ट मार्क्स ज़िहाद एजेंडा है।”

मैंने विश्वविद्यालय और अन्य जगहों पर एक और बात नोटिस की है, वह यह है कि बिहारी अस्मिता के नाम पर केवल बिहारी उच्च जाति के पुरुष सारा स्पेस ले लेते हैं। महिलाओं और अन्य जातिगत पहचान के लोगों के बिहारी होने के अनुभव को बिहार से बाहर अन्य बिहारी खुद जगह नहीं देते हैं। उनके पास बिहारियों के साथ अन्य राज्य वालों द्वारा किए गए भेदभाव को लेकर शिकायत तो रहती है, लेकिन वह बिहार के प्रतिनिधित्व में अनुभवों, पहचानों की विविधता नहीं देखना चाहते। जैसे, बिहारी लड़के बड़े नॉस्टेल्जिया के साथ अपने गाँव को याद करते हैं, शादियों में होने वाली लड़कपन की छेड़छाड़ को याद करते हैं, पुरानी प्रेमिकाओं की बात करते हैं लेकिन उनकी इस नॉस्टेल्जिया ट्रिप में कहीं भी महिला अनुभव/गेज़ की मौजूदगी नहीं होती, न ही वे इस गैप पर ध्यान देकर काम करते दिखते हैं। 

इससे उनके बोलने में क्षेत्रीय टच तो बिल्कुल होता है, जिससे वे ‘र’ और ‘ड़’ को एक कर देते हैं लेकिन भाषा उनकी पितृसत्तात्मक ही होती है। जहां तक ‘र’ और ‘ड़’ को एक कर देनेवाली बात है जैसा कि वायरल वीडियो में भी साहिल कुमार कहते सुनाई देते हैं, कारण सम्भतः यह है, कई बिहारी क्षेत्रीय भाषा/बोली में इन अक्षर से निकलने वाली ध्वनि अलग अलग नहीं हैं। इस तरह से बोलने की ट्रेनिंग के कारण कई बिहारियों की हिंदी और अंग्रेज़ी में भी ‘ड़’ की जगह ‘र’ ले लेता है। प्रोफ़ेसर हैनी बाबू ने एक ख़ास तरह के डायलेक्ट में हिंदी बोलने जिससे इंसान के क्षेत्रीय भाषा का टच जबदरस्ती ग़ायब किया गया हो उसकी आलोचना की है। 

कुछ वोक ज़ेन-जी बिहारियों को मैंने बिहार की आलोचना करते भी खूब सुना है, जिससे मुझे कोई तकलीफ़ नहीं। ये लोग बिहारी कला और संस्कृति पर अपने सामाजिक-संस्कृतिक पूंजी के कारण अपनी हिस्सेदारी भी दिखा लेते हैं, लेकिन अपना आर्थिक, जातिगत विशेषाधिकार अन्य बिहारियों के साथ बिहार के बाहर प्रवासी की तरह मिलने पर भी साझा करना नहीं चाहते। ऐसे बिहारी जब इस वायरल वीडियो या इसके जैसे अन्य किसी वीडियो पर इतराते हैं तब मुझे हंसी आती है!


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