ग्राउंड ज़ीरो से लाखों रुपये की शादियों में कुछ हज़ार रुपयों पर घंटों काम करतीं घरेलू कामगारों की आपबीती!

लाखों रुपये की शादियों में कुछ हज़ार रुपयों पर घंटों काम करतीं घरेलू कामगारों की आपबीती!

रौनकों और खुशी के माहौल में अपने काम के बीच घर की सीढ़ियों या कोने में खड़ी होकर अजनबियों की खुशी में खुश होती घरेलू कामगार महिलाओं को आपने अक्सर शादी वाले घरों में देखा होगा।

ममता, संतोष, विमला नाम अलग-अलग ज़रूर हैं लेकिन इन महिलाओं के काम और संघर्ष लगभग एक जैसे हैं। घरेलू कामगार के तौर पर काम करनेवाली ये महिलाएं दिनभर लोगों के घर काम करती हैं लेकिन कामकाजी महिलाओं की श्रेणी से बाहर हैं। कामकाजी महिलाओं के तौर अपनी पहचान से ये खुद भी अंजान हैं। शहरी जीवन में ‘घरेलू कामगार महिलाओं’ की महत्वपूर्ण भूमिका है। इनकी ड्यूटी सुबह से लेकर देर शाम तक चलती है। हर दिन ये लगभग 10 घंटे घर से बाहर जाकर काम करती हैं। यही घरेलू कामगार महिलाएं शादी के सीजन में आम दिनों से ज़्यादा काम करती हैं ताकि उनकी आमदनी थोड़ी अधिक हो सके।

भारतीय समाज में शादी-उत्सव के दौरान परिवार-रिश्तेदार सब लोग इकठ्ठे होते हैं। अपने विशेषाधिकारों को ‘सहूलियत’ का नाम देकर उच्च या मध्यम वर्ग के लोग लिए इन उत्सवों में बर्तन धोने, खाना बनाने और साफ-सफाई के लिए कामगारों को कुछ दिन के लिए काम पर रखते है। आम दिनों में सुबह से शाम तक काम करनेवाली ये घरेलू कामगार महिलाएं शादियों में काम करने के लिए अपने काम से या तो छुट्टी लेती हैं या फिर जल्दी जाकर काम पूरा करने के बाद शादी-उत्सव वाले घरों में काम करने के लिए पहुंच जाती हैं।

रौनक और खुशी के माहौल में अपने काम के बीच घर की सीढ़ियों या कोने में खड़ी होकर अजनबियों की खुशी में खुश होती घरेलू कामगार महिलाओं को आपने अक्सर शादी वाले घरों में देखा होगा। अपने आम दिनों के काम और शादियों में अतिरिक्त काम के अनुभव और उनकी मुश्किलों को जानने के लिए हमने ऐसी ही कुछ घरेलू महिला कामगारों से बात की। 

संतोष।

40 वर्षीय संतोष एक घरेलू कामगार के तौर पर काम करती हैं। वह मुज़फ़्फ़रनगर शहर के पांच घरों में सुबह से शाम तक काम करती हैं। बीते दस साल से संतोष घरेलू कामगार के तौर पर काम कर रही हैं। रोज के नौ घंटे काम करनेवाली संतोष महीने के मुश्किल से आठ हजार रुपये कमा पाती है। संतोष अपनी दूसरी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए शादियों के सीजन में काम से अलग पार्ट टाइम सात-आठ दिन के लिए कुछ ऐसे घरों का काम ले लेती हैं। अपने काम और पैसे के बारे में बात करते हुए वह कहती हैं, “पति शराब पीकर घर में कुछ सामान नहीं लाता था, चिल्लाता था और घर में तमाशा होता था। बच्चे छोटे थे और भूखे रोते थे। मैं पढ़ी-लिखी तो हूं नहीं तो ऐसे हालातों में जो काम मुझे आता था मैंने वही करना चुना और औरों के घरों में साफ-सफाई का काम करना शुरू कर दिया।”

अपनी पहली तनख्वाह के बारे में संतोष बताती हैं, “मैंने बाइस सौ रुपये से काम शुरू करना शुरू किया था। जब पूरे महीने काम करने के बाद मुझे रुपये मिले थे वह दिन मुझे आज भी याद है। मेरा बेटा बहुत छोटा था। मैंने उसे अपने बटुए से खुद से कमाएं पैसे से टॉफी खरीदने के लिए रुपये दिए थे। आज मैं अपने दम पर अपने दोनों बच्चों को पढ़ा रही हूं। वे क्या करेंगे जीवन में ये तो पता नहीं लेकिन मुझे इतना पता है कि पढ़ना बहुत ज़रूरी है।”

रौनक और खुशी के माहौल में अपने काम के बीच घर की सीढ़ियों या कोने में खड़ी होकर अजनबियों की खुशी में खुश होती घरेलू कामगार महिलाओं को आपने अक्सर शादी वाले घरों में देखा होगा। अपने आम दिनों के काम और शादियों में अतिरिक्त काम के अनुभव और उनकी मुश्किलों को जानने के लिए हमने ऐसी ही कुछ घरेलू महिला कामगारों से बात की। 

शादी के सीजन में अतिरिक्त काम करने के चयन के बारे में बात करने पर संतोष कहती हैं, “दिनभर बहुत मेहनत करके एक बंधी कमाई आती है। बच्चे बड़े हो गए हैं तो उनकी ज़रूरतें और इच्छाएं भी बढ़ गई हैं। ऐसे में दूसरों के घर में शादी-जन्मदिन ऐसा मौका है जब कुछ ज्यादा पैसे कमा कर अपनी पसंद की खरीदारी या फिर घर में एक फालतू सामान लेने की इच्छा पूरी लेती हूं। इससे कुछ पैसे अपने पास जमा भी हो जाते हैं।”

इस दौरान काम करने की दिनचर्या को लेकर संतोष का कहना है, “इच्छा ऐसी ही चीज़ होती है। हमें भी दो पैसों का लालच आ जाता है कि सात-आठ दिन की ही तो परेशानी है। थोड़ा सहकर ही कुछ मिलता है। इस दौरान और जल्दी उठकर काम पर पहुंच जाते हैं और वह पूरा करने के बाद शादी वाले घरों में जाते हैं। कुछ लोग साथ देते हैं तो चार-पांच दिन की छुट्टी भी दे देते है। पांच अंगुली बराबर नहीं होती है तो लोग भी अलग-अलग होते हैं। कई बार बहाना बनाकर भी छुट्टी लेनी पड़ती है। कहीं काम के दौरान बहुत प्यार मिलता है तो कहीं-कहीं बहुत बुरा बर्ताव होता है। मैं तो अक्सर चुपचाप अपने काम में लगी रहती हूं। ज्यादा बोलती नहीं हूं जिससे कोई कुछ न कहे और न ही कुछ सुनना पड़े।”

“बारह घंटे काम जिसकी कोई कद्र नहीं होती”

तस्वीर में विमला।

50 साल की विमला आम दिनों में घर से काम के लिए सुबह छह बजे निकल जाती हैं और रोज शाम को लगभग छह बजे ही वापस आती हैं। दिन के बारह घंटे वह बाहर बिताती हैं। विमला एक घरेलू कामगार महिला हैं। लगभग बीस साल से वह लोगों के घरों में साफ-सफाई और बर्तन धोने का काम करती हैं। शादियों के घरों में काम करने को लेकर विमला का कहना है, “पिछले दो-तीन सालों से तो मैं शादी के सीजन में फालतू काम नहीं लेती हूं लेकिन कोई बहुत खास जान-पहचान वाला होता है तो उनको मना नहीं कर सकते हैं।”  विमला ने वर्तमान में तीन घरों का काम पकड़ा हुआ है जिसमें उनका सारा समय चला जाता है।

शादियों में कामगार के तौर पर काम करने के अनुभव के बारे में उनका अनुभव अच्छा और बुरा दोनों रहा है। वह बताती हैं, “शादियों में दस लोगों का काम होता है और दस लोगों की बात सुनने को मिलती है। सुबह से लेकर देर रात तक ही काम करना पड़ता है। पैसे को देखते हुए लगता है कि दो-चार रुपया ज्यादा आ जाएगा तो एक चीज़ घर में फालतू हो जाएगी। लेकिन परेशानी बहुत ज्यादा और काम का भार बहुत ज्यादा बढ़ जाता है। पूरा दिन लगातार बर्तन धोते रहना। लोग भी थोड़ी देर हो जाएं तो एकदम चिल्लाना शुरू कर देते हैं। शादियों वाले घर में पूरा दिन भाग-दौड़ में गुजर जाता है। कहीं बहुत अपनापन मिलता है। वे लोग अपनी रस्मों में भी शामिल करते हैं मान देते हैं। कहीं मालिक बहुत अच्छा होता है लेकिन उनके घर आने वाले मेहमान बहुत बुरे होते हैं। दूसरा अक्सर हमें कामवाली कहा जाता है। ये हमारे काम या हमारी मेहनत की कोई कद्र नहीं करते हैं ऐसा महसूस कराते है कि हम तो मुफ्त में ही रुपये लेते हैं। ये चीजें मन तोड़ने वाली होती है।”

विमला का आगे कहना है, “शादी वाले घरों में बहुत कीमती सामान होता है किसी का कुछ भी गुम हो जाए तो हमें ही चोर नज़र से देखा जाता है। ये चीज़ें मन दुखाती हैं। चोरी-धोखाधड़ी ही करनी होती तो 12-12 घंटे मेहनत क्यों करते। कुल मिलाकर हम गरीब लोग हैं और केवल मेहनत ही है हमारे पास जिसके दम पर हम जी रहे हैं। शादियों के सीजन में और ज्यादा मेहनत कर लेते हैं।”

“मुझे खाना बनाना और खिलाना दोनों पसंद है”

तस्वीर में ममता।

48 साल की ममता मूल रूप से उत्तराखंड की रहनेवाली हैं। काम की तलाश में पति के साथ नौ साल पहले उत्तर प्रदेश के मुज़फ़्फ़रनगर में रहने आ गई थीं। दो कमरों के एक पुराने किराये के मकान में वह अपने चार बच्चों के साथ रहती हैं। ममता के तीन बेटियां हैं। ममता लोगों के घरों में खाना बनाने और बर्तन धोने का काम करती हैं। वह शादी के सीजन में भी लोगों के घरों में खाना बनाने का काम करती हैं। पिछले नौ सालों से वह लगातार हर सीजन में कई शादियों में खाना बनाने का काम करती है।

ममता का कहना है, “मुझे खाना बनाने का बहुत शौक है फिर दूसरा काम मुझे कुछ आता भी नहीं है। तीन बेटियों की माँ हूं मुझे तो और भी मेहनत करनी है कल को उनको भी दूसरे घर भेजना है। इसी वास्ते हर सीजन में शादियों वाले घरों में रोटी बनाने का काम भी कर लेती हूं। आम दिनों में जिन घरों में काम करने जाती हूं उस दौरान मेरी जगह मेरी बेटियां चली जाती है। एक हफ्ते की छुट्टी मिलनी तो नामुमकिन है।”

आगे वह बताती हैं, “शादी-ब्याह में तो खाना-पीना ही सबसे ज्यादा होता है। मैं काम करने से कभी पीछे नहीं हटती हूं। सुबह से लेकर रात तक काम में लगी रहती हूं। अब ज्यादा लोग मेहमान बनकर आते हैं तो खाना तो ज्यादा बनेगा ही। नाश्ते के बाद दोपहर की तैयारी शुरू हो जाती है। दोपहर के बाद कुछ समय का टाइम बच जाता है उसके बाद शाम से ही रात के खाने की तैयारी शुरू हो जाती है। चाय बनाने का काम तो साइड में बराबर चलता रहता है। खासतौर से आदमियों की वजह से रात के समय में परेशानी होती है। घर के मर्दों की गर्म रोटियों के चक्कर में कई बार तो मुझे ग्यारह भी बज जाते हैं। अगले दिन फिर सुबह काम पर पहुंचना होता है। इनती मेहनत केवल इस वजह से कर पाती हूं कि मुझे ये काम पसंद है। मैं खुश रहती हूं कि इस काम की वजह से हम खुद भी रोटी खा रहे हैं। शादियों में काम करके एक तो महीने का फालतू पैसा कमा लेते हैं, नेग मिल जाता है लोग मिठाई भी दे देते है जिससे हमारे बच्चे भी कुछ खा लेते हैं। हमारे लिए तो ये परदेश है यहां कोई सगा-संबंधी नहीं है तो और की खुशी में ही खुश हो लेते हैं।”  

पेशे से घरेलू कामगार विमला कहती हैं, “अक्सर हमें कामवाली कहा जाता है। ये हमारे काम या हमारी मेहनत की कोई कद्र नहीं करते हैं ऐसा महसूस कराते है कि हम तो मुफ्त में ही रुपये लेते हैं। ये चीजें मन तोड़ने वाली होती है।”

लाखों रुपये की शादियों में मात्र कुछ हजार में चौदह-पंद्रह घंटे काम करनेवाली घरेलू कामगार महिलाएं थोड़े ज्यादा पैसे कमाने के लिए काम का अतिरिक्त दवाब होता है। दस-बीस साल से लगातार काम करने के बाद भी उनके पास कामकाजी होने का दर्जा नहीं है। दिनभर काम करने के बाद भी उनके काम को महत्वपूर्ण नहीं माना जाता है। उन्हें छोटी सी गलती पर अपमानित किया जाता है। कार्यस्थल और उसको लेकर सुविधाएं जैसी बातें तो घरेलू कामगार महिलाओं के लिए दूसरी दुनिया की बातें हैं। बतौर कामगार उनको सहूलियत क्या चाहिए इसके लिए उनका कहना होता है कि बस लोग थोड़ा सम्मान दे दें यहीं सबकुछ है। इंटरनैशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन के अनुसार भारत में तीन मिलियन महिलाएं कामगार के तौर पर काम करती हैं। हालांकि, इनकी सेवाओं को कमतर आंकते हुए इनकी संख्या को भी कम आंका गया है। इनकी वास्तविक संख्या इससे कही ज्यादा है। 

घरेलू कामगार महिलाओं के काम को लेकर कोई तय नियम न होने की वजह से वे घंटों लगातार न्यूनतम मज़दूरी से भी कम पर मेहनत करती रहती हैं। कम आय के चलते ही वे शादी-जन्मदिन जैसे समारोह में शामिल होकर अतिरिक्त पैसा के लिए मशीन की तरह काम करती रहती हैं। हमारे रोज़मर्रा के जीवन में आसपास के घरों में काम पर आनेवाली इन महिलाओं के हम चेहरे से परिचित भले ही हो जाते हैं लेकिन उनके काम को महत्व देने में चूक जाते हैं।


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