स्वास्थ्यशारीरिक स्वास्थ्य ओवेरियन सिस्टः जागरूकता और सही समय पर इलाज ही है बचाव

ओवेरियन सिस्टः जागरूकता और सही समय पर इलाज ही है बचाव

अधिकांश शोध बताते हैं कि दुनिया में 8 से 18 प्रतिशत महिलाओं को अपने जीवन में किसी न किसी पड़ाव में ओवेरियन सिस्ट का सामना करता पड़ता है।

दिल्ली के लक्ष्मी नगर में रहनेवाली सविता बताती हैं कि वह पिछले कई सालों से ओवेरियन सिस्ट की समस्या से ग्रसित हैं। सर्जरी हो जाने के बाद भी वह पूरी तरह से इससे निजात नहीं पा सकीं। वह आगे कहती हैं कि अस्पताल में वह अपनी समस्या पुरुष डॉक्टर्स की तुलना में महिला डॉक्टर्स को बताने में अधिक सहज महसूस करती हैं। यह अनुभव इकलौती सविता के नहीं हैं। हमारे समाज में बहुत सी महिलाएं हैं जो खुद के शारीरिक स्वास्थ्य को लेकर बात करने में हर किसी के सामने हिचकिचाहट रखती है।

हमारे समाज में औरतों से जुड़े केवल कुछ बाहरी शारीरिक मुद्दों पर ही खुलकर बात होती है। इसके अलावा अंदरूनी शारीरिक समस्याओं और बीमारियों को लेकर भारतीय महिलाएं कम सचेत हैं। यहीं नहीं, अपने शरीर से जुड़ी बातें करने को लेकर महिलाओं को जज तक किया जाता है।

ओवेरियन सिस्ट क्या है? 

ओवेरियन सिस्ट या अंडाशय में गांठें बनना एक सामान्य समस्या है। हेल्थ न्यूज में प्रकाशित जानकारी के अनुसार अधिकांश शोध बताते हैं कि दुनिया में 8 से 18 प्रतिशत महिलाओं को अपने जीवन में किसी न किसी पड़ाव में ओवेरियन सिस्ट का सामना करता पड़ता है। भारत में प्रजनन आयु वर्ग की लगभग 25 प्रतिशत महिलाओं में यह समस्या सामने आती हैं।

ओवेरियन सिस्ट या अंडाशय में गांठें एक आम बीमारी है, जो प्रजनन प्रणाली (Reproductive System) से जुड़ी है। हम इसे आसान तरीके से समझते है, पीरियड्स होने वाले लोगों के यूट्रस या गर्भाशय या बच्चेदानी के दोनों ओर अंडाकार आकार के दो अंडाशय या ओवरी होती है। इन ओवरी का काम अंडा (Follicle) बनाना साथ ही एस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रोन हॉर्मोन को रिलीज़ करना होता है। यूट्रस में मौजूद अंडे प्रेगनेंसी के लिए अहम होते है। कई बार ओवरी में छोटी गांठें बन जाती हैं जो किसी थैली में भरे तरल पदार्थ जैसी होती है, इन्हें ही ओवेरियन सिस्ट या अंडाशय में गांठें हो जाना कहा जाता है। ये सिस्ट कई तरह की होती हैं। 

तस्वीर साभारः Health Direct

ओवेरियन सिस्ट क्यों होते हैं? 

पीरियड्स होने वाले लोगों के शरीर में हर महीने मेंस्ट्रुअल साइकल के दौरान एक अंडा बनता है और फूट जाता है और अगले महीने फिर से एक अंडा बनता है और फूट जाता है। पीरियड्स के लिए यह क्रम चलता रहता है। लेकिन कभी-कभी इसके बनने बिगड़ने की प्रक्रिया में गड़बड़ी हो जाती है जिस वजह से अंडा या फोलीकल फूट नहीं पाता और अंडे की गांठें बन जाती है। इसी तरह कई बार ऐसा भी होता है फोलीकल फूट जाने के बाद उसमें पानी इकट्ठा हो जाता है जिससे पानी की गांठें बन जाती हैं। ये सामान्य गांठें हैं जो बनने-बिगड़ने की प्रक्रिया में समस्या का कारण बन जाती है।  

ओवेरियन सिस्ट के लक्षण

मायो क्लीनिक के द्वारा छपी जानकारी के अनुसार अधिकांश ओवेरियन सिस्ट में कोई लक्षण नहीं होते हैं और ये अपने आप में ठीक हो जाती हैं। लेकिन बड़ी आोवेरियन सिस्ट से कई कारण बन सकते हैं।

  • पीरियड्स चक्र से पहले या उसके दौरान पैल्विक रिजन में दर्द होना
  • सेक्स के दौरान दर्द होना
  • पीरियड्स का अनियमित रूप से होना
  • लगातार मतली या उल्टी
  • बेचैनी या घबराहट का आभास होना
  • अधिक पेशाब आना
  • कमजोरी महसूस होना
  • तेज़ दर्द का अचानक शुरू होना ओवेरियन सिस्ट के फटने का लक्षण भी हो सकता है।

कितने तरह की होती है ओवेरियन सिस्ट

ओवेरियन सिस्ट कई तरह की होती हैं जिन्हें उनके कारण और प्रवृति के आधार पर बांटा गया है। मेंस्ट्रुअल साइकल के दौरान सबसे आम प्रकार के ओवेरियन सिस्ट को फंक्शनल सिस्ट कहा जाता है। हम यहां कुछ आमतौर पर पाई जाने वाली गांठों के बारे में बता रहे हैं।

फॉलिकुलर सिस्ट (Follicular Cyst): मेंस्ट्रुअल साइकल के दौरान एग बाहर निकलता है। यह अंड़ा फैलोफीन ट्यूब में जाता है। फॉलिकुलर सिस्ट तब बनती है जब फोलीकल फटता नहीं है। यह अंडा बाहर नहीं निकालाता है लगातार बढ़ता रहता है तो वहां फॉलिकुलर सिस्ट या अंडे की गांठें बन जाती हैं।

ल्यूटियम सिस्ट (Luteum Cyst): कभी कभी ओवरी में फॉलीकल के फूट जाने के बाद उसमें पानी या तरल पदार्थ इकट्ठा हो जाता है जिसके कारण ओवरी में ल्यूटियम सिस्ट या पानी की गांठें बन जाती हैं।

मायो क्लीनिक के द्वारा छपी जानकारी के अनुसार अधिकांश ओवेरियन सिस्ट में कोई लक्षण नहीं होते हैं और ये अपने आप में ठीक हो जाते हैं। लेकिन बड़ी आोवेरियन सिस्ट से कई कारण बन सकते हैं।

ये दोनों फंक्शनल सिस्ट होती है अर्थात ये टयूमर नहीं हैं। ये साधारण गांठे हैं। दो-तीन महीनें के हार्मोनल ट्रीटमेंट के बाद दिखाई पड़नी बंद हो जाती है। इनका साइज़ आमतौर पर छह सेंटीमीटर से अधिक नहीं होता है। ये युवा महिलाओं और टीनएजर में भी देखी जा सकती हैं। इनके अलावा जो अलग तरह की गांठे होती हैं, उनमें कुछ ओवेरियन ट्यूमर भी कहलाती हैं। ये इन सिस्ट की तुलना में हानिकारक हो सकते हैं। ये मेंस्ट्रुअल साइकल से जुड़ी हुई नहीं हैं।

ड्रमोइड सिस्ट (Dermoid Cyst): यह ओवरी में भ्रूण संबंधी अवशेषों के कारण बन जाते है, इसमें कई बार बालों का गुच्छा, दाँत के अवशेष और हड्डियों की संरचना भी पायी जाती है। इसमें कैंसर की संभावना बहुत कम होती है पर इस स्थिति में कई बार ओवरी के मुड़ने या ट्विस्ट हो जाने का खतरा अधिक रहता है। ओवरी ट्विस्ट हो जाने पर तुरन्त लैपरोस्कोपिक से उपचार कराना ज़रूरी हो जाता है।

एंडोमेट्रियोमास सिस्ट (Endometriosis Cyst): एंडोमेट्रियोमास में ओवरी की कोशिकाएं गर्भाशय से बाहर विकसित हो जाती है। ये टिशू अंडाशय की सतह से जुड़कर सिस्ट बना देते है। इन सिस्ट को चॉकलेट सिस्ट भी कहा जाता है। इनमें गाढ़ा और गहरा ब्लड हो सकता है जिस वहज से इनका रंग भूरा हो जाता है। इसे एंड्रोमेट्रियोमा भी कहा जाता है।  

सिस्टेडेनोमा (Cystadenoma Cyst): इस तरह की सिस्ट कोशिकाओं से ओवरी की सतह पर होती है। ये सिस्ट पानी या म्यूकस (मवाद) से भरी हो सकती है। यह सिस्ट आकार में बहुत बड़ी हो सकती है।

ड्रमोइड सिस्ट और सिस्टेडेनोमा दोनों आकार में बड़े हो सकते हैं। ये ओवरी को बाहर भी कर सकते है। यह पेनफुल ट्विस्टिंग की वजह से ऐसा होने की ज्यादा संभावना होती है। ऐसी स्थिति को ओवरी में ऐठन (ओवेरियन टार्शन) कहा जाता है। यह ऐठन ओवरी में ब्लड सर्कुलेशन को कम या बंद कर देता है।

ओवेरियन सिस्ट और प्रेगनेंसी  

आमतौर पर ओवरी में सिस्ट की वजह से हॉर्मोनल समस्याएं हो जाती है। इसकी वजह से पीरियड्स पर असर पड़ता है और प्रेगनेंसी भी प्रभावित होती है। पीरियड्स अनियमित होने पर कंसीव करने में परेशानी होती है। दूसरी ओर कभी-कभी फॉलीसिल प्रेगनेंसी के दौरान ओवरी पर ही बने रहते है। कभी इनके बढ़ने की संभावना बढ़ जाती है। कई बार ओवरी के ट्विस्ट होने की स्थिति में यह चिंता का विषय हो सकती है, जिसमें तुरंत सर्जरी करनी पड़ सकती है। 

ओवेरियन सिस्ट से बचाव कैसे करें

  • ओवेरियन सिस्ट से बचाव के लिए आवश्यक है की लिए महिलाएं अपने खानपान में हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन करें। 
  • नियमित संतुलित आहार लें। 
  • योगासन को अपनी को शामिल करें। 
  • शरीर में पानी की कमी न होने दें। 
  • पूरी नींद लें। 

स्रोतः

  1. Mayo Clinic
  2. National library of Medicine
  3. emedicinehealth

Leave a Reply

संबंधित लेख

Skip to content