इंटरसेक्शनलधर्म प्रेम के दर्शन पर क्या कहता है बौद्ध धम्म

प्रेम के दर्शन पर क्या कहता है बौद्ध धम्म

बौद्ध धम्म के अनुसार प्रेम के चार तत्व होते हैं। ये चारों तत्व सार्वभौमिक हैं और जेंडर और सेक्सुअलिटी स्पेसिफिक नहीं हैं। किसी भी मानवीय संबंध में ये तत्व मौजूद हो तो वे संबंध सच्चे प्रेम के संबंध हैं। ये चार तत्व हैं-मैत्री यानी मित्रता, दयालुता का भाव, करुणा यानी संवेदना, मुदिता यानी आनंद और उपेक्षा यानी समता या स्वतंत्रता।

मैट्रिमोनियल साइट्स प्रेम के साथ-साथ जाति, धर्म, रंग, क्षेत्र अनुसार साथी मुहैया कराने का दावा करती हैं। इसमें ब्राह्मण मैट्रिमोनी साइट जैसे प्लैटफॉर्म शामिल हैं। भारत के परिपेक्ष्य में आज के वक्त प्रेम ढूंढने का यह तरीका ही ‘मॉडर्न लव‘ का तरीका बन चुका है जिसकी अपनी शर्तें हैं। इन शर्तों को ब्राह्मणवादी हेट्रोसेक्सुअल भारतीय समाज का तथाकथित मुख्यधारा का वर्ग संचालित करता है। यह वर्ग प्रेम को तमाम शर्तों में बांधता है मसलन एक ही जाति, गोत्र, गांव में प्रेम या विवाह न होना, अंतरधार्मिक प्रेम न होना, हेट्रोसेक्सुअल प्रेम से इतर कोई रिश्ता न होना। इसके बावजूद अगर व्यक्ति तय मानकों के खिलाफ़ जाकर प्रेम करना चुनते हैं तो उनकी हत्या तक कर दी जाती है।

धार्मिक सत्संग आदि के हवाले से भी प्रेम को लेकर सकारात्मक विचार हम नहीं सुनते हैं। प्रेम को लेकर जो अधिकतर सुनने में आता है वह यही है कि ईश्वर से प्रेम करो, प्रेम करना है तो मीरा-सा करो, कामुक प्रेम, प्रेम नहीं होता, आदि। हमारे समाज में ईश्वरीय प्रेम की बातें जोरों पर हैं लेकिन इंसानी प्रेम की बातें गर्त में हैं। प्रेमियों को मार देना ‘धर्म’ है लेकिन प्रेम करना धर्म के ख़िलाफ़।

बौद्ध धम्म का विस्तार क्षेत्र बड़ा है। इसका दर्शन शांति, मानवता, पर्यावरण, अंतराष्ट्रीय संबंध, समुदाय प्रगति, जीवन शैली आदि को खुद में समेटे हुए है। इन सभी विषयों के साथ बौद्ध दर्शन प्रेम पर भी विस्तार से चर्चा करता है। जो धर्म ‘ईश्वरीय प्रेम’ की संकल्पना को सर्वश्रेष्ठ प्रेम मानते हैं, प्रेम को सीमित करते हैं, उनके व्यतिरेक में बौद्ध दर्शन इंसानी प्रेम संबंध, सिद्धांत की बात करता है। एक ऐसा वक्त जब प्रेम सामाजिक संरचनाओं में दबा जा रहा है, व्यक्तियों के निजी जीवन में प्रेम जिन्हें दुख लग रहा है, उदासी लग रहा है, तब बौद्ध दर्शन से प्रेम को समझना एक समाज और व्यक्ति के रूप में ज़रूरी हो जाता है। आखिर अंत में हम सभी को किसी न किसी रूप में, बिना सामाजिक शर्तों वाला प्रेम चाहिए ही होता है।

प्रेम को लेकर जो अधिकतर सुनने में आता है वह यही है कि ईश्वर से प्रेम करो, प्रेम करना है तो मीरा-सा करो, कामुक प्रेम, प्रेम नहीं होता, आदि। हमारे समाज में ईश्वरीय प्रेम की बातें जोरों पर हैं लेकिन इंसानी प्रेम की बातें गर्त में हैं। प्रेमियों को मार देना ‘धर्म’ है लेकिन प्रेम करना धर्म के ख़िलाफ़।

हमारे समय के बेहद ज़रूरी वियतनाम के बौद्ध बिक्खु थीच न्हात हान हुए जो पीस एक्टिविस्ट थे। वह कई बौद्ध दर्शन की किताबों के लेखक रहे और जिन्होंने ‘इंगेज्ड बुद्धिज़म‘ भी कहा जाता है, की शुरुआत की। बौद्ध दर्शन की नज़र से प्रेम पर उनकी किताब ‘ट्रू लव – अ प्रैक्टिस फॉर अवेकनिंग द हार्ट‘ जिसका अंग्रेजी में अनुवाद शेरब कोड्जिन कोन ने किया है, साल 2004 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब के संदर्भ से हम प्रेम को बौद्ध धम्म के नज़रिये से समझेंगे।

बौद्ध धम्म के अनुसार प्रेम के चार तत्व होते हैं। ये चारों तत्व सार्वभौमिक हैं और जेंडर और सेक्सुअलिटी स्पेसिफिक नहीं हैं। किसी भी मानवीय संबंध में ये तत्व मौजूद हो तो वे संबंध सच्चे प्रेम के संबंध हैं। ये चार तत्व हैं-मैत्री यानी मित्रता, दयालुता का भाव, करुणा यानी संवेदना, मुदिता यानी आनंद और उपेक्षा यानी समता या स्वतंत्रता।

पहला तत्व मैत्री है। प्रेम में मैत्री होने का मतलब है कि हम जिस व्यक्ति को प्रेम करते हैं उसके जीवन में खुशी लाएं ना कि हमारे प्रेम से वह व्यक्ति किसी भी तरह के कष्ट में पड़े। इसके लिए ज़रूरी है कि हम उस व्यक्ति को गहराई से समझें। बुद्ध का बेहद सीधा सा संदेश है कि प्रेम का मूलतत्व समझ है और हम अगर समझ नहीं सकते तो प्रेम भी नहीं कर सकते। अब आप सोचेंगे कि ये व्यक्ति को कैसे समझा जाए? हम जिसे प्रेम करते हैं उसे समझने के लिए ज़रूरी है कि हम उस व्यक्ति को अपना समय दें, उसको गहराई से जानें और सजग रूप से उसके लिए उपस्थित हों, उसे अपना ध्यान दें। उदाहरण के तौर पर एक व्यक्ति अगर अपने साथी के अंतर्द्वंदों को, इच्छाओं को नहीं समझता तो वह अपने साथी को सही, न्यायिक रूप से प्रेम नहीं कर पाएगा।

बौद्ध धम्म के अनुसार प्रेम के चार तत्व होते हैं। ये चारों तत्व सार्वभौमिक हैं और जेंडर और सेक्सुअलिटी स्पेसिफिक नहीं हैं। किसी भी मानवीय संबंध में ये तत्व मौजूद हो तो वे संबंध सच्चे प्रेम के संबंध हैं। ये चार तत्व हैं-मैत्री यानी मित्रता, दयालुता का भाव, करुणा यानी संवेदना, मुदिता यानी आनंद और उपेक्षा यानी समता या स्वतंत्रता।

दूसरा तत्व है करुणा। करुणा का मतलब सिर्फ़ व्यक्ति के दर्द को कम करने की ‘इच्छा’ नहीं होता बल्कि उसके दर्द को सच में अपने के माध्यम से कम करना होता है। आसान भाषा में समझें तो परेशानी को सुन लेना भर काफ़ी नहीं है बल्कि उस परेशानी के हल को खोजना व्यक्ति के प्रति करुणा है। परेशानी की प्रकृति समझने के लिए हमें गहराई से व्यक्ति की समझ होनी चाहिए ताकि हम उसे उसकी परेशानी अनुसार बदलने में मदद कर सकें। समझने का अभ्यास एक तरह से ध्यान लगाने का अभ्यास है।

बौद्ध दर्शन इस बात पर ज़ोर दे रहा है कि जब हम प्रेम करते हैं तो किसी भी मुश्किल में भाग जाना नहीं होता है बल्कि समझ से काम लेना है और हम जिससे प्रेम करते हैं उसके लिए करुणा के भाव को खुद में निर्मित करना है। सच्चे प्रेम का तीसरा तत्व मुदिता है। प्रेम में आनंद का होना, खुश रहना ही मुदिता है, प्रेम का दावा करते व्यक्ति हर घड़ी उदास हैं, रो रहे हैं, दुख में है, हम जिससे प्रेम कर रहे हैं उसे ही अगर दुख दे रहे हैं, रुला रहे हैं तो इसका अर्थ है कि यह प्रेम नहीं है बल्कि प्रेम के उलट कुछ और ही घटित हो रहा है। प्रेम में खुशी नहीं है तो आप एकदम आश्वस्त हो सकते हैं कि यह प्रेम नहीं है।

चौथा तत्व है उपेक्षा, हिंदी शब्दावली से इसका अर्थ ना देखें बल्कि बौद्ध धम्म की शब्दावली से इसे समझें। धम्मानुसार उपेक्षा का मतलब स्वतंत्रता या समता से है, सच्चे प्रेम में हम स्वतंत्रता महसूस करते हैं और यह स्वतंत्रता सिर्फ़ बाहरी नहीं बल्कि अंदरूनी भी होनी चाहिए। आसान अर्थों में समझें तो प्रेम में घुटन महसूस न करना स्वतंत्र होने का अर्थ है। समता यानी समानता, व्यक्तियों के मध्य समानता है या नहीं, भी सच्चे प्रेम का अहम तत्व है।

उदाहरण के तौर पर समझें तो कोई व्यक्ति हमसे प्रेम करने का दावा करे लेकिन हर तरह की पाबंदियां रखे, सम्मान ना करे, एक स्वतंत्र व्यक्ति समझते हुए व्यवहार न करे तब बौद्ध दर्शन की नज़र से यह प्रेम नहीं हो सकता। बौद्ध दर्शन में प्रेम के इन चार तत्वों से हम प्रेम की बुनियादी उलझनों को समझ सकते हैं। इन तत्वों की सार्वभौमिकता इसमें है कि बौद्ध दर्शन की नज़र से प्रेम के क्षेत्र में सिर्फ़ रोमांटिक रिलेशनशिप ही नहीं बल्कि पारिवारिक संबंध, दोस्तियां आदि में भी ये तत्व पाए और बनाए जा सकते हैं।


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