जिस देश में ऐसा हमेशा होता आया है कि अपने जीवन में आगे बढ़ते हुए सफल पुरुषों ने अपनी पत्नियों को छोड़ दिया है। कितने बड़े पदों पर बैठ लोग, साहित्यकार, राजनेता, अभिनेता और अन्य पुरुषों ने ये किया है और करते आ रहे हैं। कोई कहे कि ये प्रधानमंत्री का या उनके जैसे अन्य पुरुषों का निजी मामला है तो यह भी ज्योति मौर्या का निजी मामला है। यह बात इस देश में पुरुषों के लिए इतनी आम बात है कि हर जगह गली, मोहल्ले, गाँव मे आपको कोई न कोई ऐसा पुरुष मिल जाएगा जिसने अपनी पत्नी को छोड़कर दूसरी शादी कर ली है।
गाँव में कोई न कोई पुरुष आपको मिलेगा जिसने पत्नी को गाँव मे छोड़ दिया है और मुंबई,कलकत्ता, दिल्ली जैसे शहरों में जाकर दूसरी शादी कर ली। उसकी पत्नी लेकिन गाँव में उसके माँ बाप परिवार के साथ रहती है उनकी देखभाल करती है। उन पुरुषों का कोई सामाजिक बहिष्कार कभी नहीं दिखता। इसमें एक हास्यास्पद बात है कि गाँव में बहिष्कार थोड़ा बहुत बस ऐसे पुरुष का होता है जिसने दूसरी जाति की स्त्री से विवाह कर लिया है।
ज्योति मौर्या पर लगातार बेहूदे रील्स और मीम्स देखकर इस प्रकरण में एक बात पर बार-बार ध्यान जाता है कि बाज़ार में क्या सबसे ज्यादा बिकता है? ध्यान से देखने पर दिखता है कि मर्दवादी सोच, उनका बनाया हुआ ढांचा बाज़ार का प्रिय क्षेत्र है। समाज में पूंजीवाद और पितृसत्ता की ऐसी जुगलबंदी है कि वह हर हाल में स्त्री को बेचने का हुनर जानता है। जितनी तेजी से स्त्री विरोधी चीजें इस देश की सोशल मीडिया पर वायरल होती हैं वह इस देश के लोगों के स्त्रीद्वेषी होने का ग्राफ है।
सोशल मीडिया के तमाम न्यूज चैलन अपनी गरिमा से तो गिर ही गए हैं उनकी मानवीय संवेदनाओं की दृष्टि भी बेहद भोथरी और सतही हो गई है। वे ज्योति मौर्या के बारे में बात करते हुए ऐसे प्रलाप कर रहे हैं जैसे ज्योति मौर्या ने कोई भयावह अपराध कर दिया हो। किसी भी समाज का स्त्री के लिए इतनी घृणा इतना पक्षपाती होना उस देश का सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक पिछड़ापन है। ये सनसनीखेज न्यूज चैनल और फूहड़ और अश्लील वीडियो गीत वाली बिरादरी सब मिलकर क्या एक स्त्री को जलील करके अपनी कमाई करने में लगे हैं। एकबारगी देखने से यही लगता है लेकिन बात इससे कहीं आगे की है। व्यवसाय से ही इसे जोड़कर देखना संपूर्ण देखना नहीं है। इसका इतना ज्यादा प्रचार-प्रसार एक स्त्रीद्वेषी समाज की स्त्री के प्रति घृणा का बड़ा मसला है। सोशल मीडिया के ये सारे वायरल स्त्रियों पर लगाम कसने की पितृसत्तातमक मुहिम है।
आप एक स्त्री को देवी, सती साध्वी बनाने के लिए क्यों परेशान हैं अगर वह आपकी तरह मनुष्यगत कमज़ोरियों से बनी है। आप उस बात को अनहोनी की तरह क्यों बरत रहे हैं जिसे इसी समाज का पुरुष वर्ग सदियों से करता आ रहा है। हीरालाल राजस्थानी अपनी कविता में लिखते हैं, “वे स्त्री होने को//प्रकृति के विरुद्ध/सिद्ध करने में लगे हैं/वे अनचाहे ही स्त्रियों को बरगला रहे हैं/वे संविधान को भी स्त्री विरोधी/घोषित कर देना चाहते हैं/जो उनके अपराधी होने पर/बराबर सज़ा देने की क्षमता रखता है।”
आज जब पूरा सोशल मीडिया तमाम तरह के मीम्स ,रील्स और न जाने कितने ऊलजलूल गाने ज्योति मौर्या केस के लिए लगातार सामने आ रहे हैं। तमाम छोटे-बड़े न्यूज चैनल इस केस की खबर ऐसे दिखा रहे हैं जैसे ज्योति मौर्या ने ऐसा कोई बर्बर अपराध कर दिया है जैसा कि आज तक इस समाज मे किसी ने न किया हो। आप अखबार की ही खबर जांच लें। जिस समाज में प्रतिदिन स्त्रियों की लड़कियों की हत्या की घटनाएं पुरुषों की हत्या से कई गुना अधिक होती हैं उसी समाज में एक स्त्री के चयन को लेकर इतनी नाराज़गी।
हालत यह है कि यहां आए दिन पिता या भाई लड़कियों की हत्या करके गर्व महसूस करते हैं। उनकी यौनिकता, उनका चयन उनकी हत्या का कारण बनता है। जहां फोन पर लड़की को किसी अन्य लड़के से बात करने पर लड़का गोली मार देता है, जहां आए दिन विवाहित स्त्री की भी हत्या हो जाती है महज किसी से फोन पर बात करने के कारण। उसी समाज में एक स्त्री अपने पति से अलग होकर रहना चाहती है ,किसी और से प्रेम करना चाहती है या विवाह करना चाहती है तो उसके लिए पूरा पितृसत्तात्मक समाज हाय-तौबा कर रहा है जैसे इसके पहले कभी ऐसा हुआ ही नहीं हो।
सबसे ज्यादा सतही और हास्यास्पद बात वहां आकर हो जाती है जब सब कहते हैं कि पति ने पढ़ाया तब वो अधिकारी बनने के योग्य हुई। जैसे पति के पास कोई फार्मूला था अधिकारी बनाने का। पहली बात तो इसी समाज में खेती-मज़दूरी करती कितनी स्त्रियां हैं जिन्होंने पति को पढ़ने में अपना खून पसीना बहाया और पति ने बाद में उसे छोड़ दिया लेकिन कहीं कोई चर्चा नहीं। दूसरी बात कि अगर पति सरकारी नौकरी में था तो ज़ाहिर सी बात है पत्नी की सामान्य सुविधाओं को पूरा करना तो इस लिहाज से भी कोई बड़ी बात नहीं थी क्योंकि शिक्षा किसी भी मनुष्य की बुनियादी ज़रूरत है और ये उसका अधिकार भी। अब संयोग हो या योग्यता उस लड़की में रही हो जो उसने वो पद हासिल किया।
सोशल मीडिया पर हर तरफ ज्योति मौर्या केस का वायरल देखकर पता चलता है कि पितृसत्ता को बेचना पूंजीवाद के लिए ज्यादा आसान और लाभकारी है। ध्यान से देखा जाए तो सोशल मीडिया पर यह एक नैरेटिव गढ़ा जा रहा है स्त्रियों की शिक्षा और स्वतंत्रता के विरुद्ध। ये खबर भी दरअसल औरतों की गतिशीलता को नियंत्रित करने के लिए इतना ज्यादा वायरल किया जा रहा है। नहीं तो किसी औरतों के पास यह कानूनी हक है कि वह किसी समय अलग हो सके। उसका ये संवैधानिक अधिकार है।
पति को यदि हर्जाना मांगना या खर्चा मांगना है तो मैरिज कोर्ट में याचिका दायर करता लेकिन यह स्त्रियों का भावनात्मक शोषण है। साथ ही साथ एक हथियार भी है पितृसत्तात्मक व्यवस्था को बचाने का। ये भद्दे मीम्स और गाने बनाने वाले अगर थोड़ी सी संवेदनशीलता से सोचते तो यह दो लोगों का निजी मामला भी है जिसे यूं सोशल मीडिया पर फैलाना हिंसा का व्यवहार करना ही है।
स्त्री हिंसा या विरोध के किसी भी मामले में एक ज़िम्मेदार व्यक्ति को ध्यान रखना चाहिए कि यह एक बड़ा सत्य है ये कि स्त्री समाज के शोषितों के वर्ग से आती है। किसी छोटी सत्ता का हिस्सा बनने के बाद भी वह सबसे ऊपर बैठी सत्ता के सामने कमज़ोर होती है। चूंकि समाज की सारी सत्ता अब भी ज्यादा से ज्यादा पुरुषों के पास है तो ज़ाहिर सी बात जिसके पास ज्यादा सत्ता होगी समाज उसके लिए उतना सहज होगा। जिसके पास कम सत्ता है समाज उसके लिए उतना ही कठिन है। यही पितृसत्ता और जातिगत समाज का मूल ढांचा है इसी से सारे शोषितों की लड़ाई है।
आज स्त्री वर्जनाओं को तोड़ रही है, रूढ़ियों को चुनौती दे रही है। अपने हक-हुक़ूक़ के लिए बोल रही है तो स्त्री का मनोबल तोड़ देने के लिए पितृसत्ता तरह-तरह के हथकंडे अपना रही है। आज सोशल मीडिया के ये हमलावर उसी सत्ता के नये प्रकार के शोषण के हथियार हैं जो आज हर तरह से हक-अधिकार के लिए खड़ी स्त्री का अपमान करते हैं। वे धर्म और परंपरा का सबसे ज्यादा हवाला दे रहे हैं। वे सदियों पीछे खड़े होकर स्त्री को निर्देश दे रहे हैं। अपना साथी चुनने, बोलने या स्वतंत्र रहने का अधिकार स्त्रियों को संविधान ने दिया है। धर्म और परंपरा ने उसे इस तरह का कोई अधिकार नहीं दिया है तो यहां जो लोग धर्म या विवाह संस्था की बात कर रहे हैं वह महज़ एक बेमानी बहस है। धर्म और शादी की अवधारणा के लिहाज से तो स्त्री के पास अपनी स्वतंत्रता अपनी अस्मिता का कही कोई अधिकार ही नहीं है। ज्योति मौर्या के केस को लेकर उनकी ये बहसें मनुष्य विरोधी होने के साथ-साथ संविधान विरोधी भी हैं।