बार-बार टॉयलेट जाने पर, तुम अभी तो गई थी, तुम्हें कितना टॉयलेट आता है, मैं बाहर जाने से बचती हूं क्योंकि टॉयलेट आने की वजह से पब्लिक स्पेस में चीजें मैनेज करने में परेशानी होती है ये शब्द अक्सर हमें अपने आसपास के माहौल में ज़रूर सुनने को मिल जाते हैं। ख़ासतौर पर बार-बार पेशाब आने की समस्याओं पर औरतों की जुबानी यह सुनने को मिलता है। बार-बार बाथरूम इस्तेमाल करने की इस ज़रूरत को सामान्य मानकर हम या तो नज़रअंदाज कर देते हैं या फिर मजाक उड़ाते हैं। वास्तव में बार-बार पेशाब आना एक चिकित्सीय स्थिति है जो महिलाओं को अलग तरह से पर प्रभावित करती है।
इंटरस्टिशियल सिस्टिटिस (आईसी) या ब्लैडर पेन सिंड्रोम, यूरीनरी ब्लैडर में होने वाली एक गंभीर मेडिकल कंडीशन है। पेनफुल ब्लैडर सिंड्रोम में ब्लैडर में दर्द, दबाव और परेशानी का सामना करते हैं। इस स्थिति में कुछ लोगों को बार-बार प्रेशर के साथ पेशाब करने की ज़रूरत महसूस होती है। ऐसे लक्षणों की स्थिति बहुत हल्की और कुछ समय तक या फिर लंबे समय तक बनी रह सकती है। यूएस डिपार्टमेंट की हेल्थ एंड ह्यूमन सर्विस के अनुसार ब्लैडर पेन सिंड्रोम पुरुषों के मुकाबले महिलाओं को अधिक प्रभावित करता है। कुछ महिलाओं में गंभीर लक्षण होते हैं जो डिप्रेशन जैसी अन्य स्वास्थ्य समस्या का कारण बनते हैं।
ब्लैडर पेन क्या होता है
ब्लैडर, किडनी, यूरेटर और यूरेटरा से यूअरीनरी सिस्टम यानी मूत्र प्रणाली बनाते हैं। ब्लैडर वह अंग है जो गुर्दे से यूरीन को तबतक रोकता है जब तक यूरेटरा से होकर शरीर से बाहर नहीं निकलता है। यह सिड्रोम लक्षणों का एक समूह है जो एक निश्चित बीमारी या स्वास्थ्य समस्या से संबंधित है। किसी महिला में ब्लैडर पेन सिंड्रोम का उपचार करना मुश्किल हो सकता है क्योंकि डॉक्टर सटीक परिभाषा पर सहमत नहीं होता है। इसके अलावा इस सिंड्रोम में महिलाएं पेल्विक, जेनिटल एरिया और अन्य शरीर के अंगों में दर्द महसूस करती है।
अक्सर ब्लैडर पेन सिंड्रोम को यूटीआई समझ लिया जाता है, जिसे ब्लैडर इंफेक्शन भी कहा जाता है। लेकिन ब्लैडर पेन सिंड्रोम और यूटीआई एक जैसी स्वास्थ्य समस्या नहीं है। दोनों के लक्षण एक जैसे हो सकते हैं जिनमें ब्लैडर के आसपास दर्द और बार-बार बाथरूम जाना शामिल है। यूटीआई ब्लैडर में कीटाणुओं के आने से होता है और इसका इलाज एंटीबायोटिक दवाओं से होता है। बीपीसी में दवाओं का इस्तेमाल नहीं होता है। इसका कोई इलाज नहीं है लेकिन दर्द सहित लक्षणों में राहत देने के लिए इलाज है। कभी-कभी बिना उपचार के भी लक्षण ठीक हो जाते हैं।
ब्लैडर पेन सिंड्रोम के लक्षण
कुछ लोगों में आईसी या बीपीएस के लक्षण आकर चले जाते है और जटिलताएं हो सकती हैं। आईसी या बीपीएस का सामना करने वाले व्यक्ति अगर फाइब्रोमायलजिया या अन्य समस्याएं हो सकती है। इसमें दर्द लगातार तेज भी हो सकता है या फिर हल्का भी बना रह सकता है। इसमें ऐसा महसूस होता है कि बार-बार, तुरंत पेशाब या दोनों करने की ज़रूरत है। अधिकांश लोग दिन में चार से सात बार बाथरूम का इस्तेमाल करते है। लेकिन जो लोग बहुत ही गंभीर बीपीएस का सामना कर रहे हैं वे 24 घंटे में 40 बार बाथरूम जा सकते है। दर्द और दबाव की स्तिथि ब्लैडर, यूरेटरा, वल्वा, वजाइना में हो सकती है। इसके अलावा पेल्विक एरिया की मांसपेशियों में दर्द, कमर और पेट के निचले हिस्से में दर्द हो सकता है। पीरियड्स के दौरान यह दर्द और अधिक होने की संभावना होती है। लक्षणों की गंभीरता हर किसी के लिए अलग-अलग हो सकती है।
महिलाओं के जीवन पर किस तरह से डालता है असर
ब्लैडर पेन सिंड्रोम का सामना करने वाली कुछ महिलाओं में इसके मामूली लक्षण देखे जाते हैं। दूसरी ओर अन्य तेज दर्द और अन्य लक्षणों से गुजरती हैं। इस वजह से यह शारीरिक, मानसिक और सामाजिक तौर पर भी जीवन को प्रभावित करता है। बीपीएस के गंभीर लक्षणों का सामना करने वाली महिलाएं रात में कई बार यूरीन करने जाती है जिस वजह से पहला असर नींद पर पड़ता है। वे गहरी नींद नहीं ले पाती है जो अवसाद की स्थिति पैदा कर देता है। बीपीएस से ग्रस्त कई महिलाएं सेक्स के दौरान दर्द की शिकायत भी करती हैं। अध्ययनों से पता चलता है कि इस सिंड्रोम से गुजर रही महिलाओं को वजाइनल ड्राईनेस जैसे समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है।
बीपीएस या आईसी जैसी समस्या को लेकर मेडिकल क्षेत्र में अभी भी बहुत रिसर्च करने की आवश्यकता है जिससे निश्चित रूप से इसके होने के कारणों की जानकारी हासिल की जा सके। जेंडर के आधार पर इसके लक्षणों पर विस्तार से शोध करने की आवश्यकता है। ब्लैडर में इंफेक्शन के कारण इसके होने का खतरा बना रहता है। मानव शरीर का ब्लैडर कोशिकाओं से बना होता है जो ब्लैडर को बैक्टीरिया से बचाता है। लेकिन ब्लैडर इंफेक्शन इन लाइन को नुकसान पहुंचाता है और जलन पैदा करता है। जेनेटिक कारणों की वजह से भी इसके इसके होने की आशंका रहती है। इसके अलावा महिलाओं में फाइब्रोमायल्जिया, क्रोनिक फटीग (थकान) सिंड्रोम, एंड्रोमेट्रियोसिस, वुल्वोडनिया और एलर्जी आम कारण है।
यूरीन टेस्ट, सिस्टोस्कोपी, ब्लैडर डिसटेंशन, बॉयोस्पी, पेल्विक एरिया के सीटी स्कैन आदि जांच से पता लगाया जा सकता है कि ब्लैडर पेन सिंड्रोम है या नहीं। साथ ही दवाओं, तनाव को कम करके और मैनुअल और फिजिकल थेरेपी के द्वारा ब्लैडर पेन सिंड्रोम को कम किया जा सकता है। इसके अलावा रिसर्चर लगातार शोध के ज़रिये नई दवाओं, ब्लैडर पेन को नियंत्रित करने और जेनेटिक भूमिका को तलाशने की दिशा में काम कर रहे हैं।
हमारे समाज में ब्लैडर पेन सिंड्रोम के चिकित्सीय पहलू के बारे में बहुत कम जानकारी है जिसकी वजह से लोगों को इसका सामना करना पड़ता है। किसी व्यक्ति के बार-बार यूरीन जाने को एक आदत या मजाक तक माना जाता है। कई लोग इसके शुरुआती लक्षणों को ख़ासतौर पर हल्के दर्द को नज़रअंदाज करने की वजह से आगे जाकर गंभीर खतरों का सामना कर सकती है।
स्रोतः