आप एक स्टोर में कुछ खरीदारी करने जाते हैं और वहां पर कैश काउंटर पर आपका बिल, आपके सामान की जांच आदि जैसे काम करने के लिए स्टोर में इंसान नहीं बल्कि रोबोट के द्वारा किया जा रहा है। यह महज एक कल्पना नहीं है बल्कि वर्तमान के दौर में बढ़ती एआई तकनीक का एक उदाहरण मात्र है। आज दुनिया भर में ऐसे बहुत से स्टोर, दुकान, अस्पताल, स्टूडियो आदि है जहां एआई तकनीक के द्वारा उपभोक्ताओं को सेवा दी जा रही हैं।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी एआई को भविष्य की एक महत्वपूर्ण टेक्नोलॉजी के रूप में देखा जा रहा है। यह हर स्तर पर लोगों के जीवन को आसान बनाने का काम कर रहा है। डॉक्टर, कलाकार, पत्रकार, दफ्तर में बहुत से स्तर पर होने वाले कामों को तेजी से निपटाने में माहिर है। रोजमर्रा के हर छोटे से छोटे फैसले लेने के लिए लोग एआई पर निर्भर हो रहे हैं। इस तरह से एआई तकनीक की हर स्तर पर बढ़ती मौजूदगी पर सवाल यह भी उठता है कि क्या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की तेजी से बढ़ती तकनीक हमारी आपकी जिंदगी को खतरे में डाल सकती है? क्या इससे आपकी नौकरी खतरे में पड़ जाएगी?
ये सवाल लगातार बढ़ रहे है जब से कंपनियां चैट बॉक्स, रोबोट आदि का इस्तेमाल करने लगी है। दरअसल इनके बढ़ते इस्तेमाल की वजह से ये सवाल डर बनकर भी उभर रहे है। कई अध्ययनों में यह बात सामने आई है कि एआई लोगों के रोजगार के लिए एक खतरा है। रिपोर्ट्स में कहा जा चुका है कि एआई दफ्तर में इंसानों की जगह ले लेगा और नौकरियां खत्म हो जाएंगी। हाल में हुए एक अध्ययन के अनुसार एआई पुरुष कर्मचारियों की तुलना में अधिक महिला कर्मचारियों की जगह लेगा। मैकिन्से ग्लोबल इंस्टीट्यूट की एक नई रिपोर्ट के अनुसार, आर्टिफिशियल इंटिलिजेंस और स्वचालन (ऑटोमोशन) के बढ़ने के कारण दशक के अंत तक पुरुषों की तुलना में महिलाओं के नौकरी के अवसर सीमित होंगे।
इंडिया टुडे में प्रकाशित ख़बर के अनुसार ‘जेनरेटिव एआई एंड द फ्यूचर ऑफ वर्क इन अमेरिका’ के टाइटल से जारी हुए अध्ययन के अनुसार 2030 तक अमेरिकी नौकरी बाजार पर एआई का बड़ा असर देखने को मिलेगा। अध्ययन के अनुसार एआई ऑटोमोशन डेटा क्लेक्शन और दोहराए जाने वाले कामों में अपनी जगह बना लेगा। 2030 तक अकेले अमेरिका में 12 मिलियन व्यवसायिक बदलाव होंगे। स्टडी के अनुसार एआई पारंपरिक रूप से महिलाओं के द्वारा किये जाने वाले कामों में ज्यादा जगह बनाएगा।
महिलाओं की नौकरियों पर खतरा
रिपोर्ट के अनुसार पुरुषों की तुलना में महिलाओं को नये व्यवसायों में बदलाव की आवश्यकता 1.5 गुना ज्यादा होगी। रिपोर्ट में हाइलाइट किया गया है कि भले ही कार्यक्षेत्र में पुरुषों की संख्या ज्यादा हो लेकिन एआई ऑटोमोशन की वजह से 21 फीसदी अधिक महिलाएं प्रभावित होगी। ऑफिस सपोर्ट, कस्टमर सर्विस और फूड सर्विस में महिला कर्मचारियों का अधिक प्रतिनिधित्व है। अध्ययन में पाया गया है कि अमेरिका के कस्टमर सर्विस के क्षेत्र में 80 फीसदी महिलाएं हैं और ऑफिस वर्क में 60 फीसद महिलाएं हैं। ये दोनों वे व्यवसाय हैं जो आने वाले समय में एआई तकनीक के ऑटोमोटेड मोड के इस्तेमाल से अधिक प्रभावित होंगे। नौकरियों में कमी के आंकलन को दर्शाते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि क्लर्क की नौकरियों में 1.6 मिलियन, रिटेल सेल्सपर्सन में 8,30,000, प्रशासनिक साहयक 7,10,000 और कैशियर की 6,30,000 की कमी देखी जा सकती है। इन नौकरियों में दोहराए जाने वाले काम, डेटा संग्रह और प्राथमिक डेटा प्रोसेसिंग शामिल है। ये सभी काम ऑटोमेटेड सिस्टम से आसानी से किये जा सकते हैं।
अक्सर हम इन रोल्स में महिलाओं को देखते हैं। रिपोर्ट में साथ ही यह भी कहा गया है कि कम आय वाली नौकरियां जिनमें महिलाएं अधिक कार्यरत हैं उनको उच्च आय और पद वालों के मुकाबले 14 गुना अधिक अपना व्यवसाय को बदलने की ज़रूरत है। साथ ही नई भूमिका में स्थापित होने के लिए अतिरिक्त स्किल्स विकसित करने की भी आवश्यकता है। इकनॉमिक पॉलिसी इस्टीट्यूट के अनुसार महिलाएं, पुरुषों के मुकाबले 22 फीसद कम वेतन पाती हैं। बीबीसी में छपी एक अन्य ख़बर के अनुसार आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस 30 करोड़ से अधिक नौकरियों को खत्म कर देगा। इसी वर्ष मार्च में जारी हुई रिपोर्ट में कहा गया है कि एआई इमेज जनरेटर्स बड़ी संख्या में रोजगार को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
‘एआई इंसानों के लिए बहुत बड़ा खतरा है’
एक तरफ एआई तकनीक से आसान होते जीवन और करिश्में की बातें हो रही है लेकिन ‘एआई इंसानों के लिए बहुत बड़ा खतरा है’ यह कथन एआई के जनक डॉ. जैफ्री हिंटन का हैं। गूगल जैसी कंपनियों में एक दशक अधिक समय तक सेवा देने वाले डॉ जैफ्री ने अपनी नौकरी से इस्तीफा देते हुए कहा था, ”उन्हें अपने काम पर खेद है।” उन्होंने डीप लर्निंग और न्यूरल नेटवर्क के क्षेत्र में रिसर्च की थी। उन्होंने कहा था कि एआई मनुष्य से ज्यादा ताकतवर हो जाएगी जो बहुत खतरनाक रूप ले सकती है।
ऑटोमेशन से खत्म होती नौकरियां
पारंपरिक रूप से महिलाएं प्रशासनिक, प्रबंधन के कामों में अधिक नौकरियां करती नज़र आती हैं जिनमें डेटा संग्रह एक मुख्य काम है। एआई तकनीक का ऑटोमोशन इन रोजगारों पर खतरे की तरह मडरा रहा है। आने वाले 20 वर्षों में विभिन्न स्तर पर ऑटोमोशन रोजगार के क्षेत्र में क्या संभावना होगी इसके आकंलन के लिए 29 देशों में 2,00,000 से अधिक मौजूदा नौकरियों का विश्र्लेषण किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जैसे-जैसे तकनीक विस्तारित होगी नौकरियों में विस्थापन बढ़ सकता है। आने वाले दशक में ऑटोमेशन से महिला कर्मचारी ज्यादा प्रभावित होगी। लेकिन लंबी अवधि में पुरुष नौकरियों को भी खतरा होगा।
एआई तकनीक लैंगिक पूर्वाग्रहों को करती मजबूत
एआई तकनीक के विस्तार से रोजगार के क्षेत्र में लैंगिक असमानता को बढ़ाने से जुड़ी आशंका कई अध्ययनों और जानकारों द्वारा जाहिर की जा चुकी हैं। इतना ही नहीं अन्य स्तर पर भी एआई सिस्टम भेदभाव और असमानता को कायम रख सकते हैं। एआई चैटबॉक्स पहले से ही नाम और आवाज़ के ज़रिये जेंडर स्टीरियोटाइप को मजबूत कर रहे हैं। ओआरएफ में प्रकाशित रिपोर्ट में स्टैनफोर्ड सोशल इनोवेशन रिव्यू में 1988 से 2021 तक अलग-अलग आर्थिक क्षेत्रों के 133 एआई सिस्टम पर सार्वजनिक रूप से मौजूद जानकारी में पाया गया है कि 44 प्रतिशत ने लैंगिक पूर्वाग्रह को प्रदर्शित किया है और 26 फीसदी ने लैंगिक और नस्लीय पूर्वाग्रहों को जाहिर किया है।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सिस्टम में देखे गए लैंगिक पूर्वाग्रह कई स्तर पर महिलाओं को प्रभावित करते हैं जिसमें पूर्वाग्रहों से प्रेरित हायरिंग सिस्टम यानी नौकरियों की भर्ती शामिल है। महिलाओं को उनके जेंडर के आधार पर एप्लीकेशन पूल से यह बाहर कर देती है। एआई इकोसिस्टम में लैंगिक पूर्वाग्रहों का अधिक होने का एक कारण यह है भी है कि सॉफ्टवेयर डेवलव उद्योग में 92 फीसद पुरुष हैं। इस अंतर के विकसित तकनीक में लैंगिक पूर्वाग्रहों की उपस्थित साफ दिखती है।
आज विज्ञान तेजी से प्रगति कर रहा है। तकनीक जैसे-जैसे विकसित हो रही है नौकरियों के संकट बढ़ा रही है। हालांकि कई लोग इस विस्तार को विकास का एक नया कदम बता रहे हैं जिससे एआई को बढ़ावा देने पर जो दिया जा रहा है। खुद कई राष्ट्रों की सरकारें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को प्रोत्साहित कर रही हैें लेकिन असमानताओं से भरी दुनिया में हमें रोजगार और लैंगिक असमानता के पक्ष को सबसे ऊपर रखने की आवश्यकता है। बड़ी संख्या में लोगों के पास मूलभूत सुविधाएं नहीं है ऐसे में तकनीक के विस्तार से नौकरियों की कमी और उनमें बढ़ती लैंगिक असमानता पर अधिक चर्चा करने की ज़रूरत है।