इंटरसेक्शनलजेंडर कैसे सेल्फी के जमाने में ‘सुंदर’ बनने का दबाव युवा लड़कियों का नुकसान कर रहे हैं

कैसे सेल्फी के जमाने में ‘सुंदर’ बनने का दबाव युवा लड़कियों का नुकसान कर रहे हैं

लड़कियों में अक्सर हम देखते हैं कि फोट क्लिक करने के लिए वह स्नैपचैट फ़िल्टर का प्रयोग करती हैं। फ़िल्टर से अपने चेहरे को अधिक ब्राइट कर लेना भी कहीं न कही रंगभेद से जुड़ा है, जो विशेष कर लड़कियों को सुंदरता के पैमाने पर आंकता है। भारतीय समाज में हमने देखा हैं कि सांवले रंग को नकारात्मक रूप से देखा जाता है और रंग के आधार पर भेदभाव किया जाता है।

कोई पार्टी, इवेंट, शादी-समारोह की बात करें, तो लोग आज कल सेल्फी तो लेते ही हैं। आजकल बात-बात में सेल्फी लेने का फैशन हो चला है। स्मार्ट फ़ोन के चलन से फोन पर सेल्फ़ी कैमरे से खुद की तरह-तरह की अतरंगी तस्वीरें निकालना आम है। यह लड़कियों और महिलाओं में और भी आम है। युवा लड़कियों में सेल्फी का कुछ खास चलन है। न सिर्फ सेल्फी लेकिन इसके साथ विभिन्न तरह के फ़िल्टर भी काफी ट्रेंड कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर खुद को खूबसूरत दिखाने के लिए, खासकर समाज के खास वर्ग के तय किए गए सुंदरता के पैमाने में फिट बैठने के लिए आजकल युवा लड़कियों में सेल्फी फ़िल्टर का काफी शौक देखने को मिलता है। जब आप अपनी तुलना अन्य लोगों से बनाए गए मानदंडों से बहुत अधिक करने लगते हैं, तो अक्सर आत्म-सम्मान को ठेस पहुंचती है। दुख होता है कि शायद कमी आप में है। आजकल ऐसा लगता है कि सोशल मीडिया इसी के लिए बना है।

मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा रहा है सोशल मीडिया

वॉल स्ट्रीट जर्नल ने हाल ही में इंस्टाग्राम और उसके मालिक फेसबुक के कई वर्षों से किए गए एक शोध का खुलासा किया, जिसमें पाया गया कि 32 प्रतिशत किशोर लड़कियों ने कहा कि जब उन्हें अपने शरीर के बारे में बुरा महसूस होता है, तो इंस्टाग्राम उन्हें और भी बुरा महसूस कराता है। शोध के मुताबिक यह भी पाया कि इंस्टाग्राम पर तुलना युवा महिलाओं के देखने और खुद का वर्णन करने के तरीके को बदल सकती है और किशोरों ने अपनी चिंता और अवसाद में वृद्धि के लिए इंस्टाग्राम को दोषी ठहराया। कॉस्मेटिक सर्जरी और त्वचा की देखभाल के लिए भारत की प्रसिद्ध राष्ट्रव्यापी क्लीनिक के एक अध्ययन में पाया गया कि जो लोग बिना किसी फिल्टर का उपयोग किए सेल्फी पोस्ट करते हैं, उनमें चिंता में उल्लेखनीय वृद्धि और आत्मविश्वास में कमी देखी गई। अध्ययन के अनुसार बार-बार सेल्फी देखने से आत्म-सम्मान में कमी आई और जीवन संतुष्टि में कमी आई। अगर हम इंस्टाग्राम की बात करें तो, इंस्टाग्राम वर्तमान में एक बहुत लोकप्रिय सोशल नेटवर्क साइट है, खासकर किशोरों के बीच। इंस्टाग्राम अपने उपयोगकर्ताओं को दूसरों के साथ फ़ोटो और वीडियो साझा करने की अनुमति देता है।

कॉस्मेटिक सर्जरी और त्वचा की देखभाल के लिए भारत की प्रसिद्ध राष्ट्रव्यापी क्लीनिक के एक अध्ययन में पाया गया कि जो लोग बिना किसी फिल्टर का उपयोग किए सेल्फी पोस्ट करते हैं, उनमें चिंता में उल्लेखनीय वृद्धि और आत्मविश्वास में कमी देखी गई।

वर्चुअल दुनिया की सुंदरता के पैमाने

साल 2010 में अपनी शुरुआत के बाद से, इसने 400 मिलियन से अधिक सक्रिय उपयोगकर्ताओं को आकर्षित किया है, जो एक दिन में लगभग 80 मिलियन तस्वीरें अपलोड करते हैं। अब इनमें देश-विदेश के जाने-माने कलाकार और हस्तियां भी शामिल होती हैं। हमारे आपके जैसे हज़ारों लोग हैं जो सोशल मीडिया के माध्यम से अपने पसंदीदा कलाकार या कोई रोल मॉडल को देखना और उनका अनुसरण करना खासा पसंद करते हैं। बस यही से जन्म लेती हैं सोशल मीडिया के वर्चुअल दुनिया की तथाकथित सुंदरता के पैमाने। स्नैपचैट हो या इंस्टाग्राम, ज्यादातर सोशल मीडिया साईट्स ने अपने प्लेटफोर्म में कैमरा को इन्हैंस करने को फ़िल्टर के जरिये लोगों के चेहरों को अधिक सुन्दर बनाने का काम करते हैं। कई प्रयासों, मेकअप, रीटचिंग और फिल्टर के साथ, यह सही छवि के लिए एक प्रतियोगिता बन गई है। इनके लिए सुन्दर होना का मतलब उजली त्वचा या बेदाग चेहरे हो सकते हैं।

क्यों इस्तेमाल करते हैं सेल्फ़ी फ़िल्टर

पुरुष और महिलाएं, दोनों किशोर और वयस्क, सामाजिक विशेषताओं ( यानि व्यक्तित्व, बुद्धि) और शारीरिक विशेषताओं (यानि वजन, लंबाई, शरीर की छवि) के लिए मॉडल या मशहूर हस्तियों से खुद की तुलना अक्सर साथियों से करते हैं। इस प्रकार सामाजिक तुलना करने से युवा महिलाओं में एक तरह की आत्मग्लानि का भाव जागृत हो जाता है और यही उन्हें सेल्फी फ़िल्टर लेने के लिए अधिक से अधिक उकसाता है। कॉलेज के दिनों में जब भी मुझे अपने दोस्तों के साथ फोटोज लेनी होती थी, तो मोबाइल फ़ोन के सामान्य कैमरा की जगह मैं स्नैपचैट फ़िल्टर का प्रयोग किया करती थी। दुनिया भर में 16 से 25 वर्ष के बीच की महिला औसतन सप्ताह में पांच घंटे से अधिक सेल्फी लेने (और सुधार करने) में बिताती है। ऐसा नहीं है कि युवा लड़कियों के लिए सुंदरता के तथाकथित पैमानों को तय करने के लिए डिजिटल मीडिया या सेल्फी फ़िल्टर ही पूरी तरह से जिम्मेदार है। इसमें हमारे ब्यूटी प्रोडक्ट्स भी बराबर की भूमिका निभाते हैं। अब एक टीवी विज्ञापन का उदाहरण ले लीजिए। अक्सर सौन्दर्य उत्पादों के विज्ञापनों में सांवले रंग की एक लड़की को उदास और बुझा-बुझा सा दिखाया जाता है। दर्शकों को यह दिखाने की कोशिश की जाती है कि पिम्पल वाले चेहरे की अलग कैटेगरी है, जिसमें कोई भी नहीं आना चाहता। समाज की यह मानसिकता युवा लड़कियों के ऊपर इतनी हावी हो जाती है कि उनको खुद अपनी पहचान को मानने में मुश्किल महसूस होता है।

स्नैपचैट हो या इंस्टाग्राम, ज्यादातर सोशल मीडिया साईट्स ने अपने प्लेटफोर्म में कैमरा को इन्हैंस करने को फ़िल्टर के जरिये लोगों के चेहरों को अधिक सुन्दर बनाने का काम करते हैं। कई प्रयासों, मेकअप, रीटचिंग और फिल्टर के साथ, यह सही छवि के लिए एक प्रतियोगिता बन गई है।

डेटिंग ऐप पर तस्वीरों का खेल

एक अध्ययन के अनुसार डेटिंग साईट पर मिले दो अलग-अलग लोगों से बात करके पता चला कि डेटिंग ऐप पर अपलोड की गई फोटो उनके असल चेहरे से काफी अलग होती है। खास कर जब पुरुष से बात की तो उन्होंने बताया कि जब मैं डेटिंग ऐप पर लड़की से बात कर रहा था तो उसकी तस्वीर मुझे बहुत पसंद आई। पर जब हमारी सामने से मिलने का समय आया, तो मुझे पता चला कि वो लड़की अपनी अपलोड की हुई तस्वीर से बहुत अलग थी। इसके बाद मुझे वो वास्तविक तौर पर मिलने के बाद पसंद नहीं आई। आजकल फ़ोन में और अलग-अलग ऐप में ऐसे-ऐसे फ़िल्टर आ गए हैं जो हमारे चेहरे को सुंदर बनाने के चक्कर में पूरा चेहरा बदल सकते हैं। कई बार असल त्वचा को इतना अधिक सफेद यानि ब्राइट कर देते हैं और चेहरे के सामान्य रूप में ओए जाने वाले दाग-धब्बे और झुर्रियों को छुपा देते हैं। लड़कियों में अक्सर हम देखते हैं कि फोट क्लिक करने के लिए वह स्नैपचैट फ़िल्टर का प्रयोग करती हैं। फ़िल्टर से अपने चेहरे को अधिक ब्राइट कर लेना भी कहीं न कही रंगभेद से जुड़ा है, जो विशेष कर लड़कियों को सुंदरता के पैमाने पर आंकता है। भारतीय समाज में हमने देखा हैं कि सांवले रंग को नकारात्मक रूप से देखा जाता है और रंग के आधार पर भेदभाव किया जाता है। विज्ञापनों, पत्रिकाओं, टेलीविजन के अलावा संगीत वीडियो में भी युवा महिलाओं को कथित रूप से अधिक गोरा, बेदाग और ‘सुंदर’ दिखाने की कोशिश की जाती है।

चेहरे को कथित रूप से सुंदर बनाते ऐप

पिछले वर्ष में जैसे-जैसे हमारा जीवन हमारी स्क्रीन पर परिवर्तित हुआ है, हम विशेष रूप से अपने चेहरों के प्रति सचेत हो गए हैं। सेल्फी की समस्या शोध और सर्वेक्षण का विषय रही है। अक्सर वीडियो कॉल पर सामने वाले को देखने के बजाए हम अपने कैमरे की स्क्रीन को ज़ूम कर के देखते हैं और अपने चेहरे को किसी काल्पनिक मापदंड में आंकने की कोशिश में लग जाते हैं। हमारी टेक्नोलॉजी हमें भले ही वर्चुअल दुनिया में असुरक्षित बना सकती है, लेकिन यह एक आकर्षक समाधान भी प्रदान करती है। यह चेहरे के फिल्टर और अलग-अलग तरह के एडिटिंग ऐप्स पर आप केवल कुछ ही सेकंड में अपने दागों को टैप और स्वाइप कर सकते हैं। इंस्टाग्राम और स्नैपचैट दोनों प्लेटफॉर्म, जिन्होंने महामारी के दौरान सबसे अधिक उपयोगिता के रिकॉर्ड के उच्च स्तर को छुआ, उनमें सौंदर्य और अधिक नकली बनावट वाले चेहरे के फिल्टर हैं।

वाल स्ट्रीट जर्नल के एक रिपोर्ट में 18 वर्षीय लड़की कहती है कि जब वह अकेली होती है, तो उसे खुद से नफरत नहीं होती। लेकिन जब वह सोशल मीडिया पर दूसरे लोगों की सुन्दर-सुन्दर तवीरें देखकर, उनसे अपनी तुलना करती है, तो उसे खुद से नफरत होती है। फ़ेसट्यून एक लोकप्रिय एडिटिंग ऐप है, जिसका उपयोग पिंपल्स को मिटाने से लेकर आपके चेहरे की संरचना को बदलने या आपको लंबा दिखाने तक, सब कुछ करने के लिए किया जा सकता है। RetouchMe नामक एक ऐप बहुत कम कीमत में फोटो एडिटिंग का उपयोग करके आपकी तस्वीर को ‘पेशेवर रीटच’ देता है।

फ़िल्टर से अपने चेहरे को अधिक ब्राइट कर लेना भी कहीं न कही रंगभेद से जुड़ा है, जो विशेष कर लड़कियों को सुंदरता के पैमाने पर आंकता है। भारतीय समाज में हमने देखा हैं कि सांवले रंग को नकारात्मक रूप से देखा जाता है और रंग के आधार पर भेदभाव किया जाता है।

खुद से खुद की प्रतिस्पर्धा

टिकटॉक पर ‘एन्हांस’ फीचर और ज़ूम पर ‘टच अप माई अपीयरेंस’ जैसी विशेषताएं वीडियो के लिए बेदाग और कथित रूप से सुंदर स्किन प्रदान करती हैं। फेसट्यून जैसे एडिटिंग ऐप्स, जिनके उपयोग में महामारी की शुरुआत में 20 फीसद की वृद्धि देखी गई और प्रतिदिन 1 मिलियन से अधिक संपादित छवियां निर्यात की जाती हैं, इस्तेमाल करने वाले चेहरे की परफेक्शन पाने के लिए फ़िल्टर के द्वारा अपनी सेल्फी में स्मूथ, श्रिंक और शार्प जैसे ऑप्शन प्रदान करती हैं। ‘स्मूथ’ करने से लड़कियों के चेहरे की स्वाभाविक लकीरें मिट जाती हैं और शार्प का चुनाव करने से चेहरे को अधिक पतला बना देते हैं। आत्म-सम्मान और सुंदरता के तथाकथिक पैमानों पर एडिट की हुई तस्वीरें का प्रभाव, खासकर नकारात्मक प्रभाव कोई नई बात नहीं है। लेकिन सोशल मीडिया से पहले, युवा लड़कियों की इन्सेक्युरिटी का स्रोत मैगज़ीन कवर पर दिखाए गए सौंदर्य आदर्शों को पूरा करने में असफल होना था। अब, लड़कियां अपनी तुलना न केवल एक अभिजात वर्ग से करती हैं, बल्कि अपने चुनिंदा मानदंडों पर सुंदर बताए जाने वाले दोस्तों और अपने बदले हुए सेल्फी से भी करती हैं। इन फिल्टरों के साथ इसे अगले स्तर पर ले जाने वाली बात यह नहीं है कि यह सिर्फ एक सेलिब्रिटी की छवि को देखना है जोकि बिलकुल भी प्राकृतिक या सामान्य नहीं है। यह उस व्यक्ति के खिलाफ खुद को मापना है, यानि आपकी नकली छवि के खिलाफ आपके वास्तविकता को मापना है।

यह किसी के मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य के लिए अच्छा है कि वे जिस तरह दिखते हैं उसे पसंद करें। आप इंस्टाग्राम या स्नैपचैट पर क्या करने जा रहे हैं, इसके लिए एक योजना बनाने का प्रयास करें। इसमें यह शामिल हो सकता है कि आप इसका उपयोग कितने समय तक करेंगे और आप क्या देखना चाहते हैं। जब आप सोशल मीडिया का उपयोग कर रहे हों, तो देखें कि यह आपको कैसा महसूस कराता है, और यदि यह आपको बुरा महसूस कराने लगे तो इसे छोड़ने के लिए तैयार रहें। किसी लड़की की केवल शक्ल-सूरत को प्राथमिकता देना समाज में कोई नई बात नहीं है। लेकिन सेल्फी के बिना युवा लड़कियों का खुद के प्रति नकारात्मक सोच या आत्मविश्वास की कमी या किसी कमी का एहसास होना, नुकसानदेह है। खुद को स्वाभाविक और प्राकृतिक पर अपना पाना ही स्वास्थ्य के लिए अच्छा है।

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