प्रचलित दौर में नारी सौंदर्य की स्वीकृति में ब्यूटी स्टैंडर्ड यानी सुंदरता के मानकों का बहुत बड़ा प्रभाव दिखाई देता है। किसी स्त्री की सुंदरता के संदर्भ में बहुत कुछ हद तक इन मानकों के पूरे होने की अपेक्षा रहती है। स्त्रियां सौंदर्य के प्रति संवेदनशील होती हैं। उनमें नैसर्गिक रूप से सौंदर्य के प्रति रूझान होता है। प्रकृति की अनुपम देन ‘सौन्दर्य’ का सम्मान करना उचित ही है। लेकिन उसके सौंदर्य को सीमाओं में बांधना कितना जायज है, यह सोचने की बात है। सामाजिक नज़रिए के प्रभाव म कपड़ों में दिखाई देती हैं। शीत के दौरान पुरुष पैंट, कोट, टाई में होते हैं। यह विसंगति क्यों? स्त्रियां कम कपड़ों में सुंदर लगती हैं, यह पुरुषवादी सोच है। कम अथवा अधिक कपड़ो को पहनना नारी का अपना दृष्टिकोण है, अपनी इच्छा है।।
सामाजिक उन्नति के लिए नारी का स्वास्थ्य एक अहम पहलू है। वह समाज में नवसृजित सदस्यों की निर्माता है। स्वस्थ नारी समाज ही राष्ट्रीय गति को तीव्रतर कर सकता है। परिवार संस्था और सामाजिक संस्थाओं को बहुमुखी प्रगति के तहत नारी से बहुत अपेक्षाएं हैं। नारीवादी दृष्टिकोण से यदि देखें तो इस प्रकार के मानक स्त्रियों की मनःस्थिति पर तनाव और दबाव के कारण दिखाई देते हैं। अन्ततः नारी जगत की स्वतंत्रता, स्वस्थता और सबलता को केंद्र में रखने की सामयिक आवश्यकता अनुभूत हो रही है।