हृदय रोग या दिल की बीमारी आजकल एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या बन चुकी है और इसका खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है। यह रोग संतुलित आहार और नियमित व्यायाम के माध्यम से नियंत्रित किया जा सकता है। लेकिन हृदय रोग के मामले में महिलाओं और पुरुषों के प्रति अलग-अलग रवैया देखा गया है। हृदय रोग कई पूर्वाग्रहों से घिरा हुआ है। सबसे बड़ा पूर्वाग्रह तो यही है कि महिलाओं को दिल के रोग नहीं होते जबकि हक़ीक़त इससे उलट है। आंकड़ों के मुताबिक महिलाओं को भी हृदय रोग प्रभावित करते हैं और इनमें मृत्यु का एक प्रमुख कारण हृदय रोग भी है।
यह अलग-अलग प्रकार की स्थितियों का समूह है जो दिल को प्रभावित करती है। इनमें कोरोनरी आर्टरी डिजीज, दिल के धड़कने में होने वाली समस्या और जन्म से ही होने वाली दिल ही समस्याएं शामिल हैं। ‘हृदय रोग’ को चिकित्सीय भाषा में ‘कार्डियोवास्कुलर रोग’ भी कहा जाता है जो आमतौर पर उन स्थितियों को बताता है, जिनमें ब्लड वेसल के सिकुड़ने या ब्लॉक होने की वजह से दिल का दौरा, एनजाइना या स्ट्रोक आने का खतरा रहता है।
महिलाओं में हृदय रोग के हो सकते हैं अलग लक्षण
पुरुषों के तुलना में देखें महिलाओं में हृदय रोग के कुछ अलग लक्षण देखने को मिलते हैं। अमेरिका के क्लीवलैंड क्लीनिक मेडिकल सेंटर की रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार हार्ट अटैक के दौरान छाती में दर्द के अलावा भी कई ऐसे लक्षण हैं जो केवल महिलाओं में दिखाई पड़ते हैं, जैसे कि पीठ, गर्दन, जबड़े और बांहों में दर्द होना। रिसर्च बताता है कि इन्हें अनदेखा न करके जांच करवानी चाहिए। हार्ट अटैक को आमतौर पर सीने में दर्द होने से जोड़कर देखा जाता है। लेकिन महिलाओं में हार्ट अटैक की स्थिति में गर्दन और जबड़े में भी दर्द हो सकता है।
दूसरा लक्षण सांस लेने में तकलीफ और चक्कर आना हो सकता है जो कि है हार्ट अटैक का सबसे सामान्य लक्षण है। पेट में तेज दर्द या पेट से जुड़ी बीमारी भी इसके लक्षण हो सकते हैं जिसे अक्सर लोग फूड पॉइजनिंग या गैस का दर्द समझ कर नज़रअंदाज़ कर देते हैं। अचानक गर्मी लगना, आराम के बावजूद थकान महसूस करना, छाती में दबाव और दर्द महसूस होना भी हृदय रोग के अन्य लक्षण हैं।
अधिक उम्र की महिलाओं में मौत का एक प्रमुख कारण
महिलाओं में होने वाले हृदय के रोगों को अक्सर यह सोच के कम ध्यान दिया जाता है कि महिलाएं तो दिल की बीमारियों से सुरक्षित हैं। लेकिन असल में देश में महिलाएं ही नहीं, सभी लोगों में इसके प्रति जागरुकता की कमी है। इसकी कम समझ और उच्च चिकित्सीय पदों पर महिलाओं का कम प्रतिनिधित्व और महिलाओं के स्वास्थ्य के प्रति समाज के सामान्य रवैये के कारण इनके इलाज में फ़र्क़ पड़ता है। नेशनल लाइब्रेरी ऑफ़ मेडिसिन के एक शोध के अनुसार पुरुषों की तुलना में महिलाओं में हृदय रोग 7 से 10 साल बाद विकसित होता है। लेकिन 65 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं में अभी भी यह मृत्यु के प्रमुख कारणों में से एक है।
मेनोपॉज़ के बाद महिलाओं में हृदय रोग के जोखिम बढ़ सकते हैं
राष्ट्रीय स्वास्थ्य और पोषण परीक्षा सर्वेक्षण (एनएचएएनईएस) की रिपोर्ट के अनुसार पिछले दो दशकों में 35 से 54 वर्ष की महिलाओं में दिल का दौरा होने का खतरा बढ़ा है। वहीं समान आयु वर्ग के पुरुषों में यह कम हुआ है। जिन महिलाओं के 40 साल की उम्र से पहले ही मेनोपॉज़ हो गया हो, उनकी जीने की संभावना उन महिलाओं के मुकाबले 2 साल कम बताई गई है जिनका सामान्य या 40 साल की उम्र के बाद मेनोपॉज़ हुआ हो। वूमेन इस्कीमिया सिंड्रोम इवैल्यूएशन (डब्लूआईएसई) के अध्ययन में यह पाया गया है कि वो युवा महिलाएं जिनमें अंतर्जात एस्ट्रोजन की कमी है, उनमें कोरोनरी आर्टरी रोग का खतरा सात गुना से ज्यादा बढ़ जाता है।
एस्ट्रोजेन एक महत्वपूर्ण हार्मोन है जो महिलाओं के शरीर में अलग-अलग कामों को नियंत्रित करता है। यह हार्मोन नसों को लचीला बनाए रखने और ब्लड प्रेशर को स्थिर रखने में मदद करता है। मेनोपॉज़ से पहले, एस्ट्रोजेन अच्छे कोलेस्ट्रॉल (एचडीएल) के स्तर को बढ़ाने और खराब कोलेस्ट्रॉल (एलडीएल) के स्तर को कम रखने में मदद करता है। मेनोपॉज़ के बाद एस्ट्रोजेन का स्तर कम हो जाता है, जिससे एचडीएल का स्तर घट सकता है और एलडीएल का स्तर बढ़ सकता है।
एलडीएल कोलेस्ट्रॉल आर्टरी में प्लाक के निर्माण को बढ़ावा देता है, जिससे एथेरोस्क्लेरोसिस हो सकता है। एथेरोस्क्लेरोसिस एक ऐसी स्थिति है जिसमें आर्टरी में प्लाक का निर्माण होता है, जिससे खून के बहाव में दिक्कत आती है और हृदय रोगों का खतरा बढ़ जाता है। इससे दिल का दौरा, स्ट्रोक या अन्य हृदय संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। इस प्रकार मेनोपॉज के बाद एस्ट्रोजेन के स्तर में कमी से हृदय रोगों का जोखिम बढ़ सकता है।
दुनिया भर में हर 3 में से 1 मौत हृदय रोग से
दुनिया भर में सबसे ज्यादा मौतें हृदय रोगों से होती हैं। वर्ल्ड हार्ट फेडरेशन के मुताबिक, दुनिया भर में हर 3 में से 1 मौत हृदय रोग से हो रही है। उच्च आय वाले देशों में कार्डियोवैसकुलर डिसीसेस (सीवीडी) से मृत्यु दर में गिरावट निम्न और मध्यम आय वाले देशों की तुलना में बहुत तेजी से हुई है, जहां वैश्विक स्तर पर 80 फीसद से अधिक सीवीडी से मौतें होती हैं। भारत में पुरुषों की तुलना में महिलाओं में कोरोनरी हृदय रोग (सीएचडी) अधिक तेजी से बढ़ रहा है। सीएचडी आपके हृदय में खून के प्रवाह में कमी होने के कारण आपके हृदय के कमजोर होने से होता है। यह महिलाओं में अधिक वजन, मधुमेह, तंबाकू के उपयोग और पेरियोडोंटल संक्रमण के बढ़ने की वजह से बढ़ा है।
नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन द्वारा धूम्रपान पर किए गए एक स्टडी के मुताबिक अन्य महिलाओं की तुलना में स्मोकिंग करने वाली महिलाओं में दिल से जुड़ी बीमारी होने की संभावना काफी ज्यादा होती है। वहीं पुरुषों की तुलना में 35 वर्ष से अधिक उम्र की स्मोकिंग करने वाली महिलाओं के सीवीडी से मृत्यु होने की संभावना ज्यादा होती है। स्मोकिंग की आदत दिल से शरीर तक खून पहुंचाने वाले ब्लड वेसल्स को कमजोर कर देती है, जिस वजह से हार्ट स्ट्रोक आने की संभावना भी बनी रहती है।
मध्यम आय वाले देशों में हृदय रोग के जोखिम बढ़ रहे हैं
उच्च आय वाले देशों में सीएचडी के पीड़ितों की संख्या कम हुई है जबकि कम आय वाले और भारत जैसे देशों में इसकी संख्या बढ़ी है। उच्च आय वाले देशों में सीएचडी की संख्या कम होने का मुख्य कारण है कि वहां लोगों की आयु संबंधी स्वास्थ्य सेवाओं और जीवन शैली में सुधार हुआ है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) ने बताया है कि भारत और कई और मध्यम आय वाले देशों में महिलाओं और पुरूषों दोनों में इसके जोखिम बढ़ रहे हैं। लेकिन पुरुषों की तुलना में महिलाओं में ये ज़्यादा बढ़े हैं, जिसके ज़िम्मेदार कुछ सामाजिक और आर्थिक कारण हो सकते हैं। भारत जैसे देशों में महिलाओं को शिक्षा, नौकरी के अवसर, और समाज में समानता की कमी होती है, जिससे उन्हें अधिक तनाव और अवसाद का सामना करना पड़ता है।
इसके अलावा महिलाओं पर अक्सर घरेलू शिक्षा और बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी होती है जो उनके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालती है। महिलाओं और पुरुषों दोनों में इस रोग के जोखिम में बढ़ोतरी का मुख्य कारण सामाजिक और आर्थिक असमानता है। इस सामाजिक और आर्थिक समानता को बढ़ाने के लिए नीतियों और कार्यक्रमों की आवश्यकता है जो महिलाओं को उचित शिक्षा, रोजगार के अवसर, और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँचने में मदद करें। इसके साथ ही सामुदायिक संगठनों और सरकारी अभियानों के माध्यम से स्वास्थ्य जागरूकता और स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच को बढ़ावा देना भी महत्वपूर्ण है। नियमित व्यायाम, अच्छा बैलेन्स्ड आहार, संतुलित जीवनशैली और नियमित जांच के साथ इसके खतरे को कम किया जा सकता है। महिलाओं को अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक रहने की और हृदय रोग जैसे गंभीर विषयों को अनदेखा न कर उनपे ध्यान देने की ज़रूरत है।