समाजराजनीति बीजेपी घोषणापत्र: गरीबों, मध्यम वर्ग, महिलाओं, किसानों और युवाओं के क्या-क्या किया गया वादा

बीजेपी घोषणापत्र: गरीबों, मध्यम वर्ग, महिलाओं, किसानों और युवाओं के क्या-क्या किया गया वादा

शाहीन बाग की महिलाओं के नेतृत्व में सीएए-एनआरसी विरोधी प्रदर्शन हो, कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन, या महिला खिलाड़ियों द्वारा भाजपा नेताओं के खिलाफ यौन हिंसा के आरोप में विरोध प्रदर्शन, केंद्र सरकार ने किसी भी प्रकार के असहमति या अपने लिए सवाल को उनके विरुद्ध कार्रवाई कर आवाज़ को बंद करने का प्रयास की है।

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने पिछले दिनों अपना चुनाव घोषणापत्र जारी किया। भाजपा का यह दस्तावेज़ संभावनाओं की एक सूची है। घोषणापत्र में गारंटी दी गई कि भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनेगा, और आबादी के विशेष वर्गों, जैसे गरीब, मध्यम वर्ग, महिलाओं, युवाओं, किसानों और मजदूरों पर ध्यान केंद्रित किया गया है। घोषणापत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम से एक पत्र शामिल किया गया है जहां वे कहते हैं कि देश का विकास महिलाओं, किसानों, मछुआरों, रेहड़ी-पटरी वालों, छोटे उद्यमियों, एससी, एसटी और ओबीसी समुदायों के जीवन में देखे गए व्यापक सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन से आया है। ध्यान देने वाली बात ये है कि इसकी घोषणा बाबासाहेब आंबेडकर के जन्म दिवस के रोज की गई।

गरीबों के कल्याण का दावा क्या वाकई है सच  

तस्वीर साभार: Down to Earth

मैनिफेस्टो कहता है कि बीजेपी हर गरीब परिवार को गरीबी से बाहर आने और सम्मानजनक जीवन जीने में सहायता करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। मैनिफेस्टो में कहा गया कि बीजेपी पिछले दस वर्षों में अच्छे परिणामों के साथ गरीबों के कल्याण के लिए विभिन्न उपाय किए हैं। हम अपने गरीब परिवार जन (गरीबों) को सशक्त बनाने पर ध्यान केंद्रित करना जारी रखेंगे ताकि उनके जीवन की गुणवत्ता में सुधार हो, आय बढ़े और सम्मान के साथ जीवनयापन हो सके। हालांकि सितंबर 2022 के मध्य से एक नई वैश्विक गरीबी रेखा को अपनाया गया जिसके मुताबिक 2019 में देश में 10 प्रतिशत लोग गरीब थे, जो 2011 में 22.5 प्रतिशत से कम है।

ग्रामीण भारत में शहरी क्षेत्रों के 6.4 प्रतिशत की तुलना में 11.9 प्रतिशत गरीब लोग थे। भारत ने 2011 से राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (एनएसएसओ) द्वारा उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण के आधार पर मापे गए गरीबी के आंकड़े घोषित नहीं किए हैं। एजेंसी ऐसा ही एक सर्वे 2017-18 में जारी करने वाली थी, लेकिन सरकार ने इसका प्रकाशन रोक दिया।

ग्रामीण भारत में शहरी क्षेत्रों के 6.4 प्रतिशत की तुलना में 11.9 प्रतिशत गरीब लोग थे। भारत ने 2011 से राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (एनएसएसओ) द्वारा उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण के आधार पर मापे गए गरीबी के आंकड़े घोषित नहीं किए हैं। एजेंसी ऐसा ही एक सर्वे 2017-18 में जारी करने वाली थी, लेकिन सरकार ने इसका प्रकाशन रोक दिया। वहीं ऑक्सफैम के रिपोर्ट अनुसार देश के आबादी के शीर्ष 10 फीसद लोगों के पास कुल राष्ट्रीय संपत्ति का 77 फीसद हिस्सा है।

2017 में 670 मिलियन भारतीय, जो आबादी का सबसे गरीब आधा हिस्सा हैं, उनकी संपत्ति में केवल 1 फीसद की वृद्धि देखी गई। मैनिफेस्टो में प्रधान मंत्री आवास योजना में प्रत्येक गरीब परिवार को शामिल किया जाएगा। नल जल कनेक्टिविटी और स्वच्छ ईंधन उपलब्धता के कवरेज को और बढ़ाया जाएगा, और झुग्गी-झोपड़ी पुनर्विकास कार्यक्रम को बढ़ाए जाने की बात कही गई। अन्य कदमों में दालों, खाद्य तेलों और सब्जियों के उत्पादन में आत्मनिर्भर बनकर खाद्य कीमतों को कम रखने के प्रयास की बात कही गई।

2017 में 670 मिलियन भारतीय, जो आबादी का सबसे गरीब आधा हिस्सा हैं, उनकी संपत्ति में केवल 1 फीसद की वृद्धि देखी गई। मैनिफेस्टो में प्रधान मंत्री आवास योजना में प्रत्येक गरीब परिवार को शामिल किया जाएगा।

महिलाओं के सशक्तिकरण की बात

महिलाओं, विशेषकर ग्रामीण महिलाओं के लिए किए गए सबसे महत्वपूर्ण वादों में से एक, लखपति दीदी कार्यक्रम का विस्तार है। इसमें मौजूदा एक करोड़ से तीन करोड़ महिलाओं को शामिल किया गया है। इस योजना का लक्ष्य स्वयं सहायता समूह नेटवर्क को मजबूत करना है ताकि प्रति वर्ष 1 लाख रुपये से अधिक आय अर्जित करने वाली महिलाओं की बढ़ती संख्या तैयार की जा सके। कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए महिला छात्रावास और क्रेच जैसे बुनियादी ढांचे का विकास करने की बात कही गई है।

तस्वीर साभार: Feminism In India

हालांकि बता दें कि देश में 50 या अधिक कर्मचारियों वाले नियोक्ताओं को डे केयर सुविधाएं प्रदान करने का नियम पहले से मौजूद है। पिछले छह सालों में महिला श्रम बल भागीदारी दर में सुधार हुआ है। लेकिन कार्यस्थल में सुरक्षा, समान वेतन जैसे बुनियादी अधिकारों की कोई बात नहीं की गई। मौजूदा योजनाओं के विस्तार से महिलाओं में अनेमिआ, स्तन कैंसर, सर्वाइकल कैंसर की रोकथाम और कमी पर फोकस करने की बात जरूर की गई है। लेकिन मौजूदा योजनाओं न सर पहले से वियफल हो रही हैं, बल्कि समावेशी नजरिए की व्यापाक कमी है।

देश में 50 या अधिक कर्मचारियों वाले नियोक्ताओं को डे केयर सुविधाएं प्रदान करने का नियम पहले से मौजूद है। पिछले छह सालों में महिला श्रम बल भागीदारी दर में सुधार हुआ है। लेकिन कार्यस्थल में सुरक्षा, समान वेतन जैसे बुनियादी अधिकारों की कोई बात नहीं की गई।

कृषक, युवाओं और बेहतर न्यायायिक व्यवस्था के लिए वादा

गैर-कृषि छोटे और सूक्ष्म उधारकर्ताओं के लिए ऋण की सीमा बढ़ाना, अन्य 30 मिलियन गरीबों के लिए मुफ्त आवास की पेशकश करना और 2029 तक 800 मिलियन भारतीयों के लिए मुफ्त अनाज कार्यक्रम जारी रखने का भी वादा किया गया है। पिछले पांच वर्षों में आयुष्मान भारत योजना के तहत गरीब परिवारों को आगे भी मुफ्त स्वास्थ्य उपचार प्रदान करना जारी रहेगा। भाजपा मैनिफेस्टो बताती है कि वे पारदर्शी सरकारी भर्ती करने के लिए और पेपर लीक रोकने के लिए कानून लागू करेंगे। देश के युवाओं को स्टार्टअप बनाने के अवसर देने का भी भाजपा ने वादा किया है। हालांकि 2022 की शुरुआत के बाद से, स्टार्टअप्स ने लागत में कटौती करने और गैर-कोर या खराब प्रदर्शन करने वाले वर्टिकल को बंद करने के प्रयास में हजारों कर्मचारियों को निकाला है। वेदांतु से ओला और कार्स24 से मीशो तक, बड़े और छोटे स्टार्टअप्स में छंटनी की घोषणा की गई है।

तस्वीर साभार: The Print

भाजपा कहती है कि सरकार बनाने के बाद ई-कोर्ट की व्यवस्था को जल्द लाने की कोशिश करेंगे और साथ ही न्याय के लिए लंबित पड़े मामलों में तेज़ी लाएंगे। बता दें कि देश भर की अदालतों में लगभग 5 करोड़ केस पेंडिंग पड़े हैं, जिनमें उच्चतम न्यायलय में ही लगभग सत्तर हज़ार मामले लंबित हैं। लेकिन महिलाओं के दर्ज माममलों में न सिर्फ नयायिक प्रक्रिया में देरी होती है, बल्कि पितृसत्तात्मक सोच देखने को मिलती है।

एलजीबीटीक्यू समुदाय के लिए भाजपा ने क्या वादा किया  

पार्टी ने वादा किया है कि वे सत्ता में आने के बाद ट्रांसजेंडर लोगों के लिए गरिमा गृह का विस्तार करेंगे और देश भर में ट्रांसजेंडर लोगों की पहचान सुनिश्चित करने के लिए उनके पहचान पत्र भी बनवाएंगे। साथ ही सभी ट्रांसजेंडर लोगों को आयुष्मान भारत स्कीम के तहत कवर करने का भी पार्टी ने वादा किया है। लेकिन मैरेज इक्वालिटी मामले में भाजपा सरकार की नीति में कोई बदलाव नहीं है। ऐसे में क्या सरकार सबसे पहले ये मानती हैं कि एलजीबीटीक्यू समुदाय को भी बुनियादी अधिकार मिलना चाहिए।  

मैरेज इक्वालिटी मामले में भाजपा सरकार की नीति में कोई बदलाव नहीं है। ऐसे में क्या सरकार सबसे पहले ये मानती हैं कि एलजीबीटीक्यू समुदाय को भी बुनियादी अधिकार मिलना चाहिए।  

यूसीसी को लागू करने की बात

भाजपा समान नागरिक संहिता को राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत के रूप में लाना चाहती है। वैसे तो समान नागरिक संहिता को लाने का उद्देश्य सभी धर्मों के लिए समान कानून बनाना कहा जाता है। लेकिन असल में, यह केवल विशेष धर्म और समुदाय को लक्षित करके रणनीति लायी गई है। भाजपा की अवधारणा में हिन्दू राष्ट्र हमेशा से रहा है। मुस्लिम समुदाय को लक्षित कर हेट क्राइम और मॉब लिन्चिंग की घटनाएं आए दिन सामने आती हैं। यूसीसी में न सिर्फ विशेष धर्म बल्कि लोगों पर विशेषकर महिलाओं की एजेंसी खत्म होने के आसार दिखाई पड़ते हैं।

भाजपा की अवधारणा में हिन्दू राष्ट्र हमेशा से रहा है। मुस्लिम समुदाय को लक्षित कर हेट क्राइम और मॉब लिन्चिंग की घटनाएं आए दिन सामने आती हैं। यूसीसी में न सिर्फ विशेष धर्म बल्कि लोगों पर विशेषकर महिलाओं की एजेंसी खत्म होने के आसार दिखाई पड़ते हैं।

भाजपा के घोषणापत्र में कहा गया है कि लैंगिक समानता तब तक हासिल नहीं की जा सकती जब तक कि सर्वोत्तम परंपराओं को अपनाने और आधुनिक समय के साथ उनका सामंजस्य स्थापित करने वाली यूसीसी लागू नहीं की जाती। यह एक निरर्थक और भ्रामक सूत्रीकरण है। हालांकि ये अवधारणा कि केवल मुस्लिम समुदाय में ही एक से ज्यादा विवाह का प्रचलन है, ये भी एक मिथक है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकड़ों के आधार पर 2022 में इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर पॉपुलेशन साइंसेज द्वारा प्रकाशित एक अध्ययन से पता चला है कि 1.9 प्रतिशत मुस्लिम पुरुष एक से ज्यादा विवाह करते हैं। हिंदू पुरुषों के लिए यह आंकड़ा 1.3 फीसद और अन्य के लिए 1.6 फीसद है ।

शाहीन बाग की महिलाओं के नेतृत्व में सीएए-एनआरसी विरोधी प्रदर्शन हो, कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन, या महिला खिलाड़ियों द्वारा भाजपा नेताओं के खिलाफ यौन हिंसा के आरोप में विरोध प्रदर्शन, केंद्र सरकार ने किसी भी प्रकार के असहमति या अपने लिए सवाल को उनके विरुद्ध कार्रवाई कर आवाज़ को बंद करने का प्रयास की है। मोदी सरकार का नारा ‘सबका साथ – सबका विकास’ में हाशिये के समुदाय छूटते नजर आए हैं। दस्तावेज में विशिष्टताओं का अभाव है, महत्वपूर्ण सामग्री और दृष्टि की कमी है, और यह मतदाताओं की लालसा को संतुष्ट करने के लिए ‘केवल मोदी’ के करिश्मे पर निर्भर है। यह दस्तावेज निश्चित शब्दों में भविष्य के लिए कोई ठोस खाका पेश करने में सफल नहीं हुई है।

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