कर्नाटक के यादगीर जिले के बप्पारागा गाँव में एक नाबालिग दलित लड़की के ख़िलाफ़ बालात्कार का मामला सामने आया है। इस अपराध का कथित तौर पर दोषी एक उच्च जाति का एक युवक है। इस मामले में सर्वाइवर का परिवार पास के नारायणपुरा के पुलिस थाने जाकर रिपोर्ट दर्ज कराता है। इसके तुरंत बाद पॉक्सो के तहत आरोपी को 13 अगस्त को गिरफ्तार कर लिया जाता है। नाबालिग लड़की के साथ बालात्कार का मामला तब सामने आता है जब उसकी पांच महीने की गर्भावस्था का पता चलता है।
अपराधी का परिवार पुलिस थाने में दर्ज मामले को वापस लेने के लिए भरपूर दबाव बनाते है लेकिन सारी कोशिशें नाकाम हो जाती हैं। अपनी सहूलियत के अनुसार और अपनी पवित्रता को बनाये रखते हुए हर संभव नाकाम कोशिशों के बाद गाँव का प्रभुत्वशील तथाकथित उच्च जाति वर्ग गाँव के दलित परिवारों के सामाजिक बहिष्कार करने की घोषणा करता है। यह बिल्कुल ऐसा ‘कलेक्टिव एफर्ट’ है जिसका वर्णन हमें मनुस्मिति में देखने को मिलता है।
हैरान करने वाली बात यह है कि बप्पारागा गाँव में बहुसंख्यक तथाकथित उच्च जाति समुदाय का दबदबा इस हद तक बना हुआ है कि उनके द्वारा लगभग एक साथ 50 दलित निवासी परिवारों का सामाजिक बहिष्कार किया गया है। उन्हें किसी भी सार्वजनिक जगहों जैसे मंदिर, सैलून, स्टेशनरी जैसी सुविधाओं का इस्तेमाल करने से पूरी तरह वंचित कर दिया गया है। खाने-पीने और रोज़ाना की खरीदारी से वंचित कर दिए जाने की ऐसी स्थिति में दलित लोग दूसरे गाँव जाकर खरीदारी करने पर मजबूर हैं। एक तथ्य यह भी सामने आया है कि इनमें से अधिकांश शारीरिक श्रम कार्य में लगे हुए हैं। वे अपनी सुविधाओं और उपयोगिताओं के लिए गाँव के बुनियादी ढाँचे पर निर्भर हैं। सोचकर देखिए उस परिस्थिति को कि कैसा होता है जब एक दलित सर्वाइवर न्याय पाने के लिए कानूनी सहायता लेती है।
शादी का झांसा और यौन उत्पीड़न
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कथित तौर पर शादी का झांसा देकर उस व्यक्ति ने लड़की का यौन शोषण किया था। सर्वाइवर नाबालिग है। नाबालिग की गर्भावस्था का पता चलते ही उसका परिवार लड़के द्वारा किए गए शादी करने के वादे का सम्मान करने के लिए युवक से संपर्क करते हैं। क्योंकि यौन उत्पीड़न की ऐसी स्थिति में इज्ज़त की ख़ातिर समझौता करने का तरीका भारत में असामान्य नहीं है। ताज्जुब की बात है कि इस तरीके को गरीब और दलित परिवार अक्सर सबसे व्यावहारिक और सामाजिक रूप से स्वीकार्य मार्ग के रूप में चुनते हैं। जातिगत मतभेदों के कारण तथाकथित उच्च जाति का युवक और उसका परिवार नाबालिग से शादी करने के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया जाता है।
ऐसे मामले में समाधान करने के लिए शादी का प्रस्ताव यथासंभव न्यायिक रास्ते से बचने और अपराधी को बचाने की कोशिश को भी बयां करता है। अगर इस केस में अबॉर्शन की बात की जाए जो कि एक सामाजिक वर्जना है तो वह वैसे भी पांचवें माह में जोखिम भरा है। रिपोर्ट से पता चलता है कि तथाकथित उच्च जाति के ग्रामीणों द्वारा बातचीत और समझौते के द्वारा मामले को दबा दिए जाने या रफा-दफा करने का सुझाव भी दिया गया था। बाद में लेकिन दलित परिवार ने इसे अस्वीकार कर दिया। इस बातचीत की शर्तों, प्रस्तावित समझौते और इस प्रक्रिया से जुड़ी शक्ति गतिशीलता के इर्दगिर्द जातिगत भेदभाव की मंशा को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। लड़की के माता-पिता दिहाड़ी मज़दूर हैं। वहीं पुरुष के परिवार और प्रतिनिधियों के पास पूरे दलित समाज के लोगों को गाँव से सामाजिक बहिष्कार की घोषणा करने और सुविधाओं तक पहुँच से वंचित करने की क्षमता है। यहां आर्थिक शक्ति को भी नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है।
बहिष्कार के बाद जातिवाद की घटनाएं हुई दर्ज
स्थानीय पुलिस ने गाँव में बहिष्कार लागू करने वाले बुजुर्गों के साथ बप्पाराग्गी में बैठक की थी लेकिन स्थिति वही बनी हुई है। इस बहिष्कार के दौरान 10 लोगों के ख़िलाफ़ भी एफआईआर दर्ज की गई है जिन्होंने कथित तौर पर एक स्थानीय किराने की दुकान पर एक महिला के साथ भेदभाव कर उसे दुकान से कुछ नहीं खरीदने दिया। यह केवल बहिष्कार का नतीजा था। द हिंदू की एक रिपोर्ट के अनुसार, जातिवादी बहिष्कार के 10 अपराधियों पर एससी/एसटी एक्ट के साथ धारा 351 (आपराधिक धमकी) और 352 (जानबूझकर अपमान) के तहत मामला दर्ज किया गया है।
यादगीर सबसे पिछड़े हुए जिलों में से एक
ताज्जुब की बात है कि यादगीर को पूरे देश में सबसे पिछड़े हुए जिलों में गिना जाता है और यह नीति आयोग के जिला कार्यक्रम का भी एक हिस्सा है। यादगीर जिले के लगभग 35% निवासी एससी या एसटी समुदायों से आते हैं। इसलिए इस सामाजिक बहिष्कार का प्रतिकूल प्रभाव बुनियादी ढांचे की कमी से ग्रस्त वाले इस क्षेत्र में स्थिति को और खराब कर देगा। जातियों और समुदायों के सामाजिक अलगाव की स्थिति में कल्पना भी नहीं की जा सकती है कि इसमें कितना दबाव और शोषण छिपा हुआ है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, गाँव की सेवाएं और सुविधाएं असमान रूप से तथाकथित उच्च जाति के लोगों के नियंत्रण में हैं। कोई निस्संदेह ही यह माहौल उच्च जाति के युवाओं को बिना किसी डर के अन्य कमज़ोर तबके के समुदाय की महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न जैसे अपराध करने में और ज्यादा सक्षम बनाएगा। परिणामस्वरूप दलितों जातियों के लोगों को इसके कारण ज्यादा नुकसान उठाना पड़ रहा है।
संभावना है कि दलित परिवार द्वारा शादी की बात और फिर कानूनी रास्ता अपनाने जैसे कदमों को ‘हिम्मत’ जैसे दृष्टिकोण की तरह देखा गया होगा। जिसका नतीजा यह हुआ कि गाँव के सभी दलित परिवारों को सुविधाओं से वंचित कर बहिष्कार कर दिया गया। समाज में बहिष्कार जैसा शर्मनाक कदम दलित समाज की सामाजिक गतिशीलता में ही बाधक नहीं है उनके लिए भारी आर्थिक नुकसान की भी वजह बनेगा। पूरे समुदाय को निशाना बनाने का यह कृत्य आज भी लिंग, जाति और वर्ग आधारित सामाजिक हायरर्की और भेदभाव की बरकरार संकीर्ण व्यवस्था को दर्शाता है।