हाल ही में फेमिनिज़म इन इंडिया की ओर से कुछ महिलाओं से दो सवाल किए गए। पहला, उन्होंने एचपीवी वैक्सीन ली है या नहीं और दूसरा उन्होंने कभी पैप स्मियर टेस्ट करवाया है या नहीं। एचपीवी वैक्सीन के बारे में बारह महिलाओं में सिर्फ एक ने कहा की यह ली थी। वहीं, एक महिला जो लन्दन में रहती हैं, बताया कि हालांकि वैक्सीन तो नहीं ली है, लेकिन वह हर साल स्क्रीनिंग करवाती है। इसी तरह, पैप स्मियर के बारे में नौ महिलाओं में से उस इकलौती लड़की ने यह टेस्ट करवाया था, जिसने एचपीवी वैक्सीन भी ली थी। उन्होंने भी यह टेस्ट डॉक्टर के कहने पर करवाया था। जिन लड़कियों से हमने बातचीत की, वे शिक्षित, आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर और कई मायनों में जागरूक महिलाएं हैं। लेकिन, फिर भी उन्हें इसके बारे में नहीं पता था, तो ज़रा सोचिए अशिक्षित और इंटरनेट की पहुंच से दूर गांव या कस्बों में रहनेवाली महिलाओं को इसके बारे में कैसे पता होगा? स्वास्थ्य से जुड़ी ऐसी सामग्रियां, जो महिलाओं को उनके स्वास्थ्य से जुड़े विभिन्न मुद्दों के बारे में जागरूक करती हों, हमें इंटरनेट पर भी कम ही नज़र आती हैं। इन तक पहुंचने के लिए विशेष प्रयास करने पड़ते हैं।
क्या है पैप स्मियर टेस्ट?

पैप स्मियर टेस्ट क्या है और इसके महत्व के बारे में महाराष्ट्र के बीड की गायनेकोलॉजिस्ट डॉ. गौरी कैवल्य गायकवाड बताती हैं, “पैप स्मियर एक ऐसा टेस्ट है, जहां हम सर्वाइकल कैंसर को इसके शुरुआती स्टेज में डिटेक्ट करने की कोशिश करते हैं। भारत में सर्वाइकल कैंसर के बढ़ते हुए मामलों को देखते हुए इसकी अहमियत बढ़ जाती है। इसके ज़रिए कैंसर होने से पहले ही यह पता लगाया जा सकता है कि किसी महिला को कैंसर होने की संभावना है।” डॉक्टर गौरी आगे बताती हैं कि इस टेस्ट से यीस्ट इन्फेक्शन और कई तरह के वायरस से जुड़े इन्फेक्शन भी पकड़ में आ जाते हैं, जो आगे चलकर कैंसर की वजह बन सकते हैं। इसलिए यह टेस्ट बहुत ज़रूरी है। डॉक्टर गौरी यह भी बताती हैं कि इस टेस्ट के तहत एनेस्थीसिया नहीं दिया जाता और यह काफ़ी आसानी से हो जाता है।
पैप स्मियर एक ऐसा टेस्ट है, जहां हम सर्वाइकल कैंसर को इसके शुरुआती स्टेज में डिटेक्ट करने की कोशिश करते हैं। भारत में सर्वाइकल कैंसर के बढ़ते हुए मामलों को देखते हुए इसकी अहमियत बढ़ जाती है। इसके ज़रिए कैंसर होने से पहले ही यह पता लगाया जा सकता है कि किसी महिला को कैंसर होने की संभावना है।
इसमें वजाइना में स्पेकुलम डालकर सर्विक्स से कुछ सेल्स या कोशिकाओं को इकट्ठा करके उनकी जांच की जाती है। उन्होंने बताया कि कुछ साल पहले तक डॉक्टर्स चालीस साल के ऊपर की उम्र भी सभी महिलाओं को इस टेस्ट को तीन साल में एक बार करवाने की सलाह देते थे। लेकिन अब भारत में कैंसर के मामले बढ़ रहे हैं और पच्चीस साल से ऊपर की महिलाओं के लिए भी इसे करवाना ज़रूरी हो गया है। जिन महिलाओं के परिवार में किसी को सर्वाइकल, एंडोमेट्रियल, ओवरी का या स्तन कैंसर रहा हो उन्हें तो यह टेस्ट ज़रूर करवाना चाहिए। उन्होंने बताया कि इसे करने का खर्च 500 से 550 रुपए के बीच आता है।
इसके अलावा यह टेस्ट किसी स्त्रीरोग विशेषज्ञ को ही करना चाहिए। लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में नर्स भी इसे कर सकती हैं। अगर डॉक्टर ने इसे करने की सलाह नहीं दी हो, फिर भी अगर कोई महिला इस टेस्ट को करवाना चाहती है, तो वो इसे करवा सकती है। कोई भी डॉक्टर यह टेस्ट करने से किसी महिला को इन्कार नहीं कर सकती। पच्चीस से पैंतीस साल की महिलाओं को यह टेस्ट हर तीन साल में एक बार करवाना चाहिए और पैंतीस या चालीस साल से ऊपर की महिलाओं को इसे हर साल करवाना चाहिए।
इसमें वजाइना में स्पेकुलम डालकर सर्विक्स से कुछ सेल्स या कोशिकाओं को इकट्ठा करके उनकी जांच की जाती है। उन्होंने बताया कि कुछ साल पहले तक डॉक्टर्स चालीस साल के ऊपर की उम्र भी सभी महिलाओं को इस टेस्ट को तीन साल में एक बार करवाने की सलाह देते थे।
टेस्ट करवाने से क्यों झिझकती हैं महिलाएं
आम तौर पर महिलाएं सोचती हैं कि यह काफ़ी इनवेसिव (यानी ऐसा होता है जिसमें आपके शरीर में कुछ डाला जाता है) होता है। ऐसा सोचना इस अनुभव से भी हो सकता है कि कई बार महिलाएं पीरियड्स की समस्या की जांच के लिए स्त्री-रोग विशेषज्ञ के पास जाती हैं। इस जांच के लिए स्त्री-रोग विशेषज्ञ स्पेकुला का इस्तेमाल करती हैं और उससे दर्द हो सकता है। इसके अलावा देश में आम तौर पर स्त्री-रोग विशेषज्ञ महिलाओं को पीरियड्स से जुड़ी समस्या पर ऐसी सलाह भी देती हैं कि महिलाएं शादी कर लें या बच्चा कर लें जो काफ़ी अपमानजनक हो सकता है। इससे दोबारा गायनेकोलॉजिस्ट के पास जाना मुश्किल हो जाता है।

इसके अलावा, टेस्ट को लेकर जहां जागरूकता है, वहां भी झिझक और शर्म जुड़ी है। बहुत बार गायनेकोलॉजिस्ट महिलाओं से उनकी वर्जिनिटी से जुड़े सवाल कुछ इस अन्दाज़ में पूछती हैं कि महिलाएं असहज हो जाती हैं और ऐसे किसी भी टेस्ट को करवाने से कतराने लगती हैं। डॉक्टर गौरी से इस झिझक की वजहें पूछी गई तो वह बताती हैं, “जब भी हम महिलाओं को इस टेस्ट को करवाने की सलाह देते हैं, तो आम तौर पर वे कैंसर का नाम सुनकर ही डर जाती हैं। वे कहती हैं कि उन्हें तो कोई लक्षण हैं ही नहीं, उनके परिवार में भी किसी को कैंसर नहीं है, तो उन्हें क्यों करवाना है यह टेस्ट? वे जानना ही नहीं चाहती कि उन्हें कैंसर हो सकता है।”
जब भी हम महिलाओं को इस टेस्ट को करवाने की सलाह देते हैं, तो आम तौर पर वे कैंसर का नाम सुनकर ही डर जाती हैं। वे कहती हैं कि उन्हें तो कोई लक्षण हैं ही नहीं, उनके परिवार में भी किसी को कैंसर नहीं है, तो उन्हें क्यों करवाना है यह टेस्ट?
डॉक्टर गौरी ने आगे बताया, “महिलाओं को इस टेस्ट की प्रक्रिया से भी डर लगता है। डॉक्टर के लिए तो ये रोज़ का काम होता है, लेकिन किसी मरीज के लिए इस तरह का टेस्ट करवाने का यह पहला अनुभव हो सकता है। लोगों में डॉक्टर को अपनी बॉडी दिखाने को लेकर शर्म होती है। डॉक्टर को यह बात समझनी चाहिए। अगर टेस्ट की प्रक्रिया ठीक से समझाई जाती है, तो महिलाएं मान जाती हैं। लेकिन अगर डॉक्टर और मरीज़ के बीच की बातचीत सही से नहीं होती, तो मरीज़ टेस्ट की प्रक्रिया से ही इन्कार कर देती है।” इसलिए, डॉ गौरी बताती हैं कि किसी भी डॉक्टर को टेस्ट शुरू करने से पहले महिला की रज़ामंदी लेना और इस बारे में उसे आश्वस्त करना ज़रूरी है कि वे उन्हें दर्द नहीं होने देंगी, अगर दर्द हुआ तो वो टेस्ट को रोक देंगी। इसके अलावा जांच के लिए स्पेकुलम चुनते समय सही साइज़ का स्पेकुलम चुनना चाहिए। गलत साइज़ के स्पेकुलम से टेस्ट करने पर भी महिला को दर्द हो सकता है।

वर्जिनिटी से जुड़े सवालों को लेकर डॉक्टर गौरी ने कहा, “डॉक्टर के लिए किसी महिला की सेक्शुअल हिस्ट्री को जानना ज़रूरी होता है क्योंकि सर्वाइकल कैंसर ह्यूमन पेपिलोमावायरस (एचपीवी) से फैलता है और यह वायरस किसी महिला के शरीर में ज़्यादातर किसी पुरुष की ज़रिए ही आता है, वर्जिन महिलाओं में इसका टेस्ट नहीं किया जाता। लेकिन ऐसे सवालों को पूछने से पहले डॉक्टर को महिला की पृष्ठभूमि समझ लेनी चाहिए और उन्हें सहज माहौल देते हुए ही उनसे ये सवाल पूछने चाहिए। यह समझना ज़रूरी है कि महिला आपके पास इलाज करवाने के लिए आई है। इसके अलावा अगर किसी महिला के साथ यौन हिंसा हुआ है, तो डॉक्टर को उसकी ठीक से काउन्सलिंग करने के बाद ही जांच करनी चाहिए क्योंकि ऐसी महिलाएं अक्सर इस तरह के टेस्ट से डरने लगती हैं।”
डॉक्टर के लिए किसी महिला की सेक्शुअल हिस्ट्री को जानना ज़रूरी होता है क्योंकि सर्वाइकल कैंसर ह्यूमन पेपिलोमावायरस (एचपीवी) से फैलता है और यह वायरस किसी महिला के शरीर में ज़्यादातर किसी पुरुष की ज़रिए ही आता है, वर्जिन महिलाओं में इसका टेस्ट नहीं किया जाता। लेकिन ऐसे सवालों को पूछने से पहले डॉक्टर को महिला की पृष्ठभूमि समझ लेनी चाहिए और उन्हें सहज माहौल देते हुए ही उनसे ये सवाल पूछने चाहिए।
एचपीवी वैक्सीन लेना क्यों है ज़रूरी
सर्वाइकल कैंसर से बचाव का एक तरीका तो उसकी स्क्रीनिंग, यानी पैप स्मियर टेस्ट करवाना है। इससे बचाव का दूसरा तरीका है एचपीवी वैक्सीन लगवाना। यह इसके खतरे को 90 प्रतिशत तक काम कर सकता है। यह योनि और उसके आस-पास पर होनेवाले मस्सों और मुहाँसों के साथ-साथ सर्वाइकल कैंसर से भी बचाती है। एचपीवी वैक्सीन को 9-14 साल की लड़कियों और लड़कों दोनों को उनके सेक्शुअली एक्टिव होने से पहले लगवा दिया जाना चाहिए। यह वैक्सीन लड़कों के लिए भी ज़रूरी है और उन्हें भी कई स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से बचाती है। डॉक्टर 9 से 14 उम्र के बच्चों के लिए छह महीने के अन्तराल पर इसकी दो खुराक लेने का सुझाव देते हैं। अगर आप 9-14 साल की उम्र में वैक्सीन नहीं लगवा सके, तो 15-45 की उम्र में भी इसे लगवाया जा सकता है।
इस आयु वर्ग वाले लोगों को वैक्सीन की खुराक 0, 2 और 6 महीने के अन्तराल पर दी जाती है। प्राइवेट अस्पतालों में इसके डोज़ का दाम 2000 से 4000 रुपए के बीच होता है, जोकि काफ़ी ज़्यादा होता है। लेकिन अब यह वैक्सीन कम दाम में कई सरकारी अस्पतालों में भी उपलब्ध है। लेकिन इसे लगवाने को लेकर लोगों की झिझक दूर हो सके इसके लिए उनमें इसे लेकर जागरूकता फैलाने की ज़रूरत है। भारत जैसे देश में जहां सर्विकल कैंसर महिलाओं में होनेवाला दूसरा सबसे आम कैंसर हैं, वहां इस वैक्सीन की और पैप स्मियर टेस्ट की प्रासंगिकता और भी ज़्यादा बढ़ जाती है। सरकार को भी इस दिशा में प्रयास करने चाहिए कि ज़्यादा से ज़्यादा लोगों की इस वैक्सीन और पैप स्मियर टेस्ट तक पहुंच हो।